भाजपा और गांधी परिवार के बीच छत्तीस का आंकडा हमेशा से रहा है. नये दौर में दोनो के बीच यह तल्खी और भी अधिक बढती गई है. गांधी परिवार को छोडकर भाजपा के सहयोग से मंत्री बनी मेनका गांधी गांधी परिवार की बहू हैं. मेनका गांधी लंबे समय तक भाजपा के सहयोग से ही चुनाव लडती रही. भाजपा की सरकार में वह मंत्री भी बनी. उस समय भी उनका वजूद अलग ही था. मेनका गांधी के बेटे वरूण गांधी जब राजनीति में आये, तो भाजपा ने उनका इस्तेमाल गांधी परिवार के खिलाफ किया.
मेनका गांधी जहां उत्तर प्रदेश की लखीमपुर सीट से चुनाव लडती रही, वहीं भाजपा ने वरूण गांधी को गांधी परिवार की सीट अमेठी और सुल्तानपुर क्षे़त्र से चुनाव लडने के लिये तैयार किया. जिससे वरूण गांधी का मुकाबला राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी से होता रहे. वरूण गांधी को यह भरोसा भाजपा की ओर से मिलता रहा कि उनको उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम रोल दिया जायेगा. वरूण गांधी के समर्थक कई बार वरूण को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने का अभियान तक चला चुके है.
वरूण गांधी सुल्तानपुर सीट से सांसद है. लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी केन्द्र सरकार में उनको कोई बडी जिम्मेदारी नहीं दी गई. सुल्तानपुर के बगल की अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद भी स्मृति ईरानी को राज्यसभा के रास्ते केन्द्र सरकार में मंत्री बना दिया गया. भाजपा वरूण गांधी को यह कहकर समझाने का प्रयास करती है कि उनकी मां मेनका गांधी को मंत्री बना दिया गया है.
भाजपा में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले मेनका और वरूण पार्टी में हैं. भाजपा में मेनका और वरूण की हैसियत अलग अलग थी. मेनका गांधी जहां भाजपा के सहयोग से चुनाव लडती थी, वहीं वरूण गांधी भाजपा के कार्यकर्ता की हैसियत से चुनाव लडते थे. दरअसल भाजपा में अटल-आडवाणी युग में मेनका गांधी की ताजपोशी हुई थी. उसके बाद वरूण गांधी को पार्टी मे शामिल किया गया. उस समय तक पार्टी की सोच अलग थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का कायाकल्प हुआ, तब वरूण गांधी अपनी जगह बनाने में सफल नहीं हुये. 2 साल के कार्यकाल में वरूण गांधी राजनीतिक पटल पर मजबूती से खडे दिखाई नहीं दिये. वरूण गांधी की छवि भाजपा के एक सामान्य सांसद की तरह ही दिखाई दी. यह वरूण गांधी की अपनी पहचान के लिये संकट का दौर है.
भाजपा के दूसरे सहयोगी संगठन यह नहीं चाहते ही गांधी परिवार के सदस्य को पार्टी में बहुत महत्व दिया जाये. जिसकी वजह से वरूण गांधी को कोई नई जिम्मेदारी नहीं दी गई. वरूण गांधी से अधिक गांधी परिवार के खिलाफ स्मृति ईरानी को महत्व देकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि पार्टी में वरूण गांधी सामान्य सांसद की ही तरह से देखे जायेंगे. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी उनको कोई बडी जिम्मेदारी देने के लिये पार्टी तैयार नहीं है.