Movie Review : रेटिंग – एक स्टार
हाल ही में अमिताभ बच्चन ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि लोग उन के प्रतिभाशाली बेटे अभिषेक बच्चन को नेपोकिड के नाम पर हाशिए पर ढकेल रहे हैं. बौलीवुड से जुड़े ढेर सारे लोग मानते हैं कि अगर अमिताभ बच्चन पिता की बनिस्बत एक कलाकार के तौर पर अभिषेक बच्चन की प्रतिभा का आकलन करते तो शायद उन की प्रतिक्रिया कुछ अलग होती. शुद्ध हिंदी में बात करने के साथ ही भाषा को ले कर हमेशा सही बात कहने वाले अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन को हिंदी से कम प्यार नजर आता है. पिता पुत्री के रिश्ते पर अभिषेक बच्चन पिछले दिनों ‘आई वांट टू टौक’ में नजर आए थे और अब 14 मार्च से प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही पिता पुत्री के रिश्ते पर केंद्रित फिल्म ‘बी हैप्पी’ में भी अभिषेक बच्चन नजर आ रहे हैं.
काश इन दोनों फिल्मों का नाम हिंदी में होता! नाम जब अंगरेजी में हैं, तो स्वाभाविक तौर पर इन दोनों फिल्मों के फिल्मकार पिता पुत्री के रिश्ते और दर्शकों की संवेदना को समझने में विफल रहे हैं. ‘आई वांट टू टौक’ को फिल्म आलोचकों ने पंसद किया था, पर यह फिल्म दर्शकों का मनोरंजन करने में पूरी तरह से विफल रही थी. हर इंसान जानता है कि कैमरा इंसान के अंदर के भावों को भी पकड़ने में सफल रहता है. अभिषेक बच्चन पिछले 25 वर्षों से बेहतरीन कलाकार के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं, इस के बावजूद वह आज भी वहीं हैं, जहां 25 साल पहले थे, ऐसा क्यों? इस पर खुद अभिषेक बच्चन को विचार करना चाहिए.
अफसोस रेमो डिसूजा निर्देशित फिल्म ‘बी हैप्पी’ काफी निराश करती है. रेमो डिसूजा बेहतरीन कोरियोग्राफर थे, हैं और आगे भी रहेंगे, मगर बतौर फिल्म निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा चुके हैं.
फिल्म की शुरुआत एक स्वप्न दृश्य से होती है. एक छोटी बच्ची धरा (इनायत वर्मा ) के डांसर बनने के सपने से. वह सिंगल पेरैंट्स बच्ची है, उस की मां रोहिणी (हरलीन सेठी ) की दुर्घटना में मौत हो चुकी है. धरा का पालनपोषण दो पुरुषों, उस के पिता शिव रस्तोगी (अभिषेक बच्चन) और उस के नाना नादर (नासर) द्वारा किया जा रहा है. खुद को प्रतिभाशाली बताने वाली धरा कोरियोग्राफर मैगी (नोरा फतेही) को अपना आदर्श मानती है. मैगी बच्चों को सब से बड़े डांसिंग रियालिटी शो इंडियाज डांसिंग सुपरस्टार में भाग लेने के लिए प्रशिक्षित करती है. स्कूल के एक डांस समारोह में धरा रतोगी भी डांस करती है, जहां मैगी मैम जज होती हैं. धरा का डांस देख कर मैगी, धारा को मुंबई ले जा कर अपनी अकादमी में ‘इंडियाज सुपर डांसर’ प्रतियोगिता के लिए प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव शिव रस्तोगी के सामने रखती है. पर बैंक कर्मी शिव रस्तोगी इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है. शिव को धरा के डांस करने पर एतराज नहीं है, पर वह चाहता है कि धरा पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दे.
लेकिन धरा ठहरी जिद्दी बेटी. वह बारबार अपनी मृत मां का नाम ले कर अपने पिता को मनाने और भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने के लिए हर संभव कोशिश करती है. वह कहती है, ‘मम्मी होती तो वह मना न करती.’ दूसरी तरफ धरा के नाना अपनी नातिन के प्रति नाना की तरह अपनी प्यारी ड्यूटी निभाते हुए हर कदम पर धरा का साथ देते हैं. वह भी शिव को राजी करते हैं कि धरा को मुंबई ले जाना चाहिए और शिव का ट्रांसफर मुंबई ब्रांच में कर देते हैं.
मुंबई पहुंच कर धरा खुश है. वह डांस सीखने के साथ ही पढ़ाई पर भी ध्यान देती है. ‘इंडियाज सुपर डांसर’ के कई राउंड में वह अपना झंडा गाड़ देती है, पर अंतिम राउंड से पहले ‘फैमिली राउंड’ खत्म होते ही धरा स्टेज पर गिर जाती है. यहीं से कहानी में एक बड़ा मोड़ आता है. पर अहम सवाल यह है कि हमेशा आशा व उम्मीद की बात करने वाली धरा क्या हार मान जाएगी? धरा ‘इंडियाज सुपर डांसर’ बन सकेगी या नहीं? इस के लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी.
मशहूर कोरियोग्राफर फिल्म ‘फालतू’ से फिल्म निर्देशक बने रेमो डिसूजा ने ‘एबीसीडी’ (एनी बडी कैन डांस) और ‘एबीसीडी 2’ जैसी नृत्य आधारित फिल्में निर्देशित की थी. इन फिल्मों में जो कहानी उन्होने परोसी थी, उसी को वह आज तक निचोड़ते आ रहे हैं. बाद में फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ बना कर खुद ही हाशिये पर चले गए.
इस के बाद उन्होने ‘टाइम टू डांस’ का केवल निर्माण किया और अब पूरे पांच साल बाद अभिषेक बच्चन और इनायत वर्मा को ले कर एक असंवेदनशील और बीमारी का मजाक बना देने वाली फिल्म ‘बी हैप्पी’’ले कर आए हैं, जिस के वह केवल निर्देशक नहीं है,बल्कि रेमो डिसूजा ने तुशार हीरानंदानी, कनिष्क देव और चिराग गर्ग के साथ मिलकर लिखा भी है.
फिल्म की कहानी व पटकथा काफी कमजोर है. फिल्म में कुछ भी नयापन नहीं है. पिता व बेटी के बीच रिश्ता भी बहुत हल्कापन लिए हुए हैं, कहीं कोई गंभीरता नहीं है. यह फिल्म महज डांस पर आधारित रियालिटी शो के अलावा कुछ नहीं है.
रेमो डिसूजा ने इस फिल्म के कथानक को नृत्य और प्रतिस्पर्धा के ही इर्द गिर्द सीमित कर इसे टीवी का डांस रियालिटी शो बना डाला. फिल्म में इमोशन का घोर अभाव है. फिल्म की कहानी किरदारों की प्रेरणाओं, भावनाओं और रिश्तों को उजागर करने में इस कदर विफल रहती है, कि दर्शक खुद को फिल्म के साथ जोड़ ही नहीं पाता. क्लामेक्स देख कर दर्शक अपना माथा पीट लेता है कि उस ने इस घटिया फिल्म के लिए अपने दो घंटे से अधिक का समय क्यों बरबाद किया? किसी भी किरदार के जीवन की गहराई तक जाना फिल्मकार ने उचित नहीं समझा.
धरा को बारह तेरह साल की उम्र का बताया गया है, यानी कि वह अपरिपक्व किशोरावस्था में है. मगर वह बातें परिपक्व व बीस साल से बड़ी उम्र की लड़कियों की तरह करती है? धरा अपने पिता शिव के मोबाइल में डेटिंग ऐप डाउनलोड कर उन से जिंदगी में दूसरा प्यार ढूढ़ने के लिए कहती है. फिल्म के एक दृश्य में मैगी का नृत्य को ले कर संवाद है, ‘‘नृत्य पैसे या प्रतिस्पर्धा के बारे में नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के बारे में है.” इस पर यदि निर्देशक ने अमल किया होता, तो फिल्म के लिए अच्छा होता.
फिल्म की कहानी के ऊटी से मुंबई पहुंचते ही फिल्म बिखर जाती है. मुंबई पहुंचते ही लेखक व निर्देशक पिता और बेटी के बीच के रिश्ते की बजाय छोटे बच्चे के डांस रियालिटी शो में भाग लेने और ग्रैंड फिनाले में प्रदर्शन करने तक सीमित हो जाते हैं. सच यही है कि इंटरवल के बाद फिल्म पटरी से उतर कर केवल टीवी का डांस रियालिटी शो बन कर रह जाती है. धरा के जीवन को बदलने वाली मैडिकल इमरजेंसी के दृश्य भी ठीक से उभर नहीं पाते हैं. लेखक व निर्देशक ने तो इंसान के जीवन व मरण को भी मजाक बना दिया है.
इसे एडिटिंग टेबल पर कसा जाना चाहिए था. फिल्म में जौनी लीवर का हास्य का ट्रैक जबरन ठूसा हुआ और भयानक नजर आता है. अगर इस फिल्म से जौनी लीवर के सभी दृश्य हटा दिए जाएं, तो भी कहानी पर असर नहीं पड़ने वाला. इसी तरह फिल्म में गणपति विसर्जन का दृश्य व लंबा गाना है, जो कि फिल्म के प्रवाह व कहानी को बाधित करता है, इसे हटा दिया जाना चाहिए था.
धरा के किरदार में बेबी इनायत वर्मा ही इस फिल्म की असली जान है. इनायत की विचित्रता और आकर्षण से कहानी आप को तुरंत आकर्षित कर लेती है. इनायत अव्वल दर्जे की बाल कलाकार हैं. अपनी पत्नी के खोने का गम सह रहे धरा के पिता शिव रस्तोगी के किरदार में अभिषेक बच्चन ने फिर निराश किया है. उन के अंदर का गुरुर व उन की शारीरिक भाषा उन की मेहनत पर पानी फेर देता है. उन के चेहरे पर भाव नहीं आते. उन के अभिनय से यह बात उभर कर आती है जैसे कि उन्हें रिश्तों की कोई समझ ही न हो. जबकि वह निजी जीवन में स्वयं एक बेटी के पिता हैं. उन्हें कहानियों की भी समझ नहीं है. इस की वजह यह है कि शायद वह हिंदी की बजाय अंगरेजी में सोचते हैं. अभिषेक बच्चन को खुद को नए सिरे से तलाशने की जरुरत है. फिल्म में अभिषेक बच्चन और इनायत वर्मा की कैमेस्ट्री अच्छी बन पड़ी है. इस से पहले दोनों की जोड़ी फिल्म ‘लूडो’ में भी पसंद की जा चुकी है. धरा के नाना नादर के किरदार नासर के एक्टिंग टैलेंट पर तो उंगली उठाई ही नहीं जा सकती. वह हर फ्रेम में जान डाल देते हैं.
धरा की मां के छोटे किरदार में हरलीन सेठी याद रह जाती हैं. डांसर मैगी के किरदार में नोरा फतेही बाजी मार ले जाती है, इस की मूल वजह यह है कि नोरा फतेही मूलतः डांसर हैं और वह कई फिल्मों में आइटम डांस कर अपना जलवा दिखा चुकी हैं. लेकिन सच यह भी है कि नोरा फतेही अच्छा अभिनय नहीं कर पाती. उन्हें अभिनय की बेहतर ट्रेनिंग लेने ओर काम करने की जरुरत है. जौनी लीवर का व्यापक कौमेडी ट्रैक भयानक है.