मेहनत, लगन और ईमानदारी के साथसाथ दिल में कामयाबी हासिल करने का जज्बा भी हो तो मंजिलें खुद चल कर आती हैं. इसी फलसफे पर चल कर अंकित कुमार सिंह ने सिविल सेवा परीक्षा 2012 में सफलता अर्जित की है. पेश हैं उन की कामता प्रसाद मौर्या से हुई बातचीत के मुख्य अंश.

पिछले दिनों ‘संघ लोक सेवा आयोग’ ने ‘सिविल सेवा परीक्षा 2012’ के परिणाम घोषित कर दिए. इस में सर्वोच्च स्थान पाने वालों में प्रथम स्थान केरल की सुश्री हरिथा वी कुमार, दूसरा स्थान केरल विश्वविद्यालय से एमबीबीएस कर चुके डा. वी श्रीराम और तृतीय स्थान सुश्री स्तुति चरन का रहा.  सिविल सेवा परीक्षा-2012 में अनुसूचित जाति (संखवार) के अंकित कुमार सिंह का नाम भी शामिल है. उन्होंने तृतीय प्रयास में इस परीक्षा में 686वां स्थान हासिल किया है.

आप अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं. आप को कैसा महसूस हो  रहा है?

मैं अनुसूचित जाति के संखवार समुदाय का पहला व्यक्ति हूं, जो आईएएस/आईपीएस बनेगा. मेरी इस सफलता पर न केवल मेरा बल्कि मेरे परिवार और समाज का सपना पूरा हुआ है. मेरा मानना है कि कोई भी चीज असंभव नहीं है. यदि मेहनत, लगन और ईमानदारी के साथ प्रयास किया जाए, तो सफलता निश्चित रूप से प्राप्त होती है.

आप ने इस परीक्षा के लिए मुख्य विषय क्याक्या चुने थे?

हालांकि मैं ने औयल टैक्नोलौजी में बीटैक किया है लेकिन आईएएस परीक्षा के लिए मैं ने भूगोल और हिंदी साहित्य को मुख्य विषय के रूप में चुना. इस में मुझे सफलता मिली. 

इस परीक्षा में सफलता हासिल करने का अनुभव किस प्रकार का रहा?

मैं ने अपनी आईएएस की परीक्षा की तैयारी और सफलता हासिल करने के बाद पाया कि क्या नहीं पढ़ना चाहिए इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए. प्रश्नावली में विज्ञान, इतिहास, भूगोल और सामान्य ज्ञान से जुड़े प्रश्न होते हैं. उन की तैयारी बहुत ही सावधानी के साथ की जानी चाहिए. तैयारी करते समय इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए तैयारी की जाए. इस के लिए दैनिक समाचारपत्रपत्रिकाओं, टीवी, रेडियो आदि को ध्यान से पढ़ना और सुनना चाहिए.

काफी उम्मीदवार मुख्य परीक्षा तो पास कर लेते हैं लेकिन साक्षात्कार में असफल हो जाते हैं. आप का साक्षात्कार कैसा रहा?

मेरे साक्षात्कार बोर्ड के चेयरमैन आईएमजी खान थे. मेरा साक्षात्कार लगभग 25 मिनट तक चला. इस दौरान मुझ से मेरी पृष्ठभूमि, शिक्षा व ज्वलंत विषयों पर प्रश्न पूछे गए. मुझ से लखनऊ में स्थित बटलर पैलेस के बारे में पूछा गया, क्योंकि मैं ने हरकोर्ट बटलर टैक्नोलौजिकल इंस्टिट्यूट, कानपुर (उ.प्र.) से औयल टैक्नोलौजी में प्रथम श्रेणी में बीटैक किया था. बटलर उत्तर प्रदेश के प्रथम गवर्नर थे. इस के अलावा मुझ से इंटरव्यू में इलाहाबाद की विशेषताएं पूछी गईं. एक सदस्य ने तो यह पूछा, महाराष्ट्र मराठियों के लिए है. इस को कहां तक सही या गलत मानते हैं? दूसरे सदस्य ने पूछा कि आप आईएएस क्यों बनना चाहते हैं? इस प्रश्न का मैं ने उत्तर दिया कि इस के माध्यम से मुझे गरीब, पिछड़े इंसानों के लिए कुछ करने का बड़ा मौका मिलेगा.

आप कानपुर के रहने वाले हैं. क्या कानपुर से संबंधित कोई प्रश्न भी इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों ने पूछा?

हां, एक सदस्य ने मुझ से पूछा कि कानपुर सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट किस सिद्धांत पर काम करता है? लेकिन इसे मैं सही तरह से बोर्ड को समझा नहीं सका. हां, बोर्ड के सदस्यों ने मेरा पूरा सहयोग किया. मैं ने यह महसूस किया है कि इंटरव्यू बोर्ड के समक्ष वही बोला जाए जिस की आप को सही जानकारी है, उसे ईमानदारी के साथ रखें, लेकिन किसी भी रूप में झूठी जानकारी न दें.

आप अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ बताएं?

मेरा जन्म 19 फरवरी, 1987 को ग्राम मोहाना, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश के संखवार परिवार में हुआ था. पिता राज संजीवन संखवार, उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद में कनिष्ठ लेखा अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं और मेरी मां एक गृहिणी हैं. उन्होंने एमए तक शिक्षा हासिल की है. मेरी 2 बहनें हैं जिन में से एक एमटैक कर चुकी है और आईएएस की तैयारी कर रही है. दूसरी छोटी बहन ने अभी 12वीं की परीक्षा दी है. वह चिकित्सा के क्षेत्र में जाना चाहती है.

आप ने शिक्षा कहां से हासिल की?

मैं ने पहली से 5वीं तक की पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर, रतनलाल नगर, कानपुर से की. इस के बाद कक्षा 6 से 12वीं तक की पढ़ाई चाचा नेहरू स्मारक इंटर कालेज, गोविंद नगर, कानपुर से पूरी की. मैं ने वर्ष 2009 में ‘हरकोर्ट बटलर टैक्नोलौजिकल इंस्टिट्यूट’, कानपुर से ‘औयल टैक्नोलौजी’ में प्रथम श्रेणी में बीटैक की डिगरी हासिल की. अचानक परिस्थितियां बनीं तभी मैं ने एमटैक करने के बजाय आईएएस की तैयारी करना जरूरी समझा और फिर इस के लिए कानपुर से दिल्ली आ गया.

आईएएस अधिकारी बनने की प्रेरणा आप को किस से मिली?

बचपन में मेरे पिताजी का सपना था कि वे आईएएस बनें, लेकिन परिस्थितियां अनुकूल न होने के कारण वे इस में सफल नहीं हो सके. परिवार के भरणपोषण के लिए मात्र डेढ़ बीघा जमीन से गुजारा होना असंभव था. इसलिए पढ़ाई ही एकमात्र सहारा थी, जिस से परिवार का भरणपोषण संभव हो सकता था. वे चाहते थे कि उन के बच्चे इस दिशा में आगे बढ़ें. इसीलिए उन्होंने हम सभी भाईबहनों को बेहतर शिक्षा दिलाई. उन की इच्छा थी कि उन का बेटा वह अधूरा कार्य जरूर पूरा करे जिसे वे नहीं कर सके. इसलिए मैं ने आईएएस की तैयारी के लिए मन बनाया.

दलितों के समक्ष कौन सी समस्या नजर आती है?

पहले अनुसूचित जाति में शिक्षा का बहुत अभाव था. लोग जातीय भेदभाव के चलते पढ़ नहीं पाते थे. लेकिन बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर के ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ के नारे से निश्चित रूप से दलित समाज में बदलाव आया है. जिन के पास साधन है उन्होंने बेहतर शिक्षा हासिल की है और कर रहे हैं. लेकिन फिर भी इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है. मैं अपने सेवाकाल के दौरान जितना संभव हो सकेगा, इस समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास की दिशा में सहयोग करने का सार्थक प्रयास करूंगा.

आज के दौर में अधिकांश बच्चे और युवा मोबाइल, मीडिया और मनी के चलते भटकाव की स्थिति में हैं, क्या आप इस से सहमत हैं?

यह सही है कि यह दौर मीडिया, मोबाइल और मनी के चलते भटकाव पैदा करने वाला है लेकिन यदि मातापिता के संस्कार ठीक हैं और बच्चों का लालनपालन उन की देखरेख में बेहतर तरीके से होता है, तो बच्चे या युवा इस दौर में भी बेहतर कर सकते हैं. मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ ज्यादा समय दें, क्या चीज गलत है और क्या सही, इस बात का एहसास कराएं. युवा वर्ग को चाहिए कि वह दुनिया की चकाचौंध में फंस कर दूसरों की देखादेखी न करे. जितना और जैसा है, उसी में अपनेआप को ढालते हुए अपने शौक पूरे करे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...