स्नातक के लिए अब तक 3 साल खर्च करने वाले छात्रों को एक झटका मिला है दिल्ली विश्वविद्यालय से. दरअसल डीयू ने स्नातक की डिगरी देने के नियमों में तबदीली की है. इस के तहत अब छात्र खुद तय करेंगे कि उन्हें अपनी डिगरी 2 साल में चाहिए या 3 या फिर 4 साल में. तबदीली के इस दौर में महंगी शिक्षा प्रणाली और लचर व्यवस्था इस नए प्रावधान को किस रूप में लेगी, जानने के लिए पढ़ें मेघा जेटली का लेख.
परिवर्तन के साथ तरक्की के सिद्धांत में दम है लेकिन कहींकहीं परिवर्तन नुकसानदेह भी हो सकता है. थोपे जाने वाले किसी भी तरह के परिवर्तन से अंतत: हर स्तर की जनता का प्रभावित होना लाजिमी है. बदलावों के दौर में आज शिक्षा के क्षेत्र में भी बदलाव किए जा रहे हैं. शिक्षा के नियमों में बदलाव का एक बड़ा उदाहरण दिल्ली विश्वविद्यालय यानी डीयू द्वारा स्नातक की पढ़ाई को 3 से बढ़ा कर 4 साल कर दिया जाना है. डीयू के इस फैसले की खूब आलोचना हुई, वहीं इसे प्रोत्साहन भी मिला.
जुलाई 2013 से ग्रेजुएशन का 3 वर्षीय डिगरी कोर्स 4 साल का कर दिया गया, जिस के तहत मुख्य परिवर्तन यह है कि छात्रों को अलग तरह की डिगरियां 4 सालों में दी जाएंगी, जैसे एसोसिएट स्तर (2 साल बाद), स्तर (3 साल बाद) और औनर्स के साथ स्तर (4 साल बाद). 4 वर्षीय स्नातक डिगरी के तहत छात्रों को शुरुआत में 11 आधार पाठ्यक्रम लेने अनिवार्य होंगे.
डीयू के डिप्टी डीन संगीत रागी बताते हैं कि दूसरे और तीसरे साल के अंत में छात्र को कोर्स छोड़ कर जाने का विकल्प दिया जाएगा. पूरे होने के बाद छात्र को एक सहयोगी डिप्लोमा मिलेगा. तीसरे वर्ष के अंत में छात्र स्नातक की डिगरी ले कर जा सकता है और पूरे 4 साल होने के बाद सम्मान के साथ स्नातक की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा. जो छात्र दूसरे और तीसरे साल के बाद छोड़ कर जाने के विकल्प लेंगे वे 8 साल की अवधि के अंतराल में वापस लौट कर विश्वविद्यालय में शामिल हो कर आगे की पढ़ाई कर सकेंगे. खालसा कालेज में पढ़ाने वाली एक अध्यापिका के अनुसार, एक डिप्लोमा लेने के लिए छात्र को कम से कम 40 फीसदी अंक लाने होंगे जबकि स्नातक की डिगरी और सम्मान के साथ स्नातक की डिगरी के लिए कम से कम 50 फीसदी अंक अनिवार्य हैं.
विरोध क्यों?
छात्र, शिक्षकों और मातापिता ने स्नातक कोर्स को 4 साल का किए जाने के निर्णय के खिलाफ काफी विरोध किया. कमला नेहरू कालेज में अंगरेजी पढ़ाने वाले सनम खन्ना के अनुसार, नए सिलेबस के हिसाब से छात्रों के ऊपर दबाव बढ़ेगा जिस से वे गाइड पर निर्भर हो जाएंगे. इस से डिगरी के मूल्य को खतरा है. सीखे हुए से ज्यादा वे याद किए हुए ज्ञान पर निर्भर होंगे जिस का नतीजा छात्रों के लिए अच्छा नहीं होगा.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कई शिक्षकों का कहना है कि न तो उन से 4 साल के डिगरी कोर्स के बारे में कोई सलाह ली गई और न ही उन्हें बताया गया. डीयू से संबद्ध खालसा कालेज में पढ़ने वाली छात्रा नेहा का कहना है कि पहले ही इतनी प्रतिस्पर्धा है और अगर 3 साल की डिगरी हम 4 साल में पूरी करेंगे तो कहीं न कहीं भीड़ में पीछे रह जाएंगे. यह समय की बरबादी के अलावा कुछ नहीं है.
डीयू में पढ़ने वाले एक छात्र के पिता राधेसिंह का कहना है कि पहले ही बच्चों को पढ़ाने में बहुत खर्चा हो रहा है ऊपर से स्नातक में 1 साल और बढ़ा देने का बोझ हम मध्यवर्ग वाले कैसे उठा पाएंगे. फीस के अलावा रोजाना आनाजाना, किताबें, फाइल पर भी बहुत खर्च हो जाता है.
विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से तर्क यह दिया जा रहा है कि अमेरिका में भी 4 साल का स्नातक कोर्स होता है और इसे यहां शुरू करने से विद्यार्थियों की गुणवत्ता बढ़ेगी लेकिन विरोधियों के अनुसार यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया है. इस से छात्रों की या शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा.
अमेरिकी शिक्षा प्रणाली के अनुसार, छात्र यदि चाहें तो 4 साल डिगरी कोर्स चुन सकते हैं वरना उन के पास अन्य कई विकल्प होते हैं. अमेरिकी व्यवस्था बहुत बेहतर है. शिक्षा के चयन में बहुत लचीलापन है, जिसे यहां पूरी तरह लाने की आवश्यकता है.
3 साल की शिक्षा प्रणाली में असाइनमैंट, डिबेट व प्रोजैक्ट आदि होते हैं जबकि 4 साल के डिगरी कोर्स की प्राथमिकता में लिखित कार्य और समूह परियोजना पर जोर दिया जाएगा. छात्र 2 साल बाद एसोसिएट स्तर का डिप्लोमा डिगरी ले कर पढ़ाई छोड़ सकता है लेकिन वह छात्र कई कंपनियों में नौकरी पाने के लिए योग्य नहीं होगा. ऐसे में उसे कोई फायदा नहीं होगा. पहले ही स्कूल की महंगी फीस भर कर पढ़े हुए विषय यदि फिर पढ़ाए जाएंगे तो मातापिता का महंगाई के दौर में बच्चों की फीस का और भार उठा पाना मुश्किल होगा.
4 वर्षीय स्नातक के लाभ
4 साल के स्नातक का हालांकि जम कर विरोध हुआ लेकिन कुछ आवश्यक चीजों को भी ध्यान में रखने की जरूरत है. 4 साल का स्नातक कोर्स अमेरिकी शिक्षा प्रणाली से मेल खाता है जिस में छात्र प्रारंभिक वर्ष में शुद्ध विज्ञान, वाणिज्य और कला भी सीख पाएगा. 3 साल पूरे होने पर मिलने वाली डिगरी को स्नातक (बीए) या (बीएस) कहा जाता है. जो छात्र अपनी आगे की पढ़ाई विदेश में करना चाहते हैं उन के लिए यह अत्यंत उपयोगी साबित होगी.
दरअसल, भारत में इस नई प्रणाली के प्रति जागरूकता कम होने के कारण विरोध ज्यादा है. शिक्षा संस्थानों को 4 साल के कार्यक्रम का महत्त्व समझाने के लिए कई सेमिनार करवाए जाने की आवश्यकता है. इस 4 साल के कार्यक्रम में 9 सेमेस्टर होंगे जिस में छात्रों को नियमित रूप से विज्ञान विषयों के अलावा मानविक मूल्यों में भी पारंगत किया जाएगा.
यह सत्य है कि एक ही प्रणाली के लगातार रहने से उस में कुछ बदलाव बेहतर हो सकते हैं. जब संस्थानों ने सेमेस्टर प्रणाली शुरू करने का फैसला किया था विरोध की आंधी तो तब भी उठी थी.
इस 4 साल के कोर्स के पीछे उपकुलपति दिनेश सिंह का तर्क यह है कि 3 साल के विशिष्ट कोर्सों में छात्र लगभग कुछ नहीं सीख पाते. 8 सेमेस्टरों का यह कोर्स उन्हें केवल हिंदी या फिजिक्स या पौलिटिकल साइंस न पढ़ा करर एक बड़ा कैनवास देगा. कहने को यह उद्देश्य अच्छा है पर यह 4 साल का कोर्स जनता पर भारी पड़ेगा. शिक्षक तो वह रहेंगे न जिन की मानसिकता है कि गुरु के चरणों का सान्निध्य ही ज्ञान है. गुरुसेवा की लालसा रखने वाले शिक्षक 3 साल साथ रहें या 4 साल, शिक्षा का स्तर बदलेगा नहीं.
4 साल का कोर्स मूलत: व्यर्थ इसलिए है कि उस की जड़ में अंगरेजी माध्यम रहेगा जिसे पचाना अंगरेजी माध्यम से 12 कक्षा पढ़ कर आए बच्चों के लिए भी संभव नहीं है. वे बड़ी मुश्किल से 3 साल काटते हैं, 4 साल तो उन के लिए पहाड़ हो जाएंगे. 4 साल का कोर्स हो जाने के बाद यह सोचना कि 2 या 3 साल बाद पढ़ाई छोड़ देने वाले भी कुछ प्रमाणपत्र ले कर निकलेंगे, मूर्खता है. उन्हें कौर्पोरेट जगत निखट्टू और असफल समझेगा इसलिए ये 4 साल तो हरेक को ढोने ही होंगे.
इस का बोझ कालेजों के भवनों, शिक्षकों की संख्या, छात्र के परिवहन पर पड़ेगा जिस की कीमत करदाताओं को करों के रूप में देनी पड़ेगी.