BJP : हिंदू धर्म के आश्रम सिद्वांत मानते हैं कि 75 साल के बाद संन्यास आश्रम शुरू हो जाता है. इस के बाद मोक्ष की दिशा में जाना चाहिए. पौराणिक कथाएं बताती हैं कि दशरथ ने जिंदा रहते हुए अपना राजपाट राम को सौंपने का फैसला कर लिया था. सवाल यह है कि नरेंद्र मोदी क्या करेंगे ?

2024 लोकसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिटायरमैंट को ले कर कहा था कि नरेंद्र मोदी 15 सिंतम्बर 2025 को 75 साल के पूरे हो जाएंगे. भाजपा की रिटायरमैंट पौलसी के तहत वह रिटायरमैंट लेंगे. इस के बाद वह अमित शाह को प्रधानमंत्री बना देगें. अरविंद केजरीवाल इस के जरिए भाजपा के वोटर को भ्रम में डालना चाहते थे जिस से वह पीएम मोदी के नाम पर वोट न दें. अरविंद केजरीवाल ने वोटर से कहा कि मोदी का वोट दे कर क्या लाभ वह तो 2025 में रिटायर हो जाने वाले हैं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 400 पार का नारा दिया था. जबकि वह 240 सीटे ही ला सकी थी ऐसे में राजनीतिक हलको को यह उम्मीद थी कि अब भाजपा के भीतर मोदी बनाम योगी, योगी बनाम अमित शाह, संघ बनाम भाजपा जैसे कई खेमेबंदी दिखने लगेगी. तब पार्टी मे भीतरघात का लाभ विपक्ष को होगा जैसे 2004 में हुआ था. जैसे विधानसभा चुनाव के नतीजे आए विपक्ष वापस नरेंद्र मोदी के रिटायरमैंट को मुद्दा बनाने लगा.

क्या है 75 साल में रिटायरमैंट की कहानी

75 पर रिटायरमैंट की बात नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कही थी जब भाजपा में प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी को ले कर सवाल उठ रहे थे. भाजपा नेता अमित शाह ने कहा कि 75 साल के बाद कोई प्रधानमंत्री नहीं बन सकता भाजपा में ऐसा कोई कानून नहीं है’.

भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी 2009 से पीएम पद की रेस में थे. उन को ‘पीएम इन वेटिंग’ कहा जा रहा था. इस के पीछे की वजह यह थी कि 1999 में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार बनी तो अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री बने थे. भाजपा में उस दौरान ‘अटल-आडवाणी और जोशी’ की तिकड़ी का राज चलता था. अटल के प्रधानमंत्री बनने के बाद आडवाणी खेमा विद्रोही मुद्रा में रहता था.

संतुलन बनाने के लिए आडवाणी को डिप्टी पीएम बना दिया गया था. तभी से आडवाणी को ‘पीएम इन वेटिंग’ कहा जा रहा है. इस का मतलब यह था कि जैसे ही अटल हटेंगे आडवाणी प्रधानमंत्री बन जाएंगे. इस लड़ाई के चलते ही अटल सरकार ने 2004 मे समय से पहले ही लोकसभा के चुनाव करा दिए थे.

अटल बिहारी वाजपेई को इंडिया शाइंनिंग का भ्रम दिखाया गया. अटल खेमे को लग रहा था कि समय से पहले चुनाव होने का लाभ मिलेगा और अटल सरकार बहुमत के साथ चुनाव जीत जाएगी. तब वह किसी दबाव में नहीं रहेगी. ऐसे में आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने का सपना धरा का धरा रह जाएगा. प्रधानमंत्री पद को ले कर भाजपा में खींचतान थी.

2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के खिलाफ गए. पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा. जिस से कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए को सरकार बनाने का मौका मिल गया. डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमत्री बने. 2004 में भी आडवाणी ‘पीएम इन वेटिंग’ रहें. 2009 लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की जीत हुई. लगातार 2 लोकसभा चुनाव में ‘पीएम इन वेटिंग’ रहने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए भी आडवाणी ‘पीएम इन वेटिंग’ मान रहे थे.

ऐसे में भाजपा ने उनके इस भ्रम को दूर करने के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया. तब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे. 2014 का चुनाव भाजपा की नई टीम बिना किसी विवाद के लड़ सके इस के लिए लालकृष्ण आडवाणी सहित बुजुर्ग हो चले नेताओं को दरकिनार कर के ‘मार्गदर्शक मंडल का सदस्य’ बना दिया गया था. उस समय नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 75 साल की उम्र के नेताओं को रिटायरमैंट के बारें में सोचना चाहिए.

रिटायरमैंट के बहाने मोदी को घेरने की तैयारी

तब विपक्षी नेता नरेंद्र मोदी की कही बात को ही हथियार बना कर उन के सामने सवाल खड़े कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार में यह बात कही. लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें घट कर 240 रह गई. उस ने 400 पार का नारा दिया था. विपक्ष को लगा कि नरेंद्र मोदी कीक ताकत घट गई है. ऐसे में भाजपा के भीतर ‘अटल-आडवाणी’ के समय वाला विवाद शुरू हो सकता है.

3-4 माह तक भाजपा और खुद नरेंद्र मोदी खुद कमजोर दिखने लगे थे. चुनावी हार किसी तरह से चेहरे का रंग उतार देती है यह उस समय की भाजपा को देख कर समझा जा सकता है. मोदी ही नहीं भाजपा के फायर ब्रांड नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उतरा हुआ चेहरा दिखाई टीवी पर बार बार दिखाई पड़ता था. विपक्ष इस बात से खुश था कि 10 साल में नेता प्रतिपक्ष का पद राहुल गांधी को मिला है. भाजपा अपने बल पर सरकार नहीं बना पाई. समाजवादी पार्टी तीसरे नम्बर की पार्टी बनी. संविधान और आरक्षण का मुद्दा जीत का हथियार बन गया. 4 जून 2024 को दूसरी आजादी माना जाने लगा. विपक्ष को लग गया कि अब मोदी रिटरयरमैंट ले या न ले उनकी हार तय है.

विपक्ष का बढ़ा हुआ आत्मविश्वास तब टूट गया जब हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में भाजपा जीत गई. विपक्ष खासकर कांग्रेस की हार ने इंडिया ब्लौक के उत्साह को तोड़ दिया. ऐसे में विपक्ष अब नरेंद्र मोदी से खुद यह चाहने लगा है कि वह पद अपने पद से हट जाए. जिस से भाजपा का हराया जा सके. प्रधानमंत्री रहते 11 साल के बाद नरेंद्र मोदी जब नागपुर स्थित संघ मुख्यालय गए तो विपक्ष ने कहा कि नरेंद्र मोदी अपने रिटायरमैंट प्लान को अंजाम पहुंचाने नागपुर गए थे.

संजय राउत ने उठाए सवाल

शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा ‘प्रधानमंत्री मोदी नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय इसलिए पहुंचे थे ताकि वे संदेश दे सकें कि वह सेवानिवृत्त हो रहे हैं. आरएसएस देश के राजनीतिक नेतृत्व में बदलाव चाहता है. मोदी संभवत सितंबर में अपना सेवानिवृत्ति आवेदन लिखने के लिए आरएसएस मुख्यालय गए होंगे.’ महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस को उम्मीद थी कि उन की जीत होगी. यहां जीत भाजपा को मिली. चुनाव के बाद देवेन्द्र फडनवीस मुख्यमंत्री बने.

संजय राउत का जवाब देते महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने कहा ‘प्रधानमंत्री मोदी साल 2029 में चौथी बार प्रधानमंत्री बनेंगे. नेता के सक्रिय रहते उत्तराधिकार पर चर्चा करना भारतीय संस्कृति में अनुचित माना जाता है. अभी इस पर चर्चा का समय भी नहीं आया है. वे कई वर्षों तक देश का नेतृत्व करते रहेंगे. हमारी संस्कृति में जब पिता जीवित हो तो उत्तराधिकार के बारे में बात करना अनुचित है. यह मुगल संस्कृति है जहां पिता के रहते बेटा उत्तराधिकारी बन जाता है.’

यह बात अपनी जगह ठीक हो सकती है कि भाजपा में 75 साल के बाद नेता के रिटायरमैंट को ले कर कोई कानून नहीं है. राजनीति में नेता से उम्मीद की जाती है कि वह अपनी राजनीतिक सुचिता का पालन करें. कांग्रेस प्रवक्ता आकाश जाधव ने कहा कि ‘ये 75 साल की उम्र में रिटायरमैंट की बात खुद पीएम मोदी ने ही की थी. एलके आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को जबरदस्ती रिटायर कर दिया गया. यह एक मर्यादा है. पीएम मोदी पद पर रहें न रहें, यह उन का विषय है. कांग्रेस का इस में क्या लेनादेना. मोदी को अपनी कही बात पर कायम रहना चाहिए.’

भाजपा का पक्ष है कि पार्टी में कहीं भी यह लिखित नियम नहीं है कि इस उम्र के बाद पद पर कोई नहीं रह सकता. 2034 तक पीएम मोदी कहीं नहीं जाने वाले. कोई नेतृत्व परिवर्तन नहीं होगा. भाजपा से अलग राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि 2029 के लोकसभा चुनाव के नतीजे यह तय करेंगे कि क्या होगा ? 2027 में 12 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं इस के पहले राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति का चुनाव है. ऐसे में 2027 से 29 के दो साल काफी अहम रहने वाले हैं. कई फैसले इस को देख कर होंगे.

संन्यास आश्रम को बदल गया समय

नरेंद्र मोदी से रिटायरमैंट की अपेक्षा इस कारण भी की जा रही है क्योंकि वह अपनी बात को जीवन में उतार कर दिखाने वाले नेता हैं दूसरे पौराणिक कथाओं और हिंदू धर्म पर उन का पूरा भरोसा है. उस के अनुसार ही अपनी दिनचर्या को रखते हैं. पौराणिक कथाओं में हिंदू धर्म में जीवन के 4 प्रमुख भाग ब्रह्मचर्य, ग्रृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम बताए गए हैं. प्रत्येक आश्रम 25 वर्षं का होता है. ब्रह्मचर्य आश्रम जन्म से 25 वर्ष तक शिक्षा का समय होता है. गृहस्थ आश्रम 25 से 50 वर्ष तक होता है जिस में सामाजिक विकास हेतु धर्म, अर्थ, काम को प्राप्त करने का समय होता है. वानप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्ष तक होता है जिस में आध्यात्मिक उत्कर्ष हेतु काम करना चाहिए इस के बाद संन्यास आश्रम 75 से 100 वर्ष तक होता है. जिस में मोक्ष प्राप्त करना होता है.

भारतीय जनता पार्टी के नेता, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चैहान ने अपने बेटों की शादी करने के बाद कहा ‘आज से वह गृहस्थ से वानप्रस्थी हो रहे है. अब वह अपना पूरा समय किसानों की सेवा में देंगे.’ शिवराज सिंह की उम्र 66 साल है. जब भाजपा के एक नेता हिंदू धर्म के आश्रम सिद्वांत को मान रहे हैं तो नरेंद्र मोदी को भी इस को मानना ही चाहिए. ऐेसे में नरेंद्र मोदी के उपर दबाव बढ़ गया है.

वैसे आज समाज में लोगों के रिटायरमैंट की उम्र तय है. नौकरियों में 58 साल से ले कर 62 साल तक के अलगअलग नियम है. आज जीवन की लाइन बढ़ रही है. लोग 80-85 साल तक सक्रिय जीवन में रहते हैं. वह भी संन्यास लेने को तैयार नहीं होते हैं. बहुत सारे घरों में इस बात के झगड़े होते हैं. नरेंद्र मोदी के रिटायरमैंट को ले कर जो बात महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने कही कि पिता के रहते उत्तराधिकार नहीं होता. संविधान और कानून भी इस बात को मानता है. घरों में जमीन जायदाद तबतक पुत्र के नाम कर हस्थांतरित नहीं होती जब तक पिता जीवित रहता है. तमाम कारोबारी घरानों को भी देखें तो जब तक पिता सक्रिय होता है पुत्र को पूरा अधिकार नहीं होता है.

पौराणिक कथाओं में राजा अपने जीवित रहते पुत्र का राजपाट सौंप देता था. रामायण में इस बात का जिक्र है कि जब राजा दशरथ जीवित थे. पूरी तरह से सक्षम थे उसी समय उन्होने अपने बेटे राम को राजपाट सौंपने का फैसला कर लिया था. क्योंकि राजपाट चलाने के लिए जिस ताकत और उर्जा की जरूरत होती है वह युवा में ही होती है.

सामान्य घर और बिजनैस में संन्यास लेने की उम्र भले ही न रखी जाए लेकिन जहां मसला राजपाट का होता है वहां तो यह नियम मानने ही चाहिए. कई बार नेता पद के मोह में उम्र की बात का टाल जाते हैं. जिस का खामियाजा जनता को चुकाना पड़ता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस का उदाहरण हैं. उन की आलोचना होने लगी है. विरोधी कहते हैं कि वह बात करतेकरते भूल जाते हैं. राजनीति, बिजनैस और घर अलगअलग मसले हैं. रिटायरमैंट के नियम भी एक से नहीं हो सकते. राजा को अपने जीवन काल में ही राजपाट की जिम्मेदारी सौंप देनी चाहिए जिस से राज्य का सही विकास हो सके. ऐसे में नेताओे को रिटायरमैंट का नियम पालन करना चाहिए.

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