जब से मेरे बचपन के दोस्त आम से खास हुए हैं, अपना सीना बिना फुलाए 40 से 60 हो गया है. अब तो न चाहते हुए भी उन से गाहेबगाहे काम पड़ता ही रहता है. कभी पानी नल में न आने पर कमेटी वालों को उन का फोन करवाने जाना पड़ता है, तो कभी बिजली न आने पर.

इन सरकारी महकमे वालों को भी पता नहीं आजकल क्या हो गया है कि बिना किसी नेता के फोन के छींकते भी नहीं. इन की हरकतों को देख कर तो यों लगता है मानो ये जनता के नहीं, नेताओं के नौकर हों. जब देखो, जहां देखो, नेताओं के आगेपीछे दुम हिलाते रहते हैं. कभी ऐसे जनता के आगे भी दुम हिलाओ, तो मजा मिले.

नल में 2 दिन से पानी न आने के चलते पानी वालों को दोस्त का फोन करवाने उन के घर गया, पर वे घर में कहीं न दिखे. मैं ने परेशान होते हुए भाभी से पूछा, ‘‘नेताजी कहां हैं भाभीजी? घूमने गए हैं क्या? या अभी भी चुनाव के दिनों की भागदौड़ की थकान मिटाने के लिए लेटे हुए हैं? लगता है कि अब तो वे अगले चुनाव तक ही जागेंगे.’’

‘‘जब से पार्टी से निकाले गए हैं, तब से इन की नींद हराम हो गई है. पूजा कर रहे हैं भीतर. कुछ दिनों से नई बीमारी पाल ली है. जब देखो पूजा… पूजा… पूजा… सौ बार कह चुकी हूं, बहुत हो गई यह पूजा, पर उठने का नाम ही नहीं लेते.

‘‘सच कहूं भाई साहब, मैं ने ये इतने बेचारे कभी नहीं देखे, जितना आजकल देख रही हूं. चेहरे पर जीत की रत्तीभर लाली नहीं, जबान पर पहले सी कोई गाली नहीं. चाय 5-5 बार गरम करनी पड़ती है, पर इन को तो चाय पीने तक की फुरसत नहीं,’’ भाभी ने दुखड़ा रोया.

भाभी की यह हालत देख कर मुझे रोना आ गया. कैसा नेता है यह? जीत के महीनेभर बाद ही अपनी घरवाली को परेशान करने लग गया है.

सांसें रोके दबे पैर उन के भगवान रूम में गया, तो जो मैं ने देखा उसे देख कर मैं भी हैरान रह गया. सामने पार्टी प्रधान का बड़े से शीशे में मढ़ा हंसता हुआ फोटो बराबर खांसता हुआ और वे फोटो के आगे धूपदीप, फलफू्रट थाली में सजा साष्टांग अधखुली धोती में पड़े हुए.

यह देख कर मैं चकराया. मुझ से रहा न गया, सो पूछ बैठा, ‘‘भाई साहब? यह क्या…?’’

‘‘पूजा हो रही है और क्या?’’ कह कर वे लेटेलेटे ही पार्टी प्रधान के फोटो के आगे नाक रगड़ने लगे, तो मैं डरा. बचीखुची नाक भी जाती रही तो…

पर तभी कहीं से भविष्यवाणी हुई कि इन के नाक होना या न होना कोई माने नहीं रखता गधे. इन की नाक हो, तो भी ये वैसे ही, न हो तो भी ये वैसे ही.

‘‘पर… किस की पूजा?’’

‘‘अपने इन भगवान की और किस की? इन के आगे इन दिनों हर अवतार फेल है. जो ठान लेते हैं, बस कर के ही दम लेते हैं.’’

देशभर की उदासी चेहरे पर मलने के बाद उन्होंने फोटो के आगे रखे प्रसाद में से एक केला मेरी ओर बढ़ाया, तो मैं ने केला उन से प्रसाद रूप में ले कर जेब में डालते हुए पूछा, ‘‘पर यह सब चुनाव क्षेत्र के लोगों ने देख लिया, तो उन में क्या मैसेज जाएगा भाई साहब?

‘‘उन्होंने आप को काम करने के लिए वोट दिया है, दिनरात इन की तसवीर के आगे लेटे रहने के लिए नहीं.’’

‘‘भाड़ में जाए काम. यहां तो पार्टी में बने रहने के लाले पड़े हैं. जो मैसेज जाना हो जाए. मुझे अपने को देखना है.

‘‘सोच रहा हूं, अपनी जबान सिलवा लूं. कहीं गलती से भी ऐसावैसा सच जैसा कहीं बक दिया तो… इस देश में तुम किसी जबान सिलने वाले को जानते हो क्या?’’

इतना कह कर उन्होंने हाथ में घंटी पकड़ी और घंटी की ‘टनटन’ के साथ सुर में गाना गाने लगे, मानो पार्टी प्रधान को अपना दुखड़ा सुना रहे हों, ‘तुम्हीं हो फादर, मदर तुम्हीं हो, तुम्हीं हो नियरर, डियरर तुम्हीं हो… जो खिल सकें न वे फूल हम हैं… तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं. दया की दृष्टि सदा ही रखना… तुम्हीं हो बिस्तर, चादर तुम्हीं हो… तुम्हीं हो लोटा, गागर तुम्हीं हो…’

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