Senior Citizens : बुजुर्गों की बढ़ती आबादी छोटे होते परिवारों के लिए एक समस्या भी बन रही है. जिन घरों में बुजुर्ग भी साथ रहते हैं वहां औरतों को कई तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं. न तो वह औफिस मैनेज कर पाती हैं न ही घर के बुजुर्ग. ऐसे में एक ही औप्शन बचता है, वृद्धाश्रम. लेकिन बुजुर्गों को वृद्धाश्रम भेजना कहां तक सही डिसिजन है?
2011 में हुई जनगणना के अनुसार देश में बुजुर्गों की संख्या 10.4 करोड़ थी. NSO के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021 में देश में बुजुर्गों की आबादी 13 करोड़ 80 लाख थी जो कि अगले एक दशक में यानी साल 2031 तक 41 फीसदी बढ़ कर 19 करोड़ 40 लाख हो जाएगी और अनुमान है कि 2050 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी 31.9 करोड़ हो जाएगी.
बुजुर्गों की यह बढ़ती आबादी छोटे होते परिवारों के लिए एक समस्या भी बन रही है. पुराने जमाने में बड़े परिवार हुआ करते थे. संयुक्त परिवारों में कई लोग साथ रहते थे और मिल कर बुजुर्गों की देखभाल किया करते थे. उस दौर की सामाजिक स्थिति यही थी लेकिन पिछले कुछ दशकों से परिवार लगातार छोटे होते जा रहे हैं.
इस बीच औरतों की स्थिति में भी बदलाव आया है. औरतें जौब कर रही हैं, बिजनेस कर रही हैं, मर्दों के साथ कंधा मिला कर चल रही हैं. आज की औरतें घर में रह कर चौकाबर्तन करना पसंद नहीं कर रहीं. यह औरतों की आजादी का दौर है इसलिए यह दौर पहले से बेहतर है लेकिन जिन घरों में बुजुर्ग भी साथ रहते हैं वहां औरतों को कई तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं.
बुढ़ापा सभी के जीवन में आता है. यह जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है. जो लोग अपने बच्चों की परवरिश में अपना जीवन खपा देते हैं जब उन्हें बुढ़ापे में अपनी देखभाल की जरूरत पड़ती है तब बच्चों के पास समय नहीं होता. बच्चे अपनी जिंदगी की जद्दोजहद में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि उन के लिए घर के बुजुर्ग बोझ बन जाते हैं लेकिन इस का दूसरा पहलू भी है. बुजुर्ग लोगों को सब से ज्यादा इमोशनल सपोर्ट की जरूरत होती है और उन की यह भावनात्मक अपेक्षाएं बढ़ती चली जाती हैं. नौकरीपेशा लोगों के पास इतना समय नहीं होता कि वो बुजुर्गों की अपेक्षाएं पूरी कर सकें.
बेटी के घर का पानी नहीं पी सकते
पुरुषवादी व्यस्था में लड़कियां पराई समझी जाती हैं. भारतीय बाप तो बेटी के घर का पानी पीने से भी परहेज करते हैं इस मानसिकता के कारण बेटों पर ही अपने पेरैंट्स की देखभाल की जिम्मेदारी होती है.
यही कारण है कि भारत में पेरैंट्स अपना बुढ़ापा बेटों के साथ ही गुजारना चाहते हैं. हैंडबुक औफ एजिंग की स्टडी के अनुसार 80% लोग अपने बुढ़ापे में बेटे के साथ रहना चाहते हैं. 2012 UNFPA ने भारत के 7 राज्यों में सर्वे किया जिस में 50% बुजुर्ग ही अपने बेटेबहू के साथ रह रहे थे.
क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट प्रियंका श्रीवास्तव कहती हैं कि “ज्यादातर बुजुर्ग पेरैंट्स बेटियों के साथ इसलिए नहीं रहना चाहते क्योंकि उन्हें बेटी में फाइनैंशियल और इमोशनल सिक्योरिटी नजर नहीं आती, जो उन्हें बेटों को देख कर मिलती है. पेरैंट्स शादीशुदा बेटी के साथ चाह कर भी सहज नहीं रह पाते जब कि लड़कियां इमोशनल होती हैं और वे पेरैंट्स की मजबूरी और परेशानी बेटों से बेहतर समझती हैं”
बेटों के साथ बुढापा बिताने की इस मानसिकता में सब से बड़ी समस्या यह है कि बेटे अपने पेरैंट्स के देखभाल की जिम्मेदारी अपनी पत्नियों पर डाल देते हैं. जो औरतें हाउसवाइफ हैं वो इस जिम्मेदारियों को पूरी तरह निभाती भी हैं लेकिन जो औरतें जौब कर रहीं हैं उन के लिए पति के पेरैंट्स की जिम्मेदारी संभालना आसान नहीं होता.
मनोज के पिता वैजनाथ की उम्र 82 साल थी. मनोज और उस की वाइफ श्रुति दोनों नोएडा में रहते थे और दोनों ही जौब करते थे. दोनों की दो बेटियां थीं. रिंकी और पिंकी. रिंकी उज्बेकिस्तान में रह कर एमबीबीएस कर रही थी और पिंकी बैंगलोर में रह कर एमबीए की पढ़ाई कर रही थी. ऐसे में घर के बुजुर्ग की देखभाल श्रुति और मनोज के लिए एक बड़ी चुनौती थी. श्रुति जौब पर रहती तो उसे अपने ससुर वैजनाथ की ही चिंता लगी रहती.
वैजनाथ जी की थोड़ी भी तबियत बिगड़ने पर श्रुति को औफिस से छुट्टी लेनी पड़ती और पूरे दिन उन की देखभाल करनी पड़ती. श्रुति के साथ मनोज भी काफी परेशान हो चुका था इसलिए दोनों ने पास के वृद्धाश्रम में बात की और वैजनाथ जी को वृद्धाश्रम में भेज दिया. वहां उन्हें समय पर दवाइयां मिलती. देखभाल होती और खाना वगैरह भी समय पर मिलता. अपने जैसे बहुत से लोगों के बीच वह भी काफी बेहतर फील करने लगे. दोनों पतिपत्नी वीकैंड पर वृद्धाश्रम जाते और वहां से वैजनाथ जी को साथ ले कर पास के पार्क में समय बिताते. महीनेदोमहीने पर उन्हें साथ ले कर कहीं घूमने चले जाते.
वैजनाथ जी के वृद्धाश्रम जाने के बाद श्रुति को बहुत आराम मिला. अब वह निश्चिंत हो कर जौब पर जाती और घर आने के बाद बेहद सुकून महसूस करती लेकिन अपने घर के इकलौते बुजुर्ग को वृद्धाश्रम में भेज देने से मनोज के रिश्तेदार बेहद नाराज थे. वो कहने लगे कि “देखो ये लोग कितने खुदगर्ज हैं एक बुजुर्ग की सेवा नहीं कर सके उन्हें वृद्धाश्रम में फेंक दिया. जिंदगीभर वैजनाथ ने संघर्ष किया बेटे को पढ़ाया लिखाया, उस की शादी की अब वही बेटा अपने बाप को वृद्धाश्रम में डाल आया.”
वृद्धाश्रम या ओल्ड एज होम को ले कर हमारे समाज में बहुत सी धारणाएं बैठी होती हैं. जिन लोगों के बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में होते हैं उन्हें ले कर समाज का नजरिया अच्छा नहीं होता. लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.
सासससुर की सेवा कौन करे
सत्संगों में बाबा लोग औरतों को अकसर सासससुर की सेवा करने के पुण्य समझाते हैं और इस तरह के प्रवचनों से मर्द लोग बेहद खुश होते हैं. दरअसल, सत्संगों से निकलने वाले इस तरह के विचार औरतों को गुलाम बनाए रखने के हथकंडे होते हैं. क्या कोई बाबा मर्दों को अपने सासससुर की सेवा करने का पुण्य समझाता है? तमाम तरह की परंपराओं के साथ बुजुर्गों की सेवा का भार भी औरतों के कंधों पर डाला गया है ताकि औरतें पारिवारिक जिम्मेवारियों के बोझ तले दबी रहें.
मुस्लिम औरतों को भी बचपन से इसी तरह के संस्कार दिए जाते हैं उन्हें सासससुर की सेवा के बदले जन्नत में इनाम का झांसा दिया जाता है और औरत इस झांसे में फंस कर अपनी जिंदगी खपा देती हैं लेकिन उसे बदले में कुछ नहीं मिलता. समाज औरत की इस सेवा को औरत का फर्ज मान कर चलता है.
फिरदौस अपने अब्बू की इकलौती संतान थी. फिरदौस की अम्मी अरसा पहले गुजर चुकी थी. तीन साल पहले फिरदौस की शादी नसीम से हुई. शादी के बाद फिरदौस अपने ससुराल दिल्ली आई तो कानपुर में फिरदौस के अब्बू बिल्कुल अकेले पड़ गए. फिरदौस की ससुराल में उस के शौहर के अलावा बूढ़े ससुर थे. वो अपने ससुर का ख्याल अपने अब्बू की तरह रखती थी लेकिन कानपुर में उस के अपने अब्बू की सेवा के लिए कोई नहीं था.
फिरदौस के अब्बू को घुटनों में तकलीफ थी. अब्बू से फोन पर जब भी बात होती फिरदौस परेशान हो जाती. एक दिन फिरदौस ने नसीम से कहा- नसीम, मैं सोच रही हूं कि अपने अब्बू को कानपुर से दिल्ली बुला लूं और एम्स में उन के घुटने का इलाज करवा दूं ताकि उन्हें चलनेफिरने में होने वाली तकलीफ से निजात मिले. फिरदौस की बात सुन कर नसीम बोला- “तुम्हारे अब्बू अकेले रहते हैं तो तुम उन्हें वृद्धाश्रम में क्यों नहीं भेज देती वहां उन का इलाज भी हो जाएगा और अकेलापन भी दूर होगा.”
फिरदौस को नसीम से ऐसी बात सुनने की उम्मीद नहीं थी उसे गुस्सा आ गया और वह गुस्से में तमतमाते हुए नसीम से बोली- “मैं यहां रह कर तुम्हारे बूढ़े अब्बू की खिदमत में अपनी जिंदगी गंवा दूं और मेरे अब्बू को तकलीफ है तो उन्हें वृद्धाश्रम में भेज दूं. मैं शादी के बाद जौब करना चाहती थी लेकिन तुम्हारे अब्बू की वजह से मैं ने जौब नहीं किया ताकि उन्हें तकलीफ न हो अगर मेरे अब्बू वृद्धाश्रम जा सकते हैं तो तुम्हारे अब्बू क्यों नहीं जा सकते?”
फिरदौस की बात सुन कर नसीम को भी गुस्सा आ गया. उस ने फिरदौस के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और बोला- “तुम औरत हो और सासससुर की खितमत करना तुम्हारा फर्ज है तुम्हे अपने बाप की चिंता है तो निकल जाओ यहां से और चली जाओ अपने बाप के पास.”
फिरदौस को अपने शौहर से ऐसी उम्मीद नहीं थी लेकिन बात उस के स्वाभिमान पर आ गई थी इसलिए वो शाम की ट्रेन से ही कानपुर के लिए निकल गई. कानपुर के प्राइवेट हास्पिटल में उस ने अपने अब्बू का ट्रीटमैंट करवाया और अपने अब्बू के पास रह कर कानपुर में ही जौब करने लगी इस बीच नसीम को अपनी गलती का एहसास तो हुआ लेकिन वो चाहता था कि फिरदौस खुदबखुद दिल्ली चली आए लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
अब घर में बूढ़े बाप की खितमत नसीम के लिए मुश्किल था. अपने अब्बू के चक्कर मे वह जौब भी ठीक से नहीं कर पा रहा था. नसीम ने अपनी बहन से बात की तो उस ने भी अब्बू को अपने पास रखने से मना कर दिया आखिरकार नसीम को नजदीकी वृद्धाश्रम में अपने अब्बू को भेजना पड़ा.
वृद्धाश्रम क्यों जरूरी हैं ?
भारत में बुजुर्गों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से वृद्धावस्था पेंशन की व्यवस्था है. यह अलगअलग राज्यों में 600 रुपए से 1000 रुपए तक हर महीने होती है लेकिन सवाल उठता है कि बुजुर्गों की बड़ी आबादी को ध्यान में रखते हुए क्या ये रकम पर्याप्त हैं?
यह सच है कि बुजुर्गों के लिए परिवार से बेहतर कोई जगह नहीं. परिवार में अपनों के बीच रह कर बुजुर्ग अपनी आयु से ज्यादा जी लेता है लेकिन स्थितियां बदल रही हैं और इन बदलती परिस्थितियों मे वृद्धाश्रम की अहमियत बढ़ रही है लेकिन वृद्धाश्रम के मामले में समाज का नजरिया आज भी नकारात्मक ही है.
हमारा समाज बदलाव को सहजता से नहीं लेता. बुजुर्गों के मामले में आज भी पारंपरिक सोच कायम है जब कि इस से बहुत सी समस्याएं पैदा हो रही हैं और यह समस्याएं महिला ही झेल रहीं हैं. आज भी हमारा पुरुषवादी समाज महिलाओं को इतनी आजादी देने के पक्ष में नहीं है कि वह सासससुर की देखभाल की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए. वृद्धाश्रम वक्त की जरूरत है इस बात को भारतीय समाज हजम नहीं कर पा रहा लेकिन शिक्षित और विकसित समाजों में वृद्धाश्रम की अहमियत समझी जा रही है.
फिनलैंड में बुजुर्गों की स्थिति
फिनलैंड दुनिया का सब से खुशहाल देश हैं. वर्ल्ड हैपीनेस इंडेक्स में नंबर-1 पर आने वाला यह देश अपने बुजुर्गों की देखभाल के मामले में भी नंबर वन है. सिनियर सिटीजन को दी जाने वाली बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और सोशल सिक्योरिटी सिस्टम के कारण यहां लोगों की लाइफ एक्सपैटेंसी 84 साल तक पहुंच गई है.
फिनलैंड में 60 साल से अधिक उम्र का हर शख्स ओल्ड एज पेंशन का हकदार होता है. फिनलैंड 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों को ओल्ड एज पेंशन के तौर पर हर महीने 1888 यूरो देता है जो कि भारतीय रुपए में एक लाख 65 हजार रुपए है. इस के अलावा, सरकार की ओर से बुजुर्गों को फिजिकली और सोशली एक्टिव रखने के लिए भी कई तरह के कदम उठाए जाते हैं.
फिनलैंड की आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 27 फीसदी से अधिक है. ओल्ड एज होम को बढ़ावा देने की जगह वहां का प्रशासन जहां तक संभव हो पाता है बुजुर्गों को उन के घर पर ही हैल्थ केयर, मेडिकल चेकअप और बाकी सुविधाएं मुहैया कराता है. ताकि यहां के बुजुर्ग लोग अपने घरों में ही आराम से रह सकें. इस के लिए स्थानीय एजेंसियां उन के घर की, सीढ़ियों की, इंटीरियर को भी आ कर डिजाइन करती हैं ताकि बुजुर्गों को घर में दिक्कतों का सामना न करना पड़े.
इतनी फैसिलिटीज और स्कीम के अलावा फिनलैंड में दुनिया में सब से ज्यादा ओल्ड एज होम भी बने हैं जहां तमाम तरह की सुविधाओं के साथ बुजुर्गों के फिट रहने और खुश रहने के लिए तमाम तरह के साधन मौजूद हैं.
भारत में हम बुजुर्गों के लिए सरकार की ओर से इस तरह की सुविधाओं की उम्मीद नहीं कर सकते. 600 या 1000 रुपए प्रतिमाह की पेंशन दे कर सरकार अपनी जिम्मेवारी छुड़ा लेती है. सामाजिक तौर पर बुजुर्गों के लिए हमदर्दी तो होती है लेकिन बुजुर्गों को सहूलत और सकून देने का कोई समाधान नहीं होता. इस अव्यवस्था में औरतों का सब से ज्यादा शोषण होता है. सासससुर की सेवा के नाम पर औरतें बंध जाती हैं और अपने जीवन का कीमती समय इस संस्कार को ढोने में लगा देती हैं.
भारत में कुल 728 वृद्धाश्रम हैं और इन 728 वृद्धाश्रमों में एक करोड़ अस्सी लाख बुजुर्ग रहते हैं. हैरानी की बात है कि दुनिया के सब से शिक्षित और खुशहाल देश फिनलैंड में सब से ज्यादा वृद्धाश्रम हैं तो भारत के सब से शिक्षित और सब से विकसित राज्य केरल में सब से ज्यादा 182 वृद्धाश्रम हैं.
इस से वृद्धाश्रम को ले कर जो नकारात्मक सोच बनी हुई है उस की पोल खुल जाती है. फिनलैंड और केरल इस बात का उदाहरण हैं कि वृद्धाश्रम या ओल्ड एज होम वक्त की जरूरत है और शिक्षित समाज की पहचान भी.
वृद्धाश्रम का संचालन वृद्ध लोग ही करें
ज्यादातर वृद्धाश्रमों का संचालन एनजीओज करते हैं. इन वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों की देखभाल, मैनेजमेंट और केयरटेकर के लिए सरकार की कोई खासा गाइडलाइंस नहीं होती. कई ओल्ड एज होम तो सिर्फ डोनेशन इकट्ठा करने के लिए ही चलाए जाते हैं. बुजुर्गों को इन वृद्धाश्रमों में अपनापन फील नहीं हो पाता. शहरों में जगह की कमी के कारण छोटी जगहों में भी वृद्धाश्रम चल रहे हैं जो बुजुर्गों के लिए किसी जेल से कम नहीं हैं. घर के एक कमरे में खुशी से रहने वाले बुजुर्ग का एक एकड़ में बने वृद्धाश्रम में दम घुटने लगता है.
बुजुर्गों की केयर करना बच्चों का काम नहीं है. यह एक हुनर है. यह स्किल की बात है. भावनात्मक लगाव जो अपने परिवार के बीच मिलता है वो वृद्धाश्रम कभी नहीं दे सकते लेकिन वृद्धाश्रमों का मैनेजमेंट यदि बुजुर्गों के हाथों में हो और केयरटेकर भी 65 से ऊपर के हों तो इस से बड़ा फर्क पड़ सकता है.
छोटा बच्चा स्कूल जाने से कतराता है और शुरुआत में बहुत परेशान करता है लेकिन स्कूल का वातावरण घर जैसा हो और टीचर उस से मां जैसा बर्ताव करें तो स्कूल में बच्चे का मन लगने लगता है. बुजुर्ग होने पर लोग भी बच्चे जैसा हो जाते हैं. उन्हें वृद्धाश्रम के नाम से भी डर लगता है लेकिन वृद्धाश्रम में घर जैसा वातावरण हो और केयरटेकर बुजुर्गों की भावनाओं से जुड़ जाएं तो वृद्धाश्रम में उन का मन लगने लगता है.
वृद्धाश्रम का चयन कैसे करें
जब तक संभव हो अपने बुजुर्ग की देखभाल करें. अपने बुजुर्गों के साथ इमोशनल जुड़ाव कायम रखें. उन से बातें करें. महीने दो महीने में उन्हें ले कर कहीं आसपास घूम आएं. उन्हें सुबह नजदीक के पार्क तक साथ ले जाएं. बच्चों को बुजुर्गों के साथ वक्त बिताने के लिए प्रेरित करें और जब ऐसा लगने लगे कि आप के बुजुर्ग की देखभाल के चक्कर में आप या आप के घर की औरत पिस रही है तब ही वृद्धाश्रम का ख्याल दिल में लाएं.
वृद्धाश्रम में भेजने से पहले अपने बुजुर्ग को विश्वाश में लीजिए. उन्हें अपनी समस्या बताइए. उन से कहिए कि आप की बेहतर देखभाल के लिए ही आप ऐसा सोच रहे हैं. भावनात्मक रूप से आप के बुजुर्ग के लिए फैसला लेने में थोड़ी मुश्किल तो जरूर होगी लेकिन आप उन्हें भरोसा दिलाएंगे तो वे मान जाएंगे.
आप जिस भी शहर में रहते हो वहां नजदीक के वृद्धाश्रम में विजिट कीजिए. माहौल देखिए और मैनेजमेंट भी. यह भी ध्यान दीजिए की वृद्धाश्रम का एरिया कितना बड़ा है. टहलने के लिए पार्क हो. बैठने के लिए बैंचे और कुर्सियां पर्याप्त मात्रा में हो. वृद्धाश्रम का कंपाउंड जेल की तरह बंद न हो वरना आप के बुजुर्ग को जल्द ही घुटन महसूस होने लगेगी.
वृद्धाश्रम भीड़भाड़ वाले इलाके में न हो वरना पूरे दिन शोर की आवाजें आती रहेंगी. वृद्धाश्रम के स्टाफ के बर्ताव पर गौर कीजिए और उन से बातें कीजिए. स्टाफ का व्यवहार बहुत मायने रखता है. पहली विजिट से यदि आप संतुष्ट हैं तो शुरुआत में पंद्रह दिनों के लिए अपने बुजुर्ग को यहां भेजिए और इस बीच लगातार उन से मिलने आते रहिए.
बच्चे हों तो उन्हें भी साथ ले कर अपने बुजुर्ग से मिलने पहुंचिए. पंद्रह दिनों के बाद एक सप्ताह के लिए उन्हें फिर से घर ले आइए और इस तरह लगातार छह महीनों तक कीजिए. अपने जैसे कई लोगों के बीच रह कर उन्हें अपने परिवार से दूरी का एहसास कम होने लगेगा. धीरेधीरे उन्हें वृद्धाश्रम में रहने की आदत हो जाएगी.