भारत के शोध और विकास की स्थिति संभवत: विश्व में सब से खराब है. हम थके हुए और अकल्पनाशील नौकरशाहों की नियुक्ति करते हैं. उन के द्वारा समस्याओं के निराकरण हेतु प्रयोग में लाई जा रही तकनीक भी पूरी तरह पिछड़ी हुई है. स्थानीय समस्याओं के निराकरण हेतु ग्रामीणों द्वारा किए गए आविष्कारों को हम प्रोत्साहित नहीं करते. भारत का पेटैंट औफिस भी इतना सुस्त और पेचीदा है कि कोई उस की तरफ रुख नहीं करता. इंडियन काउंसिल औफ ऐग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) काम करने के कुछ नए रास्ते बताने वाले पेपर निकालती तो है पर वे इन्हीं औफिसों में कहीं दबे रह जाते हैं. इसलिए नई सरकार को एक आर ऐंड डी सैल की आवश्यकता है.
नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन चला रहे आईआईएम, अहमदाबाद के प्रोफैसर अनिल गुप्ता बराबर इस कोशिश में रहते हैं कि कुछ नई खोज हो और खोजकर्ता को रिवार्ड व पेटैंट से नवाजा जा सके.
मैं ने पिछले चुनावों के दौरान प्रोफैसर अनिल गुप्ता से बात की थी. मैं बड़ी ही उत्सुकता से कुछ ऐसे नए रास्तों की खोज में हूं, जिन से मेरे चुनाव क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण अपने गांव में रह कर ही पैसे कमा सकें. नई फैक्टरियों की खोज का वक्त मेरे लिए जा चुका है. उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है, जहां न तो राजनीतिक इच्छाशक्ति है, न बिजली और न ही कोई बेहतरीन इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुविधा. इसीलिए नएनए निवेशक आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं.
अत: मैं इस क्षेत्र में कृषि के स्तर पर नई खोजों का प्रयोग करना चाहती हूं. मैं ने प्रोफैसर अनिल गुप्ता से आग्रह किया कि वे कुछ ऐसी मशीनों का निर्माण करें, जो हर गांव में इस्तेमाल की जा सकें और गाय के गोबर का भी प्रयोग हो सके.
1 माह के अंदर ही उन्होंने इस तरह की 3 मशीनों का आविष्कार किया. पहली मशीन वह है, जो गाय के गोबर को बहुत बड़े और मजबूत लट्ठों में बदलती है. इन लट्ठों को श्मशान घाट में लकड़ी की जगह इस्तेमाल किया जा सकेगा. यह बेहद जरूरी भी है क्योंकि दिन पर दिन जंगलों में पेड़ों की संख्या घटती जा रही है.
एक शव को जलाने के लिए कम से कम 600 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग किया जाता है (अधिकतर आम की लकड़ी) और अब स्थिति यह हो गई है कि हम इतनी तादाद में पेड़ों की कटाई नहीं कर सकते. लकड़ी के तस्कर रात में आम के बगीचों में जा कर वहां लगे पेड़ों को काट कर लकड़ी के व्यापारियों को बेच देते हैं ताकि शवों को जलाया जा सके. यह बहुत ही घिनौना जुर्म है
अब मैं यह मशीन अपने इलाके में ले कर आ रही हूं, ताकि यह जांच सकूं कि महिलाएं इस का उपयोग पैसे कमाने में कर सकती हैं या नहीं. इस से लकड़ी भी बचेगी, पैसा भी बनेगा और इस से भी बेहतर यह कि दूध देना बंद कर चुकी गाय और भैंसों की बिक्री को भी रोका जा सकेगा.
दूसरी मशीन एक ऐसी मशीन है, जो गाय के गोबर को गमलों में बदल देती है. वन विभाग अंकुरित पौध को रखने के लिए प्लास्टिक का प्रयोग करता है. इस से सभी राज्यों की फौरेस्ट नर्सरीज में बेकार प्लास्टिक के ढेर लग रहे हैं. इस मशीन से तैयार गमले बहुत सस्ते व अनोखे होते हैं, क्योंकि वे अपनेआप में ही खाद का काम करते हैं. यदि हम वन विभाग को ये गमले खरीदने के लिए प्रेरित करें तो हमें स्वस्थ पौधे मिल सकेंगे.
तीसरी मशीन एक ऐसी मशीन है, जो गाय के गोबर और भूसे के मिश्रण से ईंटों का निर्माण करती है. गेहूं निकालने के बाद बचने वाला भूसा किसान साधारणतया जला देते हैं. इस से काफी मात्रा में गरमी और प्रदूषण उत्पन्न होता है. यदि इस मशीन को इस्तेमाल करने वाले लोग बेहतर ढंग से ईंटें बना पाएं तो इन ईंटों से गांव में घर भी बनाए जा सकेंगे. कल्पना कीजिए, इस तरह गांव का हर गरीब व्यक्ति अपना खुद का मकान बना सकेगा और तब उसे इस बात के लिए अपने प्रधान की दया पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा कि वह किसी सरकारी योजना के तहत उसे घर दिलवाएगा.
मेरे दिमाग में एक विचार और आया है, जिसे मैं आगे प्रयोग में लाना चाहूंगी. वह है, गोबर से बना और्गेनिक मच्छर प्रतिरोधक. एक छोटे ग्रुप ने तो इस का ढांचा तैयार भी कर लिया है. मुझे बस इस में थोड़ा सुधार लाना है. प्रो. अनिल गुप्ता इस प्रोजैक्ट पर काम कर रहे हैं.
प्रो. गुप्ता के बारे में सब से लाजवाब बात यह है कि सारी नईनई चीजें उन्हें बहुत उत्तेजित करती हैं और इस काम में वे काफी ऐक्टिव भी रहते हैं. आज उन के पास 600 से भी ज्यादा पेटैंट्स हैं. बहुत से ऐसे खोजकर्ता हैं, जो बहुत गरीब थे पर जिन के पास अनोखे आइडियाज थे. उन को प्रो. गुप्ता के सहयोग से काफी लाभ पहुंचा है.
मेरी इच्छा है कि नए प्रधानमंत्री युवा टैक्नोक्रैट्स की एक सैल बनाएं, जो नईनई खोजों को अंजाम दें. मैं इस क्षेत्र में प्रो. अनिल गुप्ता के साथ काम करना चाहती हूं. मैं जो करना चाहती हूं, उस की सूची हालांकि बहुत लंबी है पर उन में से कुछ योजनाएं निम्न हैं:
जानवरों की सुरक्षा
जानवरों के लिए नए तरह के साजोसामान, जो उन्हें तकलीफ न दें, मैं ईजाद करना चाहती हूं. आज जोते जाने वाले बैलों में से 33% गले के कैंसर से मर जाते हैं और इस की वजह है उन के गले पर पड़े जुए का बोझ और दबाव.
मांस का उत्पादन स्टैम सैल से
कोई भी व्यक्ति मांस खाना बंद नहीं करने वाला. मैं एक ऐसे भविष्य का सपना देखती हूं, जब मांस का उत्पादन स्टैम सैल से हो सकेगा. यह मांस प्राप्ति का एक नैतिक और ईकोफ्रैंडली तरीका होगा. ‘टै्रंड्स इन बायोटैक्नोलौजी’ नामक जर्नल में वैज्ञानिकों ने विचार रखा है कि हर शहर और गांव में एक दिन उन की छोटी ही सही अपनी एक कल्चर्ड मीट फैक्टरी हो सकती है. इस से मीथेन गैस का रिसाव भी नहीं होगा, इसलिए आप दुनिया में प्रदूषण फैलाए बिना मांस खा सकेंगे.
प्लास्टिक का सही इस्तेमाल
एक ऐसा आविष्कार जो प्लास्टिक को पुन: तेल में बदल सके. यह व्यापार करोड़ों का साबित हो सकता है. क्योंकि इस से पैदा हुआ तेल स्थानीय स्तर पर यातायात में इस्तेमाल हो सकेगा. साथ ही नदियां, जो प्लास्टिक की थैलियों के जमा होने से गंदी हो रही हैं, उन्हें साफ किया जा सकेगा. मुझे बताया गया है कि नागपुर में इस विषय पर काम शुरू हो चुका है. करोड़ों गायों की मौत प्लास्टिक खाने की वजह से होती है.
जनसंख्या पर लगाम
एक सुरक्षित, दर्दरहित उपाय जिस से इंसानों, कुत्तों, बंदरों आदि की प्रजनन क्षमता को रोका जा सके. संभवत: यह कोई एक बार खाने वाली गोली हो सकती है.
बिजली में आत्मनिर्भरता
पवन चक्कियां अनेक गांवों में लगी हुई हैं. पश्चिम बंगाल में एक किसान ने केवल 5,000 में एक पवनचक्की का आविष्कार किया है, जिस से वह सिंचाई के लिए पानी निकालने का काम करता है. यह एक ऐसा गांव है, जहां विंड पावर की कमी है. वह हवा के सामान्य मूवमैंट का इस्तेमाल करता है. भले ही इस से पानी की सिंचाई काफी धीरेधीरे होती है, पर बहुत से किसानों को सिंचाई में इस से फायदा हुआ है. हमें इस किसान के आविष्कार का उपयोग कर आगे बढ़ना होगा. विद्युतीय ग्रिड से छुटकारा पा कर कुछ नई चीजें खोजनी होंगी ताकि सभी गांव बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बन सकें.
प्रदूषणरहित वातावरण
ऐसी कारें, जो हाइड्रोजन गैस से चलें. सब कहते हैं कि ऐसी गाडि़यों का आविष्कार हो चुका है तो फिर वे हैं कहां? कल्पना कीजिए प्रदूषणरहित गाडि़यों की. कैसा बेहतरीन संसार होगा वह जहां हम फिर से सांस ले सकेंगे. मुझे विश्वास है कि हर किसी के मन में ऐसी चीजों की सूची जरूर होती है, जिन के आविष्कार की वे इच्छा रखते हैं. और आप में से बहुत से लोगों ने कुछ ऐसे छोटेमोटे आविष्कार देखे भी होंगे और चाहते होंगे कि सरकार द्वारा इस का प्रचारप्रसार किया जाए.