मेरी दादी के 10 पोतियां थीं. बात मेरे भाई की शादी के अवसर की है. हम बरात ले कर आगरा गए. शादी में बहुत मजा आया. पर विदा के समय जब बैंड पर विदाई धुन बजी तो हमारा रोना निकल गया. सब हमें ही देखे जा रहे थे कि यह क्या, रोना इन का क्यों शुरू हो गया. हमें याद ही नहीं रहा कि हम लड़के वाले हैं. मंडप पर दुलहन, दूल्हा भी हमें देख रहे थे. दूल्हे की हंसी रुक ही नहीं रही थी. वह बोला, ‘‘तुम सब क्यों रो रहे हो? रोना तो मुझे चाहिए.’’ मंडप पर बैठे सभी हंस पड़े. और लड़की वालों ने खुशीखुशी विदा कर दिया. आज जब भी हम किसी शादी में जाते हैं तो वही बात याद आ जाती है.

रीता मेहरोत्रा, फरीदाबाद (हरियाणा)

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हमारे घर पर एक नवविवाहित जोड़ा आया. मैं ने उन्हें प्रेमपूर्वक सोफे पर बिठाया. मेरा 11 वर्षीय बेटा दौड़ते हुए आया और उन दोनों के सामने एकदम शाश्वत दंडवत तरीके से लेट गया. वे दोनों बेचारे चौंक गए और अचकचा कर खड़े हो गए. ‘खुश रहो, खुश रहो’ कहते हुए वे लोग समझे बच्चे को प्रणाम करने का तरीका इन के यहां इसी तरह सिखाया गया लगता है. वे कहने लगे, ‘आजकल हायहैलो के जमाने में आप का बच्चा इतना संस्कार वाला है, यह देख कर अत्यंत प्रसन्नता हुई. सच, आप का बेटा बड़ा हो कर अच्छा इंसान बनेगा.’ हकीकत यह थी कि मेरा बेटा सोफे के नीचे अपना क्रिकेट का बैट रखता था, उस को निकालने के लिए वह लेट गया था. और उस चौंकने व अचकचाने के मध्य उन्हें इस बात का पता तक नहीं चला कि वह अपना बैट ले कर नौ दो ग्यारह हो गया. उस वक्त तो किसी तरह मैं ने हंसी को दबाए रखा. उन के जाने के बाद हंसहंस कर मैं बेहाल हो गई.

अंजू अशोक गट्टानी, जोरहाट (असम)

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हम लोग अपने मित्र भार्गव साहब के यहां घूमने के लिए गए हुए थे. शाम के वक्त खाना खा कर परिवार सहित टहलने के लिए निकले. टहल कर जब वापस आ रहे थे तो एक सड़क पार करनी थी. गाडि़यों के निरंतर आनेजाने के कारण सड़क पार नहीं कर पा रहे थे. गाडि़यां कुछ कम हुईं, केवल एक बस दूर से आती नजर आ रही थी. भार्गव साहब ने मेरे पति से कहा कि आ जाओ. मेरे पति ने कहा कि रुक जाओ, इस को भी निकल जाने दो. भार्गव साहब ने कहा, ‘अरे, बस अभी दूर है और इस से पहले एक स्पीड ब्रेकर भी है.’ मेरे पति हाजिरजवाब हैं. उन्होंने कहा कि तुझे तो पता है यहां स्पीड ब्रेकर है, बस वाले को थोड़े ही पता है कि यहां ब्रेकर है. इस बात पर हम सभी बिना हंसे नहीं रह सके.

आशा शर्मा, बूंदी (राज.)

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