केंद्र सरकार के 2 साल पूरे होने पर जिन लोगों से मोदी सरकार के कामकाज पर बातचीत की गई, इसमें मीडिल क्लास सबसे अधिक वित मंत्री अरुण जेटली से खफा नजर आया. ज्यादातर लोग मोदी सरकार की टैक्स नीति से नाखुश नजर आये. साधारण वेतन भोगी वर्ग का तर्क था कि जिस तरह से मंहगाई बढी है, उसको देखते हुये इनकम टैक्स में रिबेट की सीमा को बढ़ाया जाना चाहिये था. पहले भाजपा इसकी पक्षधर थी, पर जब वह सरकार में आई तो 5 लाख टैक्स लिमिट वाली बात को दरकिनार कर दिया गया.

जिस तरह से सर्विस टैक्स केन्द्र सरकार ने बढाया, उसका असर महंगाई पर पडा है. सरकार महंगाई को कंट्रोल करने में बुरी तरह से फेल रही है. ऐसे में सभी को यह लगता है कि वित मंत्री के रूप में अरुण जेटली फेल हुये हैं. यह और बात है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वित मंत्री अरुण जेटली के काम की तारीफ कर चुके हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ ‘मीडिल क्लास’ की धारणा तब और मजबूत हो गई जब सर्राफा कारोबारी लंबे समय तक अपनी दुकाने बंद कर हडताल पर था.

सर्राफा कारोबारियों की हडताल से केवल दुकानदारों पर ही असर नहीं पडा, बल्कि सर्राफा कारोबार में काम करने वाले कारीगर और ग्राहक परेशान हुये. आम लोगों को यह साफ महसूस हुआ कि केन्द्र सरकार बडे ज्वेलर बिजनेसमैनों को लाभ पहुंचाने के लिये छोटे सर्राफा कारोबारियों को परेशान कर रही है. सर्राफा कारोबारी भाजपा को बहुत प्रतिबद्व मतदाता था. लोगों को लगता है कि वित मंत्री अरुण जेटली को सर्राफा कारोबारियों की मांग मान लेनी चाहिये थी. ऐसा न करने से भाजपा का एक बडा वोटबैंक पार्टी से नाराज हुआ है. सर्राफा कारोबारियों ने पूरे मसले में एक बार भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना नहीं की. सभी के निशाने पर वित मंत्री अरुण जेटली ही थे. सर्राफा हडताल प्रकरण में वित मंत्री का नाम इतनी बार सामने आया कि ‘मिडिल क्लास’ महंगाई और इनकम टैक्स रिबेट को लेकर वित्त मंत्री से नाखुश हो चुका है.

अरुण जेटली जमीनी नेता नहीं हैं. ऐसे में लोगों का मानना है कि वह जनता के सुख दुख को नहीं समझते. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब तमाम भाजपा और दूसरे नेता चुनाव जीत गये थे, उस दौर में भी अरुण जेटली चुनाव हार गये थे. भाजपा ने बाद में अरुण जेटली को राज्यसभा सदस्य बनाकर वित्त मंत्री की कुर्सी सौंपी. ‘मिडिल क्लास’ लोगों का मानना है कि चुनाव जीतने के लिये जनता के हित वाली योजनाये बनानी चाहिये थी. इस वर्ग के सरकारी और प्राइवेट नौकरों को शिकायत है कि केन्द्र सरकार को इनकम टैक्स में छूट लिमिट 5 लाख करनी चाहिये.

भाजपा जब विपक्ष में थी तो इस बात से सहमत भी थी. केन्द्र सरकार ने पीएफ निकासी पर टैक्स लगाया था, जिसे जनता के विरोध के बाद वापस ले लिया गया था. कांग्रेस के समय मिडिल वर्ग ही महंगाई से सबसे ज्यादा परेशान था. उसको लगता था कि कांग्रेस के जाने के बाद भाजपा की सरकार आयेगी, तो टैक्स से राहत मिलेगी. 2 साल में ऐसा न होने से उसका गुस्सा वित्त मंत्री के खिलाफ भडका हुआ है. लोगों को लगता है कि वित्त मंत्री को राहत देने वाली जो योजनायें बनानी चाहिये थी वह नहीं बनाई.

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