Udaipur Files : आजकल हमारे गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 3 महीने में जातीय जनगणना कराए जाने की बातें जोरशोर से की जा रही हैं. गृहमंत्री ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में कहा कि यह कानून पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान करने के लिए बनाया गया है न कि नागरिकता छीनने के लिए.

दूसरी ओर हमारी सरकार ने मुसलमानों की वक्फ बोर्ड की जमीनें हथियाने पर कानून बनाया. इस से देशभर में मुसलमान भड़क गए और भाजपा भगवाधारियों को खुश करने में लगी रही. इसी का फायदा उठा कर कुछ कट्टरपंथियों ने मुसलमानों को भड़काना शुरू कर दिया और कहना शुरू कर दिया, ‘सिर कलम से जुदा.’ इस का असर यह हुआ देशभर में मुसलिमों द्वारा छिटपुट हिंसा भी की गई.

इसी के तहत 28 जून, 2022 को उदयपुर के एक 40 साल के दरजी कन्हैयालाल की बेरहमी से हत्या कर दी गई. यह ह्त्या धार्मिक कट्टरता के चलते हुई. यह एक ऐसी हत्या थी जिस ने पूरे देश को झकझोर दिया. हत्यारों ने घटना का वीडियो बनाया और उसे औनलाइन वितरित कर दिया. आरोपी थे मोहम्मद रियाज अख्तर और गौस मोहम्मद.

कन्हैयालाल उदयपुर के धानमंडी इलाके में दरजी की दुकान चलाते थे. उन का परिवार दुकान और रोजमर्रा की जिंदगी में ही उलझ रहता था. लेकिन एक सोशल मीडिया पोस्ट ने उन की जिंदगी बदल कर रख दी. उन्होंने भाजपा नेता रहीं नूपुर शर्मा के समर्थन में एक पोस्ट डाली थी. कन्हैया लाल ने सोशल मीडिया अकाउंट पर पैगंबर मोहम्मद साहब पर एक विवादित पोस्ट शेयर कर दी थी. इस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई तो पुलिस ने कन्हैयालाल को गिरफ्तार कर लिया. धमकियां मिलने पर उन्होंने सुरक्षा की मांग भी की थी.

28 जून, 2022 को 2 युवक रियाज अख्तर और गौस मोहम्मद कन्हैयालाल की दुकान पर कपड़े सिलवाने आए और बहाने से कन्हैयालाल को बुला कर धारदार हथियार से उन की हत्या कर दी.

आरोपियों को गिरफ्तार कर मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी गई. यह मामला अभी जयपुर की अदालत में लंबित है. हाईकोर्ट ने फिल्म निर्माताओं से जवाब भी मांगा है.

‘उदयपुर फाइल्स’ बस इसी घटना पर बनाई गई फिल्म है. इसे ‘ताशकंद फाइल्स’, ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘केरला फाइल्स’, ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ जैसी कैटेगरी में गिना जा सकता है. बौलीवुड में इन जैसी फिल्मों को बनाने वाला और देखने वाला एक तबका हाल के वर्षों में उभरा है. इन फिल्मों का सिंपल सा जोड़गणित है. धार्मिक और राजनीति से देश में उभरी भावनाओं पर फिल्म बनाओ, इस में प्रचार पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ता, थोड़ा सत्ता समर्थक बन जाओ, इस से फिल्म टैक्सफ्री करवा लो. ऐसी फिल्में विवादित होती हैं तो चर्चाओं में बन ही जाती हैं.

‘उदयपुर फाइल्स’ जल्दबाजी में बनाई गई फिल्म दिखाई देती है. फिल्म को दर्शक इसलिए भी नसीब नहीं हुए क्योंकि हालफिलहाल में ही यह घटना घटी है और अधिकतर लोग इस घटना के क्रमबद्ध तरीके से वाकिफ हैं. इन घटनाओं को ड्रामेटिक अंदाज में पहले ही कई न्यूज चैनल तमाम एआई माध्यमों से दिखा चुके हैं. वहीं, इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो नया जान पड़ता है.

दरअसल, यह बात इस फिल्म के निर्देशक भी जानते हैं मगर उन्होंने बनाई है क्योंकि वे इस घटना से उपजे सांप्रदायिक तनाव और भावों का फायदा उठाना चाहते हैं. वैसे भी, आजकल सच्ची घटनाओं पर फिल्में बनने का दौर चल पड़ा है, इस में निर्देशक और पटकथा लेखक को मेहनत कम ही लगती है.

फिल्म में कहीं भी इस बात का संकेत नहीं दिया गया कि इस की जड़ भारत में तेजी से बढ़ रही सांप्रदायिक राजनीति है, जिस का जिम्मेदार मौजूदा सत्तापक्ष है. वह अलगअलग समुदायों को आपस में भड़काने वालों को आश्रय दे रहा है.

इस से पहले भी कई मौबलिंचिंग की घटनाएं घटीं, जिस में दूसरे समुदाय के लोगों को गौरक्षकों द्वारा टारगेट किया गया.

फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ टाइप बनाने की कोशिश की गई है. हालांकि फिल्म में बहुत सारे कट लगाए गए हैं. फर्स्ट हाफ तो खराब है, इंडिया, पाकिस्तान जरूरत से ज्यादा किया गया है, जो अखरता है. सैकंड हाफ में कहानी हिलाती है. सपोर्टिंग कास्ट काफी खराब है, सिर्फ कन्हैयालाल वाले सीन जानदार हैं. गाने बेकार हैं. कहानी फिल्म के साथ इंसाफ नहीं करती.

विजय राज ने बढ़िया ऐक्टिंग की है. उस के एक्सप्रैशंस बढ़िया हैं. वे आप को रुला देते हैं. रजनीश दुग्गल का काम भी अच्छा है. निर्देशन साधारण है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.  Udaipur Files

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