उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस सबसे ज्यादा रस्साकशी में जुटी है.अपनी हालत को मजबूत करने के लिये चुनाव प्रबंधन के लिये मशहूर प्रशांत किशोर को कमान सौंपी है.प्रशांत किशोर और उनकी टीम पहले स्तर पर कांग्रेस के पुराने संगठन को जांच परखकर एक रिपोर्ट तैयार कर रही है. यहां वह ऐसे युवा नेताओं के नामों की सूची तैयार कर रही है जिनकी उस इलाके में पकड है.दूसरे दलों से नाराज चल रहे प्रभावशाली नेताओं पर भी उनकी नजर है.प्रशांत किशोर की टीम को यह पता चला है कि जनता कांग्रेस के पुराने नेताओं से खुश नहीं है.ऐसे नेता नये चेहरों को उभरने नहीं देना चाहते.ऐसे में प्रशांत किशोर की टीम चाहती है कि पुराने हाशिये पर पहंुच चुके नेताओं की जगह पर नये नेताओं को लाया जाये.प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व को लेकर भी प्रशांत किशोर की टीम को नये चेहरे की तलाश है.प्रशांत किशोर की टीम को कांग्रेस के पुराने लोग पसंद नहीं कर रहे. उनको लगता है कि प्रशांत किशोर की टीम की सिफारिशों के चलते उनका पत्ता कट सकता है.

कांग्रेस के ऐसे तमाम दिग्गज नेता प्रशांत किशोर की टीम को पसंद नहीं कर रहे.ऐसे में कई जगहों पर उनका विरोध शुरू हो गया.इसके बाद भी प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने अपना काम जारी रखा है.उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस किसी चेहरे का नाम चुनाव के पहले घोषित करने की पहल नहीं करेगी.कांग्रेस ने यह भी साफ कर दिया है कि गांधी परिवार का कोई चेहरा उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं होगा.कांग्रेस हाईकमान इस बात पर सहमत है कि पुराने नेताओं को रिटायर कर अच्छी छवि वाले नये नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा जाये.दूसरे दलों के उन नेताओं को कांग्रेस का टिकट दिया जा सकता है जो जनाधार वाले उपेक्षित पडे हो.

कांग्रेस उत्तर प्रदेश में जनता दल युनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल सहित कई दूसरे दलो को मिलाकर महागठबंधन बना कर चुनाव लडने की योजना में है.लोकदल भी इसका हिस्सा हो सकता है.कांग्रेस चाहती है कि अगर उत्तर प्रदेश में किसी भी दल को बहुमत न मिले तो उनका गठबंधन इस हालत में रहे कि बिना उसके मिले उत्तर प्रदेश की सरकार न बन सके.बिहार के मुकाबले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिये अच्छे अवसर है.अम्बेडकर जंयती के समापन के अवसर पर कांग्रेस के नेता सुशील कुमार शिन्दे लखनऊ में थे.इस समारोह में यह खुलासा हुआ कि उत्तर प्रदेश के 2 क्षेत्रिय दलों ने सुशील कुमार शिन्दे को राष्ट्रपति नहीं बनने दिया.कांग्रेस इस तरह के मुददो से लोगों को लुभाने को काम कर रही है.चुनाव में वह एक बार फिर युवा और सवर्ण चेहरे की अगुवाई चाहती है.उत्तर प्रदेश के बाकी दलों में दलित और पिछडों को लेकर जो होड लगी है उसका जवाब देने के लिये सर्वण कार्ड को खेलेगी.उत्तर प्रदेश में अभी भी सवर्ण जातियों में कांग्रेस को लेकर मोह बना हुआ है.कांग्रेस के आगे आने से यह लोग उसके साथ एकजुट हो सकते है.

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