कालेज हो या कोई अन्य जगह, जहां चार हमउम्र युवकयुवतियों में मित्रता होती है, वहीं कुछ साथी एकदूसरे को अपना दिल भी दे बैठते हैं. इस का कारण है उन का एकदूसरे के प्रति आकर्षण, क्योंकि युवावस्था आते ही युवकयुवतियों में शारीरिक व मानसिक कई तरह के बदलाव आते हैं. साथ ही विपरीत लिंगी के प्रति उन में आकर्षण भी पैदा होने लगता है. आखिर मन ही तो है, यह किसी के बस में नहीं होता.

युवावस्था भटकने वाली अवस्था होती है. इस में युवाओं को सही राह दिखाना अति आवश्यक होता है. प्रेम के चक्कर में पड़ कर वे अपना भविष्य खराब कर बैठते हैं.

स्नेहा आज बहुत उदास थी. जब उस के घर के सदस्यों ने उस की उदासी का कारण पूछा तो उस ने बताया कि उस का मित्र सुरेश अब उस से बोलता तक नहीं है. वह उस की सहेली का मित्र बन गया है. लेकिन वह मुझे बहुत अच्छा लगता है. अब मैं क्या करूं?

युवकयुवतियों का आपस में दोस्त होना तथा एकदूसरे के प्रति आकर्षित होना आम बात है. युवावस्था में युवकयुवतियों के मन में रंगीन सपने होते हैं, ऐसे में यदि उन्हें सही राह न मिले तो वे भटक जाते हैं और गलत राह अपना लेते हैं. उन का मन बस में नहीं रहता. वे खोएखोए से रहने लगते हैं. वे अपने साथी के साथ हर समय रहना चाहते हैं. यदि कोई उन्हें रोकता है, तो उन्हें बहुत बुरा लगता है. ऐसे में वे अपने दिमाग से नहीं बल्कि मन के अनुसार चलते हैं. ऐसी परिस्थिति में चाहे युवक हो अथवा युवती दोनों का हाल बुरा होता है. आखिर वे क्या करें? इन परिस्थितियों में उन्हें दुलार की आवश्यकता होती है. मातापिता अथवा घर का कोई सदस्य ही सही ढंग से समझा कर उन्हें सही राह दिखा सकता है.

शानू के सहपाठी ने एक दिन कहा कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, क्या तुम मेरी दोस्त बनना पसंद करोगी? शानू ने भी उसे हां कर दी, क्योंकि शानू को भी उस से दोस्ती करने का मन था. मन यदि कुछ कहे, तो वह काम स्वत: हो जाता है. मन के अनुसार यदि अच्छे दोस्त बन जाएं तो समझो सही मंजिल मिल गई. यदि मन नहीं है, तो वह कार्य भी व्यक्तिविशेष नहीं कर सकता है.

युवा मन तो बहुत चंचल होता है, इसलिए वह अच्छाबुरा कम ही सोच पाता है. युवाओं में बहुत उत्साह होता है, किसी भी कार्य को करने का, नएनए दोस्त बनाने का व दोस्तों के साथ घूमने का. कहने का तात्पर्य यह है कि युवाओं का मन जो चाहे वह करता है. बस, उन को कोई रोकेटोके नहीं. चाहे वे गलत हों या सही.

रोकने पर वे विरोधी स्वभाव के बन जाते हैं, लेकिन यदि उन्हें प्यार से समझा कर गलतसही का एहसास कराया जाए तो वे सही राह पर चलेंगे और उन का मन सही कार्यों को करने का करेगा. फिर वे सहीगलत का निर्णय लेते हुए सही मंजिल की तरफ बढ़ेंगे और न यह कह सकेंगे कि मन नहीं होता बस में.

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