वर्चुअल दुनिया में आइडेंटिटी की चोरी की वारदातें दुनिया भर में आम हैं. जहाँ साइबर शातिर आपकी बैंकिंग ट्रांजेक्शन, मेल, पासवर्ड आदि जानकारियाँ हैक करके डिजिटल आइडेंटिटी ले उड़ते हैं. हालांकि वर्चुअल दुनिया में इस आइडेंटिटी थेफ़्ट पर लगाम कसने के लिए कई एंटीवायरस, सॉफ्टवेयर, एप्प्लिकेशन आदि हैं लेकिन जब असल ज़िन्दगी में पहचान की चोरियां होने लगें तो क्या हो. दक्षिण भारत की दो प्रमुख वारदातों में आइडेंटिटी थेफ़्ट के चौकाने वाले 2 अलग और दिलचस्प मामले सामने आये हैं.
तमिलनाडु की एक महिला पार्वती पहचान चुराकार 23 साल तक नौकरी करती रही और किसी को भनक भी नहीं लगी. दरअसल पार्वती ने अपने ही नाम वाली दूसरी महिला का फायदा उठाते हुए बड़े शातिर अंदाज में पिता का नाम, जन्म तिथि और शैक्षणिक योग्यताओं जैसी रेकॉर्ड में हेरफेर कर नगरपालिका में उसकी नौकरी हड़प ली. 23 साल तक वह किसी और की पहचान चुराकर आराम से वेतन उठाती रही.
7 अप्रैल को मद्रास उच्च न्यायालय ने पार्वती की नौकरी खत्म करने का आदेश दिया. साथ ही पार्वती के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल होने के लिए विभाग के संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी अनुशंसा की. दरअसल 1990 में पोल्लाची नगरपालिका के एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज रेकॉर्ड में असली पार्वती चयन हुआ लेकिन जब वह नौकरी के लिए गयी तो पता चला कि किसी और पार्वती को जॉब मिल गयी है. असली पार्वती ने इस बाबत सम्बंधित विभाग में आपत्ति दर्ज की लेकिन उसकी नहीं सुनी गयी. बाद में असली पार्वती ने उच्च न्यायालय में इस बारे में याचिका दायर की. अब 23 साल बाद पहचान चोरी के मामले कें न्याय देते हुए अदालत ने धोखाधड़ी द्वारा नौकरी कब्जाने के लिए फर्जी पार्वती पर 10,000 का जुर्माना लगाया है. हालाँकि इतने सालों बाद मिला न्याय पार्वती की पहचान वापस तो ला सकता है लेकिन उसके करियर को दोबारा स्थापित नहीं कर सकता.
इस से उलट बेंगलुरु में आइडेंटिटी की चोरी के एक मामले में 4 अप्रैल को दो बहनों ने अपनी हमशक्ली का फायदा उठाते हुए एसएसएलसी बोर्ड परीक्षा में फर्जीवाड़ा करने की कोशिश की. हुआ यों कि बिल्कुल अपनी बहन अनुसुइया जैसी दिखने वाली उसकी 35 साल की जुड़वा बासवालिंगम्मा एसएसएलसी के गणित के पेपर को हल कर रही थी. जबकि वह पहले ही एसएसएलसी बोर्ड परीक्षा क्लियर कर चुकी थी. चूंकि दोनों हमशक्ल थी इसलिए एक बहन ने दूसरी बहन को पास करने के लिए पहचान चोरी कर सबको धोखे में रखा और एग्जाम हाल पहुँच गयी. आइडेंटिटी थेफ़्ट का यह मामल तब पकड़ में आया जब पड़ोसी ने फोन पर उनका भांडा फोड़ा. ऐडमिशन टिकट पर मौजूद फोटो से लड़की के चेहरे मैच किया गया लेकिन फर्क करना मुश्किल था.
आइडेंटिटी थेफ़्ट के दोनों मामलों का मिजाज अलग हैं लेकिन दोनों की मामलों सरीखे न जाने कितने फर्जीवाड़े पहचान चोरी कर अंजाम दिए जाते हैं, और कई बार असलीनकली के इस खेल में नकली बाजी मार ले जाता है.