चुलबुली गर्ल आलिया भट्ट ने अपने छोटे से कैरियर में इतने भिन्नभिन्न के रोल किए हैं कि उन की जबरदस्त फैन फौलोइंग है. खासकर युवा दिलों में आलिया ने खास जगह बना ली है. इन दिनों आलिया रणवीर सिंह के साथ फिल्ममेकर जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बौय’ और रणबीर कपूर के साथ फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ को ले कर बिजी हैं. पेश हैं पिछले दिनों आलिया से हुई मुलाकात के अंश :

आप यथार्थपरक सिनेमा ही ज्यादा कर रही हैं. क्या इस की वजह आप के पिता का प्रभाव है?

भावनात्मक स्तर पर मेरे पिता का मुझ पर काफी प्रभाव रहा है. उन्होंने हमेशा साहसिक विषयों पर फिल्में बनाईं. हमारे घर पर हमेशा सिनेमा की चर्चाएं हुआ करती थीं. इन सब बातों से मालूम हुआ कि चुनौतीपूर्ण सिनेमा से ही कलात्मक व रचनात्मक संतुष्टि मिलती है, पर मैं हमेशा अपनी पसंद की ही फिल्म कर रही हूं. मैं ने फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ की तो ‘बद्रीनाथ की दुलहनिया’ भी की. फिल्म ‘राजी’ की तो वहीं मैं सुपरनैचुरल पावर वाली फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ भी कर रही हूं. एक और पीरियड फिल्म ‘कलंक’ भी कर रही हूं. हमेशा मेरी कोशिश विविधतापूर्ण किरदारों को परदे पर जीवंत करने की रहती है.

लेकिन आप वास्तविक यानी यथार्थपरक किरदारों को ही प्राथमिकता दे रही हैं?

मैं उन्हें किरदार समझ कर परदे पर साकार करती हूं. हर फिल्म हकीकत का विस्तार होती है. कई बार यह विस्तार इतना खूबसूरत व यथार्थपरक हो जाता है कि हम खुद आश्चर्यचकित रह जाते हैं. फिल्म ‘राजी’ के घटनाक्रम वास्तव में घटित हुए थे. हम ने तो उन्हें फिर से गढ़ने का प्रयास किया. फिल्म ‘गली बौय’ में रणवीर सिंह का किरदार भी असली घटनाक्रम से प्रेरित है.

मगर ‘ब्रह्मास्त्र’ में तो लार्जर दैन लाइफ वाली बात है. आप ने कश्मीर में कई फिल्मों की शूटिंग की है, क्या अनुभव रहे?

जी हां, ‘स्टूडैंड औफ द ईयर’, ‘हाईवे’ व ‘राजी’ सहित मेरी 3 फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में हुई है. तीनों बार मेरे अनुभव बहुत अच्छे रहे, लेकिन इस बार मुझे इस बात को ले कर तकलीफ हुई कि पिछली बार के विवाद के चलते पर्यटकों ने कश्मीर जाना बंद कर दिया है. लोग मानते हैं कि कश्मीर सुरक्षित जगह नहीं है, जबकि हकीकत यह है कि कश्मीर सुरक्षित जगह है. इस बार हम ने कश्मीर, श्रीनगर और पहलगाम सहित कई जगहों पर शूटिंग की. वहां मैं ने लोगों से बात की. डल झील में शिकारा चलाया. कश्मीर काफी दर्शनीय है. मैं ने तो सब को कश्मीर टूरिज्म के विज्ञापन का एक छोटा सा वीडियो भी भेजा. उसे सोशल मीडिया पर भी डाला. कश्मीर के लोग तो हर किसी की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं.

लेकिन कश्मीर के हालात को ले कर जो खबरें आती रहती हैं, उन का क्या?

यह राजनीति व मीडिया का खेल है. अब इस के पीछे उन की मंशा क्या है, मैं नहीं जानती. किस का क्या टारगेट है? क्या मकसद है? किसे क्या फायदा है? लेकिन मैं दावा करती हूं कि वहां का माहौल बहुत अच्छा है. हम ने कश्मीर को बहुत गलत ढंग से पेश किया है. इस से कश्मीर का टूरिज्म घटा है, जिस से वहां की व वहां के लोगों की कमाई घटी है.

आप डायरी लिखा करती हैं. क्या नया लिखा है?

पिछले साल अक्तूबर के बाद कुछ नहीं लिखा. अब व्यायाम करती हूं. व्यायाम से मुझे काफी फायदा मिल रहा है. व्यायाम की वजह से समझने, संभलने व एनर्जी संकलित करने में काफी मदद मिलती है. सोशल मीडिया के युग में हम मोबाइल फोन के एडिक्ट हो चुके हैं, इसलिए मैडिटेशन की काफी जरूरत पड़ती है.

लेकिन आप तो सोशल मीडिया तथा मोबाइल पर ज्यादा बात करने के खिलाफ रही हैं, फिर आप को इस की लत कैसे पड़ गई?

मैं सोशल मीडिया के खिलाफ नहीं हूं, पर सोशल मीडिया की वजह से लोग एकदूसरे से व्यक्तिगत बातचीत व संपर्क करना छोड़ रहे हैं, मैं इस बात के खिलाफ हूं. पता चला कि हम 2 लोग अगलबगल बैठे हैं, पर दोनों अपनेअपने मोबाइल फोन पर व्यस्त हैं. आपस में हम कोई बात ही नहीं करते, यह गलत है. तो फिर जिंदगी का मकसद क्या है? मैं ने अपने पिता पर भी मोबाइल फोन को ले कर पाबंदी लगाई है, उन के पास एक नहीं 3-3 मोबाइल हैं. तीनों पर वे चैटिंग करते रहते हैं. अब मेरे डैड जब मेरे घर आते हैं, तो अपने मोबाइल फोन अपने घर पर ही छोड़ कर आते हैं.

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