उत्तर प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री पार्टी की मीटिंग में हिस्सा लेने दिल्ली गये थे. वह खुद का दामन इतना पाकसाफ मानते है जितना सूरज और चांद पाकसाफ हैं. मंत्री जी की सुरक्षा में 26 लोगों का स्टाफ हमेशा उनके साथ ही रहता है. इसमें सलेटी रंग वाली कमाडों जैसी वरदी पहनने वाले कुछ सुरक्षाकर्मी होते है. कुछ क्रीम कलर सफारी सूट पहनते हैं और कुछ खाकी वर्दी में होते हैं. मंत्री जी दिल्ली से लखनऊ हवाई जहाज से चले आये. उनका सुरक्षा स्टाफ पहले दिल्ली से कार के रास्ते से मुरादाबाद और रामपुर गया. वहां कार ड्राइवर सडक के रास्ते लखनऊ चल दिया.

मंत्री जी के सुरक्षा दस्ते के बचे 16 लोग 19 मई को मुरादाबाद में ट्रेन के जरीये लखनऊ आने के लिये जम्मू से वाराणसी जाने वाली ट्रेन नम्बर 12237 बेगमपुरा एक्सप्रेस के कोच नम्बर एस-8 और एस-7 में घुस गये. यहां कोच नम्बर एस-8 सीट नम्बर 7 पर जम्मू से वाराणसी की यात्रा कर रही सवारी की सीट पर 3 लोग बैठ गये. बाकी लोग कोच की दूसरी सीटों पर बैठ गये. इन सभी ने अपना परिचय कद्दावर मंत्री आजम खां के सुरक्षा स्टाफ के रूप में दिया.

सभी यात्री जैसेतैसे लखनऊ आने का इंतजार करते रहे. लखनऊ में जब यह स्टाफ उतर गया तो बाकी यात्री अपनी यात्रा तय कर सके. परेशानी की बात यह है कि इस तरह की परेशानियों को सुलझाने वाला कोई भी अमला रेलवे के पास नहीं है. मुरादाबाद के पहले रेलवे पुलिस और टिकट कलेक्टर ऐसे लोगों के टिकट चेक कर रहे थे जिनके टिकट वेटिंग में थे और वह कन्फर्म नहीं थे. जब मंत्री जी का सुरक्षा दस्ता ट्रेन में बैठ गया तो उसके रिजर्वेशन को देखने की जरूरत नहीं पडी. मुरादाबाद से लखनऊ तक का सफर यात्रियों का जैसेतैसे कटा. सीट पर बैठे लोग सुरक्षा दस्ते के प्रभाव के चलते खुद ही सीट छोड कर कोच के आनेजाने वाले रास्ते में बैठ गये. कई लोग सीट के नीचे ही लेट गये. इन यात्रियों की सीटो पर सुरक्षा स्टाफ के लोग आराम से सोते हुये लखनऊ आ गये.

यह कोई बडी बात नहीं है. स्लीपर डिब्बों में सफर करने वाले लोग ऐसे हालातों से रोज ही दो चार होते रहते हैं. स्लीपर कोच में सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं होता है. यात्रियो को यह पता नहीं होता कि ऐसे हालातों का मुकाबला करने के लिये वह किस अधिकारी की शरण में जाये. बुलैट ट्रेन और दूसरी तमाम सुविधाओं की बात करने वाली केन्द्र सरकार स्लीपर और जनरल कोच में चलने वाले लोगों की सुविधा और सुरक्षा के लिये कुछ नही कर रही है. स्लीपर कोचों में लोग अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे है. ऐसे में रेलवे विभाग के ‘सुरक्षित और सुखद’ यात्रा का दावा पूरी तरह से खरा नहीं उतरता.

इस तरह के काम केवल एक मंत्री को के सुरक्षा स्टाफ का नहीं है. तमाम पुलिस विभाग में कार्यरत लोग इस तरह से ही ट्रेन में सफर करते हैं. जिससे सामान्य यात्रियों को परेशानी का सामना करना पडता है. इससे मंत्री की छवि जनता के बीच खराब होती है. यात्रियों को भी अपनी सुखद और सुरक्षित भविष्य की यात्रा की गारंटी नहीं रहती है.       

        

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