Hindi Kahani : गरीबी इंसान को क्याक्या दिन नहीं दिखाती. सुष्मिता ने ऐसी गुरबत देखी थी कि बस अब उस ने ठान ली थी कि जो करना है अकेले ही करना है. सुष्मिता ने स्टोव पर चाय का पानी चढ़ाया और नौब घुमा कर फ्लेम को जरा सा कम किया. पानी में यंत्रवत चीनी व चायपत्ती डालते उस के हाथों का उस के दिमाग में चलती सोचों से कहीं कोई सामंजस्य नहीं था. दिमाग के घोड़े अपनी ही दिशा में दौड़ रहे थे. जतन से जमा की गई अपनी कीमती बचत का बड़ा हिस्सा वह ब्यूटीपार्लर का सामान खरीदने में खर्च कर चुकी थी. उस का सामान पैकिंग खुलने का और उस के हाथ अपना टैलेंट दिखाने का इंतजार कर रहे थे. अभी तक एक भी क्लाइंट की कौल नहीं आई थी.

जिस पार्लर में वह काम सीखती थी वहां एक बड़ी कालोनी की मैडम काम करवाने आती थी. उसे सुष्मिता का काम बहुत पसंद था और वह उस के अलावा किसी से काम नहीं करवाती थी. उसी मैडम ने सुष्मिता की मदद करने का वादा किया था और कहा था कि वह अपनी सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप पर उस का नंबर डाल देगी. फिर सोसाइटी की महिलाएं उसे अपने घर पर मेकअप का काम कराने के लिए बुलाने लगेंगी. एक बार जो भी महिला उस से काम करवा लेगी, वह उसे बारबार बुलाएगी, इस बात का विश्वास मैडम को था. उस ने नंबर पोस्ट कर के सुष्मिता को बता भी दिया था.

तभी से उस की नजर फोन के स्क्रीन पर टिकी थी. लेकिन अब तक एक भी कौल नहीं आई. पता नहीं मैडम ने नंबर डाला भी है या उस का मन रखने के लिए यों ही बोल दिया. गरीबी की बंजर भूमि में सुष्मिता भरोसे के बाग लगाए भी तो कैसे. मेहनत का दामन पकड़ वह दो कदम चलती है, उस का बुरा समय तब तक वापस चार कदम चल चुका होता है. जब घर का किराया, बेटे की फीस और पेट की आग हर वक्त मुंहबाए खड़ी हो और आमदनी एक धेले की भी न हो तो सूखे आश्वासन का कोई क्या करे, उसे कौन से अकाउंट में जमा करे और कौन सी बुक से उस भरोसे के चैक काटे, सुष्मिता की सोच हवा के रथ पर सवार थी.

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