Best Hindi Satire : पत्रकार कनछेदी लाल मुख्यमंत्री से रूबरू है . कनछेदी लाल की आज वर्षों की साध पूरी हुई थी. राज्य का धुरंधर मुख्यमंत्री साक्षात्कार के लिए आमने-सामने है. कनछेदी लाल को सुखद अनुभव हो रहा है आत्मा को परम शांति या कहें परमगति मिल गई है.श्रीमान मुख्यमंत्री से उसे बातचीत करनी है, बड़े सौभाग्य से उसे यह मौका मिला है.

कनछेदी लाल बड़े धांसू अखबार नवीस है .पैदा होते ही उन्होंने जन्म दात्री मां से प्रश्न किया- “मां ! तुम्हें आज मुझे पैदा करके कैसी अनुभूति हो रही है ?”फिर पिताश्री की ओर सवाल उछाला, -“मेरे भविष्य के लिए क्या सोच रखा है.”

अब देखिए ! कनछेदी लाल और मुख्यमंत्री आमने सामने बैठे हैं जैसे दो शांत शावक ! एक दूसरे को घूर रहे हों या कहें जैसे दो विशालकाय सर्प या  बब्बर सिंह ! एक दूसरे को घात प्रतिघात के लिए आंखों से आंखें मिलाकर खड़े हो…

कनछेदी लाल के मुंह से बोल नहीं फूट रहे हैं. वह कनछेदीलाल जो लोगों के बात बात में कान काट खाता था इस विशिष्ट मौके पर मौन है . मुंह से बोल नहीं फूट रहे .

दूसरी तरफ श्रीमान मुख्यमंत्री आत्मविश्वास से लबरेज कनछेदी लाल के सामने बैठे हैं .जाने कितने पत्रकार, संपादकों को उन्होंने पानी पिलाया है, यह अब तो उन्हें भी स्मरण नहीं .मगर कनछेदी लाल के बारे में उन्होंने जो रिपोर्ट देखी है वह स्वयं चकित है ऐसा भी होता है अरे यह कनछेदी लाल तो जन्म लेते ही अपने मां बाप से भिड़ गया था. बड़ा खतरनाक खबरैलू है.

मुख्यमंत्री मोहक मुस्कान बिखेरते हुए बोले -“कहो कनछेदी लाल, क्या जानना चाहते हो ?
मानौ पत्रकारिता ध्वस्त होकर चरमरा कर गिर पड़ी हो. पत्रकारिता के माथे पर किसी ने मुद्गर चला दिया हो या पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो. अभी तक का इतिहास रहा है कनछेदी लाल कभी भी प्रश्न का ब्रह्मास्त्र छोड़ने में एक सेकंड भी देर नहीं करते, मगर आज तो श्रीमान मुख्यमंत्री ने बाजी मार ली. कुर्सी को नमन है सत्ता को प्रणाम है.

कनछेदी लाल को आत्मा ने मानौ धिक्कारा -“रे कनछेदी! तू इतना असहाय कब से हो गया. एक मुख्यमंत्री के सामने हथियार डाल दिए थू है तुझ पर .तू तो बड़ा पत्रकार बनता था कहां गया तेरा वह जज्बा जिसमें बड़े धुरंधर धूल में ओटते दिखा करते थे। अरे! यह मुख्यमंत्री, यह सत्ता तो आती जाती रहेगी मगर तुझे यही रहना है जवाब देना होगा.”

अब जब आत्मा जागृत हुई तो कनछेदी लाल ने पत्रकारिता का ब्रह्मास्त्र निकाला-” श्रीमान ! क्या मुख्यमंत्री का काम सिर्फ आईएएस, आईपीएस के तबादले करना ही है ? और कुछ भी नहीं… सप्ताह 15 दिवस में आप यही करते है.”

कनछेदी लाल के पहले प्रश्न से ही श्रीमान मुख्यमंत्री भीतर तक हिल गए.सोचने लगे यह कनछेदीलाल तो हृदय की सच्चाई बयां कर रहा है सच है, मैं और करता ही क्या हूं । इसने तो मेरी नब्ज पर हाथ रखा है मगर मैं भी कोई कम बड़ा खिलाड़ी नहीं, देखना, कैसा प्रतिउत्तर देता हूं .यह सोचते-सोचते श्रीमान मुख्यमंत्री के चेहरे पर मुस्कान तिर आई, बोले, “कनछेदी लाल ! हमारा पहला और आखरी काम प्रशासन के घोड़े पर लगाम रखना है यह कस कर रखने पर ही प्रदेश में अमन चैन कायम रहता है अन्यथा प्रदेश के हालात भयावह हो सकते हैं.”

यह कह कर श्रीमान मुख्यमंत्री सोचने लगे मैंने कैसा उल्लू बनाया इस कनछेदी लाल को. और जब प्रदेश की जनता यह जवाब सुनेगी तो ताली बजायेगी. निरी मूर्ख है यह जनता जनार्दन. हर एक मुख्यमंत्री तो यही करता है मगर क्या स्थिति-परिस्थिति बदलती है, नहीं न ! यह सोच असहाय श्रीमान मुख्यमंत्री ने कंधे झटके और कनछेदी लाल की और असहाय भाव से दृष्टिपात किया .

कनछेदी लाल मन ही मन भांप गए थे, श्रीमान मुख्यमंत्री की बत्ती गुल हो गई है. अपने कंधे पर शाबाशी की काल्पनिक धौल जमाते कनछेदी लाल ने दूसरा प्रश्न दागा- “श्रीमान! आपने शपथ लेते ही प्रदेश की जनता को वचन दिया था की कानून-व्यवस्था कायम रहेगी. मगर वह तो द्रोपदी के चीर की भांती रोज, नित्य प्रति हरण हो रही है.”

श्रीमान मुख्यमंत्री का मुंह सुख गया.ऐसे यक्ष प्रश्न की तो उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह इधर-उधर ताकने लगे यह प्रश्न तो मेरे मन मंदिर में सदैव घंटी बजाता है. यह इस कनछेदी लाल को कैसे खबर हो गई, मगर चेहरे पर मुस्कान ला कर श्रीमान मुख्यमंत्री ने कहा, “हां… यह सच है. मैं आज भी अपने वचन पर कायम हूं मगर यह तो सभी प्रदेशों के हालात हैं. कहां, कानून व्यवस्था के साथ नग्न नाच नहीं हो रहा. दरअसर इसके लिए जनता को कानून का साथ देना होगा .” मुख्यमंत्री यह कह कर इधर-उधर तकने लगे, तो कनछेदी लाल समझ गए चीफ मिनिस्टर अब दूसरे प्रश्न की अपेक्षा कर रहे हैं.
कनछेदी लाल ने अपनी तरकश से तीसरा प्रश्न निकाला और कहा-” श्रीमान मुख्यमंत्री जी ! मैं किसानों की समस्या पर प्रश्न नहीं करता, मैं बेरोजगारों की समस्या और भ्रष्टाचार की बात नहीं करता, मैं आपसे आप की पार्टी के कार्यकर्ताओं के संबंध में यह जानना चाहता हूं कि पार्टी के सैकड़ों हजारों कार्यकर्ता, जिनके पास कोई काम धंधा नहीं है,वह हवा पी कर जिंदा हैं क्या, वह फलते-फूलते कैसे हैं, यह रहस्य है, क्या इसका जवाब आप देंगे.”

श्रीमान मुख्यमंत्री ने मानौ राहत की सांस ली, यह प्रश्न उन्हें बड़ी राहत दे रहा था. उन्होंने सोच लिया कनछेदी लाल को वीआईपी क्षेत्र में एक भूखंड गिफ्ट कर देंगे यह प्रश्न करके उन्होंने पत्रकारिता धर्म का गला दबाने का काम ईमानदारी से किया है. इतने इनाम के हकदार तो अब यह हो जाते हैं .

श्रीमान मुख्यमंत्री ने प्रसन्न भाव से प्रश्न का जवाब दिया फिर कहा चलो ! फिर कभी मिलते हैं… तुम्हारे लिए एक छोटी सी गिफ्ट है जो लेते जाना. उन्होंने पीए की ओर इशारा कर दिया.

कनछेदी लाल मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए. आज पत्रकारिता धर्म का जैसा निर्वाहन किया वह ऐतिहासिक था. ऐसी सफलता तो उन्हें जीवन भर मेहनत करके भी नहीं मिलती जो चार प्रश्न दाग कर मिल गई . मानौ मुख्यमंत्री का साक्षात्कार नहीं था, यह गंगा स्नान था.कनछेदी लाल के कान लाल सुर्ख हो गए थे. वे खुशी-खुशी हाथों में कलम की जगह खंजर लेकर घर की ओर लौटने लगे.

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