Stories For Kids :कहानियां न सिर्फ बच्चों का एंटरटेंमेंट करती हैं बल्कि उन की सोचने की शक्ति को भी मजबूत करती हैं. आज सोशल मीडिया के दौर में कहानियों को लिए अनेकों माध्यम हैं. लेकिन समस्या यह है कि दिन ब दिन इन की भाषा का स्तर छिछला और भद्दा होता जा रहा है. बच्चे ऊटपटांग भाषा सीख रहे हैं.

कंचन हैरान थी कि उस का चार साल का बेटा रोहन कैसेकैसे डायलौग बोलने लगा है. अगर कंचन किसी बात के लिए डांट दे तो मुट्ठियां भींच कर बोलता है – ‘तेरी तो…. मैं आप को छोडूंगा नहीं…. ‘ फिर हवा में हाथ घुमा कर शक्ति एकत्रित करने की एक्टिंग करता है. कंचन को पहले तो उस के इस एक्ट पर हंसी आई. उस की मासूमियत पर वह रीझ गई, लेकिन फिर वह सोचने लगी कि कहीं स्कूल में साथ के बच्चे तो ऐसी भाषा नहीं बोलते या ऐसी हरकतें तो नहीं करते.

जल्दी ही कंचन के सामने इस का खुलासा हो गया. दरअसल दिन में कुछ समय रोहन मोबाइल फोन पर या टीवी पर अपने मनपसंद कार्टून चैनल्स देखता है. जो हिंदी में डब किए होते हैं. इन कहानियों के पात्र बेहद छिछली भाषा में अपनी बात करते नजर आते हैं. मिकी माउस, टौम एंड जेरी, डोनाल्ड डक, सुपरमैन, बैटमैन जैसे किरदार जब हिंदी में डायलौग डिलीवरी करते हैं तो वह भाषा बड़ी ही आक्रामक और बेहूदी सुनाई पड़ती है. जब कि इन का अंग्रेजी वर्जन काफी अच्छा है.

बच्चों के लिए जो हिंदी की कहानियां टीवी या सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हैं, उन में भाषा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. कुछ कहानियों में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जो बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं. इस से उन्हें भाषा के सही अर्थ को समझने में तो दिक्कत होती ही है, वे उस बातचीत को सीख कर अपने बड़ों के साथ अनजाने में ही भद्दा व्यवहार करते हैं.

कहींकहीं इन कहानियों व कार्टूनों में गालियों का प्रयोग भी हो रहा है. हालांकि ये हल्की गालियां हैं फिर भी मासूम मस्तिष्क पर उन का बहुत नैगेटिव प्रभाव देखा जा रहा है.

कुछ कहानियों में वाक्यों की संरचना बहुत जटिल होती है, जिस से बच्चों को उन्हें समझने में कठिनाई होती है तो कुछ कहानियों में भाषा का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाता है, जिस से बच्चों को कहानी के अर्थ को समझने में दिक्कत होती है.

गौरतलब है कि कहानियां न केवल बच्चों को नए शब्द सीखने का अवसर देती हैं, बल्कि उन्हें विभिन्न स्थितियों में उपयोग करने का अवसर भी देती हैं. बच्चे कहानी सुनाने के जरिए स्वस्थ पारस्परिक कौशल सीखते हैं. बच्चे डर, दुख या खुशी का अनुभव करने वाले पात्रों के बारे में कहानियां सुन कर अपनी भावनाओं को पहचानना और उन से निपटना सीखते हैं.

कहानियां बच्चों को काल्पनिक संसार में ले जाती हैं. याद रखना चाहिए कि बालमन बहुत ही कोमल होता है. इस पर जरा सा आघात भी बहुत गहरे जख्म करता है. इसलिए बच्चा स्क्रीन पर देखी जा रही कहानियों और कार्टूनों में किस तरह के शब्दों को सुन रहा है इस पर नजर रखी जानी चाहिए.

ईशा का बेटा पांच बरस का है. जब ईशा की नौकरी लगी तो वह बेटे को अपनी सास के सुपुर्द कर के काम पर जाने लगी. सास बूढ़ी थी. वह पूरे समय पोते के साथ खेलकूद नहीं सकती थीं और न ही हर वक्त उस को कहानियां सुना सकती थीं. तो उन्होंने अपने मोबाइल फोन पर उस को बच्चों की कहानियां और कार्टून दिखाने शुरू कर दिए.

कुछ समय बाद ही ईशा ने महसूस किया कि उस का बेटा सोते वक्त दांत किटकिटाता है और हवा में हाथपैर मारता है. पहले तो ईशा ने सोचा कि उस के पेट में कीड़े हैं. उस ने बच्चे को कीड़े की दवा खिलाई. मगर उस की हरकतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. वह अकसर रात में हाथ पैर चलाने लगता और दांत किटकिटाने लगता था. जब कि पहले वह बड़े आराम से पूरी रात सोता था. ईशा ने अपने फैमिली डाक्टर को बच्चे की यह परेशानी बताई. उन्होंने छूटते ही कहा – क्या सोनू मोबाइल फोन देखता है? ईशा ने हामी भरी तो डाक्टर ने कहा कि तुरंत मोबाइल फोन देखना बंद करवाओ.

दरअसल मोबाइल फोन पर बच्चों की कहानियों और कार्टूनों में सिर्फ मारपीट, गोली बंदूक, दौड़ना पकड़ना, एकदूसरे को मारना और तेज आवाज में चीखना चिल्लाना भरा पड़ा है, जिस का बहुत बुरा असर बच्चों के दिलदिमाग पर पड़ रहा है. सोते वक्त वह सपने में यही सब देखते और अनुभव करते रहते हैं.

प्रेम भावनाओं, मेलमिलाप, दोस्ती और रिश्ते की भावना इन कहानियों से लुप्त हो चुकी हैं. यही वजह है कि अब ज्यादातर स्कूलों में ऐसे सेशन चल रहे हैं जहां बच्चों और उन के पेरैंट्स की काऊंसलिंग होती है, ताकि उन के बच्चे जो फोन के एडिक्ट हो गए हैं, स्क्रीन से दूर हों और अच्छी भाषा में छपी हुई किताबें पढ़ने का शौक उन के भीतर जगाया जा सके.

छोटे बच्चों को कहानियां सुनाने का बहुत महत्व है. बच्चों के भावनात्मक विकास के लिए कहानी सुनाना बहुत जरूरी है. मगर वह सीधी, सरल और अच्छी भाषा में लिखी कहानियां होनी चाहिए. कहानियों के माध्यम से, बच्चे खुशी और उत्साह से ले कर डर और उदासी तक, विभिन्न भावनाओं का अनुभव और समझ पाते हैं. जैसेजैसे वे कहानी के पात्रों से जुड़ते हैं, वे अपनी भावनाओं को अधिक स्पष्ट रूप से पहचानना और व्यक्त करना शुरू करते हैं.

अच्छी भाषा में लिखी कहानियां बच्चों को उन के आसपास की दुनिया के बारे में सिखाने का एक शक्तिशाली साधन हैं. जब बच्चे कहानियां सुनते हैं या पढ़ते हैं, तो इस से उन्हें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों के बारे में सीखने में मदद मिलती है क्योंकि वे नए विचारों से परिचित होते हैं और अपनी रचनात्मक सोच का अभ्यास करते हैं.

कहानियां ज्ञान, समझ और मनोरंजन प्रदान करती हैं, साथ ही बच्चों की कल्पना को भी विकसित करती हैं. कहानी पढ़ने या सुनाने से बच्चों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता भी समृद्ध होती है. जब कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दिखाई जाने वाली कहानियों में उत्तेजना पैदा करने के लिए घटिया शब्दों का इस्तेमाल भरभर के किया जा रहा है. इस से बच्चों के व्यवहार में आक्रामकता और जिद्दीपन बढ़ रहा है.

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