2 बच्चों की मां सुनीता सिंह एक बार फिर मां बनी है. हर बार की तरह इस बार नन्ही किलकारियां उस के आंगन में नहीं बल्कि किसी दूसरे के घर में गूंज रही हैं. दरअसल, सुनीता की गोद हरी तो हुई मगर किसी दूसरे के लिए.
दिल्ली, मुंबई, चेन्नई व हैदराबाद जैसे महानगरों के बाद सेरोगेट मदर का चलन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी बढ़ता जा रहा है. वजह चाहे पैसे की भूख हो या फिर प्रतिकूल परिस्थितियां, महिला चिकित्सकों के पास हर वर्ष इस तरह के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. दिल्ली से सटे गाजियाबाद की इंदिरापुरम, कौशांबी, वैशाली व वसुंधरा जैसी अनेक कालोनियों में ऐसी कई महिलाएं रह रही हैं. मल्टीस्टोरी बिल्ंिडगों में बसी प्राइवेट लाइफ इस नए रंग को भी सोसायटी में बिखेर रही है.
सोसायटियों के रैजीडैंट्स वैलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारियों की मानें तो हर वर्ष कई नए कपल (जोड़े) किराएदार या फ्लैट के मालिक बन कर रहते हैं. कई फ्लैट्स में महिलाएं गर्भावस्था के दौरान आती हैं और कुछ महीनों बाद वे फ्लैट या तो खाली हो जाते हैं या फिर उन में कोई और बस जाता है. ऐसे में कई बार संदेह भी होता है.
बढ़ता चलन
जानीमानी चिकित्सक डा. मधु कंसल का कहना है कि इन महिलाओं के केस उजागर तब होते हैं जब इन के अस्पताल के कागजों में मातापिता का अलग नाम होता है. सेरोगेट मदर्स अकसर दूसरे शहरों से आ कर अस्पताल व नर्सिंग होम में ऐडमिट होती हैं.
संतानसुख का सवाल होने के कारण पुरुष पारिवारिक महिलाओं की ही कोख किराए पर लेते हैं, क्योंकि कौल गर्ल्स के मुकाबले पारिवारिक और संतान वाली महिलाओं में एचआईवी एड्स, यौन रोग व गुप्त रोगों की संभावना कम होती है. पेशेवर महिलाओं के मुकाबले पारिवारिक महिलाएं गर्भावस्था को भी गंभीरता और सजगता से लेती हैं, जिस से होने वाले शिशु का स्वास्थ्य ठीक रहता है.
इंदिरापुरम निवासी महिला चिकित्सक डा. रेणु शर्मा बताती हैं कि यह चलन बदलती जीवनशैली की वजह से बढ़ रहा है. हाईप्रोफाइल माहौल में कार्यरत महिलाओं का खानपान व काम का गड़बड़ाता सिस्टम कई बार गर्भधारण के अनुकूल नहीं हो पाता. रात की पार्टियों में स्टेटस सिंबल बनाए रखने के लिए कई महिलाओं में शराब का सेवन भी बढ़ रहा है. यह सेवन बच्चेदानी को कमजोर कर देता है, जिस से गर्भपात की संभावना बनी रहती है.
वहीं, बढ़ती उम्र में शादी के बाद 2 से 3 वर्ष तक गर्भधारण न करने के लिए महिलाएं पिल्स का सेवन भी करती हैं. बिना चिकित्सकीय जांच के इन गोलियों का नियमित सेवन भी बच्चेदानी में इन्फैक्शन पैदा कर देता है. ऐसे में संतानसुख की तड़प उन्हें हर तरह का काम करवाने के लिए उकसाती है. पैसों का लालच सेरोगेट मदर्स को सरोगेसी के लिए मजबूर करता है.
आदर्श सेरोगेट मदर कौन?
क्या 40 वर्ष की उम्र के बाद सेरोगेट मदर बनना मां व बच्चे की सेहत को प्रभावित कर सकता है? इस सवाल का जवाब देते हुए संतान सफलता केंद्र, हैदराबाद की डा. पद्मजा कहती हैं, ‘‘आमतौर पर स्वस्थ सेरोगेसी की उम्र 24 से 34 वर्ष होती है. इस उम्र में सेरोगेसी से मां व बच्चे का स्वास्थ्य ठीक रहता है और स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है. साथ ही गर्भावस्था के दौरान कोई समस्या नहीं आती.’’ वे आगे कहती हैं, ‘‘अगर कोई महिला चाहे तो 40 वर्ष की आयु के बाद भी सेरोगेट मदर बन सकती है लेकिन अधिक उम्र में हाइपरटैंशन जैसी समस्या मां व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल सकती है. सेरोगेसी के लिए मां का मानसिक तौर पर भी स्वस्थ होना बेहद जरूरी है ताकि वह सेरोगेसी की सारी प्रक्रियाओं से सहजता से गुजर सके और अपने गर्भावस्था के समय को पूरी तरह एंजौय कर सके.’’
औल इंडिया वुमेंस कौन्फ्रैंस की किरण सक्सेना का कहना है, ‘‘यह चलन समाज में पहले भी था, मगर इस का स्वरूप दूसरा था. पहले जेठानी, ननद व भाभी अपनी संतान को परिवार में ही निसंतान दंपती को दे देती थीं. इस से बच्चा रिश्तेदारी में ही रह जाता था और खानपान व विवाह आदि दोनों परिवारों द्वारा चलता था. मगर अब इस का स्वरूप अलग हो गया है. ऐसे में समाज पर बुरा असर पड़ रहा है.’’
रूपहले परदे पर भी फिल्ममेकर इस मामले को ला चुके हैं. फिल्म ‘चोरीचोरी चुपकेचुपके’ में प्रीति जिंटा भी सेरोगेट मदर का किरदार निभा चुकी हैं. हालांकि इस फिल्म को दर्शकों का प्यार नहीं मिला, मगर इस ने बदलते परिवेश को उकेरा है. इस फिल्म में भले ही सलमान खान व उस का परिवार प्रीति जिंटा को बहू का दरजा देने को तैयार हो जाते हैं, मगर असल जिंदगी में सूने हाथों पर सुहाग की चूडि़यां बमुश्किल ही सजती हैं.