Entertainment : यह अच्छी बात है कि आजकल बौलीवुड फिल्मकारों का ध्यान बच्चों की फिल्में बनाने पर गया है. लगता है, मारधाड़ वाली व मसाला फिल्मों से फिल्मकार उकता गए हैं. कई फिल्में तो घाटे में भी रही हैं जबकि दूसरी ओर बच्चों की फिल्में बनती भी कम पैसों में हैं और ये फिल्में सीधी, सच्ची, सरल होती हैं जो न सिर्फ बच्चों को भाती हैं, उन के परिवार वालों को भी आकर्षित करती हैं. अभी हाल ही में आई बच्चों की फिल्म ‘चिडि़या’ ने दर्शकों का दिल जीत लिया है. इस के अलावा ‘स्टेनले का डब्बा’, ‘उड़ान’, ‘मैं कलाम हूं’, ‘बुधिया सिंह,’ ‘चिल्लर पार्टी’ ‘चक दे इंडिया’ फिल्मों ने भी बच्चों का खासा मनोरंजन किया था.
आमिर खान की 2007 में आई ‘तारे जमीं पर’ तो काफी हिट रही. इस फिल्म ने 98.48 करोड़ रुपए कमाए. यह एक इमोशनल फिल्म थी जिस का नायक डिस्लेक्सिया नाम की बीमारी से जूझ रहा था. इस फिल्म को 2008 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.
अब आमिर खान ने कई साल बाद ‘तारे जमीं पर’ से मिलीजुलती फिल्म ‘सितारे जमीं पर’ बनाई है. इस में आमिर खान बहुत से डिसेबल्ड बच्चों के कोच बने हैं. इस फिल्म को फिल्म ‘चैपियंस’ का रीमेक बताया जा रहा है. यह फिल्म डाउन सिंड्रोम पर है. इस में दिखाया गया है कि स्पैशली एबल्ड बच्चे नौर्मल बच्चों से काफी अलग होते हैं. वे भी सामान्य बच्चों की तरह रहना चाहते हैं, वे नहीं चाहते कि कोई उन्हें दया की नजर से देखे.
आमिर खान ने इस फिल्म में डाउन सिंड्रोम की ओर दर्शकों का ध्यान खींचा है. फिल्म काफी इमोशनल है. यह कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है. फिल्म में कोई भाषणबाजी नहीं है. फिल्म में हास्य है तो पीड़ा भी है और फिल्म में सब से बढ़ कर सच्चाई है.
फिल्म हमें यह एहसास कराती है कि जिन्हें हम ‘मंगोल’ या पागल कहते हैं, वे ही हमें इंसानियत का मतलब समझते हैं. फिल्म सोचने पर मजबूर करती है कि कभी हमारे नजरिए में है कि हम ऐसे बच्चे को एबनौर्मल मानने लगते हैं. आमिर खान ने समाज की इस सच्चाई को दिखाया है.
फिल्म के निर्देशक आर एस प्रसन्ना एक ऐसी फिल्म ले कर आए हैं जो दिल को छू लेती है. फिल्म में कोई खलनायक नहीं है. एक अहंकार से भरा असिस्टैंट कोच आमिर खान (गुलशन अरोड़ा) सस्पैंड हो जाता है, क्योंकि वह अपने बौस को मार देता है. वह नशे में एक पुलिस वैन से टकरा जाता है. सजा के तौर पर उसे कम्युनिटी की सेवा करना होता है. उसे 3 महीने तक स्पैशली डिसेबल की एक टीम को बास्केटबौल सिखाना होता है.
गुलशन इस जौब को स्वीकार करता है लेकिन उसे नहीं पता कि उसे उस से बड़ी कोचिंग मिलने वाली है. शुरुआत में उसे यह सजा लगती है लेकिन यह धीरेधीरे उस की सोच, भाव और जीवन बदल देती है. गुलशन की अनिच्छा और फिर स्वीकृति भावनात्मक सच्चाई को सामने लाती है जो हमें भी खुद का आईना लगता है.
2018 की मूल स्पैनिश फिल्म चैंपियंस, जिस पर यह फिल्म आधारित है, वेलेंसिया प्रांत में एडेरेस बास्केटबौल टीम से प्रेरित थी जिसे बौद्धिक विकलांगों के लिए बनाया गया था. यहां अमेरिकी बास्केटबौल कोच कौन जोंस की सच्ची कहानी थी. 1980 में जोंस को शराब पी कर गाड़ी चलाने के लिए दोषी ठहराया गया और बौद्धिक रूप से अक्षम लोगों के लिए बास्केटबौल टीम के मुख्य कोच के रूप में सामुदायिक सेवा करने की सजा सुनाई गई थी.
फिल्म में आमिर खान के साथ जेनेलिया देशमुख नायिका की भूमिका में है. वैसे, यह एक स्पोर्ट्स कौमेडी ड्रामा फिल्म है. मगर पिछली फिल्म ‘तारे जमीं पर’ की अगली कड़ी नहीं है. आमिर खान ने गुलशन के किरदार को संतुलित तरीके से निभाया है. उस की पत्नी जेनेलिया देशमुख का अपनापन गुलशन के जीवन को इमोशनल बनाता है.
असली सितारे फिल्म में हैं 10 न्यूरो डाइवर्जैंट अभिनेता, जिन की ऐक्टिंग दिल छू लेने वाली है. निर्देशन बहुत बढि़या है. फिल्म के इन न्यूरो डाइवर्जैंट कलाकारों को देख कर आप का भी नजरिया बदल जाएगा.