छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह इन दिनों 81 करोड़ रुपए के बंगले तले दबे पड़े हैं. जहां विपक्षी पार्टियां उक्त आलीशान बंगले को जनता के पैसे से ऐयाशी करने का कदम बता रही हैं वहीं भाजपा इसे फुजूलखर्ची नहीं मानती. करोड़ों के इस बंगले के क्या माने हो सकते हैं, बता रहे हैं भारत भूषण श्रीवास्तव.
रमन सिंह अगर राजनीति में न आ कर छत्तीसगढ़ के अपने गृहनगर कवर्धा में डाक्टरी का व्यवसाय कर रहे होते तो आज 61 साल की उम्र में भी उन के लिए 81 करोड़ तो बहुत दूर की बात है, 81 लाख रुपए का मकान खरीदने के लिए भी हजार बार सोचना पड़ता. लेकिन रमन सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं और लगातार तीसरी बार बने हैं. लिहाजा, 81 करोड़ रुपए का बंगला उन के लिए मामूली बात है.
लेकिन यह मामूली बात अब गैरमामूली होती जा रही है जिस के खुलासे पर रमन सिंह हालफिलहाल बगलें झांकते यह भर कह पा रहे हैं कि मुख्यमंत्री के लिए नए रायपुर में घर बनना चाहिए और आने वाले 5 सालों में इस की जरूरत होगी लेकिन घर छत्तीसगढ़ के अनुरूप हो, सादगी वाला हो और सुरक्षा के लिहाज से बेहतर हो, इस के लिए हम ने नए सिरे से प्रस्ताव बनाने को कहा है.
अपने शांत स्वभाव और धैर्य के अलावा सादगी के लिए भी पहचाने जाने वाले रमन सिंह के इस शाकाहारी व सात्विक बयान पर हैरानी होना स्वाभाविक है कि 81 करोड़ रुपए के आवास और उस का सादगी से संबंध तो पांव व पीठ जैसा है जो कतई बदहाल आदिवासी बाहुल्य इस राज्य के अनुरूप नहीं कहा जा सकता. ऐसा लगता है कि रमन सिंह तेजी से बढ़ते इस विवाद को वक्तीतौर पर टरकाने की नाकाम कोशिश भर कर रहे हैं. उन की मंशा और सादगी पर 81 करोड़ रुपए का दाग तो लग ही चुका है.
क्या है मामला
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 20 किलोमीटर दूर महासमुंद रोड पर तेजी से एक नया शहर, नया या न्यू रायपुर विस्तार और आकार ले रहा है जो दरअसल इस सूबे की नई राजधानी होगा. यहां बीते 5 सालों से इमारतों का निर्माण कार्य चल रहा है. कई सरकारी दफ्तर बन चुके हैं और कुछ में सरकारी कामकाज शुरू भी हो चुका है.
न्यू रायपुर में जमीनों के औसत दाम 2 हजार रुपए वर्गफुट है. छत्तीसगढ़ बनने के बाद जैसे ही न्यू रायपुर बनने की घोषणा हुई थी तो कौडि़यों के मोल वाली यहां की जमीन रातोंरात करोड़ों की हो गई थी, जिसे बिल्डरों ने कौडि़यों से कुछ ज्यादा दाम दे कर खरीद लिया था. दूर की नजर रखने वाले जमीनों के कारोबारी भी रातोंरात अरबों के आसामी हो गए थे. यह हालांकि गए वक्त की बात है, ताजा यह है कि रायपुर या छत्तीसगढ़ का कोई मध्यवर्गीय न्यू रायपुर में मकान खरीदने की बात नहीं सोचता क्योंकि यहां दाम लगातार बढ़ रहे हैं.
मुख्यमंत्री रमन सिंह का बंगला 12 एकड़ के विशालकाय रकबे में बनना प्रस्तावित है जिसे ले कर वे निशाने पर हैं. उन की सादगी के चिथड़े उड़ने लगे हैं. इस सीएम हाउस में दफ्तर के साथसाथ वीआईपी रैस्ट हाउस भी होगा.
एक गरीब प्रदेश का मुख्यमंत्री 81 करोड़ रुपए के बंगले में रहने जा रहा है, इस पर खासा उबाल सूबे में मचा हुआ है. न्यू रायपुर की बसाहट का जिम्मा न्यू रायपुर विकास प्राधिकरण को सौंपा गया है. इस विभाग के जनसंपर्क अधिकारी विकास शर्मा के मुताबिक, न्यू रायपुर में राजभवन और मुख्यमंत्री निवास के लिए जमीन का चुनाव कर प्रस्ताव वित्त विभाग के पास भेजा गया है. गौरतलब है कि वित्त विभाग के मुखिया खुद रमन सिंह ही हैं.
गरमाई सियासत
यह बात उजागर होने की देर थी कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस से पहले तेजी से बढ़ती आम आदमी पार्टी हमले में बाजी मार ले गई. छत्तीसगढ़ में आप के नेता सुधीर राय का कहना है कि छग में मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जीरो टौलरेंस और भ्रष्टाचार को बरदाश्त नहीं करने की बात कही थी. जिस राज्य में लाखों लोगों के सिर पर छत न हो वहां एक अकेले मुख्यमंत्री और उन के परिवार के लिए 81 करोड़ रुपए का मकान बनाया जाना भ्रष्टाचार का एक नया नमूना है.
बात इतनी भर नहीं है. दरअसल, रमन सिंह का एक सिरदर्द, उन की ही पार्टी का दिया हुआ है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 5 कमरों के मकान पर बवाल खड़ा करने वाली भाजपा अब खुद कठघरे में है.
यह बात अब छग में रेखागणित की प्रमेय की तरह चटखारे ले कर की जा रही है कि 12 एकड़ जमीन में 81 करोड़ रुपए का जो बंगला सीएम के लिए बनेगा उस में हजारों गरीबों के लिए इंदिरा आवास बनाए जा सकते हैं या फिर उस में1 हजार एलआईजी और 600 एमआईजी मकान बनाए जा सकते हैं.
इस प्रमेय को और विस्तार देते कांग्रेस के राज्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि 81 करोड़ रुपए में 16,200 इंदिरा आवास बनाए जा
सकते हैं जहां इतने परिवारों को छत मिल जाएगी. अकेले मुख्यमंत्री के लिए इतने पैसे खर्च करना फुजूलखर्ची और जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को बेदर्दी से लुटाने वाला फैसला है.
इन सियासी हमलों पर भाजपा खामोश नहीं रही, न ही उस ने कदम वापस खींचे. पलटवार में राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री निवास पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए. छग भाजपा प्रवक्ता शिवराज शर्मा का कहना है, ‘‘न्यू रायपुर में प्रस्तावित घर रमन सिंह के लिए नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के लिए बनाया जा रहा है, सुरक्षा और जरूरत के हिसाब से बनाए जाने वाले इस घर के निर्माण को इतने संकुचित तरीके से लेना ठीक नहीं है क्योंकि मुख्यमंत्री निवास से राज्य की गरिमा ठीक वैसे ही जुड़ी है जैसी राष्ट्रपति भवन व प्रधानमंत्री भवन की गरिमा है. उन दोनों भवनों में तो एक शहर बसाया जा सकता है.’’
गरिमा और गरीबी
जनता के पैसे से ऐश करने की कांग्रेसी बीमारी भाजपा को भी कभी की लग चुकी है जिस की ताजा मिसाल गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी हैं, जिन का घर अहमदाबाद में बीते साल 150 करोड़ रुपए में बना था. देश का यह पहला आलीशान और हाईटैक सीएम हाउस है जिस की भव्यता, गरिमा पर भारी पड़ती है.
रमन सिंह के 81 करोड़ रुपए के मकान ने यह सोचने को भी मजबूर कर दिया है कि राजनेताओं के मकान का क्षेत्रफल तय होना चाहिए और इस का राज्य की गरीबी यानी प्रति व्यक्ति औसत आय से भी संबंध होना चाहिए. एक निश्चित राशि भी इस बाबत तय होनी चाहिए जिस से कोई मुख्यमंत्री मकान के उस से बड़े सपने न देखे.
विडंबना यह है कि यह काम भी राजनेताओं को करना है, इसलिए इस पर वे सोचेंगे भी क्यों. राजेरजवाड़ों की तरह लोकतंत्र में भी जनता के पैसे पर मौज की जाती है. बात पैट्रोल की हो या दावतों की, यात्राओं की हो, बिजली की हो, नौकरों और कर्मचारियों की हो या फोन की, इन की कोई सीमा तय नहीं है और हो भी तो उस का पालन कोई नहीं करता.
रमन सिंह ने दोबारा सोचने की बात कही है लेकिन कम कीमत के आवास में रहने की नहीं. तो तय है कि यह एक मध्यवर्गीय कुंठित राजसी महत्त्वाकांक्षा है. इसलिए लोकसभा चुनाव तक 81 करोड़ रुपए के बंगले पर वे चुप रहेंगे लेकिन जिद छोड़ेंगे, ऐसा नहीं लग रहा. जनता के काम खासतौर से छग की गरीबी दूर करने का यह वाकई नायाब तरीका है कि महंगे मकान में रह कर काम करो वरना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह उन्हें भी सनकी और पागल कहा जाने लगेगा.
रही बात उस जनता की जिस के पैसों से नेताओं के आलीशान मकान बनते हैं तो वह बेचारी इन आलीशान इमारतों की नक्काशी ताकती रहती है. छग के आम लोगों और आदिवासियों की बड़ी परेशानी और जरूरत मुख्यमंत्री की 81 करोड़ रुपए की छत नहीं खुद के सिर पर छत जुगाड़ने की है.