कनकप्रभा के पति 2 करोड़ रुपए से ज्यादा की दौलत पत्नी के नाम छोड़ गए थे. किसी फिल्मी चरित्र की भांति पिता के जीवनकाल में ही 1 बेटा 10वीं में फेल हो जाने के बाद घर से भाग गया था जिस का आज तक पता नहीं चला. दूसरा बेटा एक ज्वैलर के साथ दक्षिण अफ्रीका जा कर रहने लगा. सुना है, उस ने वहां निजी व्यवसाय शुरू कर लिया है और वहीं की एक युवती से विवाह कर घर बसा लिया है.
अकेलेपन से परेशान हो कर कनकप्रभा घर के पास स्थित एक आश्रम में जाने लगी. एक दिन उस ने अपनी कथाव्यथा आश्रम के धर्मगुरु को कह सुनाई. धर्मगुरु ने सहानुभूति जताई और प्रवचनों के माध्यम से सुनियोजित तरीके से उस में वितृष्णा का भाव जागृत कर संपूर्ण संपत्ति ट्रस्ट के नाम करवा ली. सबकुछ दान कर देने के बाद पिछले 6 वर्षों से कनकप्रभा आश्रम की शरणागत है. 62 साल की उम्र में पति द्वारा छोड़ी गई लाखों रुपए की संपत्ति के बावजूद, पाईपाई को मुहताज कनकप्रभा आश्रम में दासी की भांति काम करने को मजबूर है क्योंकि नियमानुसार सारी संपत्ति ट्रस्ट के नाम से अंतरित हो चुकी है.
58 वर्षीया वंदना के पति श्यामजी सरकारी अधिकारी थे. 2 पढ़ेलिखे, सुयोग्य बेटों का परिवार था. दोनों आईटी इंजीनियर थे, सो अच्छे पैकेज पा कर सपरिवार अमेरिका जा कर बस गए. श्यामजी स्वाभिमानी थे. अंतर्मन से तो उन्हें बेटेबहुओं की प्रतीक्षा रहती थी किंतु वे उन के समक्ष झुकने व मिन्नतें करने को तैयार न थे. आखिरकार मौन प्रतीक्षारत श्यामजी का 6 वर्ष पूर्व निधन हो गया.
पत्नी के लिए वे 50 लाख रुपए की एफडी और 50 लाख रुपए का फ्लैट छोड़ गए. वंदना को आशा थी कि पिता के गुजर जाने के बाद बेटे अब जिम्मेदारी महसूस करेंगे किंतु उन्हें मां से अधिक जायदाद की जिम्मेदारी महसूस हुई. वे वंदना की वेदना तनिक भी नहीं समझ पाए. एक बार दोनों बेटे आए, मां को भरमा कर संपत्ति हस्तगत की और वृद्धाश्रम में भरती करवा कर चलते बने. विगत 4 साल से वृद्धाश्रम में रह रही वंदना पथराई निगाहों से बेटों की राह तक रही हैं.
भारत का सामाजिक तानाबाना न्यूनाधिक रूप से आज भी ऐसा है जिस में अधिकांश महिलाएं पिता या पति पर ही आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं. वक्त की मार से वे पतिहीन हो जाएं तो उस के बाद उन्हें पुत्र व पुत्रवधू के शरणागत होना पड़ता है.
कुछ ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं कि कुछ पतिपत्नी, जो स्वाभिमानी किस्म के होते हैं अथवा परिस्थितिवश अकेले रहने हेतु बाध्य होते हैं, उन में पति की मृत्यु होने के बाद पत्नी अकेले रहने को अभिशप्त हो जाती है और अवसादवश विक्षिप्तता की शिकार बन जाती है. बहुत बार तो ऐसी एकाकी स्त्रियां नौकरों, चोरलुटेरों, स्वजनों या असामाजिक तत्त्वों की शिकार बन कर जान से हाथ धो बैठती हैं.
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, देशभर में लगभग 2 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें पति की मृत्यु के बाद पति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति, दायित्व का स्वयं ही प्रबंधन करना होता है. नैसर्गिक रूप से यह सहारा वे पुत्रपौत्रों से प्राप्त करने का प्रयास करती हैं स्त्री की यही निर्भरता कई बार उस के लिए घातक सिद्ध होती है जब भावी मालिक, पहले ही मालिक बन जाने की आकांक्षा में सबकुछ हड़प जाते हैं.
भोपाल के एक विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केंद्र के अनुसार, धीरेधीरे क्षरित हो रही संयुक्त परिवार प्रथा के चलते 90 के दशक के बाद से सामाजिक परिस्थितियों व सोच में तेजी से बदलाव आया है. ‘पारिवारिक अवलंबन’ के घटते आधार के परिणामस्वरूप अधिकतर पुरुष असुरक्षा के भय से जमीनजायदाद, पैंशन या फंड आदि के रूप में इतनी संपत्ति अवश्य छोड़ जाना चाहते हैं जिस से आश्रिता पत्नी या अन्य आसानी से भरणपोषण कर सकें और उन्हें आर्थिक रूप से किसी की दया पर निर्भर न रहना पड़े.
आर्थिक नियोजन संस्थान के सलाहकारों के आकलन के अनुसार, उच्चमध्यम परिवार का मुखिया जो सामान्यतया 50 हजार रुपए महीना कमाता है, औसतन 25 लाख रुपए तक का मकान और 10-15 लाख रुपए का कोष परिवार के लिए छोड़ कर जाता है. यदि पति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति व कोष का विवेकपूर्ण नियोजन कर इस्तेमाल किया जाए तो महिला का शेष जीवन सुगमता से गुजारने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है लेकिन दुख की बात है कि मुश्किल से 2-3 फीसदी महिलाएं ही ऐसा कर पाने में सफल होती हैं.
98 फीसदी महिलाएं तो सबकुछ हो कर भी धनहीन रहने को विवश होती हैं. कनकप्रभा जैसी धर्मभीरुओं के उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जिन की संपत्तियां अनाधिकृत रूप से धर्मगुरुओं द्वारा हरण कर ली जाती हैं.
इसलिए आवश्यक है कि पति अपने जीवनकाल में ही पत्नी को अपनी चलअचल संपत्ति के अधिकारपत्रों, उन के नामांकन आदि से परिचित रखे. इस में पति से अधिक पत्नी का कर्तव्य बनता है कि वह जागरूक रह कर, रुचि के साथ संपत्ति विवरणों की जानकारी हासिल करे. पतिपत्नी को चाहिए कि वे सदैव चलअचल संपत्ति की वसीयत बनवाएं और उन्हें अद्यतन करवाते रहें.
यह तो हुई स्थायी संपत्ति की बात, जहां तक तरल कोष (नकद, बैंक खाते, पौलिसी, शेयर, फंड, भविष्य निधि आदि) की बात है, उन में भी नामांकन किया जाना आवश्यक है और इन सब की जानकारी कम से कम पत्नी को अवश्य होनी चाहिए. भावुकता का दामन छोड़ कर नामांकन में बच्चों के बजाय पत्नी का नाम ही करवाना श्रेयस्कर है.
देखने में आया है कि कई बार भवन, वाहन या अन्य संपत्ति पर पति द्वारा बैंक, बीमा कंपनी या वित्तीय संस्थान से कर्ज लिया हुआ होता है और उस के चुकता किए बिना ही पति की मृत्यु हो जाती है. ऐसी स्थिति में पत्नी को ही पति द्वारा लिया गया कर्ज चुकाना पड़ता है.यदि कर्ज चुकाने की स्थिति नहीं है तो बेहिचक वित्तीय संस्थान को बता दिया जाना चाहिए ताकि संपत्ति अधिगृहीत कर उस के बेचने से कर्ज चुकता होने के बाद शेष बची राशि आप को मिल सके.
यदि कोई संपत्ति ऐसी है जिस की वसीयत नहीं है तो जागरूकता का परिचय देते हुए यथोचित समयावधि में सक्षम अधिकारी के समक्ष पति के मृत्यु प्रमाणपत्र सहित दावा पेश करें क्योंकि पति द्वारा अर्जित संपत्ति में पत्नी व बच्चों का समान हक होता है.
पिछले कुछ सालों में बने 2 कानूनों ने संपत्ति का हक दिलवाने के मामलों में महिलाओं की राह और भी आसान कर दी है. विधवाओं के लिए तो ये विशेष हितकारी सिद्ध हुए हैं. उन में से एक तो है, ‘घरेलू हिंसा अधिनियम’, जिस ने उन के आवास और संपत्ति में हक पाने के अधिकार को मजबूत किया है और दूसरा है ‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (2005).’ इस के अंतर्गत विवाहित महिलाओं को भी पूर्वजों (मायके) की संपत्ति में बराबर का हक दे दिया गया है जबकि इस से पहले संपत्ति में यह अधिकार केवल अविवाहित महिलाओं के लिए ही था.
परेशानी तब होती है जब पत्नी के नाम पर संपत्ति होने के बावजूद पति के शोककाल में झूठा विश्वास जमा कर बच्चे या निकटस्थ रिश्तेदार पीएफ, ग्रैच्युटी, मुआवजा राशि, अवकाश, नकदीकरण पर अपना हक जमा लेते हैं. इसलिए शोकाकुल रहते हुए भी भविष्य के प्रति पर्याप्त सजग रहें और उन्हें सही बैंक खाते में जमा करवाएं, दुरुपयोग न होने दें. याद रहे, बेटेबहुओं के लाख कहने पर भी स्त्रीधन यानी गहनों पर अधिकार बनाए रखें, अन्यथा वे आसानी से हड़पे जा सकते हैं.
शोककाल में मनोभावों पर नियंत्रण रखें. दुखकाल में स्वाभाविक रूप से वितृष्णाभाव जागृत होते हैं जिन का कई धूर्त पंडित, धर्मगुरु अनुचित लाभ उठाने में प्रयोग करते हैं, इसलिए उन से पूरी तरह सावधान रहें.