भाजपा के ‘शत्रु’ आखिरकार लालू-नीतीश के ‘दोस्त’ हो गए. भाजपा सांसद शत्रुध्न सिन्हा की बायोग्राफी ‘एनीथिंग बट खामोश’ का लोकार्पण लालू-नीतीश की जोड़ी द्वारा किए जाने के बाद राज्य की सियासत में कई लोगों की खामोशी टूटने के आसार हैं. भाजपा नेता के जलसे में भाजपा का एक भी नेता मौजूद नहीं था, जो राजनीति में नया गुल खिलाने का संकेत दे गया. ‘कमल वालों’ की बेरूखी से जख्मी शत्रु के जख्मों पर ‘तीर’ और ‘लालटेन’ वालों ने मरहम लगाने और अपनी राजनीति साधने की पुरजोर कोशिश की.
शत्रुघ्न सिन्हा ने जलसा शुरू होने के पहले ही कह दिया था कि यह राजनीतिक मंच नहीं है, पर धाकड़ सियासतबाजों की मौजूदगी में भला राजनीति कैसे नहीं होती? उनकी किताब के विमोचन के मौके पर जम कर राजनीति हुई. राजनीति के तीर और गोले चले. राजनीति के पटाखे और फुलझडि़यां छूटी. सबसे पहले लालू ने उन्हें उकसाते हुए कहा कि वह अब तो अपनी खामोशी तोड़ दें. नीतीश और लालू को बैठे-बिठाए भाजपा पर तीर चलाने का मौका हाथ गया था और वह इस मौके को अपने हाथों से कैसे जाने दे देते?
लालू ने शत्रु को भाजपा छोड़ने की सलाह देते हुए कहा कि अपनी खामोशी तोडि़ए. नो रिस्क नो गेम. लालू यहीं नहीं रूके और बिहारी बाबू को जोश दिलाते हुए कहा कि बैठे रहिएगा तो बैठे ही रह जाइएगा. चुप्पी तोडि़ए और आगे बढि़ए. लालू की बातों के जबाब में नीतीश ने मजाक किया कि लालूजी चाहे जो चाह लें पर बिहारी बाबू अपने हिसाब से ही कोई फैसला लेंगे. नीतीश ने खुला निमंत्रण देते हुए कहा कि अगर शत्रुध्न चाहें, तो वह बिहार के विकास की मुहिम में उनका साथ दे सकते हैं.
नीतीश ने शुत्रुघ्न सिन्हा और शेखर सुमन से बिहार में फिल्मसिटी बनाने की गुजारिश कर राज्य के सियासी शतरंज पर नया दांव चल दिया. शघुघ्न सिन्हा पिछले कई सालों से बिहार में फिल्मसिटी बनाने की मांग राज्य सरकार से करते रहें हैं और यह उनका ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है. नीतीश ने शत्रु की अगुवाई में पुल्मसिटी बनाने की बात कही और हर तरह की मदद देने का वादा भी कर डाला. नीतीश ने शत्रु के बहाने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि आपकी पार्टी में सच बोलने वालों की कद्र नहीं की जाती है. हो सकता है कि आपके दो टूक बोलने के स्वाभाव की वजह से आपकी पार्टी के लोग आपको बाहर निकाल दें या अपनों की बेरूखी से आजीज आकर आप ही पार्टी छोड़ दें. उसके बाद नीतीश ने इशारों इशारों में शत्रु को जता दिया कि अगर ऐसी नौबत आती है तो उनका दर खुला है और खुला ही रहेगा.
लालू और नीतीश ने शत्रुघ्न सिन्हा पर डोरे डालने की भरपूर कोशिश की. सियासत के दोनों धुरंधरों को पता है कि शत्रु को अपने पाले में करके वह भाजपा को एक बार फिर धूल चटा सकते हैं. पिछले कई सालों से अपनी पार्टी भाजपा से नाराज पटना सहिब के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा लालू और नीतीश के न्यौते पर फिलहाल ‘खामोश’ ही रहे. वह भाजपा से नाता तोड़ने और किसी दूसरे दल में शामिल होने के लिए किसी गोल्डन मौके के इंतजार में हैं. अब देखना है कि शत्रु के साथ-साथ लालू और नीतीश का इंतजार कब खत्म होता है?
अगर आडवाणी जी जीवनी लिखते…
पटना से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके अभिनेता शेखर सुमन ने भी लालू, नीतीश और शत्रुघ्न के साथ खूब जम कर मस्ती की. उन्होंने बिहारी बाबू की जीवनी ‘एनीथिंग बट खामोश’ के बारे में कहा कि अगर यह किताब भोजपुरी में लिखी जाती तो उसका नाम होता-‘कुछ हो जाई, हम खामोश नईखें रहब’. उसके बाद उन्होंने कहा कि अगर लालूजी बायोग्राफी लिखते तो उसका नाम होता-‘हमरे बहुत सारे बुतरू बच्चा’. लालकृष्ण आडवाणी की जीवनी का नाम होता-‘ जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी’. अन्ना हजारे की किताब का नाम होता-‘भरोसा सिर्फ रिवाइटल’. स्मृति ईरानी की बायोग्राफी का नाम रखा जाता-‘इसको लगा डाला तो लाइफ झींगालाला’. विजय माल्या अगर जीवनी लिखें तो उसका नाम होगा-‘पहले विश्वास करो फिर इस्तेमाल करो’. उन्होंने अरविंद केजरीवाल की बायोग्राफी का नाम दिया-‘दो हफ्ते की खांसी हो सकती है टीबी’.