लेखिका : डा. के रानी
बेटी अनु का बेरोजगार तुषार से शादी करने का निर्णय सुधा पचा नहीं पा रही थी. लेकिन अनु को तुषार की काबिलीयत और समझदारी पर पूरा विश्वास था. तुषार ने भी अनु को अपने प्रति प्यार को अपने समर्पण की महक से और भी सराबोर कर दिया.
सुबहसुबह अनु का फोन आ रहाथा. सुधा ने झट से फोन उठा लिया. अनु के पापा शर्माजी भी पास में खड़े थे. सुधा ने हमेशा की तरह स्पीकर औन कर दिया जिस से वे दोनों उस से बात कर सकें. अनु ने उन्हें तुरंत खुशखबरी सुनाई, ‘‘मम्मी, मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है.’’
सुधा ने सुना तो अवाक रह गई. उसे अनु से अभी ऐसी उम्मीद नहीं थी. उस ने पूछा, ‘‘कौन है वह खुशनसीब जिसे हमारी बेटी ने अपना साथी चुना है?’’
‘‘तुषार. हम दोनों यहां साथ ही कंपीटिशन की तैयारी कर रहे हैं,’’
यह सुनते ही सुधा के हाथ कांपने और जबान लड़खड़ाने लगी.
अनु के पापा ने जब यह बात सुनी तो वे सन्न रह गए, ‘‘अनु, तुम क्या कह रही हो? तुम पर तो हमारी बहुत सारी उम्मीदें लगी हुई हैं.’’
‘‘पापा, मैं आप की उम्मीदें पूरी करने की पूरी कोशिश करूंगी. मैं तुषार को अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. वह बहुत अच्छा लड़का है. मुझे पूरा यकीन है कि जब आप उस से मिलेंगे तो आप को भी वह बहुत पसंद आएगा.’’
‘‘बेटा, वह तो अभी जौब पर भी नहीं है.’’
‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है पापा? जौब में तो मैं भी नहीं हूं. हम दोनों संघर्ष कर रहे हैं और हमारा संघर्ष एक दिन जरूर रंग लाएगा.’’
‘‘अनु एक बार फिर से सोच लो.’’
‘‘इस में सोचना क्या है, पापा?
मुझे अपने जीवनसाथी के रूप में तुषार पसंद है. मैं उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती हूं. अगर मेरी पसंद को आप लोग खुले दिल से स्वीकार करेंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा, मम्मी.’’
‘‘हम तो हमेशा से तुम्हारे साथ हैं. तुम्हारी इच्छा हमारे लिए बहुत माने रखती है. हम चाहते थे कि पहले तुम कोई अच्छा जौब चुन लो उस के बाद शादी के बारे में सोचो.’’
‘‘पापा, कल किस ने देखा है? आप लोग निश्चिंचिंत रहिए. हम दोनों आप के ऊपर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं डालेंगे. मुझे नैट क्वालीफाई करने के बाद इतनी फैलोशिप मिलती है कि उस से एक छोटे से घर में हम गुजारा कर लेंगे.’’
अनु के तर्कों के आगे मम्मीपापा की एक न चली. तुषार ने भी अपने मम्मीपापा को मना लिया था. वे भी चाहते थे लड़का पहले कुछ बन जाए और उस के बाद शादी के बारे में सोचे पर तुषार नहीं माना. उस ने अनु के बारे में उन्हें सबकुछ बता दिया. वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सके. उन्होंने भी भारी मन से शादी की सहमति दे दी. दोनों परिवारों ने दिल्ली आ कर एकदूसरे से मुलाकात कर ली थी. उन की एकदूसरे से कोई अपेक्षाएं भी नहीं थीं.
बहुत सादे तरीके से सुधा ने अपनी बेटी को विदा कर दिया. तुषार और अनु बहुत खुश थे. उन्हें अपने फैसले पर नाज भी था. कोचिंग के दौरान अनु की दोस्ती तुषार से हो गई थी. वह बिहार का रहने वाला साधारण घर का लड़का था. वह पढ़नेलिखने में बहुत होशियार था. प्रशासनिक सेवा में हाथ आजमाने के लिए उस के मांबाप ने उसे कोचिंग के लिए दिल्ली भेज दिया था. एक ही सैंटर पर कोचिंग के दौरान वे एकदूसरे के नजदीक आ गए थे.
अनु और तुषार दोनों की परवरिश साधारण परिवार में हुई थी. उन की सोच भी एकजैसी थी. बहुत जल्दी उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. अभी तक दोनों को किसी प्रतियोगिता में सफलता नहीं मिल पाई थी लेकिन वे दोनों अपनी मंजिल की ओर लगातार अग्रसर थे. वे दोनों एकसाथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते और अपने दिल का हाल भी एकदूसरे को बताते.
एक दिन अवसर पा कर तुषार ने अनु के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया और अनु के सामने अपने दिल की बात रख दी, ‘अनु, हम एकदूसरे को 2 सालों से अच्छी तरह से जानते हैं. मैं चाहता हूं कि हम हमेशा एकसाथ रहें. क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’
उस की बात सुन कर अनु चौंक गई थी. उसे उम्मीद नहीं थी कि तुषार उसे इतनी जल्दी प्रपोज कर देगा.
‘यह तुम क्या कह रहे हो? अभी तो हम दोनों ही अपने कैरियर के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में शादी की बात तुम्हारे दिमाग में कहां से आ गई?’
‘मेरे हिसाब से तो अभी शादी करना ठीक रहेगा. क्या पता कल अच्छी जगह नौकरी मिलने के बाद हमतुम एकदूसरे से कितनी दूर चले जाएं?’
‘ऐसा कभी नहीं होगा.’
‘वक्त का कुछ पता नहीं होता, अनु. हम अभी से कोशिश करेंगे कि एकदूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं. नौकरी के बाद घर वालों का दबाव भी हम पर बढ़ जाएगा.’
‘क्या तुम उन के दबाव में आ कर शादी करोगे?’
‘नहीं अनु, मेरे कहने का मतलब यह नहीं. मैं किसी को नाराज नहीं करना चाहता. यह समय है जब हम अपनी इच्छाओं को पूरा करते हुए दूसरों के दिल को दुखाए बगैर आराम से शादी कर सकते हैं और अपना ज्यादा से ज्यादा समय एकसाथ बिता सकते हैं,’ तुषार बोला.
तुषार स्वभाव से गंभीर था. अनु उस की बातों की गहराई को समझ गई. उन से शादी के लिए हां कह दी. सुधा के परिवार, पड़ोसी और रिश्तेदारों ने कभी सोचा भी नहीं था कि अनु इतने अच्छे कैरियर के साथ बिना व्यवस्थित हुए शादी कर लेगी? पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने सुधा की बहुत खिंचाई की थी. पड़ोस वाली गुप्ता आंटी तो जैसे इसी मौके की तलाश में थीं, ‘सुधा, तुम तो कहती थीं कि मेरा दामाद कोई आईएएस औफिसर होगा. मेरी अनु के लिए लड़कों की कोई कमी नहीं रहेगी.’
‘अनु ने बहुत सोचसम?ा कर अपने लिए जीवनसाथी चुना है. आखिर उसे तुषार में कुछ खास तो दिखाई दिया होगा, तभी उस ने इतना बड़ा कदम उठाया है. उस का चुनाव कभी गलत नहीं हो सकता.’
‘वह तो दिखाई दे रहा है,’ गुप्ता आंटी कटाक्ष करती बोलीं.
सुधा को सभी से ऐसी बातें सुनने को मिल रही थीं. अनु ने मम्मीपापा के सपनों को दरकिनार करते हुए, किसी की परवाह किए बगैर शादी कर ली थी.
सुधा को छुटपन से ही अपनी बेटी पर बड़ा नाज था. बचपन से ही अनु पढ़ने में बहुत होशियार थी. एक साधारण से परिवार में पैदा होने के कारण उस के पास बहुत सारी सुविधाएं तो नहीं थीं पर एक तेज दिमाग जरूर था, जिस के बल पर वह अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रही थी. शर्माजी को भी अपनी बेटी पर गर्व था. वे उस की हर इच्छा पूरी करते. अनु के बड़े होने के साथ मम्मीपापा की अपेक्षाएं भी बड़ी हो गई थीं.
‘अनु पढ़नेलिखने में विलक्षण है. वह जिस काम में हाथ डालेगी वही बन जाएगी,’ हरकोई यही कहता. यह सुन कर सुधा और शर्माजी फूले न समाते. अनु ने पहले ही बता दिया था कि वह डाक्टर या इंजीनियर नहीं बनेगी. वह पढ़लिख कर किसी अन्य क्षेत्र में जाएगी. अनु ने अर्थशास्त्र से एमए प्रथम श्रेणी में करने के साथ ही कालेज में टौप किया था. उस के प्रोफैसर चाहते थे कि वह इसी विषय में पीएचडी कर प्रोफैसर बन जाए पर अनु कहीं और अपना भविष्य तलाश रही थी. वह प्रशासनिक सेवाओं में जाने की इच्छुक थी.
अपने सपने पूरे करने के लिए अनु कोचिंग के लिए दिल्ली चली आई. सुधा और शर्माजी को उस के कोचिंग लेने पर कोई एतराज नहीं था. उन्हें पूरा विश्वास था कि इस के बल पर अनु एक दिन उन का नाम जरूर रोशन करेगी. लेकिन बिना कुछ बने तुषार से शादी कर के अनु ने मम्मीपापा के सपनों को एक ?ाटके में तोड़ डाला था.
अनु की शादी के बाद भी कई दिनों तक सुधा अपनेआप को सामान्य नहीं कर पाई. तुषार से मिल कर उसे भी अच्छा लगा था. वह एक सुल?ा हुआ युवक था लेकिन एक बेरोजगार दामाद को अपनाने में उसे हिचक हो रही थी. बेटी की खुशी के आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा.
उन्हें यकीन था एक दिन अनु जरूर कुछ न कुछ अच्छा ही करेगी. कुछ ही महीने में अनु की मेहनत रंग लाई. उस ने पीसीएस की मुख्य परीक्षा पास कर ली थी. अनु ने साक्षात्कार की बहुत अच्छी तैयारी की थी पर वह उस में रह गई. तुषार अभी भी संघर्षरत था. उन दोनों को इस बात का काफी मलाल हुआ. ऐसी परिस्थिति में भी तुषार ने अनु को हिम्मत बंधाई, ‘‘अनु, तुम्हें दिल छोटा नहीं करना चाहिए. तुम बहुत मेहनती और होशियार हो. एक दिन तुम्हें अपनी मेहनत का पूरा श्रेय जरूर मिलेगा.’’
‘‘तुषार, तुम ही तो मेरी प्रेरणा हो. तुम्हारी बातों से मु?ो बड़ी हिम्मत मिलती है. मैं और मेहनत करूंगी और एक दिन कुछ बन कर दिखाऊंगी,’’ अनु बोली.
इसे कोई संयोग ही कहें कि जितना उस ने सोचा था, वह वहां तक न पहुंच पाई. नैट परीक्षा उत्तीर्ण करने के कारण उस का यूनिवर्सिटी में असिस्टैंट प्रोफैसर के लिए चयन हो गया था. परिस्थितियों को देखते हुए अनु ने यह जौब खुशीखुशी स्वीकार कर ली. अब उस के सामने आर्थिक परेशानी नहीं थी.
2 महीने बाद तुषार का सलैक्शन यूपीएससी परीक्षा के माध्यम से ही समीक्षा अधिकारी के लिए हो गया था. दोनों बेहद खुश थे. आखिरकार उन्हें एक ही शहर में नौकरी तो मिल गई थी. ये नौकरियां उन के योग्यता और सपनों के अनुरूप नहीं थीं लेकिन घरगृहस्थी चलाने के लिए पर्याप्त थीं. अनु ने यह खबर मम्मीपापा को सुनाई तो उन्हें ज्यादा खुशी नहीं हुई.
सुधा बोली, ‘‘अनु, तुम आगे भी तैयारी करते रहना. यह नौकरी तो तुम्हें इसी शहर में रह कर पढ़ने से भी मिल सकती थी.’’
‘‘आप बिलकुल ठीक कहती हैं, मम्मी. मैं आगे भी प्रयास करती रहूंगी.’’
अनु अपने काम के प्रति बहुत समर्पित थी. वह पीएचडी करना चाहती थी ताकि अपने कैरियर में किसी से पीछे न रहे. नैट की बदौलत वह इस नौकरी तक पहुंच गई थी. तुषार के सहयोग के कारण उसे आगे पढ़ने में कोई परेशानी नहीं थी. वे दोनों अभी भी प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे थे पर उन का समय साथ नहीं दे रहा था. तुषार की नौकरी लगने के सालभर बाद अनु ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. सुधा ऐसे समय में बेटी को अकेले पा कर मात्र 2 हफ्ते के लिए अनु के पास आई थी. उस के नर्सिंगहोम से घर आ जाने पर वह वापस लौट आई थी. तुषार जिस तरह से अनु का खयाल रखता था, सुधा उस से संतुष्ट थी.
अनु के 6 महीने मातृत्व अवकाश के साथ आराम से कट गए. उस ने कुछ महीने और शिशु देखभाल अवकाश ले लिया था. अब नौकरी के साथसाथ बच्चे को देखने के लिए एक आदमी की घर पर जरूरत थी.
अनु ने कहा, ‘‘तुषार, क्यों न हम अपने पेरैंट्स को यहां बुला लें.’’
‘‘क्या उन का दिल हमारे साथ लगेगा? हम एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं. मम्मीपापा को इस प्रकार से रहने की आदत नहीं है.’’
‘‘तुम ठीक कहते हो. उन के लिए यह घर जेल के समान हो जाएगा, भले ही हम अपनी ओर से उन के लिए कोई कसर नहीं रखेंगे. एक सामान्य जिंदगी जीने वाले को बड़े शहरों की आदत नहीं होती. उन की अपनी एक दिनचर्या है, जिसे वे यहां अच्छे से नहीं निभा पाएंगे. इस के साथ एक दूसरी बात भी है.’’
‘‘वह क्या?’’
‘‘तुम तो जानती हो कि उन के सपनों को तोड़ कर हम दोनों ने शादी की. उन की अपेक्षाएं हम से कुछ और थीं और हम उन की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे. हमें देख कर उन्हें यह बात भी याद आती रहेगी. अच्छा होगा कि हम बच्चे की देखभाल के लिए एक आया रख लें.’’
जल्दी ही अनु ने अपने सहकर्मियों की मदद से एक आया का इंतजाम कर दिया पर उस के भरोसे रिया को छोड़ने में दोनों को बड़ी परेशानी हो रही थी. किसी तरह 2 महीने बीते. एक बार रिया की तबीयत बिगड़ गई. ऐसी हालत में उन की हिम्मत रिया को आया के भरोसे छोड़ने की न हो सकी. तब समस्या का समाधान तुषार ने निकाला, ‘‘अनु, मैं कुछ समय के लिए रिया की देखभाल के लिए छुट्टी ले लेता हूं.’’
‘‘यह क्या कर रहे हो तुम?’’
‘‘मैं ठीक कह रहा हूं. हम दोनों में से छुट्टी कोई भी ले क्या फर्क पड़ता है? बच्चा हमारा है. इतने महीने तुम उस की देखभाल कर चुकी हो. तुम्हें अभी अपना पीएचडी का काम भी पूरा करना है. मैं औफिस से छुट्टी ले लेता हूं.’’
‘‘तुम्हें छुट्टी कहां मिलेगी?’’
‘‘तो क्या हुआ? अवैतनिक अवकाश ले लूंगा. हमारे बच्चे की परवरिश में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए,’’ तुषार ने कहा तो अनु उस के परिवार के प्रति समर्पण को देख कर नतमस्तक हो गई.
वैसे तो उन के घर में भी काम करने वाले आते थे लेकिन उन के ऊपर भी देखभाल के लिए घर पर कोई तो चाहिए था. तुषार ने यह जिम्मेदारी बडे़ अच्छे से संभाल ली. रिया बड़ी हो रही थी. अनु उस की ओर से बिलकुल बेफिक्र थी. तुषार एक जिम्मेदार पिता की तरह उस की बहुत अच्छी देखभाल करता. शाम को अनु थक कर घर आती तो उस के साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार करता. अनु अपनेआप को धन्य मानती कि उसे पति के रूप में तुषार मिला. अनु ने यह बात मम्मी को बताई कि अब तुषार नौकरी छोड़ कर बच्चे की देखभाल करेंगे.
‘‘मम्मी, रिया हम दोनों की बेटी है. क्या फर्क पड़ता है कि देखभाल मैं करूं या तुषार करें?’’
‘‘बेटी, यह काम औरतों को ही शोभा देता है.’’
‘‘मम्मी, आप तुषार से मिल चुकी हैं. वे बहुत ही अच्छे इंसान है. उन्होंने मु?ो कभी एहसास तक नहीं होने दिया कि मैं एक औरत हूं और वे मेरे पति. वे घर को मु?ा से अच्छे तरीके से संभालते हैं और बेटी का भी बहुत ध्यान रखते हैं.’’
‘‘तो क्या घर तेरी तनख्वाह से चलेगा बेटी?’’
‘‘परिवार के बीच में तेरामेरा कहां से आ गया मम्मी? मेरा और तुषार का जो कुछ है वह हम सब का है. इस से क्या फर्क पड़ जाता है कि घर कौन चला रहा है? फर्क इस बात से पड़ता है कि घर अच्छे से चलना चाहिए. उस में सब के लिए स्थान होना चाहिए. सब की कद्र होनी चाहिए. रिया को घर पर आया की नहीं मम्मीपापा की जरूरत है. तुषार उस की बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं. अगर तुम्हें कुछ गलत लगता है तो तुम यहां आ जाओ.’’
‘‘तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हारे पापा को अकेला नहीं छोड़ सकती और इतने दिन वे बेटी के घर पर रहेंगे नहीं.’’
‘‘तो तुम ही बताओ कि रिया की देखभाल कौन करेगा?’’
‘‘तुम तुषार के मम्मीपापा को बुला लो.’’
‘‘वह भी तो आप की ही तरह हैं. आप यह क्यों नहीं सम?ातीं?’’ अनु बोली तो सुधा चुप हो गई. उन्हें जरा भी अच्छा नहीं लगा था कि दामाद नौकरी से छुट्टी ले कर घर बैठ कर औरतों की तरह अपनी बेटी की देखभाल कर रहा है. इस दौरान वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करते रहे पर सफलता हाथ नहीं लगी.
समय कट रहा था. 3 साल बाद अनु ने एक और बेटी प्रिया को जन्म दिया. मातृत्व अवकाश में अनु ने घर संभाला. उस ने बच्चों की देखभाल के लिए एक साल की और छुट्टी ली. उस के बाद बच्चों को देखने की समस्या फिर खड़ी हो गई थी. तुषार बच्चों की परवरिश में कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहता था.
वह इस पक्ष में नहीं था कि बच्चों को दिनभर आया के हवाले छोड़ कर खुद नौकरी पर जाया जाए. वह जानता था कि शाम को जब थक कर मम्मीपापा दोनों घर आते हैं तो उन के तनाव का बच्चों पर क्या असर पड़ता है. वे किस तरह से बच्चों की परवरिश के लिए एकदूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं. समस्या गंभीर थी और इस का हल निकालना भी जरूरी था.
एक दिन तुषार बोला, ‘‘मैं सोचता हूं कि नौकरी छोड़ कर अपना समय परिवार को दे दूं.’’
‘‘नहीं, तुषार नौकरी छोड़ने की नौबत आई तो नौकरी मैं छोड़ूंगी तुम नहीं.’’
‘‘भला क्यों?’’
‘‘एक पुरुष का इस तरह नौकरी छोड़ कर अपने को घर पर कैद कर लेना किसी को भी अच्छा नहीं लगता.’’
‘‘मैं किसी की नहीं तुम्हारी बात पूछ रहा हूं. तुम तो जानती हो घर पर रह कर भी मैं अपने लिए कुछ न कुछ काम ढूंढ़ ही लूंगा. मुझे जितना वक्त मिलेगा उस दौरान मैं मार्केटिंग का औनलाइन काम कर लूंगा.’’
‘‘यह काम इतना सरल नहीं है.’’
‘‘मन में लगन हो तो कठिन काम भी सरल हो जाते हैं. तुम्हें मुझ पर भरोसा तो है?’’
‘‘खुद से भी ज्यादा. सच कहूं तो मैं यही चाहती हूं कि तुम इस बारे में न सोचो.’’
‘‘मैं ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि मेरी पत्नी नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाए. मैं जानता हूं कि तुम में मुझसे ज्यादा टेलैंट है.’’
‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’
‘‘मैं सही कह रहा हूं. तुम मु?ा से अच्छी नौकरी पर हो. तुम्हारी नौकरी के घंटे कम हैं और साथ ही नौकरी का तनाव भी कम है. मेरी नौकरी का समय तुम से ज्यादा है और उस में तनाव भी बहुत है. अकसर नौकरी के सिलसिले में टूर पर जाना पड़ता है. मैं नौकरी से ऊपर अपने घर को तवज्जो देता हूं.’’
‘‘तुम ठीक कहते हो पर तुम्हारे मम्मीपापा क्या सोचेंगे?’’
‘‘तुम मेरे मम्मीपापा की नहीं अपने मम्मीपापा की फिक्र करो. उन्हें अच्छा नहीं लगता कि दामाद नौकरी छोड़ कर घर पर रहे. मैं ने इसे अपना घर नहीं हमारा घर सम?ा है. इस घर का गुजारा एक के काम करने से अच्छे से चल जाता है. हम बच्चों को देखने के लिए घर पर आया का प्रबंध करते हैं. उस के बदले भी उसे अच्छाखासा मेहनताना देना पड़ता है. उस पर भी दिनभर तनाव रहता है. शाम को बच्चों के काम की चिंता लगी रहती है. इस सब को संभालने के लिए हम दोनों में से एक का घर पर रहना जरूरी है. वैसे, मैं घर पर रह कर भी अच्छाखासा कमा लूंगा. अब तुम खुद सोचो तुम क्या चाहती हो?’’
‘‘मैं ने अपनी इच्छा तुम्हें बता दी है.’’
‘‘अनु, तुम नौकरी छोड़ती हो तो तुम पर काम का बो?ा अधिक पड़ेगा और तुम्हें शायद नौकरी छोड़ने का पछतावा भी हो.’’
‘‘अभी नौकरी छोड़ने की क्या जरूरत है. मैं अवैतनिक अवकाश भी ले सकती हूं.’’
‘‘वह तो ठीक है लेकिन तुम जिस जगह पर हो वहां पर तुम्हें अपने स्टूडैंट्स के भविष्य का खयाल भी रखना चाहिए. मेरे ऊपर इस प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है. औफिस में एक काम छोड़ता है उस की जगह दूसरा ले लेता है,’’ तुषार ने अनु को सम?ाया.
‘‘तुम ठीक कहते हो, तुषार. तुम्हारी सोच बहुत बड़ी है और मेरी छोटी.’’
‘‘ऐसी बात नहीं है, अनु. तुम्हारी सोच मुझ से भी बड़ी है लेकिन समाज का दबाव देख कर शायद तुम ?ाक जाती हो. मुझे अपने घर की परवाह है समाज की नहीं.’’
तुषार का निर्णय अनु को बहुत अच्छा लगा. तुषार ने पहले अवैतनिक अवकाश का प्रार्थनापत्र दिया उस के बाद उस ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
अनु ने यह बात जब मम्मी को बताई तो वह अवाक रह गई, ‘‘अनु, मैं यह क्या सुन रही हूं?’’
‘‘मम्मी आप ने ठीक सुना है. तुषार ने नौकरी छोड़ दी है.’’
‘‘ऐसी क्या मजबूरी आ गई?’’
‘‘मम्मी, घर पर बच्चों को हमारी जरूरत है. उसे पूरा करने के लिए किसी एक को तो यह सब करना ही था. हम दोनों ने सोचा और तुषार ने नौकरी छोड़ने का निर्णय ले लिया.’’
‘‘तो क्या दामादजी दिनभर औरतों की तरह घर का काम देखेंगे?’’
‘‘मम्मी, आप घर के काम को छोटा समतीहैं. जब 2 लोग घर से बाहर निकल कर दिनभर काम करते हैं तो दोनों के ऊपर घर और बाहर दोनों का दवाब रहता है. तुषार नहीं चाहते मैं इस प्रकार का तनाव झेलूं. उन्हें मेरी चिंता रहती है. तभी तो उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया है. हर किसी पुरुष के बस का यह सब नहीं होता,’’ अनु बोली तो सुधा चुप हो गई.
वह आज तक तुषार को दिल से अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकी थी. उन्हें लगता था कि इस के कारण ही अनु उस मुकाम तक न पहुंच सकी थी जहां उसे होना चाहिए था. तुषार के चक्कर में पड़ कर उस ने अपना कैरियर बरबाद कर लिया था. कितनी उम्मीदें थीं उन्हें अनु से? उस के मन में कहीं बहुत बड़ी कसक थी. उन की बेटी ने हमेशा अपनी ही मनमानी की है और उन की कभी नहीं सुनी. जब कैरियर बनाने का समय था तब शादी कर ली. अब जरा स्थिति सुधरी थी तो उस के पति ने नौकरी छोड़ दी है और घर बैठ कर बच्चे पाल रहा है. वे समाज और रिश्तेदारों को क्या जवाब देंगे कि उन का दामाद नौकरी छोड़ कर घर में औरतों की तरह आया का काम कर रहा है?
तुषार ने जल्दी ही अपना घर और मार्केटिंग का काम बहुत अच्छे से संभाल लिया. वह सुबह दोनों बच्चों को स्कूल भेजता और दोपहर उन्हें लेने जाता. इस बीच वह अपना मार्केटिंग का काम भी कर लेता. इस से उस की अच्छीखासी कमाई भी होने लगी थी. शाम को दोनों बच्चों को घुमाने भी ले जाता. अनु कालेज से थकीहारी घर आती तो उस से प्यार से बात करता और उस की इच्छा का मान रखता. दोनों को समय मिलता तो वे इधरउधर घूमने भी चले जाते.
एक दिन सुधा का फोन आया. वह बहुत घबराई हुई थी, ‘‘अनु, तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई है. तुम तुरंत यहां आ जाओ.’’
‘‘मम्मी, मैं वहां आ कर क्या करूंगी? दिल्ली में बहुत अच्छे डाक्टर हैं. तुम प्लीज पापा को ले कर तुरंत यहां आ जाओ.’’
मरता क्या न करता. ऐसी हालत में शर्माजी को दिखाने के लिए दिल्ली लाना पड़ा. अनु ने साफ कह दिया था कि मम्मीपापा मेरे ही साथ आ कर रुकेंगे. मजबूर हो कर सुधा को वहीं रुकना पड़ा. पापाजी की हालत ऐसी न थी कि वह अकेले भागदौड़ कर सकते. तुषार एक बेटे से भी बढ़ कर उन की सेवा में लगा रहा. वह सुबहसवेरे उन के साथ डाक्टर के पास जाता. दिनभर वह उन की हर जरूरत का खयाल रखता और साथ के साथ अपना औनलाइन मार्केटिंग का काम भी निबटा लेता.
तुषार की देखभाल और भागदौड़ का नतीजा था कि पापाजी की हालत में जल्दी सुधार हो गया था. इस दौरान सुधा घर पर रह कर बच्चों की देखभाल कर लेती. तुषार दिनभर पापाजी के साथ रह कर जब घर लौटता तो सब से पहले रिया को होमवर्क करवाता. ऐसी विषम परिस्थिति में भी उस ने अनु पर पापाजी की तबीयत की जरा सी भी जिम्मेदारी नहीं डाली.
पहली बार सुधा को एहसास हुआ कि तुषार के रूप में उन्हें दामाद नहीं एक हीरा मिला है जिस की पहचान अनु को बहुत पहले हो गई थी. घर चलाने की उन की रूढि़वादी सोच को तुषार ने तारतार कर दिया था. तुषार का अपने परिवार के प्रति समर्पण किसी स्त्री से भी बढ़ कर था. यहां पर स्त्रीपुरुष का कहीं कोई भेद न था. उन के परिवार की गाड़ी बहुत ही अच्छी तरह से प्यार से सरोबार हो आगे बढ़ रही थी.
अनु और तुषार अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहे थे. अनु घर से बाहर निकल नौकरी कर रही थी और तुषार घर की जिम्मेदारियां निभाते हुए अपना मार्केटिंग का काम भी कर रहा था? जिस से उस की अच्छीखासी कमाई भी हो रही थी. तुषार के मम्मीपापा यह बात पहले से जानते थे कि उन्हें अपने बेटे से कोई शिकायत नहीं थी.
यह सब देख कर उन्हें अब अनु के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं थी. उन की समझ में आ गया था कि दुनिया में रुतबा बहुत माने रखता है लेकिन इस से बढ़ कर घर की सुखशांति और पतिपत्नी के बीच की समझदारी होती है. घर में कितना भी पैसा आ जाए और वहां शांति न हो तो सब बेकार है.
सुधा के मम्मीपापा को पहली बार परिवार के प्रति समर्पण और आत्मविश्वास से भरे तुषार के सामने अपनी रूढि़वादी सोच बहुत तुच्छ लगी. तुषार की नई पहल पर अब उन्हें भी बहुत गर्व हो रहा था. अनु की हंसतीमुसकराती गृहस्थी देख कर उस के मम्मीपापा बहुत खुश थे