RSS : महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी अपने परदादा की तरह गंभीर व्यक्ति हैं और नपेतुले शब्दों में बोलते हैं. केरल में उन्होंने एक जगह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जहर की संज्ञा दे दी. भाजपा और आरएसएस के लोग उन के इस कथन पर आगबबूला हो गए. उन की गाड़ी रोकी गई और उन्हें गालियां दी गईं.

किसी संस्था के बारे में जिस के पैर अब बुरी तरह जम गए हों और जो देश की हर संस्था में घुस चुकी हो, उस के प्रति इस तरह के शब्द बोलना एक खतरनाक काम है और निरर्थक भी. खतरनाक इसलिए कि संस्था के अंधसमर्थक कुछ भी कर सकते हैं और निरर्थक इसलिए कि इस तरह के अपशब्दों से इस तरह की संस्थाओं का कुछ बिगड़ता नहीं है.

हिंदू, ईसाई, इसलाम, बौद्ध धर्म इसी कारण पनपे और आज भी जीवित हैं क्योंकि उन्होंने अपनी जड़ें इतनी गहराई तक फैला ली हैं कि कुछ टहनियों को तोड़ने से कोई लाभ नहीं होता. ये कीकर के जंगल हैं जो सूखे में फैलते हैं, बरसात में तो ऊंचे होते हैं और सर्दी को आसानी से बरदाश्त कर लेते हैं. इन से कोई फलफूल नहीं मिलता. इन के पत्ते खाए नहीं जा सकते, इन की लकड़ी से मकान नहीं बनते.

सभी धर्मों ने आरएसएस जैसी बीसियों संस्थाएं बना रखी हैं जो अपनेअपने धर्म को फैलाने, फलनेफूलने देने का पूरा अवसर देती हैं. सभी धर्मों की नीति एक ही होती है कि एक खातापीता वर्ग संस्थाओं को मिलने वाले चंदे व दान के सहारे फलताफूलता रहे और निठल्ले, निकम्मे मगर वाकपटु, सौम्य, सभ्य दिखने वाले लोग मजे की जिंदगी जीते रहें. कहीं कोई पादरी, मौलवी, पंडा, शिशु भूखा नहीं रहता. हर धर्म का स्थल महल जैसा होता है, कुछ का तो किलों जैसा होता है. हरेक में सैकड़ों भक्त होते हैं जो स्थल के मालिक की धन और मन से ही नहीं, तन से भी सेवा करते हैं और उन के लिए मरने व किसी को भी मारने को तैयार रहते हैं.

तुषार गांधी इस तरह की संस्था के बारे में दो शब्द बोल कर न तो भूकंप ला सकते हैं और न कोई सामाजिक सुधार खड़ा कर सकते हैं. उलटे, ये शब्द भक्तों को एक होने का मौका दे देते हैं देखो, हम पर आक्रमण हो रहा है, एक हो जाओ वरना जो सुखसुविधाएं दान के पैसे से मिल रही हैं, वे मिलनी बंद हो जाएंगी.

तुषार गांधी खासा तार्किक बोलते व लिखते हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम को जिंदा रखने वाले इक्केदुक्के बचे लोगों में से वे हैं. लेकिन उन की बात का न कोई असर होगा और न उन्हें बहस पर बुलाया जाएगा. भक्त ऐसा कोई अवसर तुषार गांधी को नहीं देंगे कि जिस से वे स्पष्ट कर सकें कि उन्होंने जो कहा, वह क्यों और कैसे सच है.

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