मुरारी बाबू, जो पेशे से मास्टर थे, पता नहीं कब और कैसे मोदियापा  के शिकार हो गए. उन्होंने घोषणा कर दी कि अब वे मास्टर नहीं रहे. आज के बाद वे चाय बेचा करेंगे. पीपल के नीचे चाय का स्टौल होगा. चाय की एक केतली, चमकते हुए 2 दर्जन कप, चीनी, दूध तथा चाय की पत्ती घर में रख कर, अंतिम बार मुरारी बाबू विद्यालय गए. जातेजाते पीपल के नीचे एक चूल्हा बनाना नहीं भूले लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. उन की यह जम्बो योजना उस समय धरालत पर आ गई जब उन की श्रीमतीजी ने चाय नामक पेय के विरुद्ध आंदोलन की धमकी दी. चाय की केतली में तो उफान नहीं आया लेकिन घर में तूफान जरूर आ गया. मुरारीजी की पत्नी ने मोरचा कस लिया. विद्यालय से आए तो पाया कि केतली घर की रसोई में अचेतावस्था में पड़ी है और चूल्हा शहीद हो गया. उस के टुकड़े जमीन पर पड़े इतिहास की कहानी कह रहे हैं. चीनी और चायपत्ती घर के बजट में शामिल हो गए और दूध की खीर बना ली गई है.

मुरारी बाबू ने आखिरी बार त्योरी चढ़ाई, ‘‘यह आप ने उचित नहीं किया. चाय एक राष्ट्रीय पेय है. आप ने इस के वितरण में बाधा डाल कर देशद्रोह किया है. राष्ट्रद्रोही हैं आप. आप को विदित है कि चायवितरण परमपुनीत कर्म माना गया है. आज से 100 साल बाद जब इस देश का इतिहास लिखा जाएगा तो देश के चायवितरकों में मेरा नाम आदर के साथ शामिल किया जाएगा. मैं मोदीजी के समकक्ष खड़ा हो ही रहा था कि आप ने यह षड्यंत्र रच दिया.’’ ‘‘चूल्हे में गया आप का राष्ट्रीय कर्म. आप को अपने बच्चों के साथ बैठने की फुरसत नहीं है. मुनिया गणित में कितनी कमजोर है. यह नहीं होता कि कभी उस के साथ बैठ कर उसे गणित के 2 अक्षर पढ़ा दें. समीर बेचारा महल्ले में मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहा. कल चौधरीजी का रजुआ पूछ रहा था, ‘क्यों रे, मास्टरी से घर का खर्चा नहीं चलता जो तेरा बाप चाय बेचने जा रहा है?’ खबरदार, जो आज के बाद मुई चाय की बात की तो.’’

भीषण युद्ध की आशंका थी. मुरारी बाबू ने भी प्रथम 30 सैकंड तक मोरचा संभाला. उस के बाद बहादुरीपूर्वक पीछे हट गए. चाय वितरकों की दुनिया से एक बड़ा नाम आतेआते रह गया. मुरारी बाबू हार मानने वाले जीव नहीं थे. मोदीगीरी इतनी आसानी से छोड़ने वाले नहीं थे. उन्होंने ऐलान किया कि अब वे अपना शेष जीवन जनता की सेवा में बिताएंगे. सरपंची पर उन की नजर थी. उन्होंने घरघर जा कर लोगों को बताया कि आजादी को 70 साल हो गए. गांवों का विकास नहीं हुआ क्योंकि हम ने सही आदमी को चुना ही नहीं. आप जिसे मुखिया बनाते हैं वह दुखिया निकलता है. अपनी पेटी भरने में लग जाता है, आप का पेट क्या भरेगा? जुमलेबाजी वाली भाषणकला लोगों को भा गई. लोगों ने घबरा कर उन्हें चुन लिया. 

सरपंच बनते ही उन्होंने तय किया कि पहले गांव का विकास करेंगे ताकि किसी को कष्ट न हो. कितनी बुरी हालत है अपने क्षेत्र की. सड़कें ऐसी कि बैल भी चलने के पहले पांवपूजा कराएं. यहां फ्लाईओवर युक्त फोरलेन बनना जरूरी है. एक बड़ी चीनी मिल अपने गांव रामपुर में हो. पंचायत के दूसरे गांवों यानी कि हरखी और मधुबनी में एकएक कपड़े की मिल. गांव के हर बच्चे के हाथ में स्मार्टफोन हो और पंचायत का हर फरमान वाट्सऐप पर भेजा जाए. ग्रामवासी भी अपनी समस्या वाट्सऐप पर शेयर करें. यानी जनसेवा की अपार संभावनाएं हैं. क्रांति करनी होगी, क्रांति. एक दिन यह पंचायत अर्थात रामपुर पंचायत देश की ही नहीं, विश्व की सब से चर्चित पंचायत होगी. दुनिया देखने के लिए बेचैन होगी. रामपुर में विकास कैसे हुआ, यह जानने के लिए बड़ेबड़े रिसर्चर आएंगे.

चुनाव जीतने के चौथे दिन मुरारी बाबू उठे और हरपुर खीरी पंचायत चले गए. दिल्ली से सटा हुआ यह पंचायती क्षेत्र था जहां उन के दूर के भाई, फगुनी ठाकुर, सरपंच का पद संभाल रहे थे. उन को भी घनघोर आश्चर्य हुआ कि बाबू अचानक कैसे आ गए. उन्होंने हुक्कापानी देने के बाद पूछा, ‘‘और भैया, कैसे?’’ ‘‘ऐसे ही, हम आप के पंचायत क्षेत्र का विकास देखने आए हैं. आप हमें विकास का मंत्र बताएं. हम पर कृपा करें.’’ ‘‘मास्टर साहब, आप भी कमाल करते हैं. अजी साहब, यह इलाका दिल्ली से सटा है. यहां एक सड़क है जो आगरा को जाती है. वही एकमात्र सड़क है जो चमचमाती है वरना बाकी की हालत तो बेहद खराब है. रही बात बिजली की, वह 20 घंटे रहती है लेकिन यह तो दिल्ली का कमाल है. आप बिहार के एक गांव से इस की तुलना मत ही कीजिए तो बेहतर है.’’

‘‘नहींनहीं साहब, आप हमारा दिल मत तोडि़ए. हमें वह राज बताइए जिस से चौबीसों घंटे बिजली आती है. अहा, कितनी शानदार सड़क है, जी चाहता है कि इसी पर तकिया लगा के पड़ा रहूं.’’ इधर मुरारी बाबू हरपुर खीरी की पंचायत में हुए विकास को बटोरने की फिराक में थे उधर उन के अपने पंचायत इलाके में लोग अभिनंदन के लिए उन को खोज रहे थे. दिन में 3 बार उन के घर की सांकल बजा रहे थे. पत्नी को भी कहां मालूम रहता था कि बाबू साहब कहां का दौरा कब करेंगे. लोग फूलों के हार ले कर खोज रहे हैं. सरपंच साहब दिल्ली से निकले तो कोलकाता चले गए. उन्हें खबर मिली कि कोलकाता में कभी चटकल (पटसन की वस्तुएं बनाने वाली फैक्टरी) हुआ करती थीं जो सालों से बंद हैं.

उन्होंने सोचा, तो क्यों न 2-4 को अपने गांव ले कर चलें. पहुंच गए हुगली. हुगली के किनारे एक पंचायत महाकालपाड़ा है. महाकालपाड़ा के मुखिया हैं संतोष बाबू. उन्होंने यह जान कर कि मुरारी बाबू मास्टर रहे हैं, सरपंच हैं, स्वागत किया. ‘‘मेरी इच्छा है कि अपने गांव में ऐसा ही एक कपड़े का कारखाना खोल लूं. गांव की बेरोजगारी दूर होगी. गांव के बच्चे, जो बेचारे पानतंबाकू की लत में लिपटे पड़े हैं, कामधंधे में लग जाएंगे. देश से बेरोजगारी दूर होनी ही चाहिए.’’ संतोष बाबू ने पहले तो खूब गौर से देखा. जब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि मुरारी बाबू किसी पागलखाने के केस नहीं हैं तो बोले, ‘‘भलेमानुष, कारखाना कोई आटाचक्की है जो गांव में लगा लोगे. इस में पूंजी लगती है, बहुत सारी पूंजी. उस के साथ ही बाजार, व्यापार का भी खयाल रखना पड़ता है.’’ ‘‘हम छोटीछोटी बाधाओं से घबराने वालों में से नहीं हैं. भारतभर का विकास अपने गांव रामपुर में उठा कर ला पटकेंगे. आप बाधाओं की चिंता न करें. मुझे बताएं कि कारखाना गांव में कैसे लगेगा?’’

‘‘गांव में बिजली है?’’

‘‘वह भी आ जाएगी. पहले कारखाना तो लगे. बच्चों के पास रोजगार होगा. उन का जीवन सुधरेगा. मोबाइल और लैपटौप से खेलेंगे. गांव में सूचना क्रांति आ जाएगी.’’

‘‘पहले गांव में बिजली तो आने दो.’’

‘‘हम छोटीछोटी बाधाओं से घबराने वालों में से नहीं हैं. बिजली नहीं आने का अर्थ यह नहीं कि हम हाथ पर हाथ रखे इंतजार करें. हम विकास के लिए संघर्ष करेंगे. यदि भारत भ्रमण से काम नहीं चलेगा तो हम संसार भ्रमण पर निकल जाएंगे.’’ कहने की

जरूरत नहीं कि संतोष बाबू की तबीयत खराब हो गई. मुरारी बाबू को बिदा कर दिया गया. मुरारी बाबू वहां से निकले तो मुंबई जा पहुंचे. उन के सपने में था कि गांव में एक ऐसी फिल्म इंडस्ट्री तैयार की जाए जिस से निकल कर बच्चे अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार बन सकें. गांव की प्रतिभा बरबाद हो रही है. बरात में नाचते बच्चों को देख कर ही उन्हें अनुमान हो गया था कि इन में नाचने की अकूत प्रतिभा है. बस, सन्मार्ग दिखाने की जरूरत है. मुंबई जा कर उन्होंने एक नामचीन प्रोड्यूसर को जा पकड़ा. अपना प्रस्ताव रखा. वह प्रोड्यूसर आवश्यकताभर चालाक था. उस ने बाबू साहब को खूब ठंडागरम पिलाया.

‘‘अरे वाह साहब, आप जैसे जनसेवकों पर ही यह दुनिया टिकी है. आप का यह सपना जरूर पूरा होगा. आप के गांव में ही हम एक फिल्मी सैट लगाएंगे. गांव के ही लड़के उस में काम करेंगे. आप हमारी थोड़ी आर्थिक मदद कर दें. आजकल कड़की चल रही है.’’ भला हो उस आदमी का कि उस ने मुरारी बाबू के एटीएम में जो बचे थे, निकलवा लिए और बाबू साहब हलके हो कर गांव आ गए. नहीं तो उन के मन में अभी लुधियाना जाने का सपना भी हिलोरे ले रहा था कि जा कर देखें कि हौजरी उद्योग कैसे लगता है. मालमता नहीं बचा तो गांव वापस आ गए. गांव में भव्य स्वागत हुआ.

गांव की चौपाल पर उन के स्वागत में भाषण हुआ. पंचायत के सदस्यों ने खूब लच्छेदार शब्दों से उन का स्वागत किया. बाबू साहब भावुक हो रहे थे. पंचायत के सदस्यों ने उन की तुलना सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह से की. एक ने तो उन्हें आधुनिक युग का गांधी बताया, जो अपने गांव के विकास के लिए इस धरती पर आया है. मौलिक बात यह थी कि बाबू साहब की पकड़ पंचायत के वोटों पर मजबूत थी. सदस्यों को मालूम था कि उन के आशीर्वाद से जीतना आसान हो जाएगा. मनरेगा पर मीटिंग कब होगी? गांव की पुलिया का उद्घाटन किस मंत्री से चौथी बार कराना है? गांव की पाठशाला में विकास के लिए जो 5 लाख रुपए आए हैं उन्हें कैसे आपस में बांटा जाए? गांव में कन्या पाठशाला के लिए भवन नहीं है, पीपल के नीचे पाठशाला चलती है, इस के लिए किसे लिखा जाए और कैसे? इन तमाम प्रश्नों के समाधान हेतु एक बैठक की जरूरत थी लेकिन मुरारी बाबू मिलें तब न. वे तो अलसुबह झाड़ू ले कर गांव की सड़क साफ करने निकल जाते थे. 8 बजे तक 2 किलोमीटर तक झाड़ू दे कर आते, तब नाश्ता करते. उस के बाद जिला मुख्यालय जा कर नगर के विकास का अध्ययन करते रहते. उन का सपना था कि रामपुर एक न एक दिन महानगर हो कर मानेगा.

एक दिन उन के बालसखा रहमान ने कहा भी, ‘‘मुरारी भाई, एक बात समझ में नहीं आती कि गांव के विकास के लिए नगर का अध्ययन करने क्यों जाते हैं आप?’’

‘‘क्योंकि हर महानगर पहले गांव था. गांव से ही शहर बना होगा. जब कोलकाता गांव कोलकाता महानगर बन सकता है तो रामपुर क्यों नहीं? मोदीजी यों ही स्मार्टसिटी की बात नहीं कर रहे जबकि यह देश गांवों का है.’’

रहमान साहब ने उन के ज्ञान को नमस्कार किया और चलते बने. बमुश्किल 15 दिन तक गांव की शोभा बढ़ा कर अचानक एक दिन मुरारी बाबू चेन्नई चले गए. वहां उन्हें रामपुर के विकास की सारी संभावनाएं नजर आ रही थीं. यदि एक समुद्र गांव से आ मिले तो यहां भी बंदरगाह बनाया जा सकता है. मछली मारने से आर्थिक विकास होगा. पंचायत के मल्लाहों का कितना भला होगा. वहां से निकले तो कानपुर के चमड़ा उद्योगों का अध्ययन करने हेतु कानपुर गए. यह उद्योग उन को अपने गांव के अनुकूल लगा. गांव में जानवरों की कमी तो है नहीं. यदि होगी तो जानवर पाल लिए जाएंगे. उन के मरने पर जो चमड़ा बरबाद होता है उस को कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल कर के कारखाना चलाया जाए. पंचायत में विकास के फंड का इस्तेमाल कैसे हो, इस पर एक रिपोर्ट बना कर भेजनी थी लेकिन सरपंच तो कानपुर में थे. वहां से निकल कर हैदराबाद जाने वाले थे कि पत्नी ने बीमारी का बहाना बना कर बुला लिया. जरूरी मीटिंग वगैरह हो सकी, वरना फंड वापस चला जाता.

सरपंची सरपट भाग रही थी कि अचानक एक बार फिर घरवाली ने हल्दीघाटी के युद्ध की घोषणा कर दी. उस ने ही नहीं, दोनों बच्चों ने भी उसी पाले में जा कर गोले बरसाए. मुंह से नहीं, तो आंखों से ही सही. हुआ यों कि किसी अमावस/पूर्णिमा को पत्नी का व्रत था. उस ने बाबू साहब के मानसिक संतुलन के लिए मन्नत मांगी थी. उस ने साफसाफ कहा था कि कम से कम 1 दिन घर में टिक जाओ. उस के बाद जहां मरजी घूमते रहो. घर की जिम्मेदारियां तो तुम कभी उठा नहीं सकते लेकिन घर में 1 दिन उपलब्ध तो हो ही सकते हो. मुरारी बाबू का दिमाग, जो किसी जेट विमान से भी तेज चलता है, चल रहा था. उन के दिमाग में आया कि एक बार जगुआरा पैट्रोलपंप देख आएं. कारखाना नहीं लगा सकते तो कम से कम एक पैट्रोलपंप ही गांव में लग जाए. किसानों को डीजल के लिए कितनी मारामारी करनी पड़ती है. जगुआरे वाले को ही कहना होगा कि आ कर पंप लगाए. पंप वाले से बात की. उस ने साफ मना कर दिया.

‘‘देखो भइयाजी, अइसा है कि जो पंप है पानी का नहीं है. इस में तेल बिकता है और उस में लगती है पूंजी. आप के गांव रामपुर में तेल बिकेगा ही कितना. 20-25 मोटरसाइकिलें हैं. डीजल खरीदने वालों के भरोसे तो यह बिजनैस हो ही नहीं सकता. भइयाजी, सीजन में डीजल बिकेगा, बाकी के महीने हम बैठ कर भुट्टे भूनेंगे. आप आए हैं तो नाश्ता कर के ही जाइए. रही बात पंप की तो उस के लिए हमें माफ कीजिए.’’माफ करने की कला में बाबू साहब पारंगत थे. माफ तो उन्होंने तुरंत कर दिया लेकिन घर तुरंत नहीं गए. बाबू साहब के दिमाग में आया कि पड़ोस के पंचायत क्षेत्र परसुरामपुर जा कर एक बार रामफल चौबे को प्रणाम बोल देना चाहिए. बेकार ही दोनों पंचायतों में ठनी रहती है. कभी वे पाइपलाइन काट लेते हैं तो कभी नलकूप उखाड़ कर ले जाते हैं. पिछली बार तो हद ही हो गई. गांव की 4 बकरियां गायब हो गईं. 10 दिनों तक खोजी गईं. अंत में कलुआ चरवाहा ही खबर लाया कि परसुरामपुर वाले उठा ले गए. दोनों पंचायतों में मारपीट की नौबत आ गई. परसुरामपुर वालों के तर्क थे कि बकरियां उन के मटर के खेतों में चर रही थीं तो उन को लाने का मौलिक हक उन को हासिल हो ही जाता है. इस से पहले कि खून की नदी बहती, बकरियां भाग कर गांव आ गईं.

परसुरामपुर के मुखिया रामफल चौबे घबराए कि माजरा क्या है? मुरारी बाबू की तीव्र कल्पनाशक्ति की चर्चा हर पंचायत में होती थी. रामफल चौबे तो दुश्मन सरपंच थे. पलपल की खबर रखते थे. घबराना स्वाभाविक भी था. उन्हें पता लगा कि बंदा केवल लंच करेगा और चला जाएगा. उन्होंने पुलाव बनवाया. मटन और पुलाव. रामफल चौबे और मुरारी बाबू में वार्त्ता होती रही. दोनों गांवों में स्थायी शांति कैसे होगी, इस पर गंभीर वार्त्ता होती लेकिन बीचबीच में पुलाव के कौर भी मुंह में डालने पड़ रहे थे. मटन का शोरबा तो वाह. आज भी शोरबा बनाना परसुरामपुर वालों से बेहतर कौन जान सकता है. मजा आ गया.

एक लंबी डकार लेते हुए बाबू साहब बोले, ‘‘अब राजपूत और ब्राह्मनों को हठ से आगे आने की जरूरत है. हमें मिल कर विकास करना होगा. हम दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं. मैं तो अपने गांव में कपड़े की मिल और पैट्रोल पंप की बात कर चुका हूं. मेरा तो बस एक ही सपना है कि गांव में सूचना क्रांति आ जाए. गांव के लड़के लैपटौप और मोबाइल से ख्ेलें.’’

‘‘पहले उन का शिक्षित होना जरूरी है.’’

‘‘हम छोटीमोटी बाधाओं से नहीं घबराते. आप तो बस यही कोशिश कीजिए कि अब दोनों गांवों में मारपीट न हो.’’

‘‘हमारी तो उम्र ही नहीं रही मारपीट करने की लेकिन बलदेव माने तब न. वह तो आप के गांव का नाम सुनते ही…पर आप चिंता न करें. सब ठीक हो जाएगा.’’ गांव में खोज कर बच्चे थक चुके थे. उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि श्रीमान हरिद्वार या काशी चले गए. पत्नी ने अपना व्रत खोल लिया और बच्चों को खाना देने की तैयारी कर ही रही थी कि दरवाजे पर मोटरसाइकिल रुकने की आवाज आई. अर्थात मुरारी बाबू पधार गए. उस के बाद जो शब्दसुमनों से उन का स्वागत हुआ, आमतौर पर भारतीय पति इस की कल्पना कर सकते हैं. पौ फटने के पूर्व ही श्रीमतीजी मायके प्रस्थान कर गईं. गांव में 2 दल हो गए हैं. एक का कहना है कि जो परिवार का नहीं हुआ वह संसार का क्या होगा. दूसरे मानते हैं कि जो परिवार का होगा वह संसार का नहीं होगा. पता नहीं, सच क्या है? मगर मुरारी बाबू आज भी मोदियाए घूम रहे हैं

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