“फाइनली आज मुझे भरोसा हो ही गया हमेशा से सुनी इस बात पर कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं,” अश्लेषा ने अपना बैग डायनिंग टेबल पर रखते हुए कहा.
“ऐसा क्या हो गया जो आज तुम इतनी खुश और संतुष्ट दिख रही हो,” पति श्लोक ने अपनी टाई खोलते हुए कहा.
“आज की न्यूज ने मुझे मेरे जीवन के प्रत्येक संघर्ष का जवाब दे दिया है. मैं ही नहीं, तुम भी सुनेगो तो तुम भी खुश हुए बिना नहीं रह पाओगे,” कहते हुए पति श्लोक के गले में अपनी दोनों बाहें डाल अश्लेषा लगभग झूल सी गई.
“चलो तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ, मैं चाय बना कर लाती हूं, फिर बालकनी में बैठ कर बात करते हैं.”
“हां बिलकुल, मैं मुन्ना हलवाई के गरमागरम समोसे ले कर आया हूं, बैग से निकालो और लगाओ. मैं फ्रैश हो कर बालकनी में चेयरकुरसी सैट करता हूं.”
कुछ देर बाद वे दोनों भोपाल का पौश एरिया कहे जाने वाले चारइमली के बंगला न 204 के गार्डन में बैठे चाय पी रहे थे. चाय का पहला घूंट लेने के बाद अश्लेषा बोली, “आज अनिमेष को सर्विस से टर्मिनेट कर दिया गया, साथ ही, कोर्ट ने 4 लाख रुपए का मुचलका और 2 साल की सजा भी सुनाई है.”
“क्या बात कर रही हो, यह तो हमारी बहुत बड़ी जीत है. देखा, मैं हमेशा कहता था न कि तुम हिम्मत मत हारो, इस संसार में प्रत्येक इंसान को अपने कर्मों का फल हर हाल में मिलता ही है. अब निकल गई न उस की सारी अकड,” श्लोक ने खुश होते हुए कहा.
“सच में मुझे हमेशा लगता था कि वह दिन कब आएगा जब मैं अनिमेष को सजा होते देखूंगी. मेरे इतने सालों का संघर्ष फल लाया. सच कहूं तो मैं अभी तक अपने जीवन का एक एक दिन आज के दिन के इंतजार में काट रही थी. अब मेरा आगे का जीवन शांति से गुजरेगा,” अश्लेषा ने खुश होते हुए कहा.
वे दोनों बात कर रहे थे कि अश्लेषा का मोबाइल बज उठा. बेटी चित्रा की कौल थी.
“हेलो मौम-डैड, आप लोग कैसे हो? क्या बात है आप लोग आज बड़े खुश दिख रहे हो? मम्माडैड, यहां इतनी ठंड है कि आप लोग सोच भी नहीं सकते. अभी तो हम यहां शिमला का मार्केट घूमने आए हैं, कल मनाली जाएंगें.’’
“अभी औफिस से आ कर हम दोनों चाय पी रहे हैं और अब तुझ से बात कर ली तो दिल खुश हो गया,” अश्लेषा ने खुश होते हुए कहा.
“चलो ठीक है मां, अब मैं रात को वीडिओकौल करती हूं,” कहते हुए चित्रा ने फोन रख दिया.
‘’यह भी न, दिन में दस बार तो फोन करती ही है. खाना क्या खाओगे, अनीता आती होगी, जो तुम खाओ वही बनवा लेती हूं,” अश्लेषा ने रिलैक्स होते हुए कहा.
“आज का दिन तुम्हारा है, इसलिए जो तुम चाहो वह बनवा लो. आज तो तुम्हारी पसंद का ही खाना खाया जाएगा. मैं अंदर टीवी देख रहा हूं,” कह कर श्लोक अंदर चले गए.
इधर, अश्लेषा के मन में उमड़ रहा तूफान आंसू बन आंखों से बह निकला. उस का मन 20 साल पुरानी उन गलियों में जा पहुंचा जहां उस का बचपन बीता था. अपने मम्मीपापा की लाड़ली बेटी थी वह. मां एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थीं तो पिताजी एक बैंक में क्लर्क थे. एक छोटा भाई था जो उस से 4 साल छोटा था.
हर मध्यवर्गीय परिवार की तरह उस का परिवार भी अपनी सीमित आय में भी आराम से गुजारा कर लेता था. मांपापा ने अपने दोनों बच्चों को बड़े लाड़प्यार से तो पाला ही था, साथ ही, उन की शिक्षादीक्षा में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी.
अश्लेषा ने इंजीनियरिंग कर के स्टेट इंजीनियरिंग सर्विस का एग्जाम दिया था और बीएसएनएल में असिस्टैंट इंजीनियर की पोस्ट पर उस की पहली नियुक्ति उज्जैन में हुई थी. उस की मम्मी ने हमेशा यही कहा था कि मैं अपनी बेटी को बहुत पढ़ाऊंगी ताकि वह आत्मनिर्भर बन कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके और अपनी जिंदगी का हर फैसला अपनी मरजी से ले सके और उन्होंने यही किया भी. उन के समाज में जहां ग्रेजुएट होते ही बेटियों की शादी कर दी जाती थी वहां उन्होंने नातेरिश्तेदारों के लाख कहने के बावजूद अपनी बेटी का ब्याह तभी किया जब वह आत्मनिर्भर हो गई.
जब उस की सर्विस को एक साल हो गया तभी अनिमेष का रिश्ता उस के लिए आया था. अनिमेष पीडब्ल्यूडी विभाग में असिस्टैंट इंजीनियर थे. उन की पोस्टिंग इंदौर में थी. कुछ प्रयासों के बाद दोनों में से किसी एक का स्थानांतरण करवा लिया जाएगा, ऐसा सभी का मानना था. दोनों ही टैक्निकल फील्ड के हैं, दोनों की ही गवर्नमैंट जौब है, सो, अपने सुखद भविष्य की कल्पना कर के उस ने भी इस रिश्ते पर अपनी सहमति दे दी थी.
अनिमेष मध्य प्रदेश के भिंड जिले के रहने वाले थे. पिता एक स्कूल में प्रिंसिपल और माता होममेकर थीं. परिवार में उन के अलावा 2 बहनें और थीं जिन की शादियां हो चुकी थीं. कुल मिला कर अच्छाख़ासा खातापीता परिवार था. इसलिए उस के मातापिता ने विवाह में कोई देर नहीं की थी. हां, उस की मम्मी दहेज के खिलाफ थीं, सो, गोदभराई की रस्म में ही उन्होंने अनिमेष के परिवार वालों के सामने स्पष्ट कर दिया था कि, ‘देखिए, हम ने अपनी बेटी को पढ़ानेलिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, इसलिए मैं दहेज़ नहीं दूंगी और न ही मैं अपनी नाजों से पाली बेटी का कन्यादान करूंगी. हां, हमें जो भी अपनी मरजी से देना होगा वह देंगे पर आप की कोई मांग होगी तो वह हम पूरी नहीं कर पाएंगे.’
‘कैसी बातें करती हैं जी, आप अपनी बेटी हमें दे रही हैं, यह क्या कम है. इस के आगे हमें कुछ भी नहीं चाहिए, प्रकृति का दिया हमारे पास सबकुछ है और जहां तक कन्यादान की बात है, उस से तो आप को ही पुण्य मिलना है, हमें तो कोई लाभ है नहीं. हमारी यों भी कोई डिमांड नहीं है,” अनिमेष की मां ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा था. और इस प्रकार बहुत ही सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में उन दोनों की शादी हो गई थी. विवाह के बाद अश्लेषा ने उज्जैन तो अनिमेष ने इंदौर में अपनी सर्विस जौइन कर ली थी.
अश्लेषा के बेहद सरल और शांत स्वभाव के विपरीत अनिमेष बेहद उग्र, बड़बोला और बातबात पर झगड़ने वाला था. भिंडमुरेना क्षेत्र का पर्याप्त प्रभाव उस के स्वभाव में परिलक्षित होता था. उस की ही तरह उस के परिवार वाले भी उग्र स्वभाव वाले थे, बिना गालीगलौज के तो मानो उन्हें बात करना ही नहीं आता था. अश्लेषा ने नोटिस लिया था कि वहां के हर घर में तो बंदूक होती थी जो जराजरा सी बात पर निकल आती थी.
विवाह के समय जब अनिमेष उसे मंगलसूत्र पहना रहा था तो उस की सास ने कहा, ‘बेटा, यह मंगलसूत्र सिर्फ एक गहना नहीं है, इसे गले में पहनने के साथ अब तुम मेरे बेटे के साथ सात जन्मों तक के लिए तो बंध ही गई हो, साथ ही साथ, इस परिवार का मानसम्मान रखना अब तुम्हारी भी जिम्मेदारी है. जिंदगी में अनेक उतारचढ़ाव आते हैं पर हमेशा ध्यान रखना कि तुम ने अपने गले में अपने पति के नाम का मंगलसूत्र पहन रखा है.’ उस ने भी हंसीख़ुशी इस जिम्मेदारी को अपने ऊपर ले लिया था.
अनिमेष ने इंदौर में एक फ्लैट किराए से ले रखा था जहां से वह प्रति शनिवार उज्जैन आ जाता था या फिर अश्लेषा भी कभीकभी चली जाती थी. इस तरह से दोनों अपनी नईनवेली गृहस्थी का आनंद उठाते हुए जिंदगी जी रहे थे. अकसर अनिमेष की बड़ीबड़ी डींगें सुन कर अश्लेषा मुसकरा देती और कहती कि तुम लोग कितनी बड़ीबड़ी बातें करते हो, ऐसा लगता है मानो सारी दुनिया ही तुम्हारी मुट्ठी में हो.
‘क्या बात करती हो. मुट्ठी में ही है मैडम. कहो तो प्रूव कर दूं. बस, शर्त यह है कि यह बात जिंदगी में कभी भी तुम्हारी जबान से बाहर नहीं आनी चाहिए.’
‘मुझे क्या पड़ी है जो मैं किसी को बताऊंगी. बताओ, ऐसी क्या बात है?’
‘तुम्हें पता है मैं ने जब बीए किया था तो एक दिन भी पढ़ाई नहीं की थी और कालेज में टौप किया था,’ अनिमेष ने गर्व से सीना फुलाते हुए कहा था मानो कोई बहुत बड़ा काम कर के आया हो.
‘नकल की होगी तो बिना पढ़े टौप करोगे ही. पर तुम ने तो स्टेट इंजीनियरिंग का एग्जाम पास कर के नौकरी पाई तो क्या उन दिनों कंपीटिशन की तैयारी कर रहे थे?” अश्लेषा ने उत्सुकता से कहा.
‘देखो, फिर एक बार कह रहा हूं कि तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए बता रहा हूं वरना मेरे घर में पापा के अलावा यह बात किसी और को पता नहीं है. हमारे सैंटर पर पैसे ले कर परचा आउट करवाया गया था. अब मैं ने पढ़ाई तो की नहीं थी जो कुछ लिख पाता क्योंकि नकल करने के लिए भी तो अक्ल की जरूरत होती है. जब रिजल्ट आया तो मेरी थर्ड डिवीजन थी. फिर मैं ने अपनी मार्कशीट की ही बिलकुल हूबहू मार्कशीट बनवाई, जिस में मैं ने टौप किया और उसी के बेस पर मैं ने अपनी नौकरी का इंटरव्यू दिया और नौकरी प्राप्त की.
मेरी नौकरी इंटरव्यू बेस्ड थी, सो, थोड़ा जुगाड़ लगा लिया, थोड़ा पैसा खर्च कर दिया और लग गई नौकरी. और देखो, आज नौकरी करते भी मुझे 5 साल हो गए हैं. अब तो कोई माई का लाल भी मेरा क्या बिगाड़ पाएगा.’
‘पर यह तो सरासर धोखाधड़ी है. कभी भी तुम्हारी नौकरी जा सकती है. तुम्हें पता है, इस तरह के केस के खुलने पर सीधे जेल होती है,’ अश्लेषा ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, कैसे कर लेते हो तुम लोग इतना गलत काम, कहां से लाते हो इतना बड़ा जिगर कि चोरी और सीना जोरी. मैं तो कभी नकल तक करने का भी नहीं सोच सकती और तुम, गजब है भाई.’ और अश्लेषा ने अनिमेष के आगे अपने हाथ जोड़ दिए थे.
“अरे यार, बातोंबातों में मैं तुम्हें बता तो गया पर प्लीज, तुम इसे अपने तक ही रखना, जिंदगी में कभी भी किसी भी हालत में यह बात बाहर नहीं आनी चाहिए. तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए मैं ने सब सच तुम्हें बता दिया,’ अनिमेष ने उस के सामने अपनी बात रखते हुए कहा था.
‘अरे तुम पागल हो क्या, मैं क्यों कभी किसी से कहूंगी पर हां, तुम्हें जरूर चेतावनी देना चाहूंगी कि इसे कभी भी अपनी दिलेरी समझ कर किसी के भी सामने बयां मत कर देना. यह बहुत बड़ा अपराध है सरकार और कानून दोनों की निगाह में. अगर कभी खुल गया तो नौकरी तो जाएगी ही, साथ ही, तुम खुद जेल जाओगे.’ इस के बाद दोनों अपनेअपने काम में बिजी हो गए.
और इस तरह अश्लेषा को अपनी जिंदगी से कोई गिलाशिकवा न था. एक दिन अचानक औफिस में काम करते समय उसे चक्कर आने लगे तो वह अपनी फेमिली डाक्टर अनीशा के पास जा पहुंची. उस का पूरा चैकअप करने के बाद अनीशा बोली, ‘बधाई हो मैडम, अब आप की फेमिली में नया सदस्य आने वाला है. जाइए और अपने पतिदेव को यह शुभ सूचना दीजिए.’
उस का भी मन ख़ुशी से बावला हो रहा था. सो, गाड़ी में बैठते ही उस ने अनिमेष को फोन लगाया, ‘अनु, तुम जल्दी से घर आ जाओ, मुझे बहुत बड़ी न्यूज तुम्हें देनी है.’
‘अरे, मैं पहली बार तुम्हें इतना खुश देख रहा हूं, बताओ न क्या हुआ है? अब मुझ से सब्र नहीं हो रहा है. प्लीज, बता दो न,’ अनिमेष ने खुश होते हुए कहा.
‘नहीं, तुम आओ पहले, तभी बताऊंगी.’
2 घंटे बाद जब अनिमेष आया तो अश्लेषा ने खुश हो कर उसे अपनी प्रैग्नैंसी की बात बताई पर अनिमेष की ठंडी प्रतिक्रिया देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ,
‘क्या हुआ, तुम खुश नहीं लग रहे?’
‘हां, दरअसल मैं अभी इस जिम्मेदारी के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता. वैसे मेरी मानो तो तुम भी अभी बच्चे वगैरह के चक्कर में न ही पड़ो तो ही अच्छा रहेगा. इतनी अच्छी चल रही है अपनी जिंदगी, क्यों इस में तूफान लाना, बच्चा मतलब सारी मौजमस्ती ख़त्म. बस, दिनरात उस के डायपर ही बदलते रहो, न रात में नींद पूरी न दिन में चैन और कम से कम मैं तो अभी ये सब करने को तैयार नहीं हूं,’ अनिमेष ने अपना मत रखते हुए कहा.
‘यानी, तुम चाहते हो कि मैं अबौर्शन करवा लूं,’ उस ने चौंकते हुए कहा.
‘हां, इन सब झंझटों में मत पड़ो और कल ही अबौर्शन करवा लो. अभी तो शुरुआत ही है, सो तुम्हारी बौडी पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा.’
‘नहीं, यह संभव नहीं. तुम चाहो या न चाहो, मैं इस बच्चे को पैदा करूंगी. जो बच्चा हम दोनों के कारण इस संसार में आ रहा है उसे ही मैं यहां आने से रोक दूं, इस में उस अजन्मे बच्चे का क्या दोष. नहीं, मैं ऐसा बिलकुल नहीं करूंगी. मेरा शरीर है और मुझे क्या करना है, इस का हक़ मैं अपने सिवा किसी और को नहीं दूंगी,’ कह कर अश्लेषा किचेन में खाना डायनिंग टेबल पर लगाने चली गई. उस दिन दोनों में अबोला सा छाया रहा और दूसरे दिन दोनों अपनेअपने काम पर चले गए. बेमन, बेपरवाही से ही सही, एक बार फिर से दोनों की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर चल निकली थी.
नौ माह बाद उस ने एक फूल सी नाजुक, प्यारी सी बेटी को जन्म दिया तो उसे लगा मानो उस ने पूर्ण नारीत्व प्राप्त कर लिया. इस सब के बीच अनिमेष का व्यवहार बहुत सुस्त रहा. जन्म लेने के दूसरे दिन जैसे ही अनाया को उस ने गोदी में लिया तो बोला, ‘लो आ गई तुम्हारी ही तरह हवा में झंडा गाड़ने वाली तुम्हारी बेटी.’
धीरेधीरे अनाया बड़ी हो रही थी. अश्लेषा अभी मैटरनिटी लीव पर थी, सो वह पूरे समय घर और चित्रा में व्यस्त रहती थी. पहले तो फिर भी सप्ताह के बीचबीच में अनिमेष उज्जैन आ जाता था पर पिछले कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि अनिमेष का मिजाज कुछ उखड़ाउखड़ा सा रह रहा है. उज्जैन आता भी है तो, बस, फौर्मैलिटी के लिए. एक रात रुकता और अगले दिन औफिस का जरूरी काम बता कर चला जाता. कभी कभी तो 15 दिनों तक भी इंदौर से उज्जैन न आता था. एक दिन जब अश्लेषा ने इस बाबत उस से कहा तो वह लगभग झुंझलाते हुए बोला, ‘हर समय एकजैसा नहीं होता. आजकल औफिस में बहुत काम रहता है. तुम्हारा क्या है, मैटरनिटी लीव ले कर आराम फरमा रही हो.’
इस बार एक महीना हो गया था, अनिमेष उज्जैन नहीं आया था. अश्लेषा ने इंदौर में रहने वाली अपनी दोस्त सीमा को फोन मिलाया. सीमा के पति अनिमेष के ही औफिस में क्लर्क थे.
सारी बात सुन कर सीमा बोली, ‘आशु, मैं खुद तुझे फोन लगाने की सोच रही थी पर समझ नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं और क्या कहूं, अभी तो तेरी शादी को 3 साल ही हुए हैं. बेबी को हुए तो अभी 4 माह ही हुए हैं. पर अच्छा हुआ तूने खुद ही लगा दिया. सब गड़बड़झाला चल रहा है यहां. तू अपनी बिटिया में व्यस्त है, अनिमेष के परिवार की जिम्मेदारी संभाल रही है और अनिमेष यहां सबीना नाम की अपनी असिस्टैंट के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा है. दोनों के प्यार के चर्चे पूरे औफिस में हैं. सुना है, दोनों जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’
‘अरे, पर यह सबीना कहां से आ गई. पहले से भी कुछ था इन दोनों के बीच और यदि था तो मुझे किसी ने क्यों नहीं बताया?,’ कहते हुए अश्लेषा एकदम रो सी पड़ी थी.
‘देख, रोने से कुछ होने वाला है नहीं. सबीना अनिमेष की असिस्टैंट है, दोनों ने एकसाथ ही जौइन किया था. सबीना अविवाहित है. घर में सिर्फ उस की मां हैं. तेरी शादी से पहले भी इन दोनों के चर्चे औफिस में मशहूर थे. हर टूर पर दोनों साथसाथ जाते हैं. औफिस में तो चर्चा है कि अनिमेष और सबीना लिवइन रिलेशन में लगभग तब से हैं जब से अनिमेष ने औफिस जौइन किया है. तेरी शादी के समय थोड़ा कम हुआ था पर जब से बेटी हुई है तब से तो ये दोनों फ्री हो गए लगते हैं,’ सीमा ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा.
हे प्रकृति, यह क्या हो गया. अब कैसे हैंडिल करूं. एक पल को तो वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. तभी उस के कानों में अनाया के रोने की आवाज आई. उस ने दौड़ कर अनाया को सीने से लगाया और मन ही मन बोली, ‘अपनी बेटी के लिए न्याय तो मैं ले कर रहूंगी. अब सचाई का पता लगा कर सबक सिखाने का समय आ गया है.’
शनिवार को जब अनिमेष उज्जैन आया तो वह बोली, ‘अनु, यहां भी मैं अकेली ही रहती हूं, सोच रही हूं तुम्हारे पास इंदौर ही आ जाती हूं. कम से कम बेटी को अपने पापा का और मुझे अपने पति का प्यार तो मिल पाएगा. यहां तो अकेले पड़ेपड़े हम दोनों तुम्हारे दर्शन को ही तरस जाते हैं.’
‘अरे नहीं, वहां दिनभर अकेली पड़ीपड़ी भी तुम बोर ही होगी. यहां चित्रा का पूरा सैटअप है, वह यहां पर अच्छी तरह सैट है. जो सिस्टम है वही चलने दो.’
‘क्यों चलने दूं वही सिस्टम. चित्रा का सैटअप बिगड़ जाएगा या तुम्हारा सैटअप उखड़ जाएगा? जब तुम्हारा किसी और के साथ रिलेशन था तो मेरे साथ क्यों लिए सात फेरे,’ अश्लेषा ने क्रोध से कहा.
‘क्या बकवास कर रही हो तुम. मेरा सैटअप क्यों उखड़ेगा. रह तो रही हो यहां चैन से, क्या दिक्कत है? इसी सब के कारण ही मैं इन सब झंझटों में नहीं पड़ना चाहता था पर नहीं, तुम्हें तो मां बनना था. सो, अब क्या परेशानी है? कौन सा रिलेशन, किस के साथ रिलेशन? तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो? होश में हो कि बेहोश हो?’ अनिमेष ने बिलकुल अनजान बनते हुए कहा था.
‘ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत करो, मुझे है परेशानी तुम्हारी गर्लफ्रैंड सबीना से, कौन है सबीना, क्या रिलेशन है तुम्हारा?’
‘ओह, तो इसलिए मैडम उखड़ रही हैं. तुम तक भी पहुंच गई यह बात. देखो, अब मैं भी तुम्हें बता दूं सबीना से आज से नहीं, बरसों से मेरी दोस्ती है, हमारी शादी से पहले से.’
‘तो उसी से शादी क्यों नहीं की, मेरे गले में यह घंटा क्यों लटकाया था?’ अश्लेषा ने अपना मंगलसूत्र हिलाते हुए कहा.
‘शादी और दोस्ती दोनों अलग बातें हैं, मेरी जान. शादी उस से की जाती है जो घरपरिवार का मान रखे, घर की जिम्मेदारियां संभाले, बच्चे का पालनपोषण करे, परिवार की देखभाल करे. और इन सब में तुम एकदम परफैक्ट ही नहीं बल्कि एक कदम आगे हो क्योंकि तुम कमाती भी हो. वहीं, दोस्ती उस से की जाती है जिस के साथ आप मौजमस्ती कर सको. उस में सबीना परफैक्ट है. समझ गईं न,’ यह कह कर अपना बैग कार में डाल अनिमेष इंदौर चला गया.
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. रोतेरोते उस ने अपनी मां को फोन लगा कर सारी बात बताई.
‘सब से पहले तो तू रोना बंद कर. तूने थोड़े ही कुछ किया है जो रो रही है. आत्मनिर्भर है तू. पहले बात को सुलझाने की कोशिश करते हैं, फिर देखते हैं. मैं आती हूं तेरे पास कल.’
अगले दिन उस की मां वीणा उस के पास थीं. मां के आने से उसे कुछ राहत मिली. शनिवार को जब अनिमेष आया तो वीणा ने सारी बात उस के सामने रख कर कहा, ‘ऐसे तो देखिए चलेगा नहीं. आप सबीना और अश्लेषा दोनों को ही धोखा दे रहे हैं. क्या सबीना को आप की शादी के बारे में पता है? यदि आप के परिवार में भी यह बात पता थी तो फिर मेरी बेटी के साथ धोखा क्यों किया गया?’
‘मैं आप की पूरी इज्जत करता हूं. आप की बात भी सही है पर मैं ने अपने घर में जब सबीना के बारे में बताया था तो तूफान आ गया था. एक मुसलमान लड़की के साथ दोस्ती को तो पचा नहीं पा रहे थे वे, शादी क्या करते. मेरी उस से महज दोस्ती ही है, इस से ज्यादा कुछ नहीं,’ कह कर उस दिन भी अनिमेष इंदौर चला गया.
इस के बाद वीणा ने अनिमेष के मातापिता को जब पूरी बात बताई तो वे बोलीं, ‘अरे बहनजी, बच्चों के बीच में आप क्यों पड़ती हैं. आपस में सब सुलझा लेंगे. अरे, अश्लेषा के गले में मंगलसूत्र तो अनु के नाम का ही है. ठीक है आदमी बाहर रहता है तो इस तरह के दोस्त बना ही लेता है. कुछ दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा. आप चिंता मत कीजिए.’
‘और अगर मेरी बेटी इसी तरह के दोस्त बनाने लगे तो क्या आप को और आप के बेटे को सहन होगा. मंगलसूत्र है तो क्या मेरी बेटी ने अपनी जिंदगी अनिमेष के नाम कर दी है. मंगलसूत्र पहनने का मतलब यह तो नहीं कि मेरी बेटी अपनी जिंदगी बरबाद कर दे. ऐसे मंगलसूत्र को पहनने से क्या फायदा जो मेरी बेटी की जिंदगी को नरक बना दे.’
अब वे अपनी बेटी को मानसिक सपोर्ट देने के लिए उस के पास कुछ दिनों के लिए रुक गईं. कुछ और जांचपरख के बाद स्पष्ट हो गया था कि अनिमेष सबीना के साथ शादी से पहले से ही लिवइन रिलेशनशिप में रह रहा था. शादी उस ने केवल घर वालों के दबाव में और समाज को दिखाने के लिए की थी.
एक दिन वीणा जी ने अश्लेषा से कहा, ‘देख बेटा, अब डिसीजन लेने का समय आ गया है. मैं बिलकुल नहीं कहूंगी कि इस मंगलसूत्र नाम के घंटे के लिए तू अपनी जिंदगी बरबाद कर दे. अभी तेरे सामने तेरी पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. तू कमाती है, आत्मनिर्भर है इसलिए जितनी जल्दी हो सके, इस जबरदस्ती के बंधन से मुक्त हो कर अपनी मरजी से अपनी जिंदगी जीना सुनिश्चित कर. पर हां, अंतिम निर्णय तेरा ही होगा.’
‘मां, देखो, अब मैं इसे ऐसा सबक सिखाऊंगी कि यह जिंदगीभर याद रखेगा. जो लोग लड़कियों को अपने हाथ की कठपुतली समझते हैं उन के लिए एक सबक साबित होगी अनिमेष की जिंदगी.’
इस के बाद एक तरफ जहां अश्लेषा ने तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दी वहीं, अनिमेष के डौक्युमैंट्स की जांच के लिए भी उस के विभाग में एक एप्लीकेशन दी थी. जैसे ही अनिमेष को इस बारे में पता चला, अश्लेषा के घर आ कर बहुत हंगामा किया, ‘तुम समझती क्या हो खुद को, यही तो समस्या होती है इन कमाऊ लडकियों के साथ, चार पैसे क्या कमाने लगती हैं, खुद को ही तीसमारखां समझने लगती हैं. मैं भी देखता हूं कि कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता है.’
रोजरोज के तनाव और विवाद से बचने के लिए अश्लेषा ने अपना ट्रांसफर भोपाल अपने मातापिता के पास करवा लिया था ताकि अपनी नौकरी पर फोकस कर सके. विगत में वह इतना खो गई थी कि कब सुबह के 4 बज गए थे, उसे ही पता नहीं चला था. बहुत कोशिश कर के उस ने खुद को उन बीती यादों से निकाला और कब उस की आंख लगी, उसे ही पता न चला.
“चायचाय, गरमागरम चाय, आप की सेवा में हाजिर है,” श्लोक की आवाज से उस की आंख खुली. घड़ी में 9 बज रहे थे. वह तो अच्छा था कि आज संडे था और हर संडे को श्लोक इसी तरह उस के सामने चाय ले कर हाजिर हो जाते हैं.
“क्या हुआ आज तो लगता है अनिमेष की यादों में ही खोई रहीं तुम. इसीलिए इतनी देर से सो कर उठीं.”
“हां, कह सकते हो तुम.”
चाय पी कर वह जो घर के कामों में लगी तो दोपहर हो गई. अनीता ने खाना डायनिंग टेबल पर लगा दिया था. संडे को खाना खा कर दोपहर की झपकी लेना उस के और श्लोक दोनों की ही आदत में शुमार है. सो, खाना खा कर दोनों बैड पर लेट गए. श्लोक को जब लिटा दो, तो निद्रादेवी झट आ कर उन्हें अपनी आगोश में ले ही लेती हैं. पर उस की आंखों में तो फिर से अधूरी दास्तान मानो बाहर आने को बेचैन थी.
उस की शिकायत के बाद अनिमेष की जब जांच हुई तो उस के सारे दस्तावेज फर्जी निकले. जांच 4 साल तक चली. डिपार्टमैंट के अधिकारियों ने फोन पर कई बार उस के बयान लिए थे. उधर कोर्ट में डायवोर्स के केस के लिए उसे बारबार उज्जैन जाना पड़ता था. इस से उसे मानसिक और शारीरिक थकान तो होती थी पर अब उसे अपराधी को सजा दिलवाए बिना चैन ही नहीं था. 2 साल के लंबे अंतराल के बाद उसे तलाक मिल गया था लेकिन अभी सर्विस वाले केस पर निर्णय आना शेष था.
डायवोर्स होने के बाद मांपापा उस पर अब दूसरी शादी करने के लिए दबाव बनाने लगे थे पर अनिमेष से धोखा खाने के बाद उस का मन अब किसी और पर विश्वास करने को तैयार न था. उन्हीं दिनों उसी के डिपार्टमैंट में चीफ इंजीनियर की पोस्ट पर श्लोक ट्रांसफर हो कर आए थे.
आम अधिकारियों से कुछ अलग ही व्यवहार था श्लोक का. दिखने में सुदर्शन, व्यवहार में सौम्य, वाणी में विनम्रता मानो उन की हर बात में झलकती थी. कभी किसी से डांट कर बात नहीं करते थे. चाहे अधिकारी हो या चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, हरेक से प्लीज कर के बात करते थे, श्लोक. वह ही नहीं, औफिस के सभी कर्मचारी उन के व्यवहार के कायल थे. अकसर काम के सिलसिले में उस का सामना भी श्लोक से हो जाया करता था. डिपार्टमैंटल ट्रेनिंग पर इस बार श्लोक और उसे दोनों को सिक्किम जाने का और्डर आया था. वहां जा कर एक प्रोजैक्ट को देखना था और उस के आधार पर ही मध्य प्रदेश में भी एक प्रोजैक्ट लौंच किया जाना था. अपना नाम और्डर में देख कर वह घबरा गई और जा पहुंची श्लोक के केबिन में, ‘सर, आई डोंट वांट टू गो. प्लीज, आप मेरा नाम हटवा दीजिए.’
उसे देखते ही श्लोक उठ खड़े हुए और बोले, ‘आइए, आइए मेम. व्हाट हैपेंड, व्हाई यू डोंट वांट टू गो? इट इज ऐन अपौर्च्यूनिटी, इट विल हैल्प यू इन योर ब्राइट फ्यूचर. थिंक अगेन एंड टेल मी. आप अच्छे से सोच लीजिए, फिर जैसा आप कहेंगी, मैं कर लूंगा. कल बताइएगा मुझे.’
घर आ कर जब उस ने मांपापा को सिक्किम वाली बात और श्लोक की प्रतिक्रिया से अवगत कराया तो उन्होंने कहा, ‘सही तो कह रहे हैं तुम्हारे साहब, जाना ही चाहिए, इतना अच्छा मौका मिल रहा है. जाओ, वैसे भी इतने समय से फालतू के झंझट झेल कर परेशान हो गई हो. अनाया की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. अब तो वह तुम्हारे बिना बड़े आराम से रह लेती है.’
अगले दिन औफिस में पहुंच कर उस ने श्लोक को अपनी सहमति से अवगत कराया. वे बोले, ‘देखिए, इसीलिए मैं ने फिर से विचार करने को कहा था.’
इस के बाद एक सप्ताह की ट्रेनिंग पर वे दोनों सिक्किम गए थे. सिक्किम में दोनों को अधिकतर समय साथसाथ ही रहना होता था. अश्लेषा दिन में कई बार अपनी बेटी से बात करती थी तो श्लोक अपनी मां से. जिस से उस ने अंदाज लगाया कि श्लोक अपनी मां के काफी नजदीक हैं. एक दिन जब वह अनाया से बात कर रही थी तब श्लोक ने धीरे से कहा, ‘आप की बेटी कितनी बड़ी है और किस के पास छोड़ कर आई हैं आप?’
‘7 साल की है वह और अपनी नानीनाना के पास है.’
‘आप के पति कहीं और पोस्टेड हैं क्या?’’ शलोक ने विनम्रता से कहा.
‘नहीं सर, बहुत अलग सी कहानी है मेरी. फिर कभी बताऊंगी. आप बताइए, आप शायद अपनी मां के काफी नजदीक हैं?’
‘नजदीक क्या, मेरा परिवार ही मेरी मां हैं. मैं जब 8 साल का था तभी पापा देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे. मां ने अकेले ही मुझे बड़ा किया है और इस मुकाम तक पहुंचाया भी है. इसलिए मैं जो कुछ भी हूं, सिर्फ और सिर्फ अपनी मां के कारण हूं,’ श्लोक बात करतेकरते कुछ भावुक से हो गए थे.
बस, इस के बाद वे दोनों एकदूसरे से खुलते गए थे. श्लोक के शालीन व्यवहार पर तो वह वैसे ही फ़िदा थी, अब उसे उस से बात करना भी अच्छा लगने लगा था. एक दिन जब वह अनाया से वीडिओकौल पर बात कर रही थी तो श्लोक से भी उस ने उस की बात करवाई. बात करने के बाद श्लोक बोले, ‘आप के मम्मीपापा और बेटी बहुत अच्छे हैं. अब आज तो आप बता ही दीजिए अपनी कहानी अपनी ही जबानी.’ श्लोक ने इस तरह कहा कि वह एकदम खिलखिला कर हंस पड़ी.
‘क्या हमेशा उदासी ओढ़े रहती हैं आप. देखिए हंसते हुए कितनी अच्छी लगती हैं आप?’ उस के हंसते समय श्लोक ने अपने द्वारा खींची तसवीर दिखाते हुए कहा.
इस के बाद उस ने धीरेधीरे अपने और अनिमेष के बारे में सारी दास्तान श्लोक को कह सुनाई थी. सुनने के बाद श्लोक एकदम से हंसे और बोले, ‘बाप रे, अपने भविष्य के साथ किस तरह का खिलवाड़ करते हैं लोग, कहां से लाते हैं इतना साहस. आप ने बिलकुल सही किया. और यह मंगलसूत्र का मान रखना क्या होता है यानी एक साधारण से गहने के पीछे एक महिला अपनी पूरी जिंदगी तबाह कर दे. और हां, उस की सर्विस वाला डिसीजन हुआ कि नहीं?’
‘अभी कहां, सरकारी संस्थाएं पूरी जांचपड़ताल के बाद ही डिसीजन देती हैं. मामला चल रहा है, देखिए कब तक क्या होता है.’
ट्रेनिंग से आने के बाद भी दोनों का आपस में मिलनाजुलना जारी रहा. श्लोक की मम्मी का जन्मदिन था जिस में श्लोक ने अश्लेषा और उस के पूरे परिवार को भी बुलाया था. श्लोक की मम्मी भी उसी की तरह बहुत विनम्र और बहुत जिंदादिल थीं. उन्हें देख कर उन की उम्र का एहसास तक नहीं होता था. अश्लेषा और उस की बेटी को देखते ही वे चिहुंक उठीं, ‘ओह माई गौड, तुम ने जितना बताया था, ये मांबेटी तो उस से भी कहीं ज्यादा सुंदर हैं.’ उस की मम्मी और पापा को भी श्लोक और उस की मम्मी से मिल कर बहुत अच्छा लगा था.
अगले दिन जब वह औफिस चली गई तो श्लोक की मम्मी उस के घर आ पहुंचीं और बिना किसी औपचारिकता के वीणा जी से अश्लेषा का हाथ मांग बैठीं. पहले तो श्लोक की मम्मी का प्रस्ताव सुन कर वीणाजी चौंक गईं, फिर बोलीं, ‘पर आशू कहां तैयार है अभी. वह तो शादी का नाम सुन कर ही भड़क जाती है. मैं तो नहीं, आप ही उस से बात करो.’
‘मेरा बेटा कौन सा तैयार है. वह तो शादी न करने का ही तय कर के बैठा है, कहता है, पूरी जिंदगी आप ने मेरे लिए गुजार दी. अब कोई तीसरी आ कर हम दोनों को ही अलग करने का प्लान कर ले, यह मैं बिलकुल नहीं चाहता. आप लोग अपना बताइए, आप को तो कोई परेशानी नहीं है न मेरी समधन बनने में?’
‘अरे नहींनहीं, मेरे लिए तो बहुत ही ख़ुशी की बात होगी जो आप मेरी समधन बनें,’ कहते हुए वीणाजी ने श्लोक की मम्मी को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों की ही मम्मियों ने अपने बच्चों को तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दोनों को ही अपने मातापिता के सामने झुकना पड़ा था.
जब दोनों के विवाह पर लगभग मुहर सी लग गई तो एक दिन अश्लेषा ने कहा, “आप मुझ से विवाह करने को तो तैयार हैं पर क्या आप ने कभी सोचा है कि मेरे जीवन में एक बेटी भी है और जो मेरी जान है, उस के बिना मेरा ही कोई अस्तित्व नहीं है. और क्या आप की मम्मी मुझे मेरी बेटी के साथ अपनाने के लिए तैयार हैं?’
‘तुम्हें क्या लगता है, मैं और मेरी मां इतने दकियानूसी हैं कि तुम्हें अपनाएं और अनाया को नहीं. मुझे और मम्मा को तुम अनाया के साथ ही स्वीकार हो. हमारे लिए ख़ुशी की बात होगी जो तुम दोनों हमारी जिंदगी में आओगी. तो प्लीज अपने कदमों से आप दोनों मेरे घरआंगन को रोशन करेंगी. और हां, अनाया और मेरी कितनी अच्छी बौन्डिंग है, यह तो तुम्हें पता ही है न.’
बस, इस के बाद जोरशोर से उन दोनों का सर्वसम्मति से विवाह हो गया. दोनों खुशनुमा जिंदगी पिछले 4 वर्षों से व्यतीत कर रहे थे. अनाया भी 10 साल की हो गई थी. श्लोक की मम्मी और उस के मम्मीपापा की बहुत पटती थी. तीनों अकसर कहीं घूमने निकल जाते थे.
चूंकि दोनों की पोस्टिंग भोपाल में ही थी सो अब विवाह के बाद श्लोक ने अपने नाम पर भोपाल की प्राइम लोकेशन कहे जाने वाले चार इमली में बंगला एलौट करा लिया था. इस समय अनाया अपने स्कूल ट्रिप पर मनाली गई हुई थी. आज अनिमेष के विभाग का निर्णय उसे पता चला था, तब से ही वह बहुत खुश थी. आखिर, असत्य पर सत्य की जीत हो ही गई थी.