मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पौश इलाके शिवाजी नगर की झुग्गीझोंपड़ी वाला महल्ला है अर्जुननगर, जिस में दाखिल होते ही एहसास होता है कि जिंदगी सभी के लिए आसान नहीं होती. अर्जुननगर में सैकड़ों अधकच्चे मकान बेतरतीब से बने हैं, गलियां इतनी तंग हैं कि 2 साइकिल सवार एकसाथ न गुजर पाएं. यह इलाका बुनियादी सहूलियतों व जरूरतों से इतना वंचित है कि लोगों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है. यहां के अधिकांश लोग पेशे से मजदूर और रोज कमानेखाने वाले हैं, जिन के पास कल के भोजन की किसी तरह की कोई गारंटी नहीं होती. ऐसे ही एक छोटे से मकान में रहती  है 16 वर्षीय नंदिनी चौहान, जिस के पिता रामाचल मजदूरी करते हैं और दिनभर मेहनत करने के बाद औसतन 300 रुपए कमाते हैं. 3 सदस्यों वाले परिवार का इतने कम पैसे में कितनी मुश्किल से गुजारा होता होगा, इस का अंदाजा हर कोई लगा सकता है. झुग्गियों से गुजरते नाकभौं सिकोड़ने वाले लोग बीती 14 मई को हैरान रह गए जब उन्होंने अखबारों में यह खबर पढ़ी कि अर्जुननगर की 10वीं की एक छात्रा नंदिनी मैरिट में चौथे नंबर पर आई है. मैरिट में आए छात्रों को इस दिन मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल ने एक समारोह में सम्मानित किया तब नंदिनी अपने नानानानी के घर गोरखपुर गई हुई थी. लिहाजा, यह सम्मान उस के पिता रामाचल चौहान को दिया गया.

रामाचल को जब शिक्षा मंत्री पारस जैन ने मैडल पहनाते हुए बधाई दी तो वे सकुचा उठे. वजह, इतने तामझाम वाले किसी समारोह में पहले कभी वे शामिल नहीं हुए थे. फिर यहां तो मंच पर बुला कर उन्हें मैडल पहनाया जा रहा था. जान कर हैरानी होती है कि रामाचल को नहीं मालूम कि मैरिट और टौप टैन क्या होते हैं पर उन्हें यह एहसास जरूर था कि उन की बेटी ने नाम ऊंचा करने वाला कोई कारनामा कर दिखाया है. इधर, जैसे ही नंदिनी के मैरिट में आने की खबर अर्जुननगर में आम हुई तो झुग्गीझोंपड़ी वाले भी झूम उठे और उन्होंने अपने स्तर पर जश्न मनाया. चारों तरफ नंदिनी की उपलब्धि की चर्चा थी.

शिवाजी नगर के सरस्वती शिशु मंदिर की छात्रा नंदिनी ने बोर्ड की कठिन प्रतिस्पर्धा वाली 10वीं की परीक्षा में 97 फीसदी अंक हासिल किए हैं. उसे सभी विषयों में विशेष योग्यता मिली है. गणित में तो उस के नंबर सौ फीसदी हैं. जब यह संवाददाता नंदिनी से मिलने अर्जुननगर पहुंचा तो नंदिनी के घर का रास्ता दिखाने वालों ने उत्साहित होते हुए बताया कि आजकल कई नेता, मंत्री और अफसर नंदिनी को बधाई देने आ रहे हैं, उस ने तो पूरी बस्ती का नाम रोशन कर दिया है. नंदिनी ने पूरे आत्मविश्वास से बातचीत में बताया, ‘‘मैं ने ठान लिया था कि 10वीं की मैरिट लिस्ट में आना है और इस के लिए मैं ने वक्त रहते तैयारी शुरू कर दी थी.’ नंदिनी के एक कमरे के घर या घर के एक कमरे में ही ड्राइंगरूम, किचन, बैडरूम और स्टडीरूम हैं. इस बाबत उसे कोई संकोच नहीं होता यानी वह व्यावहारिक भी है और समझदार भी. बातचीत में नंदिनी ने बताया कि उस ने बचपन से ही अभाव देखे हैं. पापा कैसे मेहनत कर पैसा कमाते हैं, इस का एहसास उसे है लेकिन कभी कोई शिकायत उसे जिंदगी या जमाने से नहीं रही, बल्कि यह समझ आया कि अगर जिंदगी में कुछ हासिल करना है तो बजाय हालात को रोनेझींकने के, उन्हें सुधार कर अपने मनमाफिक बनाना जरूरी है और यह रास्ता पढ़ाई से हो कर जाता है.

लिहाजा, वह पूरी लगन से पढ़ाई में जुट गई. जो लोग अपना लक्ष्य तय कर लेते हैं उन की मुश्किलें भी दूर होने लगती हैं. यही नंदिनी के साथ हुआ. उस की लगन देख स्कूल के शिक्षकों ने उस पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया. रहीसही कसर उस के ट्यूटर सतीश राय ने पूरी कर दी. नंदिनी ने बताया, ‘‘सतीश सर ने हालात देखते मुझे सिर्फ निशुल्क कोचिंग ही नहीं दी, बल्कि समयसमय पर मुझे निर्देशन भी दिया और दूसरी किताबें ला कर भी दीं. इस से ज्यादा अहम काम उन्होंने यह किया कि वे हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते रहे जिस से मैरिट में आने की मेरी उम्मीद कायम रही.’’ क्या अभाव कभी आड़े नहीं आए, इस सवाल पर नंदिनी ने बेहद समझदारी भरा और दार्शनिकों का सा जवाब दिया, ‘‘नहीं, अभाव कभी आड़े नहीं आए. पढ़ाई के लिए जरूरी यह है कि समय का सदुपयोग किया जाए, जिस की कोई कमी नहीं. यह ठीक है कि दूसरे छात्रों की तरह मेरे पास सहूलियतें व साधन नहीं, लेकिन मेरी मेहनत व लगन देख स्कूल वालों ने भी पूरी मदद की और पापा भी मुझे हिम्मत बंधाते रहे कि तू किसी तरह की फिक्र मत कर, बस, अपनी पढ़ाई करती रह.’’

माहौल पर भारी हौसले

नंदिनी आगे बताती है, ‘‘मैं ने सभी विषयों पर फोकस किया और जो सवाल या अध्याय समझ नहीं आया, उसे बारबार पढ़ा, समझा और अध्यापकों से चर्चा की. लेकिन किसी कठिनाई से जी नहीं चुराया, न यह सोचा कि अगर समझ नहीं आ रहा तो इस को छोड़ दिया जाए.’’ नंदिनी के हौसले बुलंद और इरादे मजबूत हैं. वह आईएएस अधिकारी बनना चाहती है और पूरे आत्मविश्वास से कहती है कि उसे पता है यह आसान काम नहीं है, इसलिए वह जरूर इसे कर डालेगी. 12वीं के बाद गणित से बीएससी करूंगी, फिर आईएएस की तैयारी करूंगी. वह बताती है, ‘‘मैरिट में आने पर जिस तरह लोगों ने मेरी हिम्मत बढ़ाई है, तारीफ की है, उसे मैं कायम रखूंगी.’’ नंदिनी स्वीकारती है कि झुग्गीझोंपडि़यों में पढ़ाई का माहौल न के बराबर होता है. यहां के बच्चे सुविधाओं, सही निर्देशन और पैसों के अभाव में पढ़ाई छोड़ देते हैं. लेकिन मेरे मैरिट में आने से तबदीली यह आई है कि अर्जुननगर के सभी बच्चे कहने लगे हैं कि हम भी नंदिनी की तरह मेहनत कर पढ़ाई करेंगे. इस बदलते माहौल पर जरूर मुझे गर्व है. बात अकेले अर्जुननगर की या भोपाल की नहीं, बल्कि देशभर की है कि गरीब बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं, वे सपने तो बड़ेबड़े देखते हैं पर उन्हें पूरा नहीं कर पाते.

नंदिनी की मां इंद्रावती चौहान आगंतुकों के आने पर तख्त पर नहीं, जमीन पर बैठती हैं. उन्हें अपनी इकलौती बेटी पर नाज है. पर यह चिंता भी है कि ऊंची कक्षाओं की महंगी पढ़ाई का खर्च वे कैसे उठाएंगी. यही चिंता नंदिनी के पिता रामाचल चौहान की भी है. इस छोटी सी होनहार लड़की से सीखने के लिए काफी कुछ बातें हैं. वह देशदुनिया पर भी नजर रखती है, सामान्य ज्ञान बढ़ाने को पत्रपत्रिकाएं पढ़ती है. वह स्कूल की सांस्कृतिक और खेलकूद की गतिविधियों में भी बराबरी से हिस्सा लेती है. लाख टके की बात यह है कि उसे अपने घर की आर्थिक स्थिति का एहसास है, जिसे कुछ बन कर, दूर करने की उस ने ठान ली है. ऐसे में कोई वजह समझ नहीं आती कि उस के रास्ते में कोई रुकावट पेश आएगी. इस साल बोर्ड और दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं में कई ऐसे छात्रों ने कामयाबी हासिल की है जो अभावों से जूझ रहे थे, जिन के पास नंदिनी की तरह स्मार्ट फोन, कंप्यूटर, इंटरनैट और ढेर सारी किताबें नहीं थे लेकिन उन्होंने मैरिट में जगह बनाई तो सहज लगा, उपलब्धियों पर लगनशील और मेहनत करने वालों का अधिकार ज्यादा होता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...