महिलाएं लाख पढ़ लिख जाएं, कामयाबी की बुलंदियां छू लें, अपने पति के कंधे से कंधा मिला कर चलें, मगर पुरुष वर्चस्व वाले इस समाज में अभी भी स्त्रीपुरुष समानता और आजादी महज भुलावे के कुछ और नहीं. इस हकीकत की पुष्टि आए दिन हम अपने आसपास घट रही वारदातों से कर सकते हैं.

ईस्ट दिल्ली के कपिल शर्मा ने गत 24 मार्च को अपनी पत्नी, पार्वती की मुंह दबा कर हत्या कर दी. वजह थी कि वह मां नहीं बन पा रही थी. प्रेग्नेंसी टर्मिनेट हो जाने पर गुस्से में पति ने पत्नी का खून ही कर दिया, जबकि कपिल इस से पहले अपनी पूर्व पत्नी की दहेज हत्या करने के आरोप में 7 साल की सजा काट चुका था.

हाल ही में मौडल प्रियंका की मौत का मामला भी काफी सनसनीखेज रहा है. पुलिस तहकीकात में यह बात सामने आ रही है कि यह आत्महत्या के बजाए हत्या का मामला है. प्रियंका के सुसाइड नोट में साफ लिखा है कि शादी के एक माह बाद ही उस के पति नितिन ने उसे राक्षस की तरह मारा. उस की जिंदगी पर दहशत और खौफ का पहरा बिठा दिया. जाहिर है, प्रियंका की मौत का जिम्मेदार उस का पति ही है, जिस से प्रियंका ने प्रेमविवाह किया था.

अप्रैल 2015 में उन की मुलाकात हुई थी. प्रियंका 25 की और नितिन 38 साल का था. उम्र के इस फासले और परिवार के एतराज के बावजूद प्रियंका ने बस एक भरोसे पर जनवरी 2016 को उस से शादी की. इस के बाद ही नितिन का शक्की मिजाज उभर कर सामने आने लगा. उस ने प्रियंका पर बंदिशें लगानी शुरू कर दीं. दोस्तों से मिलनाजुलना बंद करा दिया. फेसबुक और ट्विटर पर भी रोक लगा दी. वह प्रियंका को टौर्चर करने लगा.

स्त्रियों के साथ हिंसा, मारपीट, सेक्सुअल व मेंटल हैरसमेंट, रेप, किडनैपिंग जैसी घटनाएं देश के हर हिस्से में कायम है. खुद देश की राजधानी दिल्ली में ही हालात बहुत खराब हैं, निर्भया रेप और मर्डर केस के बाद कड़े कानूनों के बावजूद दिल्ली में दूसरे अपराधों के साथसाथ सैक्सुअल हैरेसमेंट भी एक बड़ी समस्या है. हाल ही में अमेरिका की मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के महेश नल्ला और स्टौकटन यूनिवर्सिटी के मनीष मदान द्वारा एक सर्वे किया गया, जिस में दिल्ली के 1400 लोगों से बातचीत की गई. इस सर्वे में पाया गया कि 40% महिलाओं को पिछले साल किसी न किसी रूप से सेक्सुअल हैरसमेंट का शिकार बनना पउ़ा, तो वहीं 58% महिलाएं अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार सेक्सुअल हैरसमेंट का शिकार हो चुकी हैं. उत्पीड़न के डर से 33% महिलाओं ने पब्लिक प्लेस पर जाना छोड़ दिया जबकि 17% तो ऐसी रहीं, जिन्होंने सार्वजनिक जगहों पर होने वाले हैरसमेंट का सामना करने के बजाए अपनी नौकरी छोड़ना बेहतर समझा.

सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक महिलाएं ऐसी ही घुटन भरी जिंदगी जीती रहेंगी? सिर्फ कानून बनाने या सजा देने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता. इस के लिए जरूरी है, लोगों की सोच और मानसिक प्रवृत्ति में बदलाव लाना. बचपन से घर में लड़के लड़की के बीच किए जा रहे भेदभाव को मिटाना.

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