प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने एक वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है. सत्ताधारी इस कार्यकाल को सफल बता रहे हैं तो विपक्ष मोदी सरकार को हर मोरचे पर विफल ठहरा रहा है. इस दौरान केंद्र सरकार ने कुछ योजनाएं जरूर शुरू कीं लेकिन वे अभी कोई परिणाम नहीं दे सकी हैं. उन्हीं योजनाओं में से एक है ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना.’ करोड़ों की संख्या में खाते खुलने की बात को छोड़ कर इस योजना का लाभ अभी किसी जन तक नहीं पहुंचा है. यह लाभ सरकार द्वारा उस के खाते में 5 हजार रुपए का धन उपलब्ध कराने से संबंधित था. इस धन को पाने के लिए देशभर में खाता खुलवाने के लिए जो आपाधापी मची उस के चलते योजना ने खाते खोलने में रिकौर्ड बना लिया लेकिन अब उतनी ही तेजी से यह योजना असंतोष का कारण बन रही है. दरअसल, खाता खोलने वाले जनधन पाने के लिए अब बैंकों व बैंकमित्रों के चक्कर लगा रहे हैं. बैंक उन से कह रहे हैं कि धन के लिए सरकार से पूछें, खाते हम ने खोल दिए हैं, उन में धन सरकार देगी.
राजनीति की यह ओछी मानसिकता देशभर के उन नागरिकों को असंतुष्ट करने का कारण बनती जा रही है जिन्होंने उत्साह से जनधन योजना में अपने खाते खुलवाए. योजना में सरकारी घोषणा के अंतर्गत प्रत्येक जनधन खाताधारी को 5 हजार रुपए तक क्रैडिट सुविधा का क्रैडिट कार्ड जारी किया जाना था तथा 1 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा मिलना था. अब तक न तो 5 हजार रुपए का क्रैडिट कार्ड मिला न ही दुर्घटना बीमा की पौलिसी. योजना में सरकार की चालाकी का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि जिस तरह बड़ीबड़ी कंपनियां अपने विज्ञापनों में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए बड़े उपहार या छूट के औफर तो बडे़ अक्षरों में प्रकाशित करती हैं पर नीचे एक * का चिह्न बना कर लिखती हैं–शर्तें व नियम लागू, ठीक उसी तरह सरकार की 5 हजार रुपए की क्रैडिट लिमिट भी सशर्त है. शर्त यह है कि जो खाताधारी 6 महीने तक अपने खाते में लेनदेन करते रहेंगे उन्हें उन के लेनदेन के आधार पर संतुष्टि कारक होने पर सरकार द्वारा 5 हजार रुपए की क्रैडिट लिमिट दी जाएगी. यह उल्लेखनीय है कि 90 प्रतिशत खाताधारी इस बात से अनभिज्ञ हैं और वे रोज अपने खातों में सरकार द्वारा 5 हजार रुपए जमा कराए जाने की राह देख रहे हैं. इसी तरह का मामला बीमे का भी है. जनधन में खाता खोलने वाले ग्राहक का 1 लाख रुपए का बीमा करने की बात सरकार ने प्रचारित की लेकिन वह बीमा, जीवन बीमा या स्वास्थ्य बीमा नहीं है, बल्कि दुर्घटनामृत्यु बीमा है जो बहुत ही कम होने की संभावना होती है. हालत यह है कि पौलिसी के रूप में वह रकम अब तक किसी खाताधारी के पास नहीं पहुंची है.
ऐसी स्थिति में जनधन योजना अब बैंकों व खाताधारियों के लिए रोज विवाद का कारण बन रही है. बैंक ही नहीं, यह योजना बैंकमित्रों के लिए भी खासे सिरदर्द का कारण है. जनधन खाता खोलने की सारी जिम्मेदारी इन्हीं बैंकमित्रों पर थी और खाता खुलने के लंबे अंतराल के बाद जनधन खाताधारियों को घोषित लाभ न मिल पाने के कारण ये खाताधारी खाता खोलने वाले बैंकमित्रों के पास पहुंच कर 5-5 हजार रुपए मांग रहे हैं, मित्रों से विवाद कर रहे हैं. बैंकमित्रों को मजबूरन ऐसे खाताधारियों से कहना पड़ रहा है कि इस का जवाब सरकार या बैंक प्रबंधन से लो, उन के पास इस का कोई उत्तर नहीं है. यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना में जिन लोगों ने खाते खुलवाए हैं उन में से अधिकांश निरक्षर हैं. उन्हें सिर्फ यह मालूम है कि किसी ने उन्हें यह बताया था कि खाता खोलने पर उन्हें 5-5 हजार रुपए एवं 1 लाख रुपए का बीमा मुफ्त मिलेगा. अब जब उन्हें कुछ भी नहीं मिल पा रहा है तो उन के चेहरों पर घोर निराशा और आक्रोश दिखाई दे रहा है. एक बात और कि सरकार की ओर से 5 हजार रुपए की क्रैडिट लिमिट जिस शर्त के अंतर्गत दी जानी है उस के अंतर्गत 6 महने तक जिस के खाते में लेनदेन होगा उसे ही यह सुविधा मिलेगी. लेकिन जिन लोगों ने ये खाते खुलवाए हैं उन के पास बैंक में लेनदेन के लिए न तो पूंजी है, न ही समय, न ही ज्ञान. ऐसी स्थिति में ‘न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी’ वाली कहावत इस योजना के लिए चरितार्थ हो रही है. सरकार के खिलाफ यह असंतोष कहीं ऐसा न हो कि उस के बडे़ वोटबैंक के आधार को खोखला कर दे. ऐसी हलचल अब होने भी लगी है.
जनधन खातों पर सवाल
वर्ल्ड बैंक ने जनधन योजना के तहत खोले गए लाखों खातों पर सवाल उठाए हैं. बैंक का कहना है कि भारत में लोगों के खाते लाखों की संख्या में खोले गए हैं, लेकिन उन में से ज्यादातर निष्क्रिय हैं और जीरो बैलेंस वाले हैं. सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसे बैंक खातों से किसे फायदा हो रहा है? बैंक के अनुसार, भारत में 2011 और 2014 के बीच खाता खोलने में तेजी 35 से बढ़ कर 53 प्रतिशत तक हो गई. इस दौरान लाखों खाते खोले गए. मगर उन में निष्क्रिय यानी डौरमैट खाते ज्यादा हैं. यानी इन खातों का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा, न धन जमा हो रहा है और न ही धन निकाला जा रहा है. जनधन योजना के तहत जितने खाते खोले गए उन में से 72 प्रतिशत खातों में जमा राशि शून्य है. यानी इन खातों की बैलेंस राशि जीरो है. आंकड़ों के लिहाज से 2011 से 2014 के बीच भारत में 17.5 करोड़ लोग खाताधारक बने. बैंक खातों की संख्या में बढ़ोत्तरी बहुत हद तक सरकार की समग्र आर्थिक विकास लाने की योजना का परिणाम है. अगस्त 2014 में भारत सरकार ने व्यापक वित्तीय निवेश के लिए प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू की, जिस का लक्ष्य प्रत्येक परिवार के लिए बैंक खाता खोलना था. इस योजना के तहत जनवरी 2015 के अंत तक 12.5 करोड़ नए बैंक खाते खोले गए, जबकि 2013 के सर्वेक्षण में पाया गया था कि देश में 40 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास बैंक खाते थे. स्कीम के तहत 97 प्रतिशत से अधिक खाते सरकारी बैंकों में खोले गए, लेकिन इन में से करीब 72 प्रतिशत खातों में ‘जमा पड़ी राशि शून्य’ है. मतलब यह हुआ कि 72 प्रतिशत बैंक खाते जीरो बैलेंस पर खोले गए. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में निष्क्रिय बैंक खातों का प्रतिशत 43 पर पहुंच गया है. इस के उलट, अधिक आय वाली और्गेनाइजेशन औफ इकोनौमिक कौऔपरेशन औफ डैवलपमैंट यानी ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं में यह अनुपात 5 प्रतिशत है. इस के अलावा, भारत में सभी खाताधारकों में से केवल 39 प्रतिशत के पास ही एक डैबिट या एटीएम कार्ड है.