राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर आम जनता या कांग्रेसियों को आपत्तियां होती तो बात कुछ गंभीर होती, पर यहां सारी आपत्तियां भारतीय जनता पार्टी को हो रही है जो कुछ अजीब लग रहा है. यह तो ठीक है कि हिंदू धर्म की खराब परंपराओं को निभाने में दक्ष भारतीय जनता पार्टी हर दूसरे के निजी मामले में टांग अड़ाने का मौलिक हक रखती है पर चोरचोर मौसेरे भाई होते हैं और एकदूसरे को तो बख्शते हैं.

भारतीय जनता पार्टी आज देश की बड़ी नहीं बहुत बड़ी पार्टी है और उसे कांग्रेस जैसी छोटी पार्टी से डर नहीं लगना चाहिए और उसे अपने हिसाब से जीने का हक देना चाहिए पर आदत से मजबूर महान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ले कर झुमरीतलैया की कच्ची बस्ती के मंदिर के पुजारी तक राहुल पर कमेंट कर रहे हैं और लोकतंत्र की हत्या का राग अलाप रहे हैं.

कांग्रेस जेबी पार्टी है इस में शक नहीं है, पर यह फिर भी लोगों को उसी तरह मान्य है जैसे 15वीं शताब्दी के मामले सिर पर उठाए चल रही भारतीय जनता पार्टी मान्य है. जब आप के चेहरे पर खुद कालिख पुती हो तो दूसरे के चेहरे पर निशान को दिखाना बड़प्पन नहीं खीज जाहिर करता है.

राहुल गांधी से भारतीय जनता पार्टी भयभीत रही है, यह सच है और 2014 से पहले उन का आक्रमण सोनिया गांधी या मनमोहन सिंह पर इतना नहीं था जितना राहुल गांधी पर था. शायद उन की रणनीति थी कि यदि राहुल गांधी को लगातार निशाने पर रखा जाएगा तो वह घबरा कर मैदान छोड़ जाएंगे. अफसोस यह है कि हिंदू समाज के सुधारकों की तरह राहुल गांधी भी कट्टरपंथियों का मुकाबला करते रहे.

पार्टियों में लोकतंत्र एक आदर्श व्यवस्था है पर दुनिया भर में इस के नुकसान भी हुए हैं. आज अमेरिका में इस आंतरिक लोकतंत्र के कारण न डैमोक्रेटिक पार्टी में न रिपब्लिकन पार्टी में सही नेतृत्व है. इंग्लैंड की कंजर्वेटिव पार्टी व लेबर पार्टी दोनों नेताओं के अभाव से मस्त हैं. फ्रांस को एक नए नवेले राष्ट्रपति और उस की नई नवेली पार्टी से काम चलाना पड़ रहा है. जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल की धाक यूरोप व अमेरिका की राजधानियों में है पर वोटरों के दिलों में नहीं.

परिवारवाद आदर्श नहीं पर इस का पर्याय शायद कम है. राजनीतिक माहौल में बड़े हुए युवा सफल नेता बन जाते हैं, क्योंकि उन के सैकड़ों से संबंध होते हैं एवं भारतीय जनता पार्टी में दूसरी तीसरी पीढ़ी के दसियों नेता ऐसे हैं, जिन के पुरखे राजनीति में थे और राजनीति ही उन का मुख्य व्यवसाय है. लोकतंत्र तो परिवारों के सही लोगों को मान्यता देती है और उस पर आपत्ति करना निरर्थक सा है क्योंकि जब भी परिवार नहीं होता  ‘…… फैक्टर यानी ……..इज नो एल्टरनेटिव’ दिखने लगता है.

भारतीय जनता पार्टी की परेशानी यह है कि जैसे उस के पास आज नरेंद्र मोदी का पर्याय नहीं वैसे ही कांग्रेस के पास राहुल गांधी जैसा पर्याय क्यों है.

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