हिमाचल प्रदेश का पर्यटन स्थल डलहौजी अंगरेजों की बदौलत बना है. अब वहां नएनए रिजौर्ट खुल रहे हैं जो उसे और ज्यादा लोकप्रिय बना रहे हैं. शहर के बीचोंबीच बना सागरिका रिजौर्ट उन में से एक है.

अंगरेजों ने अपने शासनकाल के दौरान हिल स्टेशन तब बनवाए जब वे देश की भीषण गरमी से उकता गए. गरमी के मौसम में सुकूनभरे पल किसी ठंडी और शांत जगह पर बिता सकें, इस के लिए देश के पहाड़ी इलाकों में खूबसूरत और मनोरम ठिकानों की तफ्तीश कर उन्होंने देश में हिल स्टेशन परंपरा शुरू की. आज भी देश में पर्यटन के सब से मजेदार और मनभावन ठिकाने यही स्टेशन माने जाते हैं. डलहौजी इसी हिल स्टेशन परंपरा का एक हिस्सा है.

डलहौजी में जब सैलानी मनोरम नजारों, झीलझरनों का आनंद और पहाडि़यों के मजेदार सफर से थका हुआ लौटता है तो उस के आराम के लिए यहां के शानदार और लक्जूरियस रिजौर्ट्स उसे फिर से तरोताजा करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ते.

डलहौजी के कोर्ट रोड पर बने द मौल नामक रिजौर्ट के सामने ही मेन मार्केट है. फ्री वाईफाई, बाथरूम शावर व अन्य सुविधाओं से लैस रिजौर्ट पर्यटन स्थल को अब और रमणीय बना रहे हैं.

मनोरंजक नजारों से घिरे सागरिका रिजौर्ट की तरह डलहौजी में कई होटल्स और रिजौर्ट हैं. इन रिजौर्टों से टैक्सी ले कर आप सारे दर्शनीय स्थल घूम सकते हैं.

लाजवाब हिमाचल

डलहौजी का पर्वतीय सौंदर्य सैलानियों के दिल में ऐसी अनोखी छाप छोड़ देता है कि यहां बारबार आने का मन करता है. 19वीं सदी में अंगरेज शासकों द्वारा बसाया गया यह टाउन, अपने ऐतिहासिक महत्त्व और प्राकृतिक रमणीयता के लिए जाना जाता है. यहां मौजूद शानदार गोल्फ कोर्स, प्राकृतिक अभयारण्य और

3 नदियों की जलधाराओं के संगम जैसे अनेक स्थलों के आकर्षण में बंधे हजारों पर्यटक हर वर्ष आते हैं. प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक आबोहवा, ढेरों दर्शनीय स्थल और देवदार के घने जंगलों से घिरा डलहौजी, हिमाचल प्रदेश के चंपा जिले में स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन है. यह स्थल 5 पहाडि़यों कठलौंग, पोट्रेन, तेहरा, बकरोटा और बलून पर बसा है.

समुद्रतल से 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह टाउन 13 किलोमीटर के छोटे से क्षेत्रफल में फैला है. एक ओर दूरदूर तक फैली बर्फीली चोटियां तो दूसरी ओर चिनाब, व्यास और रावी नदियों की कलकल करती जलधारा, मनमोहक नजारा पेश करती हैं.

पंचपुला और सतधारा

डलहौजी से केवल 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, पंचपुला. इस का नाम यहां पर मौजूद प्राकृतिक कुंड और उस पर बने छोटेछोटे 5 पुलों के आधार पर रखा गया है. यहां से कुछ दूरी पर एक अन्य रमणीय स्थल सतधारा झरना स्थित है. किसी समय तक यहां 7 जलधाराएं बहती थीं. लेकिन अब केवल एक ही धारा बची है. बावजूद इस के, इस झरने का सौंदर्य बरकरार है. माना जाता है कि सतधारा का जल प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर और अनेक रोगों का निवारण करने की क्षमता रखता है.

खजियार का सौंदर्य

डलहौजी हिल स्टेशन की यात्रा बगैर खजियार देखे अधूरी ही लगती है. यह स्थल डलहौजी से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दरअसल, खजियार उस मनमोहक झील के लिए प्रसिद्ध है जिस का आकार तश्तरीनुमा है. यह स्थल देवदार के लंबे और घने जंगलों के बीच स्थित है. गोल्फ खेलने के शौकीन पर्यटकों को यह स्थान विशेषरूप से पसंद आता है क्योंकि यहां एक शानदार गोल्फ कोर्स भी मौजूद है. इस के साथ ही, व्यास, रावी और चिनाब नदियों का अद्भुत संगम यहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डायनकुंड में देखा जा सकता है. यह डलहौजी का सब से ऊंचा स्थल है.

चंबा का दिल कहे जाने वाले हरियाले चैगान के एक छोर पर बने हरिराय मंदिर में अद्वितीय कलाकौशल की झलक देखने को मिलती है. यहीं पर भूरी सिंह संग्रहालय है, जहां ऐतिहासिक दस्तावेज, पेंटिंग्स, पनघट शिलाएं, अस्त्रशस्त्र और सिक्के संग्रहीत हैं.

आकर्षक है डलहौजी का जीपीओ इलाका

डलहौजी का जीपीओ इलाका भी काफी चहलपहल भरा माना जाता है. जीपीओ से करीब 2 किलोमीटर दूर सुभाष बावली है.

कहा जाता है कि इस जगह पर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस करीब 5 महीने रुके थे और इस दौरान वे इसी बावली का पानी पीते थे. यहां से बर्फ से ढके ऊंचे पर्वतों का विहंगम नजारा देखते ही बनता है. सुभाष बावली से लगभग आधा किमी दूर स्थित जंध्री घाट में मनोहर पैलेस ऊंचेऊंचे चीड़ के पेड़ों के बीच स्थित है. यह जगह चंबा के पूर्व शासक के पैलेस के लिए भी प्रसिद्ध है. पैलेस के अलावा यहां आप चाहें तो चीड़ के पेड़ से हो कर निकलती सुगंधित मंदमंद हवा में बैठ कर पिकनिक का भी मजा ले सकते हैं.

कब जाएं

डलहौजी का मौसम वैसे तो सालभर सुहाना रहता है लेकिन सब से उपयुक्त समय अप्रैल से जून और अक्तूबर से दिसंबर के बीच का माना जाता है.

क्या खरीदें

डलहौजी की मजेदार यात्रा के दौरान अगर कुछ खरीदना चाहते हैं तो यहां का तिब्बती बाजार उम्दा विकल्प है, जहां कई परंपरागत आकर्षक कपड़े और एंटीक्स सस्ते दामों पर मिल जाते हैं. इस के अलावा तिब्बती हैंडीक्राफ्ट्स जैसे पुलोवर्स, कार्पेट और शौल आदि घर ले जा सकते हैं.

– साथ में अशोक वशिष्ठ

कैसे जाएं

रेलमार्ग : डलहौजी का नजदीकी रेलवेस्टेशन पठानकोट है, जो यहां से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जम्मूतवी जाने वाली लगभग सभी ट्रेनें पठानकोट हो कर जाती हैं. पठानकोट, दिल्ली के अलावा जालंधर, अमृतसर और जम्मू से भी जुड़ा है.

वायुमार्ग : वायुमार्ग से पहुंचने के लिए यहां का निकटतम एअरपोर्ट गग्गल, कांगड़ा है, जो लगभग 124 किलोमीटर दूर स्थित है.

सड़कमार्ग : पठानकोट और अन्य स्थानों से बस या टैक्सी से डलहौजी पहुंचा जा सकता है.

दिलचस्प तथ्य डलहौजी के

–       1853 में अंगरेजों ने पौर्टिरन, कठलोश, टेहरा, बकरोटा और बलून पहाडि़यों को चंबा के राजाओं से खरीद लिया था.

–       इस के बाद इस स्थान का नाम लौर्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी रख दिया गया.

–       बलून पहाड़ी पर उन्होंने छावनी बसाई, जहां आज भी छावनी क्षेत्र है.

–       डलहौजी शहर मुख्यतया पौर्टिरन पहाड़ी के आसपास बसा है.

–       डलहौजी के पास भूरी सिंह संग्रहालय है जिसे राजा भूरी सिंह ने 1908 में दान किया था.

स्मार्ट पैकिंग भी जरूरी

पर्यटन के लिए आजकल पहले से सारी तैयारी करने का चलन है. मसलन, पहले से ही टिकट कन्फर्म करवाने से ले कर रहने का प्रबंध आदि. हालांकि टिकट जितनी आसानी से कन्फर्म होते हैं उतनी ही मुश्किल से रहने के लिए किसी अच्छे होटल या रिजौर्ट का इंतजाम होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जितना जरूरी किसी पर्यटन स्थल की सैर करना होता है उस से ज्यादा जरूरी होता है वहां रहने की ठीकठाक व्यवस्था. जब सैलानी झीलझरनों का आनंद और पहाडि़यों के मजेदार सफर से थका हुआ लौटता है तो उसे चाहिए कि उस के आराम के लिए वे सारे इंतजाम जो किसी पांचसितारा होटल में या अपने घर में होते हैं.

अगर रहने की मनमाफिक जगह न मिले तो घूमनेफिरने का मजा किरकिरा हो जाता है. इस के अलावा वहां के मौसम के मिजाज को समझते हुए कपड़े और अन्य सामान भी समझदारी से पैक करने की जरूरत होती है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...