Industrial Crisis : औपरेशन सिंदूर के बाद लुधियाना की औद्योगिक इकाइयों में मजदूरों का संकट गहराया है. जानिए कि कैसे पलायन ने हौजरी, साइकिल और औटो पार्ट्स इंडस्ट्री को ठप कर दिया है और फैक्ट्री मालिक अब गांवगांव जा कर मजदूरों को मनाने में लगे हैं.

कभी पंजाब की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली लुधियाना सिटी आज मजदूर संकट से जूझ रही है. 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान और पीओके में की गई एयरस्ट्राइक (औपरेशन सिंदूर) के बाद हालात तेजी से बदले. सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील माने जाने वाले इस क्षेत्र से मजदूरों का भारी पलायन हुआ जिस से औद्योगिक गतिविधियां लगभग ठप हो गई हैं.

भारत का मैनचैस्टर थमाथमा सा

लुधियाना को ‘भारत का मैनचैस्टर’ कहा जाता है क्योंकि यह हौजरी, टैक्सटाइल, औटो पार्ट्स और साइकिल निर्माण का मुख्य केंद्र है. 30 अप्रैल, 2025 तक यहां 45,000 फैक्ट्रियों में करीब 12 लाख मजदूर कार्यरत थे. लेकिन औपरेशन सिंदूर के बाद मजदूरों में युद्ध का भय इस कदर समाया कि 25 मई तक यह संख्या घट कर मात्र 8 लाख रह गई.

फैक्ट्रियों पर ताले

पंजाब की 553 किलोमीटर लंबी सीमा पाकिस्तान से सटी है, जो अमृतसर, गुरदासपुर, फाजिल्का जैसे सीमावर्ती जिलों से हो कर गुजरती है. लुधियाना के इन जिलों के पास होने के कारण यह सुरक्षा संकट का केंद्र बन गया. पाकिस्तानी ड्रोन लुधियाना के आसमान में देखे गए, जिस से मजदूरों के मन में डर और गहरा गया.

डर का माहौल

पाकिस्तान ने हालांकि केवल 4 दिनों बाद ही यानी 10 मई, 2025 को सीजफायर की गुहार लगाई और संघर्षविराम लागू हुआ लेकिन जो मजदूर एक बार घर लौट गए उन्होंने वापस आने से इनकार कर दिया. उन का डर अभी भी बना हुआ है. वे स्थानीय रोजगार या अन्य सुरक्षित शहरों में काम करने को प्राथमिकता दे रहे हैं.

फैक्ट्री मालिकों पर दोहरी मार

उत्पादन ठप : मजदूरों के अभाव में उत्पादन रुक चुका है. साइकिल से ले कर हौजरी और औटो पार्ट्स तक, हर उद्योग प्रभावित है.

बढ़ता आर्थिक दबाव : बिजली बिल, बैंक कर्ज की किस्तें, रद्द और्डर और अटकी सप्लाई चेन इन सब के चलते फैक्ट्री मालिक भारी आर्थिक दबाव में हैं.

मजदूरों को मनाने की कोशिशें

फैक्ट्री मालिकों ने अपने मैनेजरों को उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के गांवों में भेजा है ताकि वे वहां मजदूरों को मना सकें. मजदूरों को एडवांस सैलरी, इंक्रीमैंट, मुफ्त राशन और यात्राभत्ता जैसी सुविधाएं औफर की जा रही हैं. फिर भी, मजदूर लुधियाना लौटने को तैयार नहीं.

किस इंडस्ट्री पर कितना असर

साइकिल इंडस्ट्री
इकाइयों की संख्या : 5,000.
मजदूरों का पलायन : 50,000.
उत्पादन : पहले 5,000 साइकिल प्रतिदिन, अब घट कर 3,000.

औटो पार्ट्स इंडस्ट्री
फैक्ट्रियां : 400.
मजदूर पहले : 25,000, अब केवल 15,000.
काम प्रभावित : पैकिंग से डिस्पैच तक.

हौजरी-टैक्सटाइल इंडस्ट्री
इकाइयां : 75,000.
मजदूर : पहले 6 लाख, अब केवल 4 लाख.
असर : रंगाई, बुनाई और तैयार माल का उत्पादन ठप.
यह केवल मजदूरों की नहीं, सरकार की नीति की भी हार है.

मजदूरों का लुधियाना से पलायन सिर्फ युद्धभय से उत्पन्न संकट नहीं है, यह सरकार की औद्योगिक नीति और मजदूर सुरक्षा उपायों की विफलता का संकेत भी है. अगर मजदूरों को असुरक्षा से बाहर निकालने के लिए समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो लुधियाना की छवि एक औद्योगिक महानगर से एक खाली होते औद्योगिक कब्रगाह में बदल सकती है.

लुधियाना की हालत बताती है कि किसी भी शहर की औद्योगिक मजबूती सिर्फ मशीनों से नहीं, बल्कि मजदूरों के भरोसे से बनती है. मजदूर ही हैं जो उद्योगों के पहियों को खींचते हैं, इस श्रम बल को फिलहाल रिप्लेस नहीं किया जा सकता. युद्ध की परिस्थिति भले ही निकल गई हो लेकिन डर और अनिश्चितता अभी भी बनी हुई है. यदि सरकार और उद्योग जगत मजदूरों के मन से यह डर निकालने में सफल न हुए तो लुधियाना की पुनर्बहाली एक लंबा व चुनौतीपूर्ण सफर सा होगा.  Industrial Crisis

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...