आज के दौर में घटती जमीन और गिरती पैदावार किसानों की सब से बड़ी परेशानी बनती जा रही है. ऐसे में किसान उपज की पैदावार बढ़ाने के लिए जब महंगी खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल करता है, तो खेती की लागत और भी ज्यादा बढ़ जाती है. साथ ही किसान अच्छी पैदावार लेने के चक्कर में जमीन की सेहत को भी नजरअंदाज कर देते हैं.

कई बार महंगी फसल की बोआई करने के लिए किसान बैंक से या साहूकारों से कर्ज ले कर काम करते हैं. जब सही तरह से फसल तैयार नहीं होती, तो वे नुकसान उठाते हैं. ऐसे हालात में फंस कर किसान कई बार आत्महत्या तक करने को मजबूर हो जाते हैं.

कम जमीन होने के बावजूद जैविक खेती कर के गुणवत्तापूर्ण फसल लेने वाले कोथून इलाके के आधा दर्जन से भी ज्यादा किसान दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन रहे हैं. इन किसानों की खास बात यह है कि ये खेत में एक भी दाना यूरिया या डीएपी खाद का नहीं डालते और न ही किसी तरह के कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. इस के बावजूद उत्पादन और गुणवत्ता लगातार बढ़ रही है.

ऐसे ही एक किसान रामलाल चौधरी बताते हैं कि अगर किसान अपनी खेती की सेहत को सही रखे, उस में सही मात्रा में जैविक खाद का इस्तेमाल करे, तो मिट्टी तो उपजाऊ बनी रहेगी ही, साथ ही कैमिकल खादों और कीटनाशकों की जरूरत ही नहीं रहेगी. यदि खेत की सेहत ठीक रहेगी, तो उस में विभिन्न किस्मों की फसलें भी ली जा सकती हैं.

जैविक खेती करने वाले किसान रामलाल, रामप्रसाद, रामकिशन, महिपाल व रामजस मानते हैं कि जिस तरह से कमजोर शरीर वाला व्यक्ति ज्यादा मेहनत वाला काम नहीं  कर सकता, उसी तरह कमजोर खेत भी अच्छी फसल पैदा नहीं कर सकता. इसलिए किसानों को सब से पहले अपने खेत की मिट्टी की सेहत ठीक रखनी चाहिए.

जैविक खाद से खेती करने वाले महाचंदपुरा गांव के रहने वाले किसान रामकिशन चौधरी के पास 6 बीघे जमीन है. इस में वे चना, मटर, अरहर, मूंगफली व गेहूं की खेती करते हैं. वे कई तरह की अलगअलग फसलों को मिला कर मिक्स खेती करते हैं, जिस से मुनाफा बढ़ जाता है.

अकसर एक खेत में एकसाथ कई तरह की फसलें लेने से मिट्टी की उपजाने की ताकत घट जाती है, लेकिन खेत की सेहत को बनाए रखने के लिए रामकिशन चौधरी ने जैविक खाद का इस्तेमाल किया. वे मानते हैं कि कंपोस्ट खाद और सीपीपी यानी हरी खाद से खेत की उर्वराशक्ति अच्छी रहती है, जिस से खेत से एकसाथ कई तरह की फसलें ली जा सकती हैं.

जयपुर जिले के कोथून गांव में जयपुरकोटा नेशनल हाईवे के किनारे रामलाल की 40 बीघे जमीन है. एक सीजन में वे 20 बीघे जमीन पर खेती करते हैं और इतनी ही जमीन खाली छोड़ देते हैं, ताकि अगली फसल के लिए जमीन अच्छी तरह से तैयार हो सके. वे रबी सीजन में गेहूं तो खरीफ में बाजरा व कुछ जमीन पर सब्जियां भी उगा लेते हैं.

खास बात यह है कि वे खेत में एक भी दाना यूरिया या डीएपी खाद का नहीं डालते और न ही किसी तरह के कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. इस के बावजूद उन की फसलों का उत्पादन और गुणवत्ता लगातार बढ़ रही है.

किसानों के सामने ऐसी ही अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं, पेशे से टीचर रामलाल चौधरी. स्कूल की छुट्टी के बाद रामलाल अपना ज्यादातर समय खेतीबारी में ही निकालते हैं. वे फसल बोने से पहले खेत में गायभैंस का गोबर भरपूर मात्रा में डालते हैं, ताकि फसल का उत्पादन अच्छा हो.

रामलाल ने बताया कि उन के इस कदम से हालांकि उत्पादन में तो ज्यादा फर्क नहीं आया है, लेकिन फसल की गुणवत्ता में काफी बदलाव आया है. गेहूं व बाजरे का दाना बड़ा होता है और उन का स्वाद भी अच्छा रहता है.

वैसे रामलाल द्वारा देशी खाद से उपजाए जा रहे खाद्यान्न की जानकारी जैसेजैसे उन के रिश्तेदारों व जानपहचान वालों को मिली, उन्होंने पहले ही बुकिंग करना शुरू कर दिया.

रामलाल ने बताया कि उन के द्वारा उगाए जा रहे खाद्यान्न की कीमत उन्हें बाजार भाव से 8 से 10 रुपए प्रति किलोग्राम ज्यादा मिल रही है. उन का यह सिलसिला पिछले 8 सालों से लगातार चल रहा?है. अब तो अनजान लोग भी उन से गेहूं व बाजरा लेने के लिए पहले ही रुपए जमा करा देते हैं.

वैसे तो खेत में गोबर डालने के लिए रामलाल 8-10 गायभैंसें पालते हैं, लेकिन गोबर की मात्रा कम पड़ने पर वे आसपास की गौशालाओं से भी गोबर खरीद कर लाते हैं और खेत में डालते हैं. उन का मानना है कि गोबर को खेत में डालने से फसल व उपज की गुणवत्ता में काफी हद तक सुधार आता है.वे कहते हैं कि ज्यादा उपज लेने के चक्कर में ज्यादातर किसान फसलों व खेतों में अंधाधुंध कैमिकल खादों व कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि ये बीमारियों को बुलावा देने का साधन हैं.

रामलाल आगे बताते हैं कि पंजाब व हरियाणा में आज सब से ज्यादा कैंसर के रोगी मिलने की यही सब से बड़ी वजह है. वहां पर कैमिकल खादों व कीटनाशकों का बेतहाशा इस्तेमाल किया जा रहा है. इन के साइड इफैक्ट देख कर उन्होंने 8 साल से कैमिकल खादों व कीटनाशकों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया. अब वे खेत में केवल गोबर की खाद ही डाल रहे हैं.

इस मामले में चाकसू की कृषि अधिकारी डाक्टर पूनम शर्मा का कहना है कि फसलों में कीटनाशकों व कैमिकल खादों का ज्यादा इस्तेमाल नुकसानदायक है. हालांकि उपज बढ़ाने के लिए उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन इस के साथ किसानों को गोबर की खाद का भी बराबर इस्तेमाल करते रहना चाहिए. वैसे किसानों को खेती के माहिरों की सलाह ले कर ही कीटनाशकों व कैमिकल खादों का इस्तेमाल करना चाहिए.

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