ममता मेहता हाय रे फूटी जिंदगी, आई खुशियां भी चली गईं. अच्छीभली सुबह कट रही थी. पत्नी से छिप कर मौर्निंग वाक में दोचार हसीनाओं को देख लिया, एकदो से हंस कर बात कर ली. लेकिन नहीं, तुम्हें तो मेरा खुश होना ही बरदाश्त नहीं, आखिर गलती ही क्या थी? डाक्टर से चैकअप करवा कर निकला तो तनाव दोपहर की धूप की तरह तनमन को झुलसा रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो गया. ऊपर से डाक्टर की बातें, ‘घबराने की कोई बात नहीं है मिस्टर शर्मा, इस उम्र में अकसर ऐसा हो ही जाता है. जरा प्रिकौशन लेंगे तो सब ठीक हो जाएगा.’ इस उम्र में… क्या हुआ है मेरी उम्र को… आज के जमाने में 40 की उम्र कोई उम्र है. जितने भी महान लोग हुए हैं उन्हें महानता, सफलता 40 के बाद ही मिली है. और यह डाक्टर मेरी उम्र का बखान कर रहा है.
यह सब तो आजकल नौर्मल हो गया है. छोटे बच्चों को भी हो जाता है. इस में उम्र की क्या बात है. अब परहेज दुनिया भर के, रिस्ट्रिक्शंस दुनियाभर के, ऊपर से अब उबले, बिना नमक के, खाने की कल्पना मात्र से मु घझेबराहट होने लगी. घर पहुंचा तो सुमि सोफे पर ही बैठी थी. मुझे देखते ही मेरे हाथों से रिपोर्ट खींच कर बोली, ‘क्या हुआ करवा आए चैकअप, क्या कहा डाक्टर ने, सब ठीक तो है न?’ मैं ने कहा, ‘हां, सब ठीक है, बस, थोड़ा ब्लडप्रैशर और कोलैस्ट्रौल बढ़ा हुआ है.’ सुमि की प्रतिक्रिया वही थी जैसी मैं ने सोची थी, ‘हाई ब्लडप्रैशर! कोलैस्ट्रौल! मैं पहले से ही कह रही हूं कि थोड़ा खाने पर कंट्रोल करो, चटपटा खाना बंद करो. मगर नहीं… चटपटा, मसालेदार खाना देखते ही तो जबान चटकने लगती है और कुछ नहीं तो आदमी को अपनी उम्र का तो खयाल रखना ही चाहिए. अब कल से सब बंद.
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लौकी और कच्चे सलाद के अलावा कुछ नहीं.’ मैं चुप बैठा रहा. अपना तो यह निजी अनुभव रहा है कि बरखा, बौस और बीवी वजहबेवजह कभी भी बरस सकते हैं. यह 3 बी ‘बी’ की तरह ही काटने को हमेशा तत्पर रहते हैं. उन मधुमक्खियों से तो आप किसी तरह बच भी सकते हैं पर इन से बचना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. फिर भी मैं ने हलके से प्रतिरोध का असफल प्रयास किया, ‘अरे काहे इतना टैंशन ले रही हो. थोड़ा सा ही तो हाई है. डाक्टर ने कहा है, कभीकभी हो जाता है, परेशान होने की कोई जरूरत नहीं.’ सुमि ने अपने ज्ञान का प्रदर्शन किया, ‘थोड़ेथोड़े में ही कब बड़ा हो जाता है, पता चलता है क्या आप को? पता भी है, वह शक्ति कालोनी वाले सीखी ऐसे ही ब्लडप्रैशर को ‘कुछ नहीं कुछ नहीं’ कहते रहे और यही कहतेकहते एक दिन लुढ़क गए. वे मेरे जामनगर वाले फूफाजी भी यही कहते रहे और कुछ नहीं कुछ नहीं में आम खातेखाते रवाना हो गए.
वे अपने…’ मैं ने बीच में टोका, ‘अब बस भी करो. मेरा ध्यान रख रही हो या डरा रही हो. यह गया वह गया, पर मैं कहीं जाने वाला नहीं हूं अभी, सम?ा. जाओ, चाय बनाओ.’ जातेजाते पलटी, ‘अब आप को कहीं जाना है या नहीं, वह मु?ो नहीं पता, पर अब रोज सवेरे घूमने जरूर जाएंगे, यह सम?ा लीजिए.’ मेरा माथा ठनका, ‘घूमने! सवेरे! दिमाग खराब है तुम्हारा. मैं कहीं नहीं जाने वाला और तुम भी मु?ो परेशान करने की कोशिश मत करना.’ सुमि लड़ने जैसे अंदाज में बोली, ‘हां, कुछ मत करो आप. बस, पड़े रहो और खाते रहो. बढ़ाओ अपना ब्लडप्रैशर, दवाइयों का खर्चा. सारा जमाना कसरत के पीछे पड़ा है, सारा जमाना मौर्निंग वाक के लिए जा रहा है, आप बैठे रहो ऐसे ही. ‘मु?ो पता है आप चाहते ही नहीं हो कि आप की तबीयत ठीक हो. आप बीमार ही पड़े रहना चाहते हैं, लोगों की सिंपैथी लेना चाहते हैं, लेकिन मैं कह देती हूं मैं ऐसा होने नहीं दूंगी. आप अब से पूरे प्रिकौशन लेंगे, मतलब लेंगे. उस में सब से पहले मौर्निंग वाक, सम?ो आप? कल सुबह मौर्निंग वाक पर जाएंगे, मतलब जाएंगे.’
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मैं ने सिर पकड़ लिया, ‘अब यह हिडिंबा मुझे मौर्निंग वाक पर भेजे बिना मानेगी नहीं. ठीक है एकदो दिन जाऊंगा, फिर कुछ न कुछ बहाना बना दूंगा.’ सुबह सुमि ने 5 बजे ही उठा दिया. बड़ी मुश्किल से आंखें मलता, सुस्ताता, अलसाता उठा. घिसटतेघिसटते टेकड़ी पर पहुंचा. वहां पहुंचते ही सारी इंद्रियां सचेत हो गईं. लगा कि फूलों की घाटी में आ पहुंचा हूं. जहां देखो वहां नजारे ही नजारे. जौगिंग करती बालाएं, कसरत करती सुंदरियां, वाक करती तितलियां… हाय, मैं इतने दिन पहले क्यों नहीं आया मौर्निंग वाक के लिए. लोग तो और भी कई थे, हर साइज, हर शेप, हर उम्र के. राष्ट्रीय एकता की ऐसी मिसाल कहीं और न थी. हर धर्म, हर जाति, हर आयु, हर वर्ग के लोग वहां मौजूद थे. पता नहीं सेहत सुधारने या आंखें सेंकने. उस टेकड़ी के गार्डन में तो मेरा दिल गार्डनगार्डन हो गया. एक बड़ी सुंदर बाला को देख कर मेरा दिल उस से बातें करने को मचलने लगा. मेरा हलकाफुलका मन तो तुरंत उछल कर उस के पास पहुंच गया और जब तक मैं अपने भारीभरकम शरीर को ठेलठाल कर उस के पास पहुंचाता,
वह अपने बौयफ्रैंड के साथ उड़नछू हो गई. मेरा हलका मन भी भारी हो गया. अब तो इस शरीर को हलका करना ही पड़ेगा, नहीं तो जब तक मैं किसी बाला से बात करने उस तक पहुंचूंगा वह 2 बच्चों की मां बन चुकी होगी. अब तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा. वजन कम करने के साथ अपने इस उजड़े चमन जैसे हुलिए को भी सुधारना पड़ेगा. मैं एकदम जाग गया जागरूक नागरिक की तरह. मेरी सारी संचेतना जागृत हो गई. अब पता चला चौबेजी, वर्माजी, बत्राजी, चोपड़ाजी, देशपांडेजी, देशमुखजी, जोशीजी क्यों सवेरेसवेरे मौर्निंग वाक के लिए आते थे. सेहत तो बहाना था नजरें जो मिलाना था और मैं मूर्ख आदमी इतने दिन तक सोता रहा. सोएसोए खोता रहा. जिंदगी की कितनी महत्त्वपूर्ण बातें तू ने मिस कर दीं,
अब तो संभल जा. मैं ने मन ही मन सुमि को धन्यवाद दिया और संभल गया. अब तो कोई बेवकूफ ही होगा जो मौर्निंग वाक के लिए मना करता. मैं भी सुमि के सामने ऊपर से नानुकुर करता, अंदर ही अंदर हुलसता मौर्निंग वाक करने के लिए. मन कुलबुलाने लगा. अपने रहनसहन पर ध्यान दिया. सब से पहले बालों को सुधारा. जहांतहां झांकती चांदी को ब्लैक मैटल में बदला. मूंछों पर सिलवर पेंट की जगह ब्लैक पेंट किया. नया ट्रैक सूट, नए जूते खरीदे जिस से कि मैं स्मार्ट नजर आऊं. एक हफ्ते में तो हुलिया ही बदल गया. चेहरा चमक गया, रौनक आ गई, मन प्रसन्न रहने लगा. अब तो हर वक्त गुनगुनाने का मन करता था. बस, तोंद थी जो बढ़ी हुई थी. पर मैं आशावादी था, मुझे आशा थी कि यह जल्दी ही कम हो जाएगी. गार्डन में मेरी कल्पनाओं के घोड़े भी उड़ान भरने लगे. पर… मुझे और घोड़ों को उड़ान भरते अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि एक दिन सुबह उठते ही सुमि ने कहा, ‘आज मैं भी चलूंगी आप के साथ वाक के लिए.’ मैं उठताउठता बैठ गया, ‘तुम क्या करोगी चल कर. तुम चलोगी तो यहां मेरा नाश्ताखाना कौन बनाएगा, मुझे औफिस जाना है भई.’
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उस ने लापरवाही से कहा, ‘उस की चिंता आप मत करो. मैं आ कर बना दूंगी.’ मरता क्या न करता. सुमि को चलना था तो वह चली ही. मेरी बिलकुल भी बिसात न थी कि उसे रोक पाता. हम चले. इतने दिनों में वहां काफी लोगों से पहचान हो गई थी. मुझे देखते ही सब की हायहैलो शुरू हो गई, उन में वे हसीनाएं भी थीं जो रोज मुझे देख कर मुसकराती थीं, हाथ हिलाती थीं, दोचार कोई बात भी कर जाती थीं. सुमि का चेहरा मौसम विभाग की भविष्यवाणी की तरह पलपल बदल रहा था, इसलिए हालफिलहाल कुछ भी अनुमान लगाना कठिन था कि सुहानी धूप खिली रहेगी, भारी वर्षा होगी, गरज के साथ छींटे पड़ेंगे या वर्षा के साथ ओले गिरेंगे. सबकुछ समय के हवाले कर मैं संभावित परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा. घर पहुंचे. सुमि कुछ नहीं बोली. चुपचाप नाश्ताखाना बनाने में लग गई. मुुुझे भी लगा, मैं बेकार ही टैंशन ले रहा हूं. कुछ नहीं है. इस सोच से मुझे बड़ी राहत मिली. मैं आराम से दफ्तर गया. आराम से दफ्तर के आवश्यक काम, जैसे गपशप, चर्चा, कैंटीन के चक्कर लगाना वगैरह निबटाया और आराम से घर आया. सुमि अभी भी कुछ नहीं बोली.
मैं ने रात्रिभोजन का स्वाद लिया, टीवी का आनंद लिया और सुबह की सुहानी कल्पना में डूबा अपने ट्रैक सूट वगैरह को संभालने लगा कि बम विस्फोट हुआ, ‘कल से आप मौर्निंग वाक के लिए नहीं जाएंगे.’ तो वह खतरा आ ही गया जिस की भाप मुझे सुबह से आ रही थी. मैं ने कारण जानना चाहा, ‘अरे, क्यों? अचानक क्या हो गया, अभी तक तो तुम ही पीछे पड़ी थीं कि मौर्निंग वाक जाओ मौर्निंग वाक जाओ, अब क्या हुआ?’ सुमि तल्खी से बोली, ‘हां, मैं ने मौर्निंग वाक के लिए कहा था, जौगर्स पार्क फिल्म का रिऐलिटी शो बनाने के लिए नहीं. अब पता चला मुझे नाना करने वाला बंदा एकाएक मौर्निंग वाक को ले कर इतना उत्साहित क्यों हो गया. 56 पकवानों से भरी थाली दिखेगी तो घर की दाल किसे भाएगी.’ मैं बौखला गया, ‘क्या बकवास कर रही हो. मैं वहां घूमने जाता हूं,
पकवान देखने नहीं.’ सुमि चादर निकालते बोली, ‘हां, वह तो मैं ने देखा ही है कितनी सैर हो रही थी और कितने सपाटे मैं चिढ़ गया, ‘तुम्हारा भी जवाब नहीं. पहले नहीं जा रहा तो लड़लड़ कर भेजा कि घूमने जाओ घूमने जाओ, अब जा रहा हूं तो कह रही हो मत जाओ. आखिर तुम चाहती क्या हो? फिक्र नहीं है तुम्हें मेरी सेहत की.’ सुमि बोली, ‘बहुत फिक्र है, तभी कह रही हूं. मैं ने आप को सेहत बनाने के लिए कहा था, मुझे को बेवकूफ बनाने के लिए नहीं. अब से आप मौर्निंग वाक नहीं, इवनिंग वाक पर जाएंगे और मैं भी आप के साथ चलूंगी, समझे और टेकड़ी पर नहीं, यों ही रोड पर घूमेंगे. सेहत भी बरकरार रहेगी और जौगर्स पार्क का रीमेक भी नहीं बनेगा. अब, सो जाओ.’ उस ने करवट बदल ली. मैं अपने सुहानेसुनहले टूटे सपनों की किरचें संभालने लगा, ‘जिंदगी देने वाले, जिंदगी लेने वाले… खुशी मेरी छीन के बता तुझे क्या मिला…’