14 वीं सदी में मधुबनी, बिहार में मैथिली कवि विद्यापति हुए थे, जो कि भगवान शंकर के इतने बड़े भक्त थे कि भगवान शंकर को उनके घर में अवतरित होना पड़ा था. विद्यापति की इसी कहानी से प्रेरित होकर निर्माता प्रदीप शर्मा और लेखक व निर्देशक रजनीश मिश्रा एक भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’ लेकर आ रहे हैं, जो कि छह अप्रैल को प्रदर्शित होगी.

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जी हां! फिल्म ‘डमरू’,विद्यापति की ही कहानी है. विद्यापति मधुबनी बिहार के लेखक थे, जिनकी वजह से भगवान शंकर को वहां अवतरित होना पड़ा था. विद्यापति की कहानी से प्रेरित होकर ‘डमरू’ की कहानी लिखी गयी है. इस फिल्म की कहानी का सार यही है कि यदि इंसान की ईश्वर में गहरी आस्था हो, तो उसकी मदद के लिए ईश्वर को धरती पर अवतरित होना पड़ता है.

भोजपुरी फिल्म ‘‘डमरू’’ के निर्माता प्रदीप शर्मा इससे पहले ‘डायरेक्ट इश्क’ और ‘एक तेरा साथ’ जैसी दो हिंदी फिल्में बना चुके हैं. अब भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’ बनाने की वजह पूछे जाने पर कहते हैं- ‘‘मैं एक फिल्म के प्रीमियर पर गया था, वहीं पर सुपरहिट भोजपुरी फिल्म ‘मेंहदी लगा के रखना’ के निर्देशक रजनीश मिश्रा से मुलाकात हुई थी. उसके बाद हम दोनों का एक दूसरे के आफिस आना जाना शुरू हो गया. इसी बीच कुछ लोगो ने मुझसे कहा कि मुझे भोजपुरी में भी अच्छी फिल्म बनानी चाहिए. मुझे एक पटकथा सुनायी गयी, पर वह आम भोजपुरी फिल्म थी, जिसे मैंने बनाने से इंकार कर दिया. फिर मेरे पास ‘डमरू’ की पटकथा आयी. इसे पढ़कर मुझे लगा कि यह सामाजिक संदेश देने वाली फिल्म है, इसे बनाया जाना चाहिए. यह एकदम साफ सुथरी फिल्म है.

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दूसरी आम भोजपुरी फिल्मों से अपनी फिल्म ‘डमरू’ को अलग बताते हुए प्रदीप शर्मा कहते हैं- ‘‘एकदम अलग तरह की फिल्म है. पिछले दस पंद्रह वर्षो में ‘डमरू’ जैसी भोजपुरी में एक भी फिल्म नहीं बनी. इन दिनों जिस तरह की भोजपुरी फिल्में बन रही हैं, उन्हें देखने के लिए बुजुर्गो के अलावा महिलाएं सिनेमाघरों में नहीं जाती हैं. मगर हमारी फिल्म ‘डमरू’ देखने के लिए पूरा परिवार एक साथ जाएगा. मेरा पूरा ध्यान इस बात पर रहा कि ऐसी साफ सुथरी सामाजिक फिल्म बने, जिसे देखने के लिए बच्चे, बूढ़े व घर की हर महिला एक साथ सिनेमा घर में जाए.’’

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विद्यापति की कहानी से प्रेरणा लेकर ‘डमरू’ बनाने के मायने स्पष्ट करने के साथ ही अपनी फिल्म ‘डमरू’ की कहानी के बारे में प्रदीप शर्मा कहते हैं- ‘‘विद्यापति की जो कहानी है, उस पर हमारी फिल्म नहीं है, बल्कि उनकी कहानी से प्रेरित है हमारी फिल्म ‘डमरू’. यह कहानी है गांव के एक सीधे सादे लड़के की है, जो कि बचपन से ही भगवान शंकर का भक्त है. उसके पिता नही है. गांव के मंदिर का पुजारी व उसकी मां ने ही उसे पाला पोसा है. पंडित हमेशा कहते हैं कि संसार में जो कुछ अच्छा या बुरा होता है, वह भगवान शंकर ही करते हैं. वह बचपन से ही शंकर की भक्ति में इस कदर लीन रहता है कि वह हर छोटी बड़ी समस्या आने पर भगवान शंकर से बात करता है. जब वह बड़ा होता है और इलाके के गुंडे व असामाजिक तत्व जब उसके पीछे पड़ जाते हैं, तब भगवान शंकर को अवतरित होकर उसके घर में रहना पड़ता है. पर यह बात यह बालक नहीं जानता. उसे लगता है कि यह जो मेरे घर में रहने आए हैं, इनके पास कोई काम काज नहीं है. तो वह उनसे गोबर उठवाने से लेकर झाड़ू तक लगवाने लगता है कि इसे काम सिखाया जाए. इसी में पूरी कौमेडी है. हिंदू मुस्लिम धर्म को लेकर बात की है. हमने दिखाया है कि हर धर्म एक ही है.’’

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फिल्म ‘डमरू’ में भ्रष्टाचार, सामाजिक विद्वेष, लालच व कुरीतियों से लड़कर ऊपर आने की कथा है. फिल्म में समाज में फैले हुए अंधविश्वास को भी व्यंग व हास्य के साथ पेश किया गया है. हमारी फिल्म हर इंसान को अंधविश्वासों से ऊपर उठने का संदेश देती है.

बनारस, सारनाथ व चौबेपुर में फिल्मायी गयी फिल्म‘‘डमरू’’में एक भक्ति गीत, दो कव्वाली, एक भगवान शंकर पर गाना और तीन प्रेम गीत सहित कुल सात गाने हैं.

हिंदी फिल्म की तरह फिल्मायी गयी फिल्म ‘डमरू’ में मुख्य किरदार खेसारीलाल यादव का है. उनकी प्रेमिका के किरदार में याशिका कपूर तथा भगवान शंकर के किरदार में अवधेश मिश्रा है. फिल्म के अन्य कलाकार हैं- आनंद मोहन, पद्म सिंह, किरण यादव, तेज सिंह, रोहित सिंह व अन्य.

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फिल्म ‘डमरू’ के लेखक व निर्देशक रजनीश मिश्रा कहते हैं- ‘फिल्म ‘डमरू’ की कहानी का सारा ताना बाना सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार, लालच, सत्ता का दुरूपयोग आदि के इर्द गिर्द मनोरंजक तरीके से बुना गया है. हमारी फिल्म बताती है कि किस तरह सामाजिक कुरीतियों से ऊपर उठा जा सकता है. इसी के साथ हमारी फिल्म धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठने का संदेश भी देती है.’’

प्रदीप शर्मा आगे कहते हैं- ‘‘हमारी फिल्म ‘डमरू’ नारी को सबल करने की बात करती है. जब राजनेता सत्ता का दुरूपयोग करते हैं, तब किस तरह के सामाजिक दुष्प्रभाव पड़ते हैं, उसकी भी बात हमारी फिल्म करती है.’’

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