कुछ वर्ष पहले प्रदर्शित तमिल व तेलगू फिल्म ‘‘वीआईपी’’ का सिक्वअल है फिल्म ‘‘वीआईपी 2’’ जिसे इस बार हिंदी में ‘वीआईपी 2(ललकार)’ के नाम से दर्शकों के सामने पेश किया गया है. इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के साथ ही इसका लेखन भी अभिनेता धनुष ने ही किया है. जबकि निर्देशक सौंदर्य रजनीकांत हैं. लेकिन यह फिल्म पिछली फिल्म ‘वीआईपी’ से कई गुना कमजोर है. निरर्थक फिल्म ‘वीआईपी 2(ललकार)’ को देखना एक कष्टदायी यात्रा है.

दो इंसानों की अहम की लड़ाई वाली फिल्म ‘‘वीआईपी 2 (ललकार)’’ में धनुष और काजोल आमने सामने हैं. फिल्म की कहानी के केंद्र में वसुंधरा कंस्ट्रक्शन की मालिक वसुंधरा परमेश्वरन (काजोल) और रघुवरन (धनुष) के अहम के टकराव की कहानी है. वसुंधरा ने 12 साल की उम्र से काम करते हुए भवन निर्माण के क्षेत्र में बहुत बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है. हर साल भवन निर्माण व इंजीनियरिंग के सारे पुरस्कार उन्हें, उनकी कंपनी व उनकी कंपनी से जुड़े इंजीनियरों को ही मिलते रहे हैं. हर इंजीनियर उन्हीं की तारीफ करता रहता है. इस साल के सारे अवार्ड भी उनकी कंपनी से जुड़े इंजीनियरों को मिलते हैं. मगर सबसे बड़ा रघुवरन को मिल जाता है, जबकि वसुंधरा इस पुरस्कार को लेने की तैयारी के साथ आयी थी. अब वसुंधरा, रघुवरन के बारे में जानकारी इकट्ठा कर उसे मिलने के लिए बुलाती है.

उधर रघुवरन अपनी प्रेमिका शालिनी से शादी करने के साथ ही एक नई कंपनी में नौकरी करते हुए खुश है. वह अपनी कंपनी में राम के यकीन को धोखा नहीं देना चाहता. मगर राम के ही कहने पर रघुवरन जब वसुंधरा से मिलने पहुंचता है, तो वसुंधरा उसकी तरफ बिना देखे कहती है कि वह अपना अप्वाइंटमेंट लेटर ले ले और कल से नौकरी पर आकर अपनी जिम्मेदारी को बाखूबी निभाए. पर रघुवरन उनकी नौकरी ठुकरा देता है.

इससे वसुंधरा के अहम को चोट पहुंचती है और वह रघुवरन तथा जिस कंपनी में नौकरी कर रहा है, उसे बर्बाद करने के लिए हर चाल चलती है. मंत्री से भी मदद लेती है. अंततः एक दिन रघुवरन कंपनी की नौकरी छोड़कर खुद ही अपने हजार इंजीनियर दोस्तों के साथ मिलकर ‘वीआईपी कंस्ट्रक्शन’ कंपनी की शुरुआत करता है. पर अब भी वसुंधरा उसके पीछे पड़ी हुई है. पर एक वक्त ऐसा आता है, जब न्याय पर चलने वाला रघुवरन पर्यावरण के मुद्दे पर लड़ाई छेड़ता है, तो मंत्री को त्यागपत्र देना पड़ता है. फिर एक मुकाम पर वसुंधरा व रघुवरन के बीच सुलह हो जाती है.

धनुष बेहतरीन अभिनेता माने जाते हैं. अब तक वह तमिल व तेलगू में कई तरह के किरदार निभाकर अपनी गिनती सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में कराते आए हैं. हिंदी फिल्म ‘‘रांझणा’’ में भी दर्शकों ने उन्हे काफी पसंद किया था. लेकिन इस फिल्म में धनुष ने काफी निराश किया है. कम से कम धनुष जैसे कलाकार से इस तरह के अभिनय व फिल्म की उम्मीद तो नहीं थी. फिल्म देखकर लगता है कि धनुष ने अपने आपको अपनी निजी जिंदगी के ससुर व अभिनेता रजनीकांत का वारिस घोषित करने के मकसद से एक्शन, नाचगाना, हास्य वगैरह सब कुछ करते हुए नजर आने के लिए ही इस फिल्म की पटकथा लिखी, मगर वह एक्शन हो या नाच गाना कहीं भी नहीं जमे. इसकी मूल वजह कमजोर व अस्वाभाविक पटकथा व घटनाक्रम हैं. पर्यावरण का मुद्दा भी सही ढंग से उभर नहीं पाया. काजोल भी निराश करती हैं.

फिल्म का गीत संगीत अति साधारण है. फिल्म में गाने जबरन ठूंसे गए लगते हैं. कहीं भी कभी भी गाना शुरू हो जाता है. एक महिला निर्देशक की फिल्म में जिस तरह से महिला किरदारों को पेश किया गया है, वह भी गले नहीं उतरता. महिलाओं का मजाक उड़ाना आज के जमाने में न शोभा देता है और न ही यह बात हजम होती है.

अति घटिया पटकथा व कमजोर पटकथा के चलते फिल्म का क्लाइमेक्स अचानक फिल्म को खराब कर देता है. अचानक पटकथा काफी ढीली हो जाती है और दोनों किरदार एकदम ढीले पड़ जाते हैं और एक दूसरे के साथ न सिर्फ बात करने लगते हैं, बल्कि एक साथ काम करने लगते हैं. यह सब बड़ा ही अस्वाभाविक घटनाक्रम है.

दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘वीआईपी 2(ललकार)’’ के लेखक धनुष, निर्देशक सौंदर्या रजनीकांत, कलाकार हैं – काजोल, धनुष, आमला पाल व अन्य.

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