Religion : एक औरत केरल के एक धर्मगुरु के यहां अपनी मानसिक शांति के लिए जाती थीं. उस धर्मगुरु ने अपने दबदबे का इस्तेमाल कर उन का कई दिनों तक शोषण किया. उन औरत के कोई बच्चा नहीं था और वे पेट से भी हो गईं. आज उन के पास उस घिनौने शोषण की निशानी हैं और वे चुपचाप उसे पाल रही हैं. पति बड़े खुश हैं कि बीवी को शादी के 15 साल बाद बच्चा हो गया है.

ऐसे ही एक और जानने वाले हैं, जिन की पत्नी को तो उन के दोस्त एक ऐसे ही बाबाजी के यहां से बेहद बुरी हालत में छुड़वा कर लाए थे. वे भी उस बाबा की बेहद भक्त हुआ करती थीं. पता चला कि बेहद पढ़ेलिखे अलीम जनाब और उन के 2 भाई उन की पत्नी को एक हफ्ते से घर में कैद कर के अपनी इच्छाएं मिटा रहे थे.

ये ज्यादातर ऐसी औरतें हैं जो घरों में कैद रहती हैं, उन के पति भी खूब धर्म भीरु होते हैं या फिर उन के पास पैसा तो है, पर पत्नी के लिए समय नहीं है. ऐसी औरतों को जन्म से घुट्टी में धर्म पिलाया गया होता है. ये भगवान की महिमा सुनसुन कर बड़ी होती हैं.

कई बार ऐसी औरतें मन की शांति के लिए इन महात्माओं के पास जाती हैं, पर उन के आसपास एक अजीब सी भीड़ होती है. यही वजह है कि ऐसी औरतों को महात्माजी बड़े हीरो टाइप लगने लगते हैं.

यकीन मानिए, इन औरतों का तकरीबन 80 फीसदी तबका वह होता है, जो कभी अपने पति के आलावा किसी और मर्द से शायद जिंदगीभर में 2 घंटे ढंग से बात भी नहीं कर पाया होगा. अब मिल जाते हैं एक हीरो के माफिक बाबाजी जो औरतों से घिरे हैं, बड़ा प्यार लुटा रहे हैं, आश्रम में रुकने का आग्रह कर रहे हैं. इन बाबाओं को कहीं न कहीं अच्छे से पता होता हैं की ग्लैमर दिखा कर इन औरतों को कैसे वश में में करना है.

नामचीन बाबाजी रचाते थे रास

वृंदावन के पास एक बेहद नामचीन बाबाजी, जो अब नहीं रहे हैं, बेहद लंबे थे और रोज रात को रास रचाते थे, मतलब कुछ चुनिंदा जवान औरतों को बेसमैंट के एयरकंडीशनर हाल में खूब सजधज कर आने को कहा जाता था. स्वामीजी अपने कपड़े उतार कर इन औरतों के सामने नाचा करते थे.

आप को यकीन नहीं होगा कि करोड़पति धन्ना सेठों की बहुएं सुदूर कोलकाता और उत्तर प्रदेश से आ कर उन के साथ खुद को उन की प्रेमिका के रूप में नाचने के लिए करोड़ों रुपए की बोली लगाती थीं.

3 साल बाद वापस आई लड़कियां

एक गुजराती बाबाजी एक बार उत्तर प्रदेश गए. वहां एक गरीब पुलिस वाले की लड़कियां उन के चक्कर में फंस गईं. तकरीबन 3 साल के बाद जब वे लड़कियां वापस आईं, तो उन को 2-2 लाख रुपए दे कर वापस भेज दिया गया था. दोनों बहनों का रातोंरात चुपचाप कहीं गांव में ब्याह दिया गया. बाद में पता चला कि वे दोनों बहनें सऊदी अरब के हथियारों के एक सौदागर के पानी के जहाज पर रही थीं. दोनों के गर्भाशय तक निकाल लिए गए थे. जब तक भगवान के नाम पर धर्म के ठेकेदारों की दुकाने चलेंगी, तब तक यह शोषण चलता रहेगा और औरतें यों ही उल्लू बन कर इज्जत लुटाती रहेंगी.

क्या आधुनिक युग में जी रहे हैं हम ?

सवाल उठता है कि क्या हम आधुनिक युग में जी रहे हैं? बिलकुल नहीं. अब लोग कहीं घूमने जाते हैं, तो तीर्थ का बहाना बना देते हैं. एक औरत को अगर मसूरी जाना होता था तो वे बोलती थीं कि हरिद्वार जाना है. मनाली जाना होता था, तो वे बोलती थीं कि मणिकर्ण जाना है. मतलब उन को सारे टूरिस्ट प्लेस के पास के तीर्थ स्थानों पर जाना होता था, ताकि वे खुद को धार्मिक कह सकें.

और तो और आप कह दीजिए कि मुझे आज कुछ मन का खाने बाहर जाना है, तो आप को सौ नसीहतें मिल जाएंगी, पर एक बार कह दीजिए कि मंदिर जा रहे हैं, सत्संग जा रहे हैं, तो कोई नहीं रोकेगा.

हाथरस धार्मिक आयोजन के हादसे में सबसे ज्यादा औरतों की हुई थी मौत

हाथरस, उत्तर प्रदेश में एक धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ के बाद जबरदस्त हादसा हो गया. इस में हादसे की ज्यादा शिकार औरतें हुई थीं. पर क्या आप जानते हैं कि क्यों औरतें ही ऐसे मामलों में ज्यादा मरती हैं?

हाथरस में बाबा नारायण साकार हरि भोला के एक सत्संग में मची भगदड़ में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जिस में ज्यादातर औरतें थीं.

जिस देश में जितने बाबा, उस देश में सिस्टम उतना ही खराब

किसी देश मे जितने ज्यादा बाबा हैं, तो समझिए कि सिस्टम उतना ही खराब है. जो राहत सरकार को अपनी जनता को देनी चाहिए, वह लोगों को नहीं मिलती, तो लोग परेशान हो कर बाबाओं के पास जाते हैं. जितना ज्यादा धर्म और अंधविश्वास का बोलबाला उतनी ही बाबागीरी चमकती है. जितनी पढ़ाई लिखाई, डाक्टरी सेवाओं और रोजगार की बदहाली, उतनी ही बाबाओं की चांदी.

देश को मिली आजादी के बाद शहरों और गांवों में जहां ज्ञान और विज्ञान की चर्चा होनी चाहिए थी, लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए था, इस के उलट अंधविश्वासों के प्रचार और प्रवचनों का रेला आ गया है.

औरतों पर तो सब से ज्यादा गाज गिरती है. यही वजह है कि आज जिस तरह से हमारे देश की औरतें फिर से अंधविश्वासों की तरफ लौट रही हैं, महंतोंबाबाओं की तरफ दौड़ रही हैं और प्रवचनों में भीड़ की शोभा बढ़ा रही हैं, उसे देख कर लगता है कि वे शायद 21वीं सदी में नहीं, बल्कि 12वीं या 13वीं सदी में जी रही हैं.

ससुराल में जब औरत को इज्जत और हिफाजत नहीं मिलती, न मायका ही उन्हें सहारा दे पाता है, तब ऊपरवाले की चौखट बचती है और यहां से शुरू होता है धर्म के प्रति विश्वास और अंधविश्वास का चक्कर.

आसाराम बापू और बाबा राम रहीम के कारनामे

आसाराम बापू और बाबा राम रहीम के कारनामे देखें. बाबा राम रहीम जैसे ढोंगीपाखंडी साधु कुसूरवार पाए जाने के बावजूद आएदिन पैरोल पर रिहा कर दिए जाते हैं. इस पर हमेशा सवाल उठाए जाते रहे हैं, पर आज इन सवालों को भी पीछे धकेला जा रहा है.

सब से बड़ी त्रासदी है कि धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा को औरतें भी समझ नहीं पातीं और इसे समर्थन देती हैं. धर्म भारत की औरतों की कमजोर नब्ज है. महिलाएं पितृसत्ता की वाहक और शिकार दोनों हैं. धर्म औरत को कब्जे में रखने का उपकरण है. औरत को बचना है और आगे निकलना है तो उसे कट्टरवादी धार्मिक सत्ता को नकारना होगा.

कई गांवों में आज भी है ‘सती मैया’ के मंदिर

आज भी कई गांवों में ‘सती मैया’ के मंदिर हैं, जहां औरतें पूजापाठ करती हुई अपने सुहाग को बनाए रखने और भाग्य का दुख नहीं भोगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं. धार्मिक आचार संहिता ने भाग्य को पूर्व जन्मों का फल बताया है, जिस का कठिन प्रायश्चित औरतें करती हैं. पूजापाठ, व्रतउपवास, मंदिरमूर्तियों के समूचे विधिविधान औरतों के जिम्मे है.

ज्यादातर औरतों की जिंदगी में धर्म उन्हें घर के बाहर निकल कर एकदूसरे से मिलने का मौका देता है, इसलिए वे धार्मिक गतिविधियों के लिए घर से बाहर निकलती हैं, एकदूसरे से मिलती, बतियाती और समय बिताती हैं तो धर्म और पितृसत्ता इसे खतरा नहीं समझता.

पर वे ही औरतें जब सामाजिक सरोकार और खुद से जुड़े मुद्दों को ले कर जुटने लगती हैं, तो इसे धर्म और पितृसत्ता दोनों ही खतरनाक घोषित करते हैं, इसलिए कई औरतें पितृसत्ता पर सवाल तो उठाती हैं, पर धर्म का पूरी ताकत से विरोध नहीं करती हैं.

बाबा लोग उन को भविष्य में होने वाली अनहोनी से काफी डरा देते हैं, जिस से बिना तर्क वे उन के बताए रास्ते पर चलने को मजबूर हो जाती हैं. धर्मभीरु होने से औरतें बाबाओं के शोषण की शिकार होती हैं. देश में अब भी एक बड़े तबके में लड़कियों की पढ़ाईलिखाई उन की प्राथमिकता में शामिल नहीं है. तालीम की कमी में लड़कियां अकसर ढोंगी बाबाओं के जाल में फंस कर रह जाती हैं.

आज भी लड़की को अकेले घूमने की मनाही है

इस देश में आज भी लड़की को अकेले स्कूल भेजने, सहेली के घर जाने, बाहर घूमने की मनाही है. आज भी ऐसे घरों की कमी नहीं जो लड़की को सिर्फ मंदिर के लिए ही बाहर जाने देते हैं. लड़की बाहर जाए तो घर के किसी मर्द के साथ वरना नहीं. वजह, सुरक्षा की भावना या फिर यह डर कि लड़की किसी से प्यार न कर बैठे.

ऐसे में वही लड़कियां या औरतें जब इन बाबाओं को अपनी समस्याओं के बारे में बताती हैं, तो वे लोग इन का गलत फायदा उठाते हैं. समाज में बदनामी का डर औरतों को हमेशा सच बताने से रोकता है, इसलिए ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ती जाती है, जिस से जन्म होता है आसाराम, राम रहीम, वीरेंद्र देव दीक्षित जैसे लोगों का. वीरेंद्र देव दीक्षित के दिल्ली में बने आश्रम से कई लड़कियों को बड़ी मशक्त के बाद मुक्त कराना संभव हो पाया था. यह घटना कई दिनों तक सुर्खियों में बनी रही थी.

बाबाओं के आश्रम में लड़कों से ज्यादा तादाद लड़कियों की क्यों ?

ऐसा क्यों है कि बाबाओं के आश्रम में लड़कों से ज्यादा तादाद लड़कियों की होती है? इस की मूल वजह है भारतीय सामाजिक संरचना और घर और घर में फैली पितृसत्ता. इस संरचना में लड़के की अहम भूमिका है. लड़कों को सेवाभाव से दूर रखा जाता है, जबकि लड़की में सेवाभाव वाले सारे गुण बचपन से ही भरे जाते ही हैं, इसलिए बाबाओं के आश्रम में लड़कियों को भेज दिया जाता है. वहां बहलाफुसलाकर, बड़े सपने दिखा कर मोक्ष के बहाने सताने का अंतहीन सिलसिला शुरू होता है.

हैरानी की बात यह है कि लड़कियों को ऐसे डरायाधमकाया जाता है कि वे मुंह से कुछ नहीं बोल पाती हैं. कुछ तो इसी पसोपेश में खुदकुशी तक कर लेती हैं. इस से कभीकभार ही इन बाबाओं का सच सामने आ जाता है, पर होता कुछ नहीं है.

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