भरोसा तो सदियों से यह दिलाया जाता रहा है कि जब जब पृथ्वी पर पाप बढ़ते हैं तब तब भगवान अवतार लेकर पापियों का नाश करता है. इधर पाप बढ़ते जा रहे हैं और अवतार के कहीं अते पते नहीं. भक्त और श्रद्धालु कहीं निराश होकर धरम करम और दान दक्षिणा करना न छोड़ दें, इसलिए कई देहधारी ही भगवानों सरीखी हरकतें करते खुद को पुजवा रहे हैं और तबीयत से मुफ्त की मलाई हलवा पूरी सूँतते तमाम दूसरे दैहिक दैविक सुख भोग रहे हैं. धर्म, धर्मगुरुओं और धर्मस्थलों का बाज़ार खूब फल फूल रहा है. लोग पहले पाप करते हैं फिर उसका प्रायश्चित करने इन कलयुगी अवतारों यानि खुद से भी बड़े पापियों को चढ़ावा चढ़ाकर अगले पाप की तैयारी करने लगते हैं. कई कई बुद्धिमान तो पाप के बाबत अग्रिम चढ़ावा अर्पित कर आते हैं.
इस बदहाली पर कायदे की और दो टूक चिंता आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने जताई है. बकौल नायडू पाप बढ़ने से मंदिरों की आमदनी मे इजाफा हो रहा है. लोग पाप कर रहे हैं और उससे छुटकारा पाने मंदिरों में जाकर धन चढ़ा रहे हैं. विजयवाड़ा मे जिला कलेक्टरों के सम्मेलन मे नायडू सीधे सीधे यह कहकर तो आफत मोल ले नहीं सकते थे कि पंडे और धर्म गुरु देश को किस तरह लूट खसोट कर खोखला कर रहे हैं, फिर भी आंशिक सच बोलने के बाबत साधुवाद के हकदार तो वे हैं.
अय्यपा स्वामी पर जरूर सीधा हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि लोग उनसे दीक्षा ले रहे हैं और 40 दिनो तक शराब से परहेज कर रहे हैं. इससे शराब की बिक्री कम हो रही है और राजस्व में कमी आ रही है, लेकिन मंदिरों की आमदनी 27 फीसदी तक बढ़ गई है. चंद्रबाबू की इस साफ़गोई से साफ लग रहा है कि देश में या तो धर्म बिकता है या फिर दारू, पैसा या तो किसी अय्यपा के पास जाएगा या फिर किसी माल्या के पास जाएगा, लेकिन विकास कार्यों या जनहित में लोग नहीं देंगे. नायडू ने मर्ज भर बताया है. उसका इलाज वे नहीं सुझा पाये कि सारे फसाद, कंगाली, दरिद्रता, भेदभाव, असिहष्णुता और पिछड़ेपन की वजहें धर्म, धर्मगुरु और धर्मग्रंथ हैं, जो पहले पाप की मनमानी व्याख्या करते हैं और फिर पाप मुक्ति के नाम पर पैसा वसूलते हैं, लोगों को तरह तरह से कर्मकांडो के लिए उकसाते हैं, दान दक्षिणा के पैसे के दम पर अरबों रुपये के इवैंट करते हैं और इनमे शीर्ष नेताओं को बुलाकर साबित कर देते हैं कि वे भी भगवान बन जाने की आदिम ख़्वाहिश से पीड़ित हैं.
एक दफा सामाजिक और राजनैतिक इच्छाशक्ति से शराब नाम के एब से तो छुटकारा पाया जा सकता है. यह बिहार और तमिलनाडु से साबित हो रहा है, पर धर्म नाम की शाश्वत व्याधि से कैसे लोगों को मुक्त किया जा सा सकता है, इस बाबत बोलने की हिम्मत किसी में नहीं कि प्रतिबंध शराब से पहले धार्मिक लूट खसोट पर लगाया जाए, तो जरूर अच्छे दिनो की उम्मीद साकार हो सकती है.