हरियाणा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि जनता अभी भी भाजपा के पौराणिकवाद में उलझी हुई है. भाजपा के पौराणिकवाद में फंस कर जनता अग्निवीर, किसानों की परेशानियों, पहलवान बेटियों के साथ जो कुछ हुआ सब को भूल गई. हरियाणा में पहली बार एक ही पार्टी ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है. जब चुनाव शुरू हुआ तो भाजपा को इस बात का यकीन नहीं था कि वह सरकार बना पाएगी. इस कारण ही मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया था.
भाजपा ने हरियाणा में न तो 70 पार का नारा पूरे जोरशोर से उठाया और न ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम का बहुत प्रचार किया. भाजपा को लग रहा था कि हरियाणा उस के लिए सुखद नतीजे ले कर नहीं आएगा. एक्जिट पोल और मतगणना के पहले 2 घंटे बड़े उतारचढ़ाव वाले रहे. कांग्रेस ने मतगणना के परिणामों को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर देरी से दिखाए जाने को ले कर शिकायत भी की. कांग्रेस ने भले ही सरकार बनाने लायक बहुमत हासिल नहीं किया लेकिन भाजपा को कडी टक्कर दी.
हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी भी इस का सब से बड़ा कारण रही है. जिस ने राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फेर दिया. जिस तरह की गलती मध्य प्रदेश के चुनाव कमलनाथ ने की थी हरियाणा में वही काम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उन के बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने किया. इन का अति आत्मविश्वास कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण बना. जेल से बाहर आने के बाद आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल करना चाहते थे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस के लिए तैयार नहीं हुए. मध्य प्रदेश में कमलनाथ भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन को तैयार नहीं हुए थे.
कांग्रेस ने मध्य प्रदेश के नतीजों से सबक नहीं लिया और हरियाणा भी हार गए. कांग्रेस में अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो राहुल गांधी को सफल होते नहीं देखना चाहते हैं. राहुल गांधी जानतेसमझते हुए भी अपनी पार्टी के नेताओं की राय को टाल नहीं पाते. उन को कुछ निर्णय पूरी मजबूती से लेने चाहिए. इसी कारण से कांग्रेस हरियाणा और जम्मू कश्मीर में वह प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई जिस की उसे उम्मीद थी.
हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटों के लिए 5 अक्टूबर 2024 को आम चुनाव हुए थे. 65 फीसदी वोट यहां पड़े थे. मतगणना और परिणाम 8 अक्टूबर 2024 को घोषित किए गए. जिस में भाजपा को 48, कांग्रेस को 37 व अन्य को 5 सीटें मिलीं. हरियाणा में बहुमत से सरकार बनाने के लिए 46 सीटों की जरूरत होती है, भाजपा बहुमत से 2 सीटें अधिक लाने में कामयाब हुई.
हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 को समाप्त हुआ था. पिछला विधानसभा चुनाव अक्तूबर 2019 में हुआ था. चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी के गठबंधन ने राज्य सरकार बनाई जिस में मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बने थे. 12 मार्च 2024 को बीजेपी और जेजेपी गठबंधन टूट गया और मनोहर लाल खट्टर ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. नायब सिंह सैनी ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी.
स्पष्ट बहुमत वाली सरकार चाहती है जनता:
हरियाणा में भले ही भाजपा के विधायकों की संख्या अधिक हो लेकिन उस का मत प्रतिशत घट कर 40 फीसदी रहा जबकि कांग्रेस को 41.24 प्रतिशत वोट मिले हैं. आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी जैसे छोटे दल जो किंग मेकर बनने का दावा कर रहे थे वह पूरी तरह से हाशिए पर चले गए हैं. इस से यह साफ है कि देश की राजनीति दो दलीय होती दिख रही है. हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के फैसलों ने एक और संकेत दिया है कि जनता अब मिलीजुली सरकार बनाने के पक्ष में नहीं है. हरियाणा में भाजपा और जम्मू कश्मीर में कांग्रेस और उस के गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला है.
देश की राजनीति में अब मुकाबला इंडिया गठबंधन बनाम एनडीए है. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस भाजपा के सामने चुनौती बनी हुई है. भाजपा देश को कांग्रेस मुक्त करना चाहती थी. हरियाणा और जम्मू कश्मीर चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि भाजपा कांग्रेस मुक्त देश नहीं बना पाई है. जीत के बाद भी हरियाणा में 60 फीसदी वोटर भाजपा के खिलाफ हैं. कांग्रेस को भाजपा से अधिक फीसदी वोट मिले हैं. आम आदमी पार्टी को 1.65 फीसदी वोट मिले हैं.
अगर हरियाणा में लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी इंडिया गठबंधन एकजुट हो कर मैदान में उतरता तो सीटों के हिसाब से रिजल्ट में बड़ा अंतर देखने को मिल सकता था. अगर कांग्रेस और भाजपा की आमनेसामने टक्कर होती तो सीटों की संख्या कुछ और होती. भाजपा को वोटों के बिखराव का लाभ मिला है. हरियाणा विधानसभा चुनाव में करीब 28 ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी और कांग्रेस के प्रत्याशियों के 5 हजार या उससे कम वोटों का अंतर दिख रहा है. ऐसे में आम आदमी पार्टी अगर कांग्रेस के साथ हरियाणा चुनाव में उतरती तो इस का कुछ और ही असर हो सकता था.
हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन को अगर बनाए रखा जाता तो रिजल्ट कुछ और ही देखने को मिल सकता था. लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने आगे बढ़ कर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, जिस की वजह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. राहुल गांधी सहयोगियों की मांग मान कर भी आगे बढ़ते हैं. कांग्रेस के दूसरे नेता सहयोगी दलों के साथ समझौता करने में नापतौल करने लगते हैं. गठबंधन में चलने वाले नापतौल की जगह पर राजनीतिक बदलाव के लिए एकजुट होते थे. अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ नहीं खड़ी होती तो वह एक सीट से बढ़ कर 6 सीट लोकसभा चुनाव में नहीं पाती.
भाजपा के लिए चुनौती
हरियाणा में भले ही भाजपा को जीत मिली हो लेकिन उस की चाहत पूरी नहीं हो सकी. कांग्रेस मुक्त भारत का उस का सपना पूरा नहीं हो सका. भाजपा को जिस बड़ी जीत की जरूरत थी वह भी उसे नहीं मिल सकी. ऐसे में उस की हालत 4 जून 2024 वाली है जब उसे अपने बल पर सरकार बनाने का मौका नहीं मिला था. हरियाणा में भाजपा 70 सीटें जीतने की बात कर रही थी. वहां तक दूरदूर वह नहीं पहुंच पाई है. कांग्रेस की ही तरह से भाजपा में भी गुटबाजी है. मुख्यमंत्री पद के लिए नायब सिंह सैनी के अलावा कई नेताओं के नाम चर्चा में हैं. जो मुख्यमंत्री नहीं बनेगा उस का असंतोष बना रहेगा.
मुख्यमंत्री की रेस मे अनिल विज का नाम भी चल रहा था. अभी भले ही भाजपा के नेता यह कह रहे हों कि नायब सिंह सैनी ही मुख्यमंत्री बनेंगे पर लोग जानते है कि मध्य प्रदेश में चुनाव जिता कर लाने वाले शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने की जगह मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया गया. इसी तरह से राजस्थान में दावा पेश करने वाली वसुंधरा राजे सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की जगह पर भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया. ऐेसे में यह मान कर लोग चल रहे हैं कि हरियाणा में भी बदलाव हो सकता है.