जीवन में पर्यटन का अपना अलग ही आनंद है. जिस ने इस का सुख प्राप्त किया है, वह इस सुख को फिर प्राप्त करना चाहता है. जिस व्यक्ति में नएनए स्थानों को देखने की उत्सुकता होती है वह समय निकाल कर अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार वहां अवश्य पहुंच जाता है. मुझे और मेरे पति दोनों को दर्शनीय स्थल देखने का बहुत शौक है. हम लोगों ने इस बार ग्रीस की राजधानी एथेंस देखने का प्रोग्राम बना कर टर्किश एअरलाइंस से जाने की योजना बनाई. हवाई जहाज का दिल्ली से चलने का समय सुबह 6.30 बजे था, इसलिए 2.30 बजे हम घर से एअरपोर्ट के लिए चल दिए क्योंकि इंटरनैशनल एअरपोर्ट पर कम से कम 3 घंटे पहले पहुंचना होता है.
टर्किश एअरलाइंस की गौर वर्ण वाली एअरहोटेस गहरे नीले रंग की पोशाक पहने, लाल रंग की टोपी लगाए थीं. उन के ऊपर से निगाहें हट ही नहीं रही थीं. थोड़े समय बाद हमारा जहाज आगे बढ़ने लगा और कुछ ही मिनटों में वह आकाश को चूमने लगा. अब तक सब लोग अपनीअपनी बैल्ट खोल कर सामान्य हो चुके थे और एअरहोस्टेस अपनी सेवाएं देने लगी थीं. हम ने टिकट खरीदते समय शाकाहारी भोजन की इच्छा लिखवा दी थी. शाकाहारी भोजन हमारे सामने रखा जाने लगा. एअरहोस्टेस एअरलाइंस यात्रियों को खानेपिलाने में कोई कमी नहीं छोड़ रही थी. सभी यात्री खापी कर मस्त थे. इस्ताम्बुल में हमारा हवाईजहाज रुका और उस के बाद हम दूसरे हवाईजहाज से ग्रीस के लिए रवाना हो गए.
एथेंस में हम सुबह 10.30 बजे पहुंचे. वहां की लोकल ट्रेन भी तीव्रगामी होती हैं. हमारा होटल स्टेशन से अत्यंत समीप था. इसलिए एअरपोर्ट से टैक्सी के स्थान पर लोकल ट्रेन से ही जाने का मन बना लिया. परंतु हमें क्या ज्ञात था कि भारत जैसे पौकेटमार वहां पर भी हैं. ट्रेन से उतरते समय भीड़ का लाभ उठा कर किसी ने मेरे पति के पौकेट से पर्स निकाल लिया. बहुत सारे यूरो की हानि तो हुई ही, साथ में क्रैडिट कार्ड आदि के चले जाने से हम लोग बहुत चिंतित हो उठे. ईमेल आदि कर के किसी तरह अपने क्रैडिट कार्ड को ब्लौक करवा दिया. सोचा, चलो पर्स ले गया तो ले जाए, हमारी खुशियां तो नहीं ले जा सकता है. यानी किसी तरह अपना मन शांत किया और एथेंस में घूमने का प्रोग्राम बना लिया.
बचपन में सिकंदर महान की बहुत सारी कहानियां पढ़ी थीं. तब से ही सिकंदर के देश यूनान को देखने का सपना संजोए बैठी थी. यूनान ने सिकंदर महान ही नहीं अपितु सुकरात, अरस्तू, प्लेटो जैसे चिंतक, दार्शनिक एवं लेखक भी दिए हैं. ग्रीस की राजधानी होने के साथ एथेंस इस देश का सब से बड़ा शहर भी है. यह विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक है. इस का इतिहास लगभग 3,400 वर्ष पुराना है. एथेंस को संसार की पाश्चात्य सभ्यता का प्याला, प्रजातंत्र का जन्मस्थल कहा जाता है. यहां पर डेफनी मौनेस्ट्री, हेलेनिक पार्लियामैंट, नैशनल लाइबे्ररी औफ ग्रीस, एथेंस यूनिवर्सिटी, एकेडमी औफ एथेंस, एक्रोपोलिस इत्यादि कई दर्शनीय स्थान हैं. वहीं, बहुत सारी इमारतें एवं मंदिर आदि समय एवं युद्धों की मार झेलते हुए खंडहर बन गए हैं. ये खंडहर बताते हैं कि इमारतें कभी बुलंद थीं.
एक्रोपोलिस यहां की इमारतों में सब से अधिक प्रसिद्ध एवं अच्छी दशा में है. इसे पेरिक्लीज नाम के शासक ने 5वीं सदी में अन्य इमारतों के साथ बनवाया था. यह एथेंस में काफी ऊंचाई पर स्थित है. हम लोग सब से पहले एक्रोपोलिस ही देखने गए. यह 7.4 एकड़ में फैली हुई है. महल बनने के उपरांत एक साइक्लोपियन (विशाल चारदीवारी) का निर्माण किया गया, जो 760 मीटर लंबी, 10 मीटर ऊंची तथा जिस की दीवारें साढ़े 3 से 6 मीटर मोटी थीं. ये दीवारें 5वीं शताब्दी तक एक्रोपोलिस को सुरक्षा प्रदान करती रहीं. ईसापूर्व 480 में जब परशियंस ने इस शहर पर आक्रमण किया, उस समय पुराने पारथिलोन का निर्माण कार्य चल रहा था. उन्होंने इस इमारत को लूटा और जला दिया. परशियंस क्राइसिस समाप्त होने के उपरांत एथेंस के शासनाधिकारियों ने उत्तर दिशा में एक दीवार का निर्माण किया जिसे ‘वार मैमोरियल’ का नाम दिया गया और जो आज भी उपस्थित है.
एथेंस में एक ‘अकादेमस’ नामक स्थानीय वीर पुरुष था, जिस का एक व्यक्तिगत बगीचा था, परंतु बाद में वह सार्वजनिक उद्यान के रूप में नागरिकों को भेंट कर दिया गया. वहां पर खेल, व्यायाम, शिक्षा और चिकित्सा के केंद्र बना दिए गए. प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो ने इसी उद्यान में प्रथम दर्शन विद्यापीठ की स्थापना की. इसे ही आगे चल कर अकादमी कहा जाने लगा. इस अकादमी की यह विशेषता है कि यह ऐसी संस्था थी जिस में नगरवासियों के अतिरिक्त बाहर के लोग भी सम्मिलित हो सकते थे.
यहां पार्थनन नाम का मंदिर भी बनाया गया था और उस के नीचे एथीना नाम की ग्रीस अर्थात यूनानी देवी की प्रतिमा स्थापित की गई. ये भी समय की मार से खंडहर बन चुके हैं, परंतु कुछ समय से यहां जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है. पार्थनन मंदिर के समीप ही ‘थिएटर औफ हिरोड्स एटिकस’ है, जहां आज भी खुले नीले आकाश के नीचे संगीत एवं नृत्य के कार्यक्रम आयोजित होते हैं. यह भी अपनेआप में एक अनूठा स्थान है. उस समय इसी तरह के कई मंदिरों का निर्माण हुआ था, परंतु जो सब से बड़ा मंदिर था उस का नाम ‘टैंपल औफ ओलंपियन जियूस’ है. कहा जाता है कि इस के निर्माण में 650 वर्ष लग गए थे. परंतु अब वहां 15 खंभे ही खड़े हैं जिन में से प्रत्येक की ऊंचाई 17 मीटर है. हम लोग इसी तरह की खंडहर बनी इमारतों को एक के बाद एक देखते चले गए. एथेंस में ही सर्वप्रथम 1896 में 6 अप्रैल से 15 अप्रैल के मध्य एक बहु खेल प्रतियोगिता आयोजित हुई थी. जो ‘ओलंपियाड खेल’ के रूप में प्रसिद्ध हुई. यह आधुनिक युग में आयोजित होने वाली पहली अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक खेल प्रतियोगिता थी. ‘अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति’ भी इस सम्मेलन के मध्य स्थापित की गई थी. अनेक बाधाओं के होते हुए भी 1896 में आयोजित इस ओलिंपिक खेल को एक बहुत बड़ी उपलब्धि माना गया था.
19वीं सदी में प्रयोग किया गया एकमात्र ओलिंपिक स्टेडियम, जिस का नाम ‘पानाथिनाइको’ है, एथेंस की शोभा बढ़ा रहा है. उस समय इस में आयोजित प्रतियोगिताओं को देखने के लिए अत्यधिक भीड़ उमड़ पड़ी थी. यह एथेंस के लोगों के लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण था क्योंकि इस में उन के देशवासी स्पिरिडिन लुई ने मैराथन विजय प्राप्त की थी. इस स्टेडियम में सब से पहले प्रतियोगी जरमन पहलवान एवं जिमनास्ट कार्ल शुमेन ने 4 स्पर्धाओं में जीत अर्जित की थी. यहां पर यूरोपीय संघ के सदस्य आधुनिक गणराज्य का संसद भवन है जिस में नीतियों का निर्माण होता है. संसद के बाहर एक बहुत बड़ा खाली स्थान है. इस स्थान को ‘प्लाका’ कहा जाता है. इस में लोग जनाक्रोश के लिए एकत्रित होते हैं. यह भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में अत्यंत समर्थ है.
एथेंस में हम लोगों ने 4 रातें व्यतीत कीं. हमारी दिनभर की थकान को संध्याकाल में जो स्थान दूर कर देता था वह यहां के ‘मोनस्तिराकी’ का इलाका था. हर शाम को यहां एक उत्सव का वातावरण रहता है, लोग मनोरंजन करने के लिए यहां आते हैं. कुछ लोग मोनास्तिराकी के मध्य बने बड़े से खुले मैदान में गाते हैं, बजाते हैं और अपनी विभिन्न कलाओं का प्रदर्शन करते हैं. परंतु रविवार के दिन यहां विशेष रूप से चहलपहल रहती है क्योंकि एथेंसवासी छुट्टी मनाने, घूमनेफिरने, खानेपीने और खरीदारी करने के बहुत शौकीन हैं. रविवार को एंटीक अर्थात पुराने सामान की बोली लगती है. मोनास्तिराकी में कई गलियां अंदर जाती हैं. वहां एक ऐसी भी गली है जिस के दोनों ओर खानेपीने के रेस्तरां हैं. गली के बाहर कई एजेंट खड़े रहते हैं जो ग्राहकों को विभिन्न तरीकों से पटा कर अपने रेस्तरां में ले जाते हैं. कोई गली जूतेचप्पलों की दुकानों से भरी है तो कोई आर्टीफिशियल ज्वैलरी से. जब हम लोग इन गलियों का आनंद उठा रहे थे तभी एक गायक मंडली गली से गुजरती हुई गातीबजाती, बाहर की दुनिया से बेखबर अपने में ही मस्त दिखाई दी. वास्तव में जीवन कैसे जिया जाता है, यदि किसी को देखना है तो उसे एथेंस के मोनास्तिराकी को अवश्य देखना चाहिए.
एथेंस निवास के दौरान मेरी मित्रता कुछ स्थानीय लोगों से हो गई. उन के सामाजिक जीवन के विषय में भी जानने की मुझ में उत्सुकता थी. कुछ लोग तो वहां भी अंगरेजी में अच्छी तरह बात कर सकते थे परंतु कुछ हाथ हिला कर उस भाषा के प्रति अपनी अज्ञानता दिखा रहे थे. इसलिए शिक्षा को ले कर मन में अनेक प्रश्न आ रहे थे. मैं ने उन से पूछा, ‘क्या आप के देश में सभी शिक्षित हैं?’ तब उन्होंने बताया कि 10वीं कक्षा तक शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य है. परंतु उस के बाद शिक्षा प्राप्त करने में लड़कों से आगे लड़कियां हैं. हमारे देश की तरह वहां लड़केलड़कियों में अंतर नहीं किया जाता है.
वहां 70 प्रतिशत महिलाएं नौकरी करती मिलेंगी. ये लोग अभी तक संयुक्त परिवार में ही रहना पसंद करते हैं तथा अपने वृद्ध मातापिता को भी अपने साथ ही रखते हैं. 65 वर्ष की आयु में यहां व्यक्ति को सेवानिवृत्त कर देते हैं. मेरे पूछे जाने पर कि क्या आप के समाज में प्रेमविवाह को मान्यता प्राप्त है या मातापिता द्वारा निर्धारित विवाह होते हैं? मेरी मित्र बनी सायना ने बिना हिचकिचाहट के बताया कि लगभग 99 फीसदी लोग प्रेमविवाह करते हैं. विचारों में मेल न होने पर यदाकदा परस्पर तकरार होती रहती है. वहां पर भी महिलाओं को ही अधिक सहन करना पड़ता है. मैं ने जब भोजन संबंधी जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने बताया कि यहां लगभग सभी लोग मांसाहारी हैं. गेहूं, चावल आदि से बने विभिन्न उत्पाद वे अपने भोजन में सम्मिलित करते हैं. शिक्षित व्यक्ति अब हरे पत्तों की सलाद भी अपने भोजन में सम्मिलित करने लगे हैं. चाय, कौफी का सेवन तो अब सभी देशों में किया जाता है. कृषि में केवल 20 फीसदी लोग ही लगे हुए हैं. गेहूं, चावल, गन्ना आदि वहां के मुख्य उत्पाद हैं. फलोें के राजा आम को उन का देश पसंद नहीं था, इसीलिए तो वे इतने स्वादिष्ठ फल से वंचित रह गए.
जाति को ले कर प्रश्न किए जाने पर उन्होंने बताया कि लगभग 99 फीसदी और्थोडौक्स क्रिश्चियंस हैं तथा बहुत कम मुसलिम हैं. मसजिद न के बराबर हैं और जो हैं भी, तो अंडरग्राउंड हैं. जिज्ञासा शांत करने के लिए मैं ने अपने मित्रों को धन्यवाद दिया. इस नगरी से विदा लेने का समय आ गया था. सो, सुबह उठते ही एअरपोर्ट जाने के लिए शीघ्र तैयार हो कर भारत जाने वाले टर्किश एअरलाइंस के ही हवाईजहाज में बैठ गए. इस समय हृदय ठहरी हुई झील के समान शांत था. सिकंद महान के देश ग्रीस को छोड़ते समय वहां की एकएक इमारत व उस के भव्य खंडहर सिनेमा की रील की तरह स्मृतिपटल पर आते जा रहे थे. सारा समय खींची हुई फोटो को देखते व उस के विषय में बात करते हुए ही बीत गया और पता ही नहीं चला कि कब दिल्ली एअरपोर्ट आ गया.