औफिस से आते समय गाना सुनते हुए कार चलाते नमन का मूड बहुत रोमांटिक हो गया. पत्नी तनु का खयाल आया, साथ ही अपनी फ्लोर पर एक फ्लैट शेयर कर के रहने वाली अंजलि, निया, रोली और काजल का भी खयाल आया तो घर जाने का उत्साह और भी बढ़ गया.

5 साल पहले नमन का विवाह तनु से हुआ था. दोनों ही लखनऊ में थे. यहां मुंबई में नमन जौब करता था. चारों लड़कियों से आतेजाते तनु की अच्छी जानपहचान हो गई थी. सब कामकाजी थीं पर छुट्टी के दिन जब भी कोई फ्री होती तो तनु के पास आनाजाना लगा रहता था. तनु कुछ स्पैशल बनाती तो इन के लिए भी रख लेती थी.

नमन और तनु की एक 3 वर्षीय बेटी भी थी सिया. तनु की गोद में प्यारी सी गुडि़या जैसी सिया से बोलते, हंसतेखेलते चारों लड़कियां तनु के भी करीब आती गई थीं. दिलफेंक, आशिकमिजाज नमन इन चारों लड़कियों में बड़ी रुचि लेने लगा था.

रोली एक दिन औफिस नहीं गई थी. नमन शाम को औफिस से आया तो वह तनु के साथ बैठ कर चाय पी रही थी. नमन उसे देखते ही खुश हो गया और उन दोनों के साथ ही बैठ कर चहकचहक कर बातें करने लगा.

रोली ने हंस कर कहा भी, ‘‘लग ही नहीं रहा है आप औफिस से आए हैं. इतने फ्रैश?’’

नमन ने मन ही मन सोचा कि फ्रैश तो तुम्हें देख कर हुआ हूं. नमन यही चाहता था कि इन चारों में से किसी न किसी से मिलनाजुलना होता रहे. चारों सुंदर, स्मार्ट थीं. तनु अकसर सिया के साथ व्यस्त होती. इन चारों में से कोई भी लड़की किसी काम से आ जाती और नमन घर पर होता तो वह आगे बढ़ कर खुद ही उन की आवभगत में लग जाता था. तनु सोचती कि वह सिया के साथ व्यस्त है तो नमन मेहमान की आवभगत कर उस की जिम्मेदारी में हाथ बंटाता है.

नमन का झुकाव इन लड़कियों की तरफ बढ़ता ही जा रहा था. घर में ही नहीं, औफिस में भी नमन का यही हाल था. साथ में काम करने वाली लड़कियों के साथ खूब फ्लर्ट करता था. कभी किसी लड़की को कौफी औफर करता, कभी किसी का घर रास्ते में न पड़ने पर भी उसे घर तक छोड़ देता. तनु अपने पति के इस स्वभाव को गंभीरता से न लेती. वह सोचती, नमन काफी सोशल है, क्या बुरा है इस में. हमारे कौन से रिश्तेदार हैं यहां. ये कुछ दोस्त ही तो हैं.

एक दिन सिया को ले कर तनु किसी बर्थडे पार्टी में गई हुई थी. नमन औफिस से आया. ताला लगा था. उस के पास चाबी तो रहती थी पर जब उस ने इन लड़कियों का फ्लैट खुला देखा तो मन में कुछ और ही सोच लिया. उन की डोरबैल बजा दी तो दरवाजा काजल ने खोला.

नमन ने भोली सूरत बना कर पूछा, ‘‘सिया और तनु यहां तो नहीं हैं?’’

‘‘नहीं तो?’’

‘‘ओह.’’

‘‘घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘नहीं, मेरे पास चाबी रहती तो है पर आज घर पर ही छोड़ गया था, वह मोबाइल भी नहीं उठा रही है. खैर, आ जाएगी.’’

‘‘आप अंदर आ जाइए, वेट कर लीजिए.’’

नमन यही तो चाहता था. अंदर जा कर चारों तरफ नजर डाली. यहां पहली बार आया था.

काजल से पूछा, ‘‘आज आप औफिस नहीं गईं?’’

‘‘हाफ डे ले कर आ गई थी. तबीयत ठीक नहीं लग रही थी.’’

‘‘अरे, क्या हुआ? चलो, डाक्टर को दिखाते हैं पास ही है.’’

‘‘नहींनहीं, थैंक्स. दवा ले ली है. अभी ठीक हूं. आप के लिए कुछ बना दूं. चाय या कौफी?’’

नमन मन ही मन काजल के साथ समय बिताता हुआ बहुत खुश था. प्रत्यक्षत: गंभीरतापूर्वक बोला, ‘‘नहीं, रहने दें. आप आराम कीजिए.’’

उस के मना करने पर भी काजल कौफी बना ही लाई.

नमन खुश था, एक युवा, सुंदर लड़की की कंपनी में. उस के चेहरे की चमक बढ़ गई थी. कौफी की तारीफ कर काजल से उस के काम, परिवार के बारे में पूछता रहा. काजल सहजता से बात करती रही. नमन के हौसले और बुलंद हो गए. इतने में निया, अंजलि भी आ गईं. दोनों नमन से खुशमिजाजी से मिलीं. नमन इन लड़कियों की संगति में स्वयं को एक हीरो जैसा अनुभव कर रहा था.

फ्लोर पर सिया की आवाज सुन नमन ने कहा, ‘‘तनु आ गई. चलता हूं. आज आप लोगों के साथ टाइम का पता ही नहीं चला. थैंक्स,’’ कहता हुआ नमन उन के फ्लैट से निकल गया. उसे देखते ही तनु चौंकी, ‘‘अरे, तुम कब आए?’’

‘‘तुम कहां थीं?’’

‘‘ऊपर की फ्लोर पर ही एक बच्चे की बर्थडे पार्टी थी. सोचा था तुम्हारे आने तक आ जाऊंगी, पर तुम्हारे पास तो घर की एक चाबी है न?’’

नमन ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, मैं ने अपनी चाबी कहां रख दी. ऐसे ही बाहर खड़ा था तो ये लड़कियां जबरदस्ती अंदर ले गईं.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं, तुम्हारे लिए चाय बना दूं?’’

‘‘नहीं, रहने दो. उन लड़कियों ने ही पिला दी,’’ कहता हुआ नमन अपनी अलमारी में झूठमूठ ही सामान इधरउधर करता हुआ बोला, ‘‘उफ, यहां रख दी थी मैं ने चाबी. बेकार ही उन के घर जाना पड़ा.’’

सुबह ही तनु के भाई का लखनऊ से फोन आ गया. उस की मम्मी की तबीयत खराब थी. तनु घबरा गई.

नमन ने कहा, ‘‘परेशान मत हो, जा कर देख आओ. फ्लाइट की टिकट बुक कर देता हूं,’’ कह नमन ने मन ही मन पता नहीं कितने प्लान बना डाले तनु के जाने के बाद लड़कियों के साथ जी भर कर टाइमपास करेगा. बहुत उत्साहपूर्वक वह सिया और तनु को एअरपोर्ट छोड़ आया.

फ्लोर पर 4 फ्लैट थे. एक फ्लैट में एक साउथइंडियन बुजुर्ग दंपती रहते थे जो किसी से मतलब नहीं रखते थे. चौथा फ्लैट बंद पड़ा था. नमन ने रात को 8 बजे लड़कियों के फ्लैट की डोरबैल बजाई.

दरवाजा निया ने खोला, ‘‘अरे, नमनजी, आप?’’

‘‘सौरी,पर थोड़ी कौफी है क्या?’’

‘‘क्या हुआ? तनु नहीं हैं?’’

‘‘उस की मम्मी बीमार हैं. उसे आज अचानक लखनऊ जाना पड़ा. मेरे सिर में बहुत दर्द है. सोचा कौफी बना लूं. देखा तो कौफी खत्म थी.’’

‘‘ओके,’’ कह निया अंदर जा 2 पाउच ले कर आई. फिर देते हुए बोली, ‘‘ये लीजिए.’’

जब निया ने अंदर आने के लिए नहीं कहा तो नमन झुंझलाता हुआ घर लौट आया. सोच रहा था, ‘यह तो पहला आइडिया ही फेल हो गया. बेवकूफ लड़की. अंदर ही नहीं बुलाया. कौफी ही औफर कर देती. पैकेट पकड़ा दिए, हुंह.’

अगली सुबह नमन बै्रड बटर खा कर औफिस के लिए निकला तो लिफ्ट में वह और रोली साथ ही घुसे. रोली ने तनु की मम्मी की तबीयत के बारे में पूछा. फिर ऐसे ही मुसकराते हुए पूछा, ‘‘और सब कैसा चल रहा है… अकेले मैनेज करते हैं?’’

नमन के दिल में आशा की एक किरण जगी. फौरन मुंह लटका लिया, ‘‘मुझे तो कुछ बनाना आता भी नहीं है. अभी औफिस की कैंटीन में जा कर नाश्ता करूंगा…’’

लिफ्ट से बाहर निकल कर ‘गुड’ कह मुसकराते हुए रोली यह जा, वह जा. नमन को बड़ा धक्का लगा कि कैसी हैं ये लड़कियां. इतने मैनर्स भी नहीं हैं.

दिन भर फिर मन ही मन सोच रहा था कि किसकिस बहाने से लड़कियों के करीब रहा जा सकता है. तनु पहली बार ही अकेली गई थी. अब तक वह भी साथ ही आताजाता था. अकेले रहने के इस मौके को वह ऐंजौय करना चाहता था.

औफिस में अनमैरिड कुलीग आयुषि से नमन ने लंचटाइम में कहा, ‘‘तनु बाहर गई है, आज टिफिन नहीं लाया हूं. चलो, आज बाहर लंच करते हैं.’’

आयुषि के आसपास वह जानबूझ कर रहा करता था.

हाजिरजवाब आयुषि ने हंस कर कहा, ‘‘नहीं भाई, मैरिड आदमी के साथ क्या लंच पर जाना.’’

नमन को उस पर बहुत गुस्सा आया पर कुछ कह नहीं पाया. मगर नमन ने हार नहीं मानी. वह जानता था कि आयुषि अकेली रहती है. उसे मूवी का भी शौक है. एक दिन फिर कहा, ‘‘आयुषि, मूवी देखने चलें?’’

‘‘तनु अभी नहीं आई?’’

‘‘नहीं, बोर हो रहा हूं, चलो न.’’

‘‘सौरी नमन. मूड नहीं है.’’

नमन ने काफी आग्रह किया पर आयुषि नहीं मानी.

तनु को गए 4 दिन हुए थे. कितनी ही बार उस ने घर पर बहानेबहाने से रोली और बाकी लड़कियों से बातें करने, आगे संपर्क बढ़ाने के बहाने ढूंढ़ें पर बुरी तरह असफल रहा. सब उसे देख कर कन्नी काट जातीं. किसी ने भी उसे प्रोत्साहन नहीं दिया.

अब वह हैरान था. अकेली रहती हैं, तनु से अच्छे संबंध हैं, सिया से आतेजाते खेलती हैं, उस से क्या परेशानी है इन्हें. जरा सा भी टाइम उस से बात करने के लिए जैसे होता ही नहीं. अब तो समझ आने लगा है कि उसे नजरअंदाज करती हैं. ‘कोई फालतू बात नहीं’ का संदेश देते हुए आगे बढ़ जाती हैं. कितनी चालाक हैं ये आजकल की लड़कियां… जैसे मेरे मन के भाव पढ़ लिए सब ने.

नमन अकेला बैठा बहुत बोर हो रहा था. आसपास की लड़कियों के साथ फ्लर्ट करने का सपना चकनाचूर हो गया था. सारी आशिकी हवा हो चुकी थी. अचानक तनु को फोन मिला दिया था, ‘‘अगर मम्मी ठीक हैं, तो जल्दी लौट आओ. तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा है.’’

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