बात बात पर नारी स्वतंत्रता व नारी उत्थान की बात करने वाला भट्ट कैंप खासकर महेश भट्ट और विक्रम भट्ट के लिए इन शब्दों के क्या मायने हैं, यह विक्रम भट्ट निर्देशित फिल्म ‘‘लव गेम्स’’ देखकर लोगों को समझ लेना चाहिए. फिल्म ‘‘लव गेम्स’’ में सारी मर्यादाएं, सारे जीवन मूल्यों को ताक पर रखकर सिर्फ सेक्स व जिस्मानी रिश्तों में आकंठ डूबे रहने में ही नारी स्वतंत्रता व नारी की प्रगति नजर आती है. क्या विवाहेत्तर /उच्छंखल सेक्स संबंध ही नारी की प्रगति का पैमाना है?
फिल्म‘‘लव गेम्स’’की कहानी के केंद्र में तीन पात्र हैं – समीर (गौरव अरोड़ा), रमोना (पत्रलेखा) और डाक्टर अलीषा (तारा अलीषा बेरी). इन पात्रों के साथ ही ड्रग्स, सेक्स, थ्रीसम, वाइफ स्वैपिंग और हत्या के इर्द गिर्द ही सारी कहानी का ताना बाना बुना गया है. फिल्म देखकर अहसास होता है कि यह किसी अति घटिया व निचले दर्जे के उपन्यास का फिल्मी करण है.
समीर एक अमीर बाप का बेटा है, जिसकी मां बचपन में किसी और के साथ चली गयी थी. इसलिए उसका प्यार से विश्वास उठ चुका है. पिता ने ही उसे पाल पोसकर बड़ा किया है. उसके लिए प्यार के कोई मायने नहीं है. वह 24 घंटे ड्रग्स व सेक्स में डूबा रहता है. उसे दर्द का कभी अहसास ही नहीं होता. यहां तक कि जब तब वह अपने हाथ की नस काट लेता है. उधर समीर के जिस्मानी संबंध रमोना के साथ है. रमोना का पति काफी बड़ी उम्र का है. समीर के साथ बिना किसी बंदिश के सेक्स करते रहने के लिए एक दिन रमोना खुद ही अपने पति की हत्या कर देती है और पुलिस के सामने ऐसा नाटक करती है कि पुलिस उसके पति की उम्र देखकर उसे स्वाभाविक मौत मान लेती है. अब समीर व रमोना की जिंदगी में रंगीनियत ही रंगीनियत है.
एक दिन समीर कहता है कि अब वह उसके साथ हर दिन सेक्स करते करते बोर हो गया. तब रमोना उसे ‘लव गेम्स’ उपन्यास दिखाकर कहती है कि वह भी अब लव गेम्स खेंलेंगे. इसके लिए वह योजना बनाकर बड़ी पार्टीयों/स्विंगर ग्रुप में जाते हैं. दोनो के बीच तय हुआ है कि पार्टी में खूबसूरत जोड़े को देखकर दोनो उसे अपने अपने जाल में फंसाने की कोशिश करेंगे, जो ऐसा करने में सफल हो जाएगा, उसकी जीत होगी. जो जिसे फंसा लेगा, वह उसके साथ सेक्स संबंध स्थापित कर सकता है. इस खेल में कभी रमोना तो कभी समीर जीतता है. एक पार्टी में इनकी मुलाकात ऐसे दंपति से होती है, जिनमें से पति वकील गौरव (हितेन तेजवानी) और पत्नी डाक्टर (तारा अलीषा बेरी) है. मगर पति अपनी पत्नी को हर दिन किसी न किसी बहाने पीटता रहता है. इस पार्टी में रमोना, गौरव को तथा समीर, अलीषा को फंसाने में कामयाब हो जाते हैं. इनके जिस्मानी संबंध बनते हैं. उसके बाद समीर व डाक्टर अलीषा की मुलाकातें बढ़ने लगती हैं.
डाक्टर अलीषा, समीर को अस्पताल ले जाकर दर्द का अहसास कराती है और समीर, अलीषा से प्यार करने लगता है. यह बात रमोना को गंवारा नहीं होती. जलनवश रमोना, अलीषा की सच्चाई उसके पति गौरव तक पहुंचा देती है. डाक्टर अलीषा की पिटायी हो जाती है. उसके बाद रमोना, समीर के साथ डाक्टर अलीषा के घर पर उस वक्त पहुंचती है, जब डाक्टर अलीषा अपने बेड रूम में सो रही होती है और उसका पति घर से बाहर गया होता है. रमोना वहीं पर समीर के साथ सेक्स करती है. इसके बाद समीर व डाक्टर अलीषा मिलकर एक योजना बनाते हैं. फिर रमोना के घर पहुंचाकर डाक्टर अलीषा उसे एक सीडी दिखाकर साबित करती है कि रमोना ने खुद ही अपने पति का खून किया था. अलीषा के कहने पर रमोना, अलीषा के पति गौरव को मार डालती है. इस खेल में अलीषा की मौत हो गयी है. पर पता चलता है कि वह तो जिंदा है. सिर्फ पुलिस रिकार्ड में डाक्टर अलीषा की मौत हुई है. अंत में डाक्टर अलीषा, रमोना को गोली मार देती है और समीर के साथ नए नाम व पहचान के साथ विदेश रवाना हो जाती है.
बोल्ड व सेक्सी सीन वाली पूरी फिल्म देखने के बाद इस बात का अहसास होता है कि विक्रम भट्ट समाज के एक खास तबके को ही देखते हैं और उनकी पहुंच वहीं तक है और उसी तबके की मानसिकता को बार बार परदे पर चित्रित करते रहते है. अब इस तरह का तबका हमारे समाज का कितना बड़ा हिस्सा है, यह जानने का प्रयास किया जाना चाहिए. फिल्म देखकर कहीं स्पष्ट नहीं होता कि फिल्म प्यार की बात कर रही है या बदला लेने की बात कर रही है. सिर्फ जिस्मानी संबंध ही रेखांकित होते हैं. फिल्म में संवेदनशीलता का घोर अभाव है. सिर्फ यंत्रणा ही यंत्रणा है. सेक्स एडिक्ट रमोना के किरदार के साथ न्याय करने में पत्रलेखा बुरी तरह से असफल रही है. अब यह यह समझना पड़ेगा कि ‘सिटी लाइट्स’ में चर्चा बटोरने के बावजूद पत्रलेखा को दूसरी फिल्में क्यों नही मिली? बौलीवुड में कहा जाता है कि कलाकार को पहली फिल्म उसके लुक वगैरह के हिसाब से मिल जाती है और वह सफल हो जाता है. पर हर हर फिल्म उसी तरह की नहीं हो सकती. इसलिए कलाकार में अभिनय प्रतिभा का होना अति आवश्यक है. अन्यथा पहली फिल्म की अपार सफलता के बाववूद उसे काम नहीं मिलता. इस तर्क पर पत्रलेखा की प्रतिभा को कसा जाए, तो क्या जवाब आएगा…? गौरव अरोड़ा माडल ही नजर आते हैं. समीर की जिंदगी में कई पड़ाव आते हैं, उनके अनुसार गौरव के चेहरे के भावों में कोई फर्क नजर नहीं आता. गौरव का चेहरा भावहीन नजर आता है. हितेन तेजवानी भी जम नहीं पाए. फिल्म का गीत संगीत भी स्तरहीन ही है. सिर्फ एक गाना ‘अवारगी..’ही ठीक है.
‘‘महेश भट्ट व मुकेश भट्ट की कंपनी ‘‘विशेष फिल्मस’’ तथा टीसीरीज निर्मित फिल्म ‘‘लव गेम्स’’ के लेखक व निर्देशक विक्रम भट्ट, कैमरामैन मनोज सोनी, संगीतकार संगीत सिद्धार्थ तथा कलाकार हैं- पत्रलेखा, तारा अलीषा बेरी, गौरव अरोड़ा, हितेन तेजवानी.