असम, तमिलनाडु, बंगाल, पुडुचेरी और केरल के विधानसभा चुनावो में से भारतीय जनता पार्टी को केवल असम में जीत हासिल हुई. खेल की बोली में बात करे तो खेल का परिणाम 5-1 से भाजपा के पक्ष में रहा. भाजपा जीत की खुशी का शोर इस तरह से मचा रही है जैसे खेल का परिणाम उसने सभी मैच जीत लिये हो. जीत के शोर में भाजपा ने यह जताने की कोशिश की कि उसके 2 साल के कार्यकाल से पूरा देश खुश है. केन्द्र में मोदी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है.

भाजपा जीत के शोर में दिखाई देने वाले सच को भूल जाना चाहती है. यह कहा जा रहा है कि असम में जिस टीम और मुद्दों ने जीत दिलाई उसको उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी जाये. 5 राज्यों के इन विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा में भाजपा के प्रदर्शन को देखा जाये तो जीत के शोर में न दिखाई देने वाला सच सामने आ जायेगा.

चुनाव परिणामों को थोडा आंकडों की नजर से देखे तो तमिलनाडु में भाजपा को 234 सीटो में 0 सीट, पुडुचेरी में 30 सीट में से 0, केरल में 140 सीट में से 1 बंगाल में 294 में से 3 और असम में 126 में से 88 सीट ही मिली है. महज एक राज्य मे मिली जीत को पूरे देश का जनादेश बताकर केन्द्र सरकार के 2 साल के कामकाज को सर्वश्रेष्ठ बताया जा रहा है.

सीट के अलावा 5 राज्यों के चुनाव परिणामों को पार्टी को मिलने वाले वोट प्रतिशत से देखे तो भी साफ दिखाई देगा कि 2014 के मुकाबले इन चुनावों में भाजपा की लोकप्रियता घटी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में असम में भाजपा को 7 सीटे मिली और उसको वोट प्रतिशत 36.86 था. विधानसभा चुनाव में भाजपा ने असम में सरकार बनाई पर उसका वोट प्रतिशत घटकर 29.5 रह गया.

बंगाल में भाजपा का वोट प्रतिशत 17.2 से घटकर 10.2 रह गया. केरल में भाजपा का मत प्रतिशत मामूली सा बढा हुआ नजर आया. 2014 के लोकसभा चुनावों में उसे 10.33 प्रतिशत वोट मिले थे विधानसभा चुनाव में 10.6 हो गये. तमिलनाडु में भाजपा को लोकसभा चुनावों में 5.56 प्रतिशत वोट मिले थे जो विधानसभा में घटकर 2.8 रह गये. जीत के शोर में भाजपा इन आंकडों को न खुद देखना चाहती है और न दूसरों को दिखाना चाहती है. इस सच को दरकिनार कर पूरी तरह से इस तरह बात को पुख्ता करने की कोशिश हो रही है कि पूरा देश केन्द्र सरकार की नीतियों से खुश है.

पार्टी का आत्मविश्वास बढाने के लिये भाजपा इसी लिये केवल कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रही है.वहां वह यह समझना नहीं चाहती कि भाजपा कांग्रेस को हरा रही है पर दूसरों से हार रही है. जिस तरह की सोच पर भाजपा चल रही है, कभी यही सोच कांग्रेस की होती थी. कांग्रेस ने समय रहते अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास नहीं किया. जिससे प्रदेशों में धीरे धीरे उसका जनाधार सिमटता गया. कोई भी पार्टी अपने अखिल भारतीय स्वरूप में तब तक रहेगी जब तक वह प्रदेशों में मजबूत हालात में रहेगी.

क्षेत्रीय दलो से गठबंधन कर सत्ता का गणित कुछ दिन तक चल सकता है. भाजपा यह समझने का प्रयास नहीं कर रही कि 2014 के मुकाबले उसकी लोकप्रियता घट रही है. उसका यही भुलावा भारी पड़ेगा. समय रहते अपनी कमियों का निदान जरूरी है. इसके लिये जरूरी है कि आलोचनाओं को भी सकारात्मक ले. आलोचना को विरोध मानकर दरकिनार करना घातक साबित होतो है.              

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