Motivational : यदि व्यक्ति अनुशासित और व्यवस्थित है तो वह बेहतर उत्पादक होने के साथसाथ सफल भी होता है. उस में नेतृत्व क्षमता भी होती है और वह ज्यादा भरोसेमंद होता है.

हर काम एक खास चीज की मांग करता है. उस का नाम है अनुशासन और समर्पण. अपने भीतर आत्मअनुशासन को जाग्रत कर के कोई काम करने का संकल्प करना चाहिए. आत्मअनुशासन अर्थात अपने बिखरे हुए विचारों को एक तरफ लगा देना. आत्मअनुशासन से काम का आरंभ इतना अच्छा हो जाता है कि सफलता तय हो जाती है. एकाग्रता इतनी फलदायक है कि इसे धारण करते ही काम में निखार आने लगता है. एकाग्रता को हम बाजार से नहीं खरीद सकते. यह हम को अपने संकल्प से अपनी इच्छाशक्ति से विकसित करनी होती है. एकाग्रता से आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और आत्मनियंत्रण भी प्राप्त हो जाते हैं.

सकारात्मक चिंतन जरूरी

स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए हैं. वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गए. कलाकार उन्हें अपने स्टूडियो में ले गया और मूर्तियां दिखाने लगा. दिखातेदिखाते एक मूर्ति के सामने आया बोला, ‘यह मेरी नई रचना है.’ इतना कह कर उस ने उस पर से गीला कपड़ा हटाया. फिर मूर्ति को ध्यान से देखा.

उस की निगाह उस पर जमी रही. जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया, ‘इस के कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है.’ उस ने ठीक किया. फिर कुछ कदम दूर जा कर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया. इस तरह एक घंटा निकल गया.

ज्विग चुपचाप खड़ेखड़े देखते रहे. जब मूर्ति से संतोष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया. दरवाजे पर पहुंच कर उस की निगाह पीछे गई तो देखता क्या है कि कोई पीछेपीछे आ रहा है. अरे, यह अजनबी कौन है? उस ने सोचा, घड़ीभर वह उस की ओर ताकता रहा. अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था. वह लज्जा गया, बोला, ‘‘मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना. मैं आप को एकदम भूल ही गया था.’’

ज्विग ने अपनी आत्मकथा में प्रसंग लिखा है, ‘‘उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं में सब से बड़ी क्या और कौन सी कमी थी. शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है जब आदमी अपनी सारी शक्तियां बटोर कर उन को एक ही जगह पर केंद्रित कर देता है.’’

ऐसा भी कहते हैं कि सफलता केवल तब ही मिल पाती है जब हमारे भीतर एक सकारात्मक चिंतन की अविरल धारा चलती है. सकारात्मक विचार अगर स्वभाव में होते हैं तब लक्ष्य साधने में ज्यादा कठिनाई नहीं आती.

उदाहरण के लिए वनवासी एकलव्य की सकारात्मक दूरदृष्टि. उस ने बिना किसी शिकवा और शिकायत के गुरु को साक्षी मान कर धनुर्विद्या सीखनी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप वह एक सर्वोत्तम धनुर्धर बना. यह सकारात्मकता विविधरंगी है- कभी उमंग और तरंग, कभी कल्पनाशीलता, कभी उत्साह, कभी आत्मीयता, कभी समाज के लिए अपनापन, मददगार भाव आदि के रूप में परिलक्षित होती रहती है.

मिशन के प्रति समर्पित विनोबा

कई बार अनुशासन या सकारात्मकता शोर मचा कर अभिव्यक्त नहीं होती. शब्दों से परे और भावनाओं से लबरेज यह सकारात्मकता समुचित दृष्टिकोण वालों के लिए दर्शनीय, मोहक और मौन होती है.

हजारों शब्दों की जगह यही मौन सबकुछ कह देता है. अगर सही विचार हों तो इस अद्भुत सकारात्मक भाव की एक झलक में पूरा जीवन दिख जाता है. एक सफल और संतुष्ट जीवन जो सकारात्मक है वह जीवन के अंधकार में भी उजाला, पराजय में जय और प्रसन्नता तथा अच्छी गति की तरफ ही देखता है और उसे पा भी लेता है. इसे महर्षि विनोबा भावे के जीवन से कुछ इस तरह समझ सकते हैं.

10 साल तक विनोबाजी सारे देश में पैदल घूमते रहे. वे प्यार से उन लोगों से जमीन लेते जिन के पास थी और प्यार से उन्हें दे देते थे जिन के पास नहीं थी. विनोबाजी के पेट में अल्सर था. वह कभीकभी बड़ा दर्द करता था. उन्हें बड़ी हैरानी होती थी पर उन की यात्रा नहीं रुकती थी. एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डाक्टरों ने उन की जांच की. अच्छी तरह से देखभाल कर के उन्होंने विनोबाजी से कहा, ‘‘आप की हालत गंभीर है. आप 8 महीने आराम करें.’’

विनोबाजी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हालत अच्छी नहीं है तो आप ने 4 महीने क्यों छोड़ दिए? अरे, आप को कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करो.’’ डाक्टरों ने कहा, ‘‘आप पैदल चलना छोड़ दें.’’

विनोबाजी ने उसी लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे पेट में दर्द है, पैरों में नहीं.’’ विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नहीं की. लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होंने जवाब दे दिया, ‘‘सूर्य कभी नहीं रुकता, नदी कभी नहीं ठहरती, उसी अखंड गति से मेरी यात्रा चलेगी.’’

उन की इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर उन्हें कोई 45 लाख एकड़ भूमि मिल गई. यह अनुशासन है ही इतना चमत्कारी कि इस से आत्मरुचि, आत्मनियंत्रण, स्वावलंबन भी उत्पन्न होते हैं.

रचनात्मक बनाता अनुशासन

अनुशासन का अभ्यास हम को रचनात्मक, आनंददायक और उत्पादक जीवन जीने के योग्य बनाता है. अनुशासन से हम समय प्रबंधन की कला भी सीख लेते हैं. समय प्रबंधन हम को किसी भी चुनौती को समझने तथा उस से निबटने में दक्ष व कुशल बनाता है. कुल मिला कर अनुशासन हमारी भीतरी ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है जो हम को जीवन में बेहद आगे ले जा सकता है.

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