राज्यपाल की लाटसाहबी

कल्पना करें कि आप को विदेश जाना है और एअरपोर्ट जा कर अपनी जेब व सामान टटोलने के बाद आप को समझ आता है कि अरे, पासपोर्ट तो घर पर ही रह गया, तब आप पर जो गुजरेगी उसे कोई दूसरा नहीं समझ सकता. कभी खुद को तो कभी पत्नी या सेक्रैटरी को कोसते आप की नाकाम कोशिश यही होगी कि अधिकारी आप की बात का यकीन करते हुए आप को यात्रा की अनुमति दे दें.पासपोर्ट का कोई विकल्प नहीं होता, इसलिए यह इजाजत तो छत्तीसगढ़ के राज्यपाल गौरीशंकर अग्रवाल को भी नहीं मिली जो 19 नवंबर को रायपुर से ढाका जाने के लिए निकले थे. कोलकाता हवाईअड्डे पर उन्हें याद आया कि पासपोर्ट तो राजभवन में ही रह गया है. चूंकि वे आम आदमी नहीं थे इसलिए तुरंत ही एक हवाई जहाज रायपुर से उड़ कर पासपोर्ट ले कर आया. इसे कहते हैं लाटसाहबी.

महादलित की महा इच्छा

बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी बड़े दिलचस्प बयान देते हैं, कभीकभी तो लगता है कि वे मजाक कर रहे हैं. इसी श्रृंखला में उन्होंने पटना में कह डाला कि कल को मैं पीएम भी बन सकता हूं. बकौल जीतनराम, ‘चूंकि मैं महादलित हूं इसलिए ताकतवर लोग मेरा मजाक बनाते हैं,’ जाति का यह टोटका अब पुराना हो चला है. दलित या महादलित होना प्रधानमंत्री बनने की योग्यता होती तो मायावती एकांतवास न काट रही होतीं. भाग्यवाद से खुद को ऊपर उठा पाएं तो जीतन के लिए यह भी मुश्किल नहीं कि राजनीति में सबकुछ इत्तफाक से होता है. जो मौके भुनाता है और नए मौके बनाता है वह शीर्ष पर भी पहुंच जाता है. इस में न जाति आड़े आती है न पेशा.

ब्रैंड और राजनीति

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार की पूछ अभी भी है. वजह, महाराष्ट्र की राजनीति पर उन की जमीनी पकड़ है, जहां त्रिशंकु विधानसभा की समस्या हल होते नहीं दिख रही. मध्यावधि चुनाव की भविष्यवाणी कर चुके पवार की नजर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोडक्ट नहीं जानते लेकिन मार्केटिंग अच्छी कर लेते हैं. अर्थ बाजार में इस शब्दकोश का एक और महत्त्वपूर्ण शब्द ब्रैंडिंग है और अब हर कोई मानने लगा है कि मोदी एक अच्छे ब्रैंड हैं. राजनीति की भाषा का कारोबार के इर्दगिर्द आते जाना हैरत की बात नहीं है. अब हर कोई पैसा कमाने के लिए सेवा करना चाहता है, इसलिए ब्रैंड, प्रोडक्ट और मार्केटिंग जैसे शब्द चलन में आने लगे हैं. शुक्र है पवार को समझ तो आया कि बेचने के लिए हाथ में कुछ न कुछ हमेशा रहना चाहिए. मोदी तो 5 साल बाद विश्व गुरु बनने का सपना भी अभी से विदेशों में जाजा कर बेचने लगे हैं.

रामदेव पर मेहरबान सरकार

पद्म उपाधियों की तरह अब सुरक्षा श्रेणियां भी सरकार खैरात की तरह बांटने लगी है जो जरूरत पर नहीं बल्कि सरकार से नजदीकी और दूरी के हिसाब से मिलती हैं. रामदेव को यों ही, खामख्वाह जेड प्लस सुरक्षा दे दी गई तो कुछ नासमझ से लोगों ने सोचा कि इन्हें किस से खतरा, ये तो खुद भगवानटाइप के व्यक्ति हैं. ऐसा सोचने व सवालजवाबों के कुछ माने नहीं होते. माने इस बात के होते हैं कि जिस के पास धन होता है उसे ज्यादा खतरा रहता है. अब जब सरकार के लिए रामदेव जैसी खासमखास शख्सीयत हो तो इस में हैरानी किस बात की. सरकारी सुरक्षा अब शान और रसूख की बात हो चली है, जिसे सरकार किसी एक से छीन कर अपने वाले को दे देती है ताकि सुरक्षा लेने वाला एहसान से दबा रहे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...