डा. श्रीकांत गौड़ पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार स्थित मैट्रो अस्पताल में नौकरी करते थे. 6 जुलाई, 2017 को वह ड्यूटी पूरी कर प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन पर पहुंचे. वहीं से मैट्रो पकड़ कर वह दक्षिणी दिल्ली के गौतमनगर स्थित अपने घर जाते थे. लेकिन उस दिन रात के साढ़े 11 बज चुके थे और आखिरी मैट्रो ट्रेन भी जा चुकी थी. अब घर जाने के लिए औटोरिक्शा या टैक्सी थी. सुरक्षा के लिहाज से उन्होंने टैक्सी से जाना उचित समझा.

उन्होंने गौतमनगर जाने के लिए फोन से ओला कैब बुक की तो कुछ ही देर में ओला कैब प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास आ कर खड़ी हो गई. कैब में बैठ कर डा. श्रीकांत ने अपने साथ काम करने वाले डा. राकेश कुमार को फोन कर के बता दिया कि वह ओला कैब से अपने घर जा रहे हैं. डा. राकेश ही उन्हें अपनी कार से प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन छोड़ कर गए थे.

अगले दिन 7 जुलाई को डा. श्रीकांत गौड़ अपनी ड्यूटी नहीं पहुंचे तो डा. राकेश ने उन्हें फोन किया. उन का फोन स्विच्ड औफ था. दिन में उन का फोन कभी बंद नहीं रहता था. श्रीकांत को हैल्थ प्रौब्लम या कोई काम होता तो वह अस्पताल में फोन कर देते. लेकिन उस दिन उन का अस्पताल में कोई फोन भी नहीं आया था. डा. राकेश ने उन्हें कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद मिला.

डा. राकेश को डा. श्रीकांत की चिंता हो रही थी. थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से फोन किया. इस बार उन के फोन पर घंटी बजी तो फोन रिसीव होते ही राकेश ने कहा, ‘‘श्रीकांत भाई, कहां हो, फोन भी बंद कर रखा है. मैं कब से परेशान हो रहा हूं.’’

दूसरी ओर से जो आवाज आई, उसे सुन कर वह चौंके. आवाज उन के दोस्त श्रीकांत के बजाय किसी और की थी. उस ने उन से सीधे बात करने के बजाय गालियों की बौछार कर दी. राकेश ने उस से पूछना चाहा कि कौन बोल रहे हैं और इस तरह बात क्यों कर रहे हैं तो उस ने फोन काट दिया.

उस आदमी की टपोरी जैसी बातों से डा. राकेश को लगा कि श्रीकांत कहीं गलत लोगों के चंगुल में तो नहीं फंस गए हैं? उन्होंने यह बात अपने साथियों को बताई तो उन्हें भी लगा कि डा. श्रीकांत किसी मुसीबत में फंस गए हैं. उन सब की सलाह पर डा. राकेश ने थाना प्रीत विहार जा कर थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को सारी बात बताई तो थानाप्रभारी ने 29 वर्षीय डा. श्रीकांत गौड़ की गुमशुदगी दर्ज कर इस की जांच एएसआई तेजवीर सिंह को सौंप दी.

एएसआई तेजवीर सिंह ने इस मामले में वह सारी काररवाई की, जो गुमशुदगी के मामले में की जाती है. 7 जुलाई को ओला कैब के कस्टमर केयर पर सुबह 4 बजे के करीब किसी ने फोन कर के कहा, ‘‘मैं ने आप के एक कस्टमर का अपहरण कर लिया है, आप अपने मालिक से बात कराइए.’’

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कस्टमर केयर की जिस युवती ने काल रिसीव की थी, एक बार तो वह असमंजस में पड़ गई कि पता नहीं यह कौन है, जो सुबहसुबह इस तरह की बात कर रहा है. उस ने सोचा कि फोन करने वाला नशे में होगा, जो इस तरह की बात कर रहा है. इसलिए उस ने भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.

उसी दिन ओला के कस्टमर केयर सैंटर पर उसी व्यक्ति ने एक बार फिर फोन किया, ‘‘मैडम, मैं ओला कैब का ड्राइवर रामवीर बोल रहा हूं. मेरी कैब नंबर डीएल 1आर टीसी 1611 कंपनी में लगी हुई. यह कैब कल रात दिल्ली के डाक्टर ने प्रीत विहार से गौतम नगर के लिए बुक की थी. मैं ने इन का अपहरण कर लिया है. आप का कस्टमर अब मेरे कब्जे में है, अगर इस की सुरक्षित रिहाई चाहती हैं तो मुझे 5 करोड़ रुपए चाहिए.’’

उस व्यक्ति ने अपनी कैब का जो नंबर बताया था, कस्टमर केयर सैंटर कर्मी ने जब उसे चैक किया तो वास्तव में कैब रामवीर कुमार के नाम से ओला कंपनी में लगी थी. कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने यह जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी. इस के बाद खबर कंपनी की लीगल सेल को दे दी गई. लीगल सेल ने जांच की तो पाया कि 6 जुलाई की रात 11 बज कर 38 मिनट पर रामवीर की कैब डा. श्रीकांत को प्रीत विहार से ले कर चली तो थी, पर डिफेंस एनक्लेव, स्वास्थ्य विहार के पास से उस का जीपीएस डिसकनेक्ट हो गया था.

रामवीर ने कंपनी में अपना मोबाइल नंबर लिखवा रखा था. लीगल सेल के अधिकारियों ने उस का वह नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. उस ने कस्टमर केयर सैंटर में जिस नंबर से बात की थी, वह डा. श्रीकांत का था. उन्होंने अपने उसी नंबर से कैब बुक कराई थी. मामला गंभीर था, इसलिए लीगल सेल द्वारा यह जानकारी थाना प्रीत विहार पुलिस को दे दी गई.

थाने में डा. राकेश ने श्रीकांत की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. ओला कंपनी के अधिकारियों से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी मनिंदर सिंह ने डा. श्रीकांत की गुमशुदगी लिखवाने वाले उन के दोस्त डा. राकेश को थाने बुला लिया. अपने दोस्त के अपहरण की जानकारी पा कर वह सन्न रह गए. पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और सूचना डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई को दे दी.

डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस केस को खुलासे के लिए एसीपी हेमंत तिवारी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी मनिंदर सिंह, इंसपेक्टर रूपेश खत्री के अलावा थाने के कई एसआई, हैडकांस्टेबल और कांस्टेबलों को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले यह पता लगाया कि फिरौती के लिए फोन किन जगहों से किए गए थे? उन की लोकेशन खतौली और मेरठ की मिल रही थी. 2 पुलिस टीमें इन जगहों पर भेज दी गईं. फोन डा. श्रीकांत गौड़ के मोबाइल से किए गए थे और फोन करने के बाद मोबाइल बंद कर दिया जाता था. इसलिए वह मोबाइल फोन कहां है, इस का पता लगाना आसान नहीं था.

रामवीर नाम के जिस ड्राइवर ने डा. श्रीकांत का अपहरण किया था, पता चला कि उस की कैब 2 दिन पहले ही ओला कंपनी में लगी थी और डा. श्रीकांत गौड़ उस की पहली सवारी थे. पुलिस ने ओला कंपनी से उस कैब के सभी कागजात निकलवा कर उन की जांच की. वह वैगनआर कार नंबर डीएल 1 आर टीसी 1611 उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शालीमार बाग की रहने वाली विनीता देवी के नाम से खरीदी गई थी.

पुलिस शालीमार बाग के उस पते पर पहुंची तो पता चला कि वहां इस नाम की कोई महिला नहीं रहती थी. यानी कार की मालिक का नामपता फरजी था. कंपनी में विनीता के नाम का पैन कार्ड और महाराष्ट्रा बैंक, इंदिरापुरम (गाजियाबाद) में खुले खाते की पासबुक की फोटोकौपी और चैक भी जमा किए गए थे.

विनीता का पैन कार्ड फरजी पाया गया. बैंक से संपर्क किया गया तो पता चला कि विनीता के नाम से वहां बचत खाता तो था, पर वह कोई दूसरी विनीता थी. उस के पिता का नाम भी दूसरा था. खाताधारी असली विनीता अनपढ़ थी, इसलिए उस के नाम से चैकबुक भी जारी नहीं हुई थी. यानी पहले से ही योजना बना कर सब कुछ फरजी तरीके से किया गया था.

ड्राइवर रामवीर ने अपने जो डाक्यूमेंट्स जमा किए थे, पुलिस ने उन की जांच की. उस के आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस पर मयूर विहार का पता लिखा था. वे दोनों भी फरजी पाए गए.

कागजों में जो फोटो लगे थे, बीट कांस्टेबल उन्हें ले कर मयूर विहार में घूमते रहे, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इतना ही नहीं, गाड़ी का परमिट, फिटनेस सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस सारी चीजें फरजी पाई गईं. ड्राइवर रामवीर ने कंपनी को अपना जो फोन नंबर दिया था, पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि वह नंबर भी हाल ही में लिया गया था और उस से उस ने 1-2 लोगों से ही बात की थी. जिन लोगों से उस ने बात की थी, उन से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वे रामवीर को नहीं जानते. न ही उस से कभी उन की मुलाकात हुई. वहां से भी पुलिस खाली हाथ लौट आई.

इतनी माथापच्ची के बाद पुलिस की जांच जहां से शुरू हुई थी, वहीं रुक गई. कागजों की जांच के बाद पुलिस इतना तो जान गई कि अपहर्त्ता बेहद शातिर हैं, उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है.

उधर अपहर्त्ता ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर में बारबार फोन कर के फिरौती की मांग कर रहे थे. इतना ही नहीं, उन्होंने डा. श्रीकांत की 3 वीडियो भी ओला कंपनी में भेज दीं, जिन में वह खुद को छुड़ाने की विनती कर रहे थे. अपनी साख को देखते हुए ओला कंपनी के अधिकारियों ने फैसला ले लिया कि वह अपने कस्टमर को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के लिए 5 करोड़ रुपए दे देंगे.

जबकि पुलिस इस बात को ले कर परेशान थी कि अपहर्त्ता कहीं डा. श्रीकांत को नुकसान न पहुंचा दें, इसलिए पुलिस ने ओला कंपनी के अधिकारियों से कह दिया कि जब भी अपहर्त्ताओं का फोन आए, वह उन से प्यार से बातें करें.

मामले की गंभीरता को देखते हुए डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस मामले में एसीपी अंकित सिंह, राहुल अलवल, इंसपेक्टर संजीव वर्मा, डी.पी. सिंह, विदेश सिंघल, प्रशांत यादव, अजय कुमार डंगवाल, मनीष जोशी और कुछ तेजतर्रार सबइंसपेक्टरों को भी लगा दिया.

एडिशनल डीसीपी साथिया सुंदरम और एन. के. मीणा टीम का नेतृत्व कर रहे थे. डीसीपी के निर्देश पर समस्त पुलिस अधिकारी अलगअलग तरीके से अपहर्त्ताओं का पता लगाने में जुट गए.

पुलिस को यह तक पता नहीं लग पा रहा था कि अपहर्त्ताओं ने डा. श्रीकांत को कहां बंधक बना कर रखा है. क्योंकि वे कभी मुरादनगर से फोन कर रहे थे तो कभी मेरठ से. उन की मूवमेंट हरिद्वार और मुजफ्फरनगर की भी पाई गई. बागपत, बड़ौत, बिजनौर, खतौली आदि जगहों से भी उन्होंने फोन किया था. लिहाजा इन सभी जगहों पर दिल्ली पुलिस की टीमें पहुंच गईं.

डा. श्रीकांत का अपहरण हुए कई दिन हो चुके थे. तेलंगाना में डा. गौड़ के घर वालों को भी अपहर्त्ताओं ने उन के वीडियो भेज दिए थे. उन के रिश्तेदार और परिवार वाले भी दिल्ली पहुंच गए थे. मैट्रो अस्पताल के डाक्टरों के साथ वे भी थाना प्रीत विहार पहुंच गए थे.

डीसीपी मामले की अपडेट पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को दे रहे थे. अपहर्त्ताओं की काल डिटेल्स आदि से यही लग रहा था कि बदमाश मेरठ रेंज में ही कहीं हैं, इसलिए पुलिस कमिश्नर ने मेरठ रेंज के आईजी से बात की. आईजी ने डाक्टर को रिहा कराने में हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया. उन्होंने मेरठ की एसएसपी मंजिल सैनी और एसटीएफ के एसपी आलोक प्रियदर्शी को दिल्ली पुलिस की मदद के लिए लगा दिया.

पुलिस कमिश्नर के आदेश पर स्पैशल सेल के इंसपेक्टर भूषण, उत्तरपूर्वी दिल्ली के वाहन चोर निरोधी दस्ते के इंसपेक्टर विनय यादव, ऐशवीर सिंह, शाहदरा क्षेत्र के एसीपी मनोज पंत भी अपनीअपनी टीम के साथ इस मामले की जांच में लग गए थे. करीब 100 पुलिसकर्मियों की अलगअलग टीमें केस को सुलझाने में लग गईं.

जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण किया गया था, उस की फोटो गाड़ी के पेपरों के साथ ओला कंपनी के औफिस में जमा थी. उस फोटो को ध्यान से देखा गया तो उस पर तान्या मोटर्स, मेरठ का स्टीकर लगा था.

पुलिस की एक टीम मेरठ स्थित मारुति के डीलर तान्या मोटर्स पर पहुंची. स्टीकर देख कर यही लग रहा था कि वह वैगनआर उसी शोरूम से खरीदी गई होगी. पुलिस टीम ने उस शोरूम से पता किया कि पिछले एकडेढ़ साल में सफेद रंग की कितनी वैगनआर बेची गईं. पता चला कि करीब 700 कारें सफेद रंग की बेची गई थीं. पुलिस ने उन सभी कारों के रजिस्ट्रेशन नंबर हसिल कर लिए. इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण हुआ था, उस पर फरजी नंबर लगा था. पुलिस को तान्या मोटर्स से जिन सफेद रंग की वैगनआर कारों की डिटेल्स मिली थी, उन में से यह पता लगाना आसान नहीं था कि उन में अपहर्त्ता की कार थी या नहीं?

पुलिस टीम ने सफेद रंग की सभी कारों की लिस्ट ओला कंपनी को देते हुए यह जानकारी मांगी कि पिछले 2 सालों के अंदर इन कारों में से कोई कार ओला में कैब के रूप में लगी थी या नहीं, साथ ही यह भी जानकारी निकलवाई कि इन 700 कारों में से किसी कार को किसी भी वजह से ओला कंपनी से हटाया तो नहीं गया था.

ओला अधिकारियों ने सभी 700 नंबरों को वेरिफाई किया. इस से पता चला कि 12 मार्च, 2017 को एक ड्राइवर सुशील को कस्टमर्स के साथ अभद्र व्यवहार करने, कंपनी के हिसाब में हेराफेरी करने जैसी शिकायतों के चलते कार सहित ओला से हटाया गया था.

पुलिस ने सुशील कुमार का पता मालूम किया तो जानकारी मिली कि वह खतौली मेरठ रोड पर स्थित गांव दादरी का रहने वाला था. एक पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. पुलिस को जानकारी मिली कि वह वसुंधरा में रहता है. दिल्ली पुलिस की एक टीम तुरंत वसुंधरा में उस का पता लगाने पहुंच गई.

पर वह वहां भी नहीं मिला. मुखबिर द्वारा सुशील के छोटे भाई अनुज का फोन नंबर मिल गया. अब तक दिल्ली पुलिस की टीमें खतौली, हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, मेरठ, मीरापुर, बिजनौर, बागपत, बड़ौत आदि जगहों पर पहुंच चुकी थीं. हापुड़ में सुशील की ससुराल थी तो एक टीम हापुड़ में भी तैनात हो गई. पुलिस ने सुशील के भाई अनुज का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस उस के औन होने का इंतजार कर रही थी.

अपहर्त्ता अभी भी ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर पर फोन कर के 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे थे. ओला कंपनी के कारपोरेट प्रेसीडेंट जौय बांदेकर ने 5 करोड़ रुपए पुलिस को दे कर अपने कस्टमर को छुड़ाने की मांग की. अपहर्त्ता वाट्सऐप के अलावा एसएमएस भी कर रहे थे. उन्होंने 5 करोड़ रुपयों के फोटो वाट्सऐप से भेजने को कहा तो पुलिस ने 500-500 रुपए के नोटों के बंडलों की फोटो खींच कर उन्हें भेज दी.

अपहर्त्ताओं ने कहा कि वे यह चिल्लर नहीं लेंगे. उन्होंने 2-2 हजार के नोटों की मांग की. ओला कंपनी के पास उस समय 2-2 हजार के इतने नोट नहीं थे, लिहाजा उन्होंने किसी तरह उन की व्यवस्था की.

15 जुलाई को अपहर्त्ताओं ने कहा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बताएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि रकम मिल जाने के 4-5 घंटे बाद डाक्टर को छोड़ दिया जाएगा. ओला कंपनी के अधिकारी ने इतनी देर बाद रिहा करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि फिरौती की रकम को पहले गिनेंगे. इस पर ओला के अधिकरी ने कहा कि भले ही आप डाक्टर को 4 घंटे बाद छोड़ें, पर जब हम रकम पूरी दे रहे हैं तो हमें डाक्टर सुरक्षित चाहिए.

‘‘पैसे पूरे हुए तो डाक्टर भी सुरक्षित मिलेगा.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

इस फोन की लोकेशन बागपत के पास की ही थी. पुलिस आयुक्त के निर्देश पर पूर्वी जिले के डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई टीम के साथ बागपत पहुंच गए. डाक्टर की जान को कोई खतरा न हो, इस के लिए पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी.

16 जुलाई को दोपहर के समय अनुज का फोन औन हुआ तो उस की लोकेशन खतौली की मिली. दिल्ली पुलिस की सूचना पर वहां की लोकल पुलिस और एसटीएफ भी वहां पहुंच गई. तभी दौराला के पास वैगनआर कार दिखाई दी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह कार को दौड़ाते हुए सकौती बाजार की तरफ ले गया.

सादे कपड़ों में पुलिस प्राइवेट गाडि़यों में थी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह तेजी से रेलवे फाटक पार कर गई, जबकि पुलिस भीड़ में फंस गई. रास्ते में कई लोगों को टक्कर लगतेलगते बची. इसी बीच पीरपुर गांव के पास वैगनआर का टायर पंक्चर हो गया तो चालक कार को वहीं छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया.

कुछ ही देर में वहां भारी तादाद में पीएसी पहुंच गई. पुलिस ने कई घंटे तक वहां कौंबिंग की, लेकिन कार का ड्राइवर पुलिस के हाथ नहीं लगा. पुलिस ने वह कार बरामद कर ली. उस समय उस पर वही नंबर लिखा था, जो ओला के कागजों में दर्ज था. इस के बाद पुलिस ने सुशील के घर वालों और रिश्तेदारों पर दबाव बनाया.

16 जुलाई की रात को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि सुशील का एक साथी है प्रमोद, जो मुजफ्फरनगर के मीरापुर गांव में रहता है. उस के पास दिल्ली के नंबर की एक अल्टो कार है. किसी तरह प्रमोद को भनक लग गई थी कि दिल्ली पुलिस इलाके में डेरा डाले हुए है. इसलिए पुलिस के मीरापुर पहुंचने से पहले ही वह घर से फरार हो गया.

17 जुलाई को पुलिस को सुशील के साथी गौरव के बारे में जानकारी मिली, जो मेरठ शहर में सुभारती अस्पताल के पास रहता है. करीब 2 घंटे की मशक्कत के बाद पुलिस ने उस का कमरा ढूंढ लिया. पर वह भी कमरे पर नहीं मिला. लोगों ने बताया कि वह यहां किराए पर रहता था और 2 दिन पहले जा चुका है.

दिल्ली पुलिस की टीमें वहां डेरा जमाए हुए थीं. 19 जुलाई को मुखबिर से पता चला कि प्रमोद मीरापुर के रहने वाले अमित के साथ 3-4 दिनों से घूम रहा है. किसी तरह से अमित पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने जब उस से डा. श्रीकांत के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि डाक्टर अभी ठीक है. प्रमोद ही डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रख रहा है. इस समय वह परतापुर के शताब्दीनगर में है.

पुलिस उसे ले कर शताब्दीनगर पहुंची तो पता चला कि वे सोहनवीर के मकान में हैं. पुलिस ने उस घर को चारों ओर से घेर लिया. भारी संख्या में हथियारबंद पुलिस को देख कर इलाके के लोग हैरान रह गए. पुलिस ने लोगों को हिदायत दी कि काररवाई चलने तक कोई भी अपने घर से बाहर न निकले.

इस के बाद पुलिस ने औपरेशन डाक्टर शुरू किया. सोहनवीर के घर में मौजूद बदमाशों को जब पता चला कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया है तो उन्होंने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. काफी देर तक दोनों ओर से फायरिंग होती रही.

पुलिस की गोली से प्रमोद घायल हो गया. किसी तरह पुलिस उस मकान में घुस गई, जहां डा. श्रीकांत को बंधक बना कर रखा गया था. पुलिस ने डाक्टर को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया. मौके से पुलिस ने नेपाल, विवेक उर्फ मोदी और प्रमोद को गिरफ्तार कर लिया. प्रमोद ने कांवडि़यों जैसे कपड़े पहन रखे थे. पुलिस ने उसे पास के अस्पताल में भरती करा दिया. मकान मालिक सोहनवीर को भी हिरासत में ले लिया गया.

डा. गौड़ की सुरक्षित बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली. डाक्टर के घर वालों और मैट्रो अस्पताल में डा. श्रीकांत गौड़ के सुरक्षित रिहा कराने की जानकारी मिली तो सभी खुश हुए. गिरफ्तार बदमाशों से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि किडनैपिंग की पूरी वारदात को सुशील, उस के भाई अनुज, गौरव पंडित और विवेक उर्फ मोदी ने अंजाम दिया था. सुशील और अनुज दादरी के रहने वाले थे, जबकि अन्य सभी दौराला के.

पुलिस ने डाक्टर को तो सुरक्षित बरामद कर लिया था, लेकिन योजना को अंजाम देने वाले मुख्य अभियुक्तों सुशील और अनुज का गिरफ्तार होना जरूरी था. पुलिस टीमें इन दोनों अभियुक्तों की तलाश में जुट गईं, पर उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. तब दिल्ली पुलिस ने इन दोनों भाइयों की गिरफ्तारी पर 50-50 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

दिल्ली पुलिस मुख्य अभियुक्तों को तलाश रही थी तो मेरठ पुलिस भी इन्हें तत्परता से खोज रही थी. इस में सफलता मिली मेरठ की एसटीएफ को. एक सूचना के आधार पर एसटीएफ ने 4 अगस्त, 2017 को सुशील और अनुज को मेरठ में एक मुठभेड़ के बाद नगली गेट के पास से गिरफ्तार कर लिया. प्रीत विहार के थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को जब उन की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह 10 अगस्त को पूछताछ के लिए उन्हें दिल्ली ले आए.

दिल्ली पुलिस ने सुशील और अनुज से पूछताछ की तो उन्होंने डा. श्रीकांत के अपहरण की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

सुशील कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के दौराला थाने के दादरी गांव के रहने वाले सतबीर का बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. किसी दोस्त ने उसे बताया कि ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में गाड़ी लगा देने पर महीने में अच्छीखासी कमाई हो जाती है. दोस्त की सलाह उसे पसंद आ गई. उस ने मेरठ की तान्या मोटर्स से एक वैगनआर कार खरीदी और ओला कंपनी में कैब के रूप में लगा दी.

यह सन 2014 की बात है. दिल्ली से रोजाना गांव जाना आसान नहीं था, इसलिए वह वसुंधरा में किराए का फ्लैट ले कर रहने लगा. ओला कंपनी से सुशील को हर महीने अच्छी कमाई होने लगी तो उस ने अपने छोटे भाई अनुज के नाम से भी एक और कार ओला में लगवा दी. दोनों भाई वहां काम कर के खुश थे.

कंपनी ने ड्राइवरों को प्रोत्साहन देने के लिए बोनस देने की योजना चला रखी थी. यह बोनस निर्धारित राइड से ज्यादा राइड पर था.  इसलिए दोनों भाई ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगाने की कोशिश करते. इसी दौरान सुशील के दिमाग में लालच आ गया. उस ने फरजी आईडी पर रोजाना 20 बुकिंग करनी शुरू कर दीं. इस से उसे रोजाना 20 हजार रुपए की आमदनी होने लगी.

सुशील मोटी कमाई करने लगा तो उसे घमंड भी गया, जिस से वह ग्राहकों से भी दुर्व्यवहार करने लगा. ये शिकायतें ओला कंपनी तक पहुंची तो उन्होंने जांच कराई. जांच में फरजी आईडी पर बुकिंग करने की बात सामने आ गई.

इस के बाद उस की दोनों गाडि़यां ओला कंपनी से हटा दी गईं. ओला कंपनी से गाडि़यां हटने के बाद दोनों को बहुत बड़ा झटका लगा. उन्होंने तय कर लिया कि वे ओला कंपनी को सबक सिखाएंगे.

दोनों भाई दबंग प्रवृत्ति के तो थे ही, बताया जाता है कि उन्होंने सन 2011 में नोएडा के एक बिजनैसमैन का अपहरण कर के उस के घर वालों से 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी थी. फिरौती के 5 करोड़ तो नहीं मिले थे, पर एक करोड़ रुपए में बात फाइनल हो गई थी और रुपए ले कर ही उसे छोड़ा था.

एक बार उन्होंने अखबार में एक खबर पढ़ी थी, ‘दुष्कर्म पीडि़ता ने ऊबर पर ठोका केस’. यह खबर पढ़ने के बाद सुशील के दिमाग में आइडिया आया कि अगर ओला के किसी कस्टमर का अपहरण कर लिया जाए तो उस की फिरौती ओला से मांगी जा सकती है. क्योंकि सवारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की हो जाती है. ओला को सबक सिखाने का यह तरीका सुशील को पसंद आया. यह 5 महीने पहले की बात है.

इस के बाद सुशील अपने भाई अनुज के साथ योजना बनाने लगा. चूंकि उन की गाडि़यां ओला से निकाली जा चुकी थीं, इसलिए गाडि़यां उन के नाम से फिर से कंपनी में नहीं लग सकती थीं. यह काम फरजी कागजों द्वारा ही संभव था. एक दिन सुशील को इंदिरापुरम इलाके में महाराष्ट्रा बैंक की एक पासबुक सड़क किनारे मिल गई. वह विनीता देवी की थी. अब सुशील ने अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए.

उस ने विनीता के नाम से अपनी वैगनआर कार के फरजी कागज बनवा लिए, जिस में उस ने गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर भी बदल दिया. विनीता के नाम से एक पैन कार्ड और आधार कार्ड भी बनवा लिया. गाड़ी के कागजों के साथ ड्राइवर के कागज भी ओला कंपनी में जमा होने थे.

लिहाजा रामवीर के नाम एक फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, आधार कार्ड आदि बनवा लिया. इतना ही नहीं, उस ने एक निजी कंपनी के नाम से गाड़ी के इंश्योरेंस के कागज भी तैयार करा लिए. जिस तरह से फरजी कागज तैयार हुए, उसी तरह से गाड़ी के फिटनेस पेपर भी तैयार हो गए.

सारे कागज तैयार करा कर वसुंधरा में ओला के एक वेंडर को 1500 रुपए दे कर वे फरजी कागज वैरिफाई करा लिए. इस तरह 4 जुलाई, 2017 को वह अपनी कार ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में लगाने में सफल हो गया. दोनों भाइयों ने पहले ही तय कर रखा था कि जो भी पहली अकेली सवारी उन की गाड़ी में बैठगी, वह उसी का अपहरण कर ओला कंपनी से 5 करोड़ की फिरौती मांगेंगे.

सवारी को किडनैप कर के कहां ले जाना है, यह योजना उस ने मेरठ के रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद कुमार, मुजफ्फरनगर के गांव खादी के अमित कुमार, सहारनपुर के गांव शब्बीरपुर के नेपाल उर्फ गोवर्द्धन, विवेक उर्फ मोदी और गौरव के साथ मिल कर पहले ही बना ली थी.

अब उन्हें पहली सवारी या कहिए शिकार का इंतजार था. इत्तफाक से 4 जुलाई को सुशील को बुकिंग मिल गई. सुशील ने कस्टमर से पूछा कि कितनी सवारी हैं. जब कस्टमर ने बताया कि 3 सवारियां हैं तो उस ने बहाना बना कर जाने से मना कर दिया.

5 जुलाई को उसे कोई बुकिंग नहीं मिली. फिर 6 जुलाई को उसे डा. श्रीकांत गौड़ की बुकिंग मिली. सुशील ने डा. गौड़ से पूछा कि साथ में कितनी सवारियां हैं. जब पता चला कि वह अकेले हैं तो सुशील ने अपने साथियों को अलर्ट कर दिया.

डा. गौड़ को प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास से ले कर चलने के बाद कुछ दूरी चलने पर उस ने गाड़ी में लगा जीपीएस डिसकनेक्ट कर दिया. वह लक्ष्मीनगर की ओर बढ़ा. आगे सैंट्रो कार मिली, जिस में उस का भाई अनुज अपने साथियों गौरव और विवेक उर्फ मोदी के साथ बैठा था.

सैंट्रो कार के पास सुशील ने कैब रोक दी. उस में से अनुज और गौरव उतर कर सुशील की कैब में बैठ गए.

डा. गौड़ ने पूछा कि ये लोग कौन हैं और इन्हें गाड़ी में क्यों बिठाया तो उन बदमाशों ने उन्हें डराधमका कर चुप रहने को कहा. उन का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर उन्हें नशे का इंजेक्शन लगा दिया. इस के बाद वे डाक्टर को वसुंधरा ले गए, जहां उन्होंने सैंट्रो कार छोड़ दी. इस के बाद वे डाक्टर को दौराला ले गए.

सुबह 4 बजे के करीब सुशील ने ओला कंपनी के कस्टमर केयर नंबर पर फोन कर के कस्टमर डा. श्रीकांत का अपहरण करने की सूचना दे दी. इस के बाद सुशील का साथी प्रमोद अपहृत डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रखने की व्यवस्था करता रहा. एक जगह पर उन्हें केवल 2-3 दिन ही रखा जाता था. प्रमोद कांवडि़यों की तरह गेरुए रंग के कपड़े पहने रहता था, ताकि उस पर कोई शक न करे.

सुशील अलगअलग जगहों पर जा कर डाक्टर के घर वालों और ओला कंपनी में फोन कर के फिरौती की 5 करोड़ की रकम की डिमांड करता रहा. इतना ही नहीं, डाक्टर के 3 वीडियो भी बना कर भेजे. सुशील ने ओला कंपनी के अधिकारियों को इतना डरा दिया था कि वे 5 करोड़ रुपए देने को तैयार हो गए थे.

सादे कपड़ों में दिल्ली पुलिस 5 करोड़ रुपए ले कर बागपत के पास पहुंची भी थी. पैसे लेने अनुज वैगनआर कार से आया भी था, पर पुलिस की शंका होने पर वह कार छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया. इस के बाद सुशील को जब पता चला कि उस के कुछ साथी पकड़े जा चुके हैं तो वह खुद अंडरग्राउंड हो गया.

पुलिस ने सुशील और अनुज की पत्नी सहित परिवार के अन्य लोगों को हिरासत में लिया तो वे परेशान हो गए. बाद में मुखबिर की सूचना पर मेरठ के नगली गेट इलाके से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सुशील और अनुज से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अब मामले की जांच इंसपेक्टर रूपेश खत्री कर रहे हैं.

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