बाल कथावाचकों की सोशल मीडिया पर लंबीचौड़ी भीड़ खड़ी हो गई है, सारी जद्दोजेहद फौलोअर्स और सब्सक्राइबर्स पाने की है. जिस उम्र में इन्हें स्कूल में होना चाहिए, हाथों में किताबकौपीकलम होनी चाहिए, वहां इस तरह का धर्मांध ढोंग करने की प्रेरणा इन्हें मिल कहां से रही है, जानिए.
अपनी कृष्णभक्ति से मशहूर 10 वर्षीय कथावाचक अभिनव अरोड़ा इन दिनों खूब चर्चा में है. अभिनव को अकसर सोशल मीडिया पर आध्यात्मिक वीडियो शेयर करते देखा जाता है. वह रील बनाता है. रील पर भक्ति में नाचता, गाता और रोता भी है.
इस छोटी उम्र में अभिनव अरोड़ा एक यूट्यूबर और इंफ्लुएंसर के साथसाथ कथावाचक के रूप में भी पहचाना जाता है. सोशल मीडिया पर उस के वीडियोज छाए रहते हैं. इंस्टाग्राम पर उस के 9 लाख से अधिक, फेसबुक पर 2.2 लाख और यूट्यूब चैनल पर 1.3 लाख सब्सक्राइबर्स हैं. यह बड़ी संख्या है. हैरानी यह कि वह अपनी भक्ति की ऊटपटांग रील के चलते सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. वह खुद को श्रीकृष्ण का बड़ा भाई मानता है.
कुछ समय पहले तक स्कूल में कोई भी अभिनव अरोड़ा के बगल में नहीं बैठना चाहता था पर आज उस की क्लास का हर बच्चा उस के साथ बैठना चाहता है, उन्हें रोस्टर बनाना पड़ता है. स्कूल में पढ़ाई के बीच उस के टीचर उसे भजन गाने के लिए कहते हैं. यह पौपुलैरिटी अभिनव ने हासिल कर ली है.
वह अपनी रील्स में धार्मिक उपदेश देता है. जैसे, वह कहता है, ‘आप का कोई भी काम नहीं बन रहा हो या अटक रहा हो तो गोपाष्टमी के दिन गाय के कान में जा कर वह बात कह दें, आप का काम हो जाएगा.’
अभिनव अरोड़ा ट्रोल भी खूब हुआ. भक्ति जाहिर करने के लिए जिस तरह की हरकतें वह अपनी रील्स में करता है उसे ले कर लोग उसे नकली और दिखावा बताते हैं. इस पर अभिनव ने कहा, ‘मैं चाहता नहीं था मुझे कोर्ट जाना पड़े लेकिन जाना पड़ा. जैसे भगवान रामजी का मन नहीं था खरदूषण का वध करना, लेकिन उस ने इतना उत्पात मचा दिया कि उन्हें करना पड़ा. मेरी भक्ति को नकली कहा जा रहा है. मुझे लोग जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं.’
दरअसल, अभिनव अरोड़ा के पिता तरुण अरोड़ा ने पहले आइसक्रीम कंपनी खोली, कंपनी फेल हो गई तो दूसरा बिजनैस किया, वह भी फेल हो गया तो अपने बच्चे अभिनव अरोड़ा पर दांव खेला. उन्होंने उसे धर्म से पैसा कैसे कमाया जाता है, वह सिखाया. अब इस चलते कई लोग अभिनव के पिता को कोसने लगे हैं कि वे अपने बेटे का इस्तेमाल कर रहे हैं. मगर इस में क्या गलत है? क्या यह काम बड़ेबड़े कथावाचक, अनिरुद्धाचारी, बाबा बागेश्वर, देवकीनंदन वगैरह नहीं कर रहे? फिर कोस सिर्फ अभिनव को क्यों रहे हैं?
क्या ये सारी चीजें वह इन्हीं कथावाचकों से नहीं सीख रहा? क्या धर्म के नाम पर लूटपाट नहीं चल रही? क्या धर्म के नाम पर सरकार नहीं बनाई जा रही? मुसीबत यह है कि लपेटे में सिर्फ अभिनव है.
इस पर उसे दोष देने की जगह क्या खुद को दोषी नहीं मानना चाहिए कि जिस उम्र में उसे कोर्स के चैप्टर याद करने चाहिए थे वहां वह अंटशंट धार्मिक बातें रट रहा है. अभिनव अरोड़ा की वीडियो से साफ पता चलता है कि वह जो कुछ भी करता और कहता है वह सब स्क्रिप्टेड होता है. सरयू नदी में स्नान करते हुए अभिनव अरोड़ा एक वीडियो में कह रहा है, ‘केवल गंगा नदी ही काफी है हम सब के पापों को धोने के लिए.’
यूजर्स अभिनव अरोड़ा के वीडियोज पर कर रहे हैं कमैंट्स
एक यूजर ने अभिनव अरोड़ा के एक वीडियो में यहां तक कमैंट किया कि, “ये कथावाचक ऊटपटांग नौटंकी कर सकते हैं पर स्कूल जाने और पढ़ने के नाम पर इन्हें मौत आती है.’
एक दूसरे यूजर ने लिखा, ‘इस का बाप इतना शातिर है कि उस ने इस को इतने जबरदस्त तरीके की ट्रेनिंग दे कर बकवास करने में माहिर बना दिया है कि इस को बकवास के अलावा अब कुछ नहीं आता. भारत विश्वगुरु बने न बने लेकिन इस जैसे शातिर लोग भारत की जनता को बेवकूफ़ भलीभांति बना रहे हैं.’ किसी भी पोडकास्ट में उस से क्या पूछा जाएगा, वह भी पहले से ही निर्धारित होता है और इस तरह से एक साधारण से बच्चे को बाबा बना कर पैसे कमाने का जुगाड़ हमारे समाज ने किया है.
यूज़र्स अभिनव अरोड़ा के लिए लिख रहे हैं, ‘भाई ने भारत के एल्गोरिदम को क्रैक कर लिया है.’ ‘बेटा, क्या तुम ने अपना होमवर्क किया है?’ और ‘वो आज स्कूल भी नहीं गया.’
कुछ यूजर्स ने लिखा है-
‘यह बच्चा पक्का आगे चल कर बड़ा ढोंगी बाबा बनेगा और अंधभक्तों को लूटेगा.’
‘इस के मातापिता ने सब से अच्छा बिजनैस मौडल ढूंढ़ लिया है.’
बचपन से वायरल कथावाचक बनाने का धंधा
अभिनव अरोड़ा सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. लेकिन सिर्फ अभिनव अरोड़ा ही नहीं, कई सारे ऐसे बाल संत हैं, जिन्हें लाखों की संख्या में लोग फौलो करते हैं. इन के वीडियोज पर खूब व्यूज आते हैं.
जयपुर के 5 वर्षीय ‘भक्त भागवत’ के इंस्टाग्राम पर 22 लाख से ज़्यादा फौलोअर्स हैं. उन का दावा है कि वे एक गुरुकुल में पढ़ते हैं. अभिनव अरोड़ा की तरह वे भी कृष्ण और राधा का भक्त है और उस के मातापिता उस के अकाउंट को मैनेज करते हैं.
इंस्टाग्राम ने 13 साल से कम उम्र के बच्चों को अकाउंट होस्ट करने से प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन मातापिता को उन्हें चलाने की अनुमति है. वह कहता है, ‘हायहेलो छोड़ो, हरे कृष्ण बोलो.’ यह लफ्फाजी कोई रटवा ही सकता है. उस के पिता अकम भक्ति दास एक सौफ्टवेयर इंजीनियर से गीता प्रचारक बन गए हैं और अब उसी वैदिक अध्ययन के गुरुकुल में रहते हैं और काम करते हैं. भक्त भागवत के मातापिता का कहना है कि वे चाहते हैं कि वह डाक्टर या इंजीनियर बनने के बजाय सनातन धर्म और भगवद गीता का प्रसिद्ध प्रचारक बने. यानी, ऐसा काम जिस से लोगों का तो भला होना नहीं है जबकि खुद पर बैठेबिठाए पैसों की बरसात होती है.
ऐसे ही वृंदावन के 10 साल के बाल कथावाचक माधव दास ने न केवल देशभर में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है. इन के पिता भी इस्कान मंदिर के भक्त हैं. कृष्णा किशोरी महज 6 साल की है. यूकेजी में पढ़ने वाली फतेहपुर की कृष्णा किशोरी राधा-कृष्ण को मामामामी मानती है.
इसी तरह देविका दीक्षित वृंदावन निवासी पंडित अरुण दीक्षित व आंगनवाड़ी वर्कर अर्चना दीक्षित की बेटी है, जिस की उम्र महज 9 साल है और अभी चौथी क्लास में है. देविका तो 6 साल की उम्र से ही भागवत कथा सुनाने लगी थी. उस की पढ़ाई को ले कर जब किसी रिपोर्टर ने उस से पूछा तो देविका दीक्षित ने कहा कि वह अपने कथावाचन के कार्यक्रमों में इतना व्यस्त रहती है कि स्कूल में अटेंडेंस पूरी नहीं हो पाती. बाल कथावाचकों की इस लिस्ट में कृष्ण नयन उम्र 7 साल, श्रृंगवेरपुर धाम की अनुष्का पाठक जो केवल 8 साल की है, ये दोनों भी कथावाचन कर रहे हैं.
बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़
इन सभी के पेरैंट्स के लिए ये बच्चे लौटरी जैसे बन चुके हैं. जाहिर है, इन में रटने की कला है, छोटी उम्र से ही शास्त्रों को दिमाग में बैठा लेते हैं. लोग इन बाल कथावाचकों की रील्स और वीडियो को देख कर अपना समय व एनर्जी बरबाद कर रहे हैं क्योंकि ये कथावाचक ही अपने फौलोअर्स से प्रवचनों में कहते हैं, ‘मोहमाया छोड़ दो, कुछ मत करो, भक्तिभाव में डूब जाओ.’
अंकित नाम के एक यूट्यूबर ने अपने चैनल ‘ओनली देसी’ पर हाल ही में अभिनव अरोड़ा की पोल खोलते हुए कहा कि अभिनव के मातापिता अपने बच्चे का ब्रेनवाश कर रहे हैं और उस का बचपन ब्रैंड एंगेजमैंट, मीडिया प्रचार और पैसा कमाने के लिए बरबाद कर रहे हैं. यूट्यूबर का कहना है कि अभिनव को कैमरा के सामने कुछ चीजें कहने के लिए ब्रेनवाश किया गया है और इस के लिए केवल उस के मातापिता ही जिम्मेदार है. जबकि, हकीकत में उस के मातापिता तो उसे यह सब करा कर ऐशोआराम की जिंदगी देंगे, जिम्मेदार तो यह धर्मांध समाज है जो इन्हें देख रहा है.
कथावाचन कोई प्रोडक्टिव काम नहीं
क्या इस के जिम्मेदार हम खुद नहीं हैं जो अपने ब्च्चों को किसी साइंस म्यूजियम, हिस्टोरिकल प्लेसेस, तार्किक बनाने की जगह ऐसी कथाओं में ले कर जाते हैं जहां वे प्रोडक्टिव या स्किल सीखने की जगह कुतार्किक व पाखंडी चीजें सीखते हैं.
बचपन से अपने छोटेछोटे बच्चों को कथावाचन से जोड़ने की सब से दुखद बात यह है कि बच्चों की क्रिएटिविटी ख़त्म होती है. पेरैंट्स नहीं समझ रहे हैं कि कथावाचन कोई प्रोडक्टिव काम नहीं है. उस से किसी का भला नहीं हो रहा.
जैसे, अगर मजदूर सड़क बनाता है तो उस सड़क का प्रयोग जनता करती है, कोई होटल में खाना बना रहा है तो उस से लोगों का पेट भर रहा है, कोई कपड़े बना रहा है तो लोग उसे इस्तेमाल करते हैं लेकिन कथावाचन से किसी का क्या भला होता है, सिवा कथावाचकों और पंडों को चंदा व दानदक्षिणा देने की सोच दिमाग में भरने के.
कथावाचक बनने का क्रैश कोर्स
आजकल बाल कथावाचक बनना काफी ट्रैंड में है. आप को जानकर हैरानी होगी कि बाल कथावाचकों की बढ़ती लोकप्रियता और इस से होने वाली कमाई के लालच ने इंस्टेंट कथावाचक पैदा करने के इंस्टिट्यूट भी खोल दिए हैं. इन इंस्टिट्यूट में ऐसे कथावाचक हैं जो सत्संग के गुर सिखा रहे हैं और वह भी मुफ़्त नहीं, बल्कि गुरुदक्षिणा में फीस ले कर.
वृंदावन में एंटर पास करते ही वहां की दीवारों पर आप को इंस्टेंट कथावाचक बना देने वाले विज्ञापन दिखाई दे जाएंगे. वृंदावन में कथावाचक बनने की ट्रेनिंग देने वाले एकदो नहीं बल्कि 100 के करीब इंस्टिट्यूट खुल गए हैं. इन में से कुछ तो ऐसे इंस्टिट्यूट हैं जो 3 से 6 महीने में ही एक्सपर्ट कथावाचक बनाने का दावा करते हैं.
‘श्रीमद्भागवत कथा’ के लिए इस्कान में भी डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है. अलगअलग अवधि के कोर्स की फीस अलग होती है. इसी तरह वृंदावन में भी कई गुरुकुल हैं जहां आप अलगअलग धर्मग्रंथों का पठनपाठन कर के कथावाचक बन सकते हैं. इस में बांके बिहारी भागवत प्रशिक्षण केंद्र और वैदिक यात्रा गुरुकुल प्रमुख हैं. इसी तरह देश के अलगअलग आध्यात्मिक केंद्र, जैसे कि बनारस, उज्जैन, इगतपुरी इत्यादि पर मौजूद गुरुकुल में गुरुदक्षिणा के नाम पर फीस दे कर ऐसे कथावाचक बनने की ट्रेनिंग दी जाती है.
कथावाचन के नाम पर बिजनैस
आजकल कथावाचन एक बहुत बड़ा बिजनैस हो गया है. ‘बाबा’ या ‘कथावाचक’ की मुख्य कमाई कथावाचन के लिए मिलने वाली फीस होती है. इस के साथ उन्हें दक्षिणा के रूप में भी खासी राशि मिलती है. हर कथा का बजट लाखों में होता है जिस का लगभग 40 से 50 फीसदी कथावाचक की जेब में चला जाता है.
कथावाचन के नाम पर चंदा उगाही, भीड़ जुटाना, प्रपंच करना जैसे कार्य हो रहे हैं. ये घंटे के हिसाब से चार्ज करते हैं और 20 हजार रुपए प्रति घंटे से ले कर 2 लाख रुपए प्रति घंटे तक इन का चार्ज होता है. ऊपर से प्लेन के बिजनैस क्लास में आनेजाने का टिकट का चार्ज भी ये लेते हैं. वहीं, कथावाचक बनने के बाद ज्यादातर ‘बाबा’ अपने आश्रम भी खोल लेते हैं. ये आमतौर पर ‘नौन प्रौफिट और्गेनाइजेशन’ होते हैं.
ऐसे में उन की इनकम टैक्स की बचत भी होती है और जमीन से ले कर कई अन्य सुविधाएं भी सस्ते दामों पर मिल जाती हैं. ये वही कथावाचक हैं जो अपने प्रवचनों में कहते हैं कि रुपयापैसा जिंदगी में कुछ नहीं है, सब मोहमाया है, और खुद लक्जरी लाइफ जीते हैं. इन्फ्लुएंसर और कथावाचक जया किशोरी हाल ही में लगभग ढाई लाख रुपए का डीओर का बैग लिए देखी गईं.
सीधी सी बात है, यह सारा तामझाम ही लोगों को आस्थावान बना कर लूटने का है. इस में बड़ेबड़े कथावाचक पहले ही जमे हुए थे, अब छोटेछोटे कथावाचकों की नई पौध भी उगाई जा रही है ताकि दानदक्षिणा, कर्मकांड चलते रहें.