लेखक – सुनील चंद्र जैन,
Short Hindi Story :  
मेनी ने 200/- रुपए देकर कहा-

अंकल आपके साथ किला देखकर मन को बहुत सुकून और जानकारी मिली। वैसे आप ये गाइड का काम कब से कर रहे हैं?

रमेश जी के चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर गई।

रमेश जी ने (बात को टालते हुए) कहा- अगर जिंदगी रही तो फिर किसी किले के इतिहास को कुरेदते हुए मिल जाउंगा। शुभ यात्रा।

इतना कह कर रमेश जी चाय की दूकान की ओर बढ़ गए।

दिन के साढ़े बारह बजने वाले थे। काफी थकान हो गई थी, मजाक-मजाक में गाइड बनने से 1000/-रुपये बुरे नहीं थे।

चाय समाप्त हो चुकी थी। उठने का मन नहीं हो रहा था। यह दिन की दूसरी चाय थी। एक चाय और पीने का मन हो गया।  इतने में भटकंतियों का एक झुंड आ गया और वह भी चाय पीने लगा। जिनको रमेश जी किला दिखाकर आए थे, वे भी वहीं आकर खड़े होकर चाय पीने लगे। मेनी भी उन किला देखने वालों में शामिल थी। रमेश जी को सामने देखकर प्रश्न कर डाला-

अंकल घर नहीं जाना क्या?

रमेश जी ने फिर मुस्कराए! चुप रहना उचित समझा।

लेकिन मेनी चुप नहीं रही।

मेनी ने कहा-अंकल कभी राजस्थान जाओ देखना वहां पर कितने भव्य किले हैं।

इस बार रमेश जी चुप नहीं रह सके।

रमेश जी- हां मैंने अधिकांश किले देखे हैं।

मेनी ने कहा-अगर फुरसत हो तो आमेर के किले के बारे में बताइए ना?

रमेश जी ने टालते हुए कहा- अभी थका हुआ हूं, फिर कभी बताउंगा। अभी भोजन करने की सोच रहा हूं।

इतना कह कर रमेश जी उठ कर चल दिए।

जो नया युवाओं का झुंड आया था, उसमें से एक लड़की ने मेनी से पूछा कौन हैं, ये अंकल?

मेनी ने कहा-गाइड हैं, बहुत बढ़िया एक्सप्रेस करते हैं। अभी हमको पन्हाला का किला दिखाकर लाए हैं।

जिस लड़की ने पूछा था, उसका नाम अनीता था, लेकिन सब उसे मीता कहते थे।

मीता, दौड़कर रमेश जी को पीछे होकर आवाज देने लगी-

अंकल-अंकल रुको….. रमेश जी ठिठक गए।

मीता ने कोई भूमिका नहीं बनाई और बोली मेरा नाम अनिता है सभी प्यार से मुझे मीता पुकारते हैं। मैं इन लोगों के साथ आई हूं। मुझे और इनमें से किसी को मराठी नहीं आती है। आप मेरे साथ आइए एक दो मिनट आपसे बात करना चाहते हैं।

रमेश जी न चाहते हुए वापस चाय वाले की दूकान की कुर्सी पर बैठ गए।

मीता ने अपने सााथियों से कुछ विचार-विमर्श किया और तय करके कहा-

क्या अंकल आप हमें पन्हाला का किला दिखा देंगे? मुझे मालूम है, आप काफी थके हुए हैं, लेकिन हमारी खातिर प्लीज हम आपकी फीस दे देंगे।

मीता देखने में गेंहुआ रंग, बाल कमर तक लहरा रहे थे, नाक नक्श तीखा, लम्बाई करीब साढ़े पांच फुट और वाक पटु इतनी कि चलते आदमी के बाल नोच ले। अपनी वाक पटुता के कारण वह ग्रुप की लीडर बनी हुई थी।

रमेश जी ने काफी सोचा और मीता और उनके साथ वालों के चेहरों के हाअ भाव देखते रहे।

रमेश जी ने कहा-एक शर्त है, मैं पहले खाना खाउंगा उसके बाद आपके साथ चलूंगा। तब तुम पानी की दो-तीन बाटल ले लो। हां एक बोतल मेरे लिए भी रख लेना। मैं बुड्ढा आदमी हूं इसलिए धीरे-धीरे किले पर चढ़ पाउंगा और लौटने में अंधेरा होने की संभावना है।

सभी ने एक स्वर में कहा- ठीक है अंकल आप खाना खाओ तब तक हम अपनी चाय का कोटा पूरा करते हैं। पानी तथा हल्का नाश्ता रख लेते हैं।

रमेश जी कोई पेशेवर गाइड नहीं थे। बल्कि वे स्वयं पर्यटक थे। किले घूमने के शौक ने पचासों किलों का इतिहास पढ़ने पर मजबूर कर दिया था। यही वजह थी कि जब वे कोल्हापुर पन्हाला का किला देखने के लिए निकले तो उसका इतिहास कंठस्थ करके आए थे, जिससे देखने का आनंद दोगुना हो सके। आर्थिक रूप से सम्पन्न, लेकिन आज शौकिया तौर पर गाइड बन गए। उनके परिवार में पत्नी, बेटा, दो बेटियां, नाती-पोते सभी थे। एक अच्छे आॅफिस से रिटायर थे। घूमने का शौक था। पेंशन से घर और घूमने का खर्च आसानी से निकल जाता था। आज मूड ही मूड में गाइड बन गए। बच्चे छोटे हों या बड़े उनके साथ बात करना अच्छा लगता था। इससे मन को असीम शांति मिलती थी, विशेष रूप से उन बच्चों के साथ जिनके मन में कोई लालच या छलकपट न हो। कोई उन्हें मूर्ख न समझे।

इस बार घर वालों ने बड़ी मुश्किल से छोड़ा था। घर में अगले महीने शादी थी, उसमें शामिल होना जरूरी था। लेकिन रमेश जी जब ठान लेते हैं तो उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। इस बार वे खुद जाकर रिजर्वेशन करवाकर आए थे। वैसे ये सारे काम उनका बेटा  करता है।

खाना खाने के बाद वे वापस चाय की दूकान पर पहुंच गए। वे सभी बच्चे उनका इंतजार कर रहे थे। मीता तो कुछ ज्यादा चहक रही थी। वह रमेश जी के बारे में बहुत कुछ जानने को उत्सुक थी। रमेश जी उससे बचने की पूरी कोशिश कर रहे थे। शिवाजी के किले हों और उसमें दुर्गमता न हो ऐसा हो नहीं सकता? रमेश जी उम्र के हिसाब से धीरे-धीरे चल रहे थे। एक दो बार उन्होंने रुकने के लिए कहा। जब मुख्य द्वार पर पहुंचे और वहां किले के बारे में धारा प्रवाह 15 मिनट बोले तो सभी सन्न रह गए। इतना सोचा भी नहीं था, इतनी जानकारी मिलेगी। इन पन्द्रह मिनट में रमेश जी तरोताजा हो गए। आगे बढ़े, लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब उनहोंने मीता के हाथ में अपना हाथ देखा। उन्होंने छुड़ाने की भरसक कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे।

मीता-अंकल मैं हूं ना! आप मेरे साथ, मेरा हाथ पकड़कर चलिए।

रमेश जी शारीरिक रूप से इतने भी कमजोर नहीं थे। मीता ने जो हाथ पकड़ा तो किले हर छोर पर, हर स्थान पर उसने हाथ नहीं छोड़ा। रमेश जी पूरे सफर में असहज ही रहे। मीता ने कई बार उनसे उनके बारे में, उनके अकेलेपन के बारे में, अकेले घूमने के बारे में पूछना चाहा, लेकिन वे हर बार टाल गए। इससे मीता की जिज्ञासा और बढ़ती गई।

आखिरकार किले का सफर पूरा हो गया था। सभी ने रमेश जी को कंट्रीब्यूट करके रुपये दे दिए, लेकिन मीता की उन्हें अलग से और रुपये देने की पेशकश को सभी मान गए। रमेश जी ने साफ कड़े शब्दों में मना कर दिया। सबके अति आग्रह के कारण उन्हें  होटल का नाम और कमरा नम्बर बताना पड़ा। कब तक कोल्हापुर में रुकेंगे यह भी बताना पड़ा।

दूसरे दिन रमेश जी 8 बजे सोकर उठे। अभी गुशल करके बैठे ही थे, दरवाजे पर दस्तक हुई।

रमेश जी ने कहा-ठीक है आ जाओ और पहले चाय का बोल देना।

उनके सामने मीता खड़ी थी।

रमेश जी अकबका गए। साॅरी बोला और अंदर आने के लिए कहा। वे उठकर बेल बजाने वाले ही थे कि मीता ने उन्हें रोक दिया।

मीता ने कहा- मैं चाय और नाश्ते का आर्डर देकर आई हूं। मैं आज आपके साथ यहां पर रंकाला झील, महालक्ष्मी मंदिर और न्यूपेलेस देखना चाहती हूं।

रमेश जी ने पूछा-बाकी सब कहां हैं?

मीता ने कहा- वे सब आज पुणे जा रहे हैं। मेरे साथ कोई साथी नहीं है, मैं आपके साथ ही घूमकर पुणें जाउंगी। तत्काल में सीट बुक करके गुरूग्राम निकल जाउंगी। मैं वहीं जाॅब करती हूं।

रमेश जी की हालत पतली थी। उनका एकांत, उनका चिन्तन-मनन और लेखन धरा का धरा रह जाएगा।

रमेश जी ने टालते हुए कहा-मैं यहां के अलावा दो-तीन जगह और जाउंगा। एक दो मंदिर हैं और कुछ पर्यटन स्थल हैं। ऐसा करो कोल्हापुर घूम कर तुम पुणे निकल जाओ। पुणे के लिए बसों की अच्छी सुविधा है।

मीता ने कुछ नहीं कहा-बस हां में सिर हिला दिया।

शाम तक कोल्हापुर के सभी दर्शनीय स्थान घूम  चुके थे। मीता ने पुणे जाने से साफ इन्कार कर दिया और रमेश जी के साथ पंढरपुर जाने का तय कर लिया।

मीता ने कहा-मैं कहीं नहीं जाउंगी आपके साथ ही पुणे जाउंगी। पुणे में मुझे सिंहगढ़ का किला देखना है। उसकी कमेंटी आपको करनी पड़ेगी।

रमेश जी को सफेद बालों पर खतरा मंडराता नजर आने लगा। आखिरकार मजबूरन पंढरपुर होते हुए पुणे जाने का मन बनना पड़ा। रात करीब 10 बजे पंढरपुर की बस से रवाना हुए। रमेश जी का अकेले आराम से बैठने का सपना चूर-चूर हो गया। वे सीट पर सिमटे से बैठे थे। कुछ ही देर में मीता नींद में और रमेश जी विचारों में।

आखिर ये लड़की कौन है? ये मुझसे क्या चाहती है? कहीं किसी फ्राॅड में फंसाना तो नहीं चाहती? पता नहीं किस गिरोह की है? इन्हीं विचारों में झपकी लग गई। अचानक जोरदार बे्रेक लगने से रमेश जी नींद और विचार तंद्रा टूट गईं। मीता और सटकर बांह पकड़कर गहरी नींद में सो रही थी। एक ढाबे पर बस ड्राइवर चाय पीने के लिए उतरा, रमेश जी भी चाय पीना चाह रहे थे लेकिन मीता की पकड़ ढीली पड़ने का नाम नहीं ले रही थी। एक बार मन हुआ इसे बस में यूं ही छोड़कर अपना सामान लेकर उतर जाएं, लेकिन उसके विश्वास को तोड़ना उचित नहीं समझा और वैसे ही जड़वत बैठे रहे।

सुबह के पांच बज रहे थे। पंढ़रपुर के मंदिर के घंट नाद से कर्ण आनंद विभोर हो गए। मीता अब भी सो रही थी। पता नहीं कितने दिन से सोई नहीं थी। एस टी स्टेण्ड आ गया। मीता को आखिरकार उठाना पड़ा।

अरे अंकल आप सोए नहीं? मुझे तो बहुत गहरी नींद आई।

रमेश जी ने अपना सामान उठाया और मीता से चलने के लिए कहा-

मीता को साथ लेकर एक होटल में कमरा लिया। रमेश जी जल्दी से जल्दी इस मुसीबत से छुटकारा पाना चाहते थे। नहा-धोकर पंढरपुर की चंद्रभागा नदी का मनोरम दृश्य और नौका विहार करते-करते दोपहर के तीन बज चुके थे। एक मराठी भोजनालय में खाना खाया। सुबह नाश्ते में कांदा (प्याज) पोहा और मिसळपाव खाया था। होटल तक पहुंचते-पहुंचते चार बज चुके थे। सामान लेकर पुणे के लिए रवाना होना था। रात को नींद पूरी न होने रमेश जी को थकावट महसूस हो रही थी। एस टी स्टेण्ड पर चाय पीकर पुणे की बस में बैठ गए। पांच घंटे का सफर था। बस में बैठते ही मीता फिर सो गई।

पुणे पहंुचते-पहुंचते रात के नौ बज चुके थे। बस उतरने के बाद पहले खाना खाया फिर इम्पीरियल होटल की तरफ कदम बढ़ा दिए। पिछली बार भी रमेश जी इसी होटल में रुके थे। मैनेजर सीट पर नहीं था। लाउंज में पड़ी कुर्सियों पर रमेश जी और मीता दोनों बैठ गए। रात के साढ़े दस बज चुके थे। मैनेजर शकल से पहचान गया।

मैनेजर ने कहा-अंकल ज्यादा देर तो नहीं हुई?

रमेश जी-नहीं बस 15-20 मिनट हुए हैं। बात को आगे बढ़ाते इतन में मीता भी काउंटर पर आकर खड़ी आ गई। रमेश जी ने दो कमरे बुक करने के लिए कहा, लेकिन मीता ने टोक दिया और कहा-

मीता-अंकल एक ही कमरा ठीक रहेगा। क्यों बिनावजह अतिरिक्त व्यय किया जाए?

मैंनेजर ने मीता की बात का समर्थन किया। रमेश जी की हालत सांप-छछुंदर जैसी थी। मीता को न निगलते बन रहा था, न उगलते। रमेश जी उस घड़ी को कोस रहे थे, जब उन्होंने मजाक-मजाक में गाइड का काम करने के लिए पन्हाला के पर्यटकों को यूं ही कह दिया था। गाईड चाहिए क्या? रमेश जी की आदत थी, रात को सोने से पहले नहाते जरूर थे। वे नहाने चल दिए। जब वे नहाकर बाहर निकले तब तक मीता कपड़े बदल चुकी थी। रमेश जी बिस्तर पर पड़ते ही सो गए। उन्हें पता नहीं चला कब मीता उनके बगल में आकर लेट गई होश तो तब आया जब तूफान और आंधी आकर गुजर गए। आंधी-तूफान के बाद मीता का मेघ आंखों से बरस रहा था। रमेश जी खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे। लाइट आॅन करने का काम मीता ने किया। उसके चेहरे पर कोई शिकायत नहीं थी। वह संतोष के साथ मुस्करा रही थी।

मीता ने कहा-क्या अंकल काहे का टेंशन लेने का जो होना था, वह हो गया।

रमेश जी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उन पर घड़ों पानी पड़ गया हो।

मीता की आंखों से नींद गायब थी। रमेश जी प्रश्नवाचक नजरों से मीता को एक टक देखे जा रहे थे।

मीता के आंखों से मेघ फिर बह निकला। रमेश जी ने गले लगा लिया। उसकी हिचकी कुछ कम हुई। वह संयत होकर कहने लगी-

अंकल मैं अनीस से बहुत प्यार करती थी। अनीस हमारे ही आॅफिस में काम करता था। दिखने में सुन्दर। गोरा चिट्टा, कसा हुआ बदन और वाक पटु इतना कि किसी को भी अपनी बातों से प्रभावित कर लेता। मैं भी प्रभावित हो गई थी। मैं अनीस से एकदम सच्चे वाला प्यार करने लगी थी। मैं नहीं जानती थी वह कौन से धरम का है? मैं तो उसे बस चाहती थी। मैं उससे शादी करना चाहती थी। लेकिन धीरे-धीरे मुझे मालूम पड़ा वह मुझसे शादी नहीं बल्कि फिजीकल होने में ज्यादा इन्टरेस्टेड है। जब उसकी मंशा का आभास हुआ तो एक दिन बड़े बाबू से मिलकर उसके बारे जाना।

बड़े बाबू ने बताया-वह विधर्मी है। बस उस दिन के बाद से मैंने दूरिया बनाना शुरू कर दी। उस आॅफिस को छोड़ दिया, फोन नम्बर बदल लिया। सब कुछ छोड़कर गुूरूग्राम में नयी जाॅब करने आ गई। वह निढाल होकर एकदम रमेश जी की बाहों में सिमट गई। रमेश जी उसको वैसे रहने दिया। कुछ देर बाद वह रमेश जी के पास उसी अवस्था में गहरी नींद में खर्राटे ले रहे थे। जैसे तूफान के बाद अथाह शांति का आभास होता है।

पुणे के सिंहगढ़ के किले में वह उसी भाव से अंकल-अंकल कहते हुए हाथ पकड़ कर आगे खींचते हुए चल रही थी। उसी के आग्रह पर रमेश जी दो दिन तक पुणे में उसी होटल में रुके रहे।

रमेश जी दिल्ली आ गए थे। वे मीता को भूलना चाह रहे थे। अचानक एक दिन वे शाम की चाय पी रहे थे कि मीता ने दरवाजे पर दस्तक दी। पत्नी ने बताया मीता आई है। आकर बड़े चहक कर मिली। पत्नी को आंटी कहते हुए गले से लिपट गई। आंटी आप दाल बाटी बहुत बढ़िया बनाती हो मैं कल शाम को जाउंगी, मुझे दालबाटी खाना है।

मीता देर तक आंटी से बातेें करती रही। शाम को पूड़ी सब्जी खाने के बाद बातें करते-करते रात के ग्यारह बज चुके थे। रमेश जी की पत्नी ने व्यंग्यात्मक मुस्कराते हुए मीता से पूछा-

क्यों मीता अंकल के साथ सोएगी क्या? बिस्तर लगा हुआ है?

वह जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी?

मीता ने कहा-नहीं आज मैं आपके पास सोउंगी। बहुत सी बातें करनी हैं।

रमेश जी ने बीच व्यवधान डालते हुए कहा-मीता, मैंने तेरी आंटी को सब कुछ बता दिया है।

मीता-मैं वो आंटी के बिस्तर लगाने और सोने वाली बात से समझ गई थी।

दूसरे दिन मीता दोपहर को चली गई। रमेश जी अपने आपको काफी रिलेक्स महसूस कर रहे थे। उसके बाद मीता महीने में एक दो-बार आती। मीता के आने से रमेश जी को अच्छा लगता। वह घर के सदस्य के रूप में समाहित हो गई थी।

मीता आज आई तो उसके साथ एक लड़का था। उसने बेझिझक घर में घुसते हुए अंकल-अंकल इधर आओ एक सरप्राइज है आपके और आंटी के लिए।

मीता के साथ विनीत नाम का युवक मुस्करा रहा था। हम दोनों पति-पत्नी ड्राइंग रुम में बैठे औपचारिक रूप से बातचीत करने की सोच रहे थे।मीता आदत के अनुसार शुरू हो गई-

मीता-आंटी आपने पूछा नहीं ये कौन है? ये विनीत है। मेरे ही आॅफिस में काम करता है। बड़ा नेक दिल इन्सान है। जानवरों से प्यार करता है शायद इसीलिए मुझसे भी प्यार करने लगा है। हम लोग अगले महीने कोर्टमेरिज करने वाले हैं।

रमेश जी के चेहरे पर हल्के तनाव के भाव उभरे। लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं। विनीत की जेब में हाथ डालकर उसका आधारकार्ड, पेनकार्ड सब कुछ उलटकर टेबल पर रख दिया। मीता एक बार बोलना शुरू कर दे तो चुप कराना मुश्किल होता है। वह कहने लगी। ये उसी दिन से प्यार करने लगा था, जिस दिन मैंने ज्वाइन किया था। इसको अपनी बात कहने में समय लगा और मुझे इसे परखने में। बस इस खुशखबरी को शेयर करने चली आई। हां अंकल-आंटी कोर्ट मेरिज में मेरी ओर से आप दोनों गवाह होंगे। एक बात और इस विनित को मैंने अपना जीवन खोल कर बता दिया है। पन्हाला किले से लेकर इम्पीरियल होटल तक। इससे मैंने कह दिया देख अब भी तू शादी करना चाहे तो कर नहीं तो अनीस की तरह तू भी मेरी जिन्दगी से निकल। मेरी स्पष्टवादिता पर और अधिक मुग्ध हो गया। अब अंकल आप ही बताइए? सही किया न मैंने?

अनीस ने किया वह सही था?

मैंने जो इम्पीरियल होटल में किया वह सही था?

या इस विनीत ने जो किया वह सही है?

रमेश जी और भी सोच रहे हैं क्या सही है?

रमेश जी की पत्नी ने कहा-बीती को बिसार दे आगे की सुध ले। Short Hindi Story

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